सोमवार, 13 अगस्त 2012
साम्राजी ताकतों से सम्बन्ध और देश की आजादी का सवाल-2
अब अगर ब्रिटेन के इस एकाधिकारी लूट - पाट एवं प्रभुत्व के संबंधो से अलग करके अंग्रेजो द्वारा ब्रिटिश राज की स्थापना एवं संचालन को ही देश की गुलामी मान लिया जाय तो इससे गुलामी के मूल सम्बन्ध छिपने ही नही जायेंगे , चर्चा तक में नही आयेंगे | फलत: ये सम्बन्ध छिप ही नही जायेंगे बल्कि विरोध से बच जायेंगे और ज्यो के त्यों बने रहेंगे | 1947 में यही हुआ है |
राज के संचालन से अंग्रेजो के हटने और उस राज पर हिन्दुस्तानियों के चढने को ही परतंत्रता का अन्त और स्वतंत्रता का शुभारम्भ घोषित कर दिया गया | मुख्यत: इसीलिए ब्रिटेन और ब्रिटेन की कम्पनियों के साथ बने संबंधो को संचालित करने वाले राज का ढाचा भी जस का तस रह गया | उसमे मुख्य परिवर्तन हुआ तो यही की उसके मुख्य संचालक अब अंग्रेज नही बल्कि भारतीय थे | उच्च अफसरशाही में अंग्रेज नही बल्कि भारतीय बैठे हुए थे | इस राज के मूल ढाचे को ज्यो का त्यों बने रहने का एक बड़ा सबूत यह भी है अभी भी सारे प्रमुख या बुनियादी कानून ब्रिटिश दासता के काल के ही बने हुए है और लागू भी है | कोई भी समझ सकता है की कानून का राज कहे जाने वाले आधुनिक भारतीय राज में अगर मूल या प्रमुख कानून ही दासता के काल के हो तो उसे स्वतंत्र और जनतांत्रिक राज कहना या बताना न्याय संगत नही कहा जा सकता |
इसलिए आँखे मूंदकर 15 अगस्त 1947 को देश की स्वतंत्रता को मनाने या मानने की जगह अब यह अहम सवाल खड़ा होना चाहिए की 1947 में ब्रिटेन के साथ लूट व दस्ता के आर्थिक संबंधो को बनाये रखकर फिर ब्रिटिश राज उसके शासन -- प्रशासन के मूल ढाचे को , उसे संचालित करने वाले प्रमुख कानूनों को बनाये रखकर 1947 में घोषित स्वतंत्रता को क्या राष्ट्र की स्वतंत्रता माना जाए ? या स्वतंत्रता के रूप में छिपी परतंत्रता ? देश का धनाढ्य वर्ग , कम्पनिया और देश का उच्च हुकुमती तथा गैर हुकुमती हिस्सा इसे स्वतंत्रता मानता है , क्योकि उसे राज के संचालन नियंत्रण से लेकर देश के संसाधनों की लूट का प्रभुत्व अधिकार मिल गया है | ब्रिटिश राज के रहते ही इस देश की धनाढ्य कम्पनियों को तथा उच्च हिस्सों को ( खासकर 1920 के बाद से ) ये अधिकार बढ़ते रहे थे जो 1947 में ब्रिटिश सरकार के आसन पर चढने के साथ परिपूर्ण हो गये | आपसी समझौते से मिली इस स्वतंत्रता में सत्ताधारी , भारतीयों को ये अधिकार ब्रिटेन के साथ ब्रिटिश दासता के समय में बनते बढ़ते रहे आर्थिक , राजनितिक , सामाजिक , सांस्कृतिक संबंधो को बनाये रखने के लिए ही मिले थे | यही सम्बन्ध बाद के दौर में अमेरिका और अन्य साम्राज्यी देशो से भी बढ़ते रहे है | इसके फलस्वरूप इस देश का धनाढ्य एवं उच्च हिस्सा साम्राज्यी देशो के सहयोग व साठगाठ से और ज्यादा धनाढ्य एवं अधिकार सम्पन्न होता गया है | लेकिन इन्ही स्थितियों एवं संबंधो खासकर आर्थिक , कुटनीतिक संबंधो के चलते जनसाधारण हिस्से की बुनियादी समस्याए -- महगाई , बेकारी से लेकर साधन -- हीनता , अधिकारहीनता की समस्याए प्रत्यक्ष ब्रिटिश दासता काल से लेकर आज तक न केवल विभिन्न रूपों में बढती भी रही है | इन संबंधो में जीते -- मरते हुए कोई भी गम्भीर व समझदार आदमी जनसाधारण के लिए इसके निरंतर बदतर होती दिशा या कहिये जन्घाती दिशा का पूर्वानुमान लगा सकता है | ऐसी स्थिति में जन साधारण 1947 की स्वतंत्रता को ज्यादा से ज्यादा ऐसी आशिक स्वतंत्रता कह सकता है , जिसके भीतर परतंत्रता के मूल सम्बन्ध मौजूद थे व है | बाद के दौर में और वे बढ़ते भी रहे है | इसीलिए ब्रिटिश काल से आज तक चली आ रही अपनी इस परतंत्रता तथा संकटों से युक्त अपनी स्थितियों को बदलने के लिए भी तथा 1947 की स्वतंत्रता को पूर्ण स्वतंत्रता में बदलने के लिए भी देश के इसी जनसाधारण को अपरिहार्यत:खड़ा होना पडेगा | इसके लिए अब साम्राज्यी देशो के साठ लूट व प्रभुत्व बनाये रखने वाले संबंधो को तोड़ने इससे इस राष्ट्र को मुक्त कराने औनिवेशिक काल के कानूनों को खत्म करने और औपनिवेशिक राज्य के ढाचे को राष्ट्र हित एवं जनहित के जनतांत्रिक ढाचे के रूप में बदलने की जिम्मेवारी भी अब देश के जनसाधारण की ही है | इसलिए उसे ही 1947 के वास्तविक चरित्र को अब अपरिहार्य रूप से समझना होगा |
सुनील दत्ता ....पत्रकार
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2 टिप्पणियां:
जन साधारण को समझाने के लिए बाम,पंथ को अपनी कार्य शैली मे बदलाव करना होगा तभी सफल हो सकता है वरना तो शताब्दी की ओर बढ़ते हुये जनाधार सिकुड़ता ही जा रहा है।
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