बढ़ते रक्षा बजट के जरिये देश की सुरक्षा का कोई काम हो या न हो , लेकिन हथियार कम्पनियों को जबर्दस्त लाभ दिया जा रहा है तथा उनके वैश्विक व्यापार बाजार की सुरक्षा भी की जा रही है |
आधुनिक और अत्याधुनिक हथियारों के अन्तराष्ट्रीय बाजा के व्यापार को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए
बढ़ाने की कोशिश है पर यह सच नही है बल्कि पूरी दुनिया के हथियारों के सौदागरों को बड़ी पूंजी का मालिक बनाया जा रहा है | अपितु यह राष्ट्र पर निभर बनाने व साथ -- साथ देश को असुरक्षित करता जा रहा है | एक अन्तराष्ट्री संस्थान की रिपोर्ट में बताया गया की विश्व व्यापार व आयात निर्यात में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार हथियार उद्योग में होता है | प्रकाशित सूचनाओं के अनुसार हथियारों के विश्व व्यापार में विश्व की कुल 10 कम्पनियों का वर्चस्व है | यह बात जग जाहिर है क़ि ये कम्पनिया अमेरिका , इंग्लैण्ड , रूस फ्रांस , जर्मनी जैसे देशो की साम्राज्यी कम्पनिया है | विश्व पैमाने के हथियार उद्योग में इन्ही कम्पनियों का वर्चस्व है | इनमे कोई व्यापारिक होड़ नही है | यह होड़ इन कम्पनियों के बीच है | राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इन कम्पनियों के आधुनिक हथियारों एवं अन्य साजो -- सामानों की माँग विश्व के सभी पिछड़े व विकासशील देशो में न केवल बरकरार है बल्कि इन देशो के बीच मौजूद आपसी तनाव झगड़ो व युद्धों के कारण यह माँग बढती जा रही है | उदाहरण भारत -- पाकिस्तान के बीच तनाव व युद्ध की बारम्बार की स्थितियों के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर दोनों देशो द्वारा रक्षा बजट बढाने के साथ हथियारों की खरीद को तेजी से बढाया जाता रहा है | रक्षा सौदों में सर्वाधिक भ्रष्टाचार के कारण में एक तो आधुनिक हथियार व अन्य साजो सामान के उत्पादन व व्यापार में साम्राज्यी कम्पनियों का ही विश्वव्यापी एक छत्र राज फिर निसंदेह: आपसी होड़ | इन आधुनिक हथियारों के उत्पादन व व्यापार में कम्पनियों द्वरा
अधिकाधिक मूल्य अर्थात उनके वास्तविक मूल्य से कई गुना ज्यादा वसूला जाता है जो अरबो में नही बल्कि खरबों में पहुंचता है , इस लिए इस मूल्य से करोड़ो , अरबो का कमीशन खोरी देने का काम भी आम तौर पर होता रहता है | आज से 25 वर्ष पहले बोफोर्स तोप में 60 करोड़ के कमीशन के साथ करोड़ो की दलाली की भी चर्चा बार - बार होती रही | इस भ्रष्टाचार का दुसरा बड़ा आधार विश्व के भारत , पाक जैसे लागभग 150 विकासशील पिछड़े देशो के बीच आपसी तनाव तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हथियार कम्पनियों से अधिकाधिक हथियारों व साजो-- सामानों की उच्च मूल्यों पर बढाकर खरीदारी की जाती रही है | इसी के साथ रक्षा सौदों में राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर बरती जा रही गोपनीयता भी रक्षा सौदों के भ्रष्टाचार को और अधिक बढावा देने का एक कारण यह भी है |
रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार अन्तराष्ट्रीय स्तर की दलाली से लेकर , किसी देश के मंत्रियों , सांसदों , उच्च स्तरीय सैन्य व गैर सैन्य अधिकारियों को करोड़ो की दलाली कमीशन देने तक ही सीमित नही है , बल्कि अन्य रूपों में भी मौजूद है उदाहरण , ये साम्राज्यी कम्पनिया अपने देशो के अवकाश प्राप्त उच्च अधिकारियों से लेकर खासकर रक्षा अधिकारियों से लेकर खरीदार देशो के अवकाश प्राप्त रक्षा अधिकारियो को अपना स्थायी वेतन भोगी सेवक व दलाल बना लेती है | ताकि सौदों को पटाने में अपने देश के रक्षा मंत्रालय और सरकार पर खरीददार देशो के रक्षा मंत्रालय और सरकार पर इन पूर्व संबंधो एवं प्रभावों का व्यापारिक इस्तेमाल किया जा सके | विदेशी पूंजी व तकनीक पर निर्भर और उनसे साठ -- गाठ करती रही भारत जैसे देशो की बड़ी कम्पनिया भी विभिन्न साम्राज्यी हथियार कम्पनियों की वकालत में जुट जाती है | इसके अलावा साम्राज्यी हथियार कम्पनियों द्वारा राजनितिक पार्टियों को अधिकाधिक चंदा देने से लेकर अपने देशो के रक्षा मंत्रियों , सांसदों आदि को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कमिशन भेट देना भी हथियार व्यापार का अन्तराष्ट्रीय दस्तूर बना हुआ है | जाहिर सी बात है की करोड़ो अरबो का यह भ्रष्टाचार हथियारों के अन्तराष्ट्रीय बिक्री व्यापार की कमाई के जरिये ही किया जाता है | इस कमाई का अंदाजा भारत -- पाक जैसे देशो के रक्षा बजट से लगाया जा सकता है , जो साल - दर-- साल बढ़ता जा रहा है | भारत में भी देश का बढ़ता बजट का 15 % से उपर पहुंचता है | लाखो -- करोड़ो के इस बजट का लगभग 60 % से 70 % हिस्सा अन्तराष्ट्रीय हथियार कम्पनियों के पास पहुंचता है | फिर बीते समय के साथ अधिकाश पुराने हथियार धरे - के धरे रह जाते है | उनकी जगह साम्राज्यी कम्पनिया अपनी नयी तकनीकि खोज -- प्रयोगों के जरिये नए आधुनिक हथियाओ को आगे ला देती है उसे खरीदने के जरिये दवाव डालने लग जाती है | फलस्वरूप बढ़ते रक्षा बजट के जरिये देश की सुरक्षा का कोई काम हो या न हो , लेकिन हथियार कम्पनियों के अधिकाधिक लाभ ( एकाधिकारी लाभ ) को तथा उनके वैश्विक व्यापार बाजार की सुरक्षा जरुर हो जाती है | साथ ही '' सुरक्षा '' होती है उन दलालों कमीशनखोरो की , जिन्हें कम्पनी अपने लाभ का एक छोटा सा हिस्सा करोड़ो की रकम के रूप में खिला --- पिला देती है | यह काम केवल हथियार बेचने वाली साम्राज्यी कम्पनिया ही नही करती है , बल्कि सभी क्षेत्रो की साम्राज्यी कम्पनिया करती है | ऐसा करना वस्तुत: उनके साम्राज्यी चरित्र का अहम हिस्सा है | अपने वैश्विक व्यापार बिक्री के साथ वैश्विक बाजार को एकाधिकार बढाने के लिए उपरोक्त भ्रष्टाचारी हथकंडे अपनाना भारत -- पाक जैसे देशो की सरकारों , सांसदों , मंत्रियों तथा आला अधिकारियो को पोर -- पोर से भ्रष्ट बनाना , उनकी चारित्रिक विशेषता है |
साम्राज्यी कम्पनियों का यह लुटेरा व भ्रष्टाचारी चरित्र इस देश को देश के जनसाधारण को खोखला करता जा रहा है | इसके अलावा विदेशी कम्पनियों के साथ गठ - जोड़ करती देश की बड़ी कम्पनिया भी यही काम करती रही है | देश की सत्ता सरकारे व अन्य हुक्मती हिस्से भी इन्हें बहुराष्ट्रीय व देशी कम्पनियों के हितो को बढाने और उसकी सुरक्षा करने में लगे रहे है | देश की आत्म निर्भरता तथा रक्षा -- सुरक्षा अब इनकी चिंता का मामला नही रह गया है | फल स्वरूप राष्ट्र व राष्ट्र का जन साधारण अधिकाधिक असुरक्षित होता जा रहा है | न ही राष्ट्र की आंतरिक एकता व सुरक्षा मजबूत हो पायी और न ही वाह्य सुरक्षा ही | इसका सबूत आंतरिक व क्षेत्रीय उथल - पुथल व अलगाववादी झगड़ो -- विवादों से लेकर वाह्य घुस - पैठियो आदि के रूप में मौजूद है | साफ़ दिख रहा है की आधुनिक और अत्याधुनिक हथियारों के अन्तराष्ट्रीय व्यापार के जरिये बढाया जा रहा मामला राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने की दिशा में नही जा रहा है बल्कि वह राष्ट्र को पर निर्भर बनाने के साथ -- साथ अधिकाधिक असुरक्षित भी करता जा रहा है | आज फिर इस देश के आम --- आवाम को जागना होगा और मुझे कामरेड बल्ली सिंह चीमा की यह लाइन याद आ गयी >>>>>>>>>>>>>>>>>>>जनता के हौंसलों की सड़कों पर धार देख ।
सब-कुछ बदल रहा है चश्मा उतार देख ।
जलसे-जुलूस नाटक, हर शै पे बन्दिशें,
करते हैं और क्या-क्या भारत के ज़ार देख।
तू ने दमन किया तो हम और बढ़ गए,
पहले से आ गया है हम में निखार देख ।
हैं बेलचों, हथौड़ों के हौंसले बुलन्द,
ये देख दु्श्मनों को चढ़ता बुखार देख ।
तेरी निजी सेनाएँ रोकेंगी क्या इन्हें,
सौ मर गए तो आए लड़ने हज़ार देख ।
सच बोलना मना है गाँधी के देश में,
फिर भी करे हिमाक़त ये ख़ाकसार देख ।
-सुनील दत्ता
पत्रकार
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