जो लोग बम्बई
,कलकत्ता और दिल्ली जैसे शहरों में एक बार हो आये है अथवा किसी कारणवश अब
वही रहने लग गये है ,ऐसे लोग जब कभी किसी छोटे शहर में आयेंगे तो उस शहर के
बारे में इस तरह बातचीत करेंगे मानो परमाणु बम का भेद बता रहे हो | चूँकि
हम कभी दिल्ली ,बम्बई गये नही इसलिए हम उनकी मुँह बाकर इस तरह निगल जाते थे
जैसे बरसात में छिपकलिया पतिंगो को | कभी -कभी हम यह महसूस करने लगते है
,नाहक हमारी पैदाइश बनारस जैसे शहर में हुई |काश !हम बम्बई ,कलकत्ता जैसे
शहरों में पैदा हुए होते | वहा ऊँची -ऊँची इमारतो से नीचे की झांककर देखते
की आदमी अंगूठे से कितना बड़ा होता है ,चौपाटी और मिलावर हिल से समुद्र की
अजगर सरीखी लहरे गिनते |
इन शहरों की तारीफ़ में ख़ास चर्चा मकानों और सडको के बारे में होती है | वहा के मकान इतने ऊँचे है की सडक पर खड़े होकर उपर देखो तो टोपी गिर जाए | सड़के इतनी खुशनुमा है की पैर फिसल जाते है | चौड़ाई तो इतनी की यहा की तीन एक ही में घुस जाए | गलिया तो वहा है ही नही और जो है भी ,वे यहा की सडको की नानी से कम नही | धीरे-धीरे उनकी बातचीत का असर इस कद्र होता है की हम यहा फरमान जारी कर देते है - -- इस साल चाहे जैसे हो कलकत्ता ,बम्बई जाकर ही रहेंगे | हमारे ऐलान को सुनकर हजरत यो मुँह सिकोड़ लेते जैसे 100 ग्रेन कुनैन का मिक्सचर पी लिया हो | मस्तक पर मुठ्ठी भर बल डाले इस अंदाज से कह उठते ,'खुदा झूठ न बोलाए | आज तीन साल हो गये वहा रहते ,पर अभी तक हम यह नही जान सके की कौन सडक किधर जाती है | फंला जगह जाने के लिए किन -किन सडको से या किस बस पर सवार होकर जा सकते है ,नही बता सकते | रात को कौन कहे ,दिन को भी हम अक्सर रास्ता भूल जाते है |फिर आप जैसा आदमी जाए तो खो जाने में कोई शुबहा नही |दाए -बाए का ख्याल न रखे तो हवालात में बन्द हो जाए या सीधे नर्क का टिकट कटाए | अगर आप किसी ठग या सुंदरी के चक्कर में आ गये तो बड़ा गरक ही समझिये |"
चूँकि हम अपने मा -बाप की इकलौती संतान और अपनी बेगम के इकलौते मिया है ,इसलिए मुफ्त में खो जाना या हवालात में बन्द होकर नर्क का टिकट कटाना कतई पसंद नही करते | जबकि हम पैदा होते ही अपने बाप को यह सार्टिफिकेट दे चुके है की आपकी गैरमौजूदगी में मैं और मेरी औलाद आपको पितृपक्ष के दिनों पानी जरुर देंगे |नतीजा यह होता है की हम अपना फैसला चुचाप वापस ले लेते है ,फिर कभी उधर जायंगे -यह ख़्वाब में भी नही लाते है |
यह अजीब इत्तिफाक की बात है की एक बार हमारे घर एक नजूमी आया और उसने बताया और उसने बताया की मैं बम्बई ,कलकत्ता और दिल्ली जैसे शहरों में जरुर जा सकता हूँ | बात ठीक निकली | वह अरमान जो की कुचल दिया गया था ,पुष्पित हो उठा |हम गये और वापस भी चले आये |न कही खोये ,न कही पैर फिसला |न कही टोपी गिरी ,न हवालात में बन्द हुए |ठग और सुन्दरी से भेट हुई ,पर हम उनकी चकल्लस में नही आयी | लेकिन जो मजा बनारस की गलियों में है ,वह मजा दुनिया के किसी पर्दे में नही है | जो आजादी यहा के हर गली -कूंचे में है उसे ये सात जन्म में नही पा सकते |बनारसी गलियों का कुछ मजा सिर्फ मथुरा में मिल सकता है ........
बनारस की सड़के
.............................. ..बनारस में जितनी सड़के है
, उससे सौ गुनी अधिक गलिया है | यदि आप बनारस की सडको का मुआइना कर बनारस
के बारे में फैसला देंगे तो यह सेंट -परसेंट अन्याय होगा | असली मजा तो
बनारस की गलियों में दुबका हुआ है | बनारसी भाषा में उन्हें 'पक्का महाल
'-'भीतरी महाल ' कहते है | काशी खंड के अनुसार विश्वनाथ खंड -केदारखंड की
तरह वर्तमान बनारस भी दो भागो में बसा हुआ है -भीतरी महाल (पक्का महाल ) और
बहरी तरफ | आपने सिर्फ बाहरी रूप अर्थात कच्चा रूप देखा है | पक्का रूप
देखना हो तो गलियों में थरान दीजिये | यहा की सड़के अभी जुमा -जुमा आठ रोज
हुए बनी है यानी 'लली ' है | बेचारी ठीक से सुख भी नही पायी है | यकीन न हो
तो किसी दिन गर्मी के मौसम में पैदल चलकर देख लीजिये | सुकतल्ला सडक पर
चिपककर रह जाएगा और हवाली जुटा आपके पैरो में | यदि जूता काफी मजबूत हुआ तो
बनारस की धरती इस कदर प्यार से आपके कदमो को चूमेगी की उससे अपना दामन
छुडाने में आप को छठी का धुध याद आ जाएगा | अगर आपकी यह कसरत बनारसी -पठ्ठो
ने देखि तो -'बोल छ्माना छे ;खिल्छे रहे पठ्ठे ,जाए न पावे 'फिकरा कास ही
देंगे |कहने का मतलब यह है की बनारस की सड़के हर पैदल चलनेवाले मुसाफिरों से
बेहद मुहब्बत करती है | इनकी मुहब्बत हर मौसम में अलग -अलग ढंग से पेश आती
है |बरसात में इनकी होली देश विख्यात है और बसंत ऋतू में जब ये आप पर
'गुलाल 'बरसाने लगती है तो मत पूछिए ! आनन्द आ जाता है |
स्कूलो में आप ज्योमेट्री की शिक्षा पा चुकर होंगे | मुमकिन है की उसकी याद धुधली हो गयी हो | यदि आप बनारस की सडको पर तहलान दे तो मजबूरन ज्योमेट्री के प्रति दिलचस्पी पैदा ओ जायेगी | जब कोई बैलगाड़ी ,तर्क ,जीप या टैक्सी इस सडको पर से गुजरती है तब हर रंग की हर ढंग की समानान्तर रेखाए ,त्रिभुज ,चत्तुर्भुज और षटकोण के ऐसी अजीब -गरीब नक्शे बन जाती है जिसका अंश बिना परकार की सहायता के ही बताया जा सकता है | नगरपालिका को चाहिए की वह अपने यहा के अध्यापको को इस बात का आदेश दे दे की वे अपने छात्रों को सडक पर बने हुए ज्योमेट्री का परिचय अवश्य करा दे |सुना है काशी के कुछ माडर्न आर्टिस्ट इन नक्शों के सहयोग से प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके है |
यहा की सड़के डाक्टरों की आमदनी भी बढाती है | यही वजह है की अन्य शहरों से कही अधिक बनारस में डाक्टर है |यदि आप किसी रिक्शे पर सवार होकर एक बार शहर की परिक्रमा कर ले तो इसका अनुभव हो जाएगा | बनारस के बाशिंदे तो इसके आदि हो गये है | यहा के कुछ गुरुओ का ,(जो लन्दन ,पेरिस और अमेरिका हो आये है ) कहना है की उन्हें हवाई जहाज या समुद्री जहाज में चक्कर देने वाली बीमारी इन सडको के हिचकोले खाने के कारण नही हुई |इसीलिए आपको जब कभी विदेश जाने की जरूरत हो तो एक बार बनारस आकर रिक्शे की सवारी पर हिचकोले जरुर खाइए | यहा हर पांच कदम पर गढ्ढे है | जब इन गढ़ढो में रिक्शे का पहिया फंसेगा तब पेट का सारा भोजन कंठ तक आ जाएगा | दूसरे दिन बदन में इतना दर्द हो जाएगा की आप को डाक्टर का दरवाजा खटखटाना पडेगा |
अंग्रेजी काल में जब कोई गवर्नर या अधिकारी काशी -दर्शन के लिए आता था तब उसे ख़ास सडको से ले जाया जाता था | जब लगातार लोग यहा आने लगे तब कैंट से नदेसर तक और कैंट से पानी कल तक सीमेंट की सड़के बना दी गयी | विश्वविद्यालय के छात्र खुरापाती होते ही है \एक बार उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व गवर्नर माननीय कन्हैया लाल माणिकलाल मुंशी जी की मोटर लंका से अस्सी की ओर इन लोगो ने चलवा दी | नतीजा यह हुआ की नगरपालिका ने उस सडक की खाज को दूसरे साल मलहम पट्टी लगाकर कुछ हद तक ठीक कर दिया |भगवान करे हर प्रांत के गवर्नर यहा आवे और इस प्रकार प्रत्येक सडक का खाज एक्जिमा दूर होता रहे .....
गलियों की विशेषता ...............
काशी में सडको का कोई महत्व नही है ,इसलिए बहुत कम लोग सडको पर चलते है | सडको का उपयोग जुलूस निकालते समय होता है | उस पर पैदल से अधिक लोग सवारी से चलते है | इधर कुछ ऐसे लोग (शायद मेंटल हास्पिटल से छूटकर ) आ गये है जो सडको को महत्व देने लग गये है | ऐसे लोग लम्बे सडक 'मकान बिकाऊ है 'दूकान खाली है '' अथवा 'भाड़े पर लेना है ' का विज्ञापन छपवाते है |
काशी की अधिकाश गलिया ऐसी है ज़हा सूर्य की रौशनी नही पहुचती | कुछ गलिया ऐसी है जिनमे दो आदमी एक साथ गुजर नही सकते | इन गलियों की बनावट देखकर कई विदेशी इंजीनियरों की बुद्धि गोल हो गयी थी! जो लोग यह कहते है की बम्बई -कलकक्ता की सडको पर खो जाने का डर रहता है ,वे काशी की गलियों का चक्कर काटे तो दिन भर के बाद शायद ही डेरे तक पहुच सकेंगे | आज भी ऐसे अनेक बनारसी मिलेंगे जो बनारस की सभी गलियों को छान चुके है ,कहने में दांत निपोर देंगे |
इन गलियों से गुजरते समय जहा कही चुके तुरंत ही दूसरी गली में जा पहुचेंगे | कलकक्ता ,बम्बई की तरह सडक की मोड़ पर अमुक दूकान ,अमुक निशान रहा -याद रहने पर मंजिल तक पहुच सकते है -- पर बनारस में इस तरह के निशान - दूकान -साइनबोर्ड भीतरी महाल में नही मिलेंगे | नतीजा यह होगा की काफी दूर आगे जाने पर रास्ता बन्द मिलेगा | उधर से गुजरने वाले आपकी ओर इस तरह देखेंगे की यह 'चाईया' इधर कहा जा रहा है | नतीजा यह होगा की आपको पुन:गली के उस छोर तक आना पडेगा ज़हा से आप गडबड़ाकर मुद गये थे |कुछ गलिया ऐसी है की आगे बढने पर मालूम होगा की आगे रास्ता बंद है ,लेकिन गली के छोर के पास पहुचने पर देखेंगे की बगल से एक पतली गली सडक से जा मिली है | अक्सर इन गलियों में जब खो जाने में आता है ,खासकर रात के समय ,तब लगता है जैसे -ऊँचे फादो की घाटियों में खो गये है | इन गलियों में लोग चलते -फिरते कम नजर आते है | जो नजर भी आते है ,वे उस गली के बारे में पूर्ण विवरण नही बता सकते | हो सकता है ,वे भी आपकी तरह चक्कर काट रहे हो | गलियों का तिलस्म इतना भयंकर है की बाहरी व्यक्ति को कौन कहे अन्य लोग भी जाने में हिचकते है | कुछ गलिया ऐसी है जिनसे बाहर निकलने के लिए किसी दरवाजे या मेहराबदार फाटक के भीतर से गुजरना पड़ता है |
बम्बई ,कलकक्ता की तरह यहा की सडको में चार से अधिक रास्ते नही है ,पर गलियों में चार से चौदह तक रास्ते है | किस गली से आप तुरंत घर पहुंच सकते है यह बिना जाने पूछे नही जान सकते |जिस गली से आप घर पहुच सकते है उसी गली से आप श्मशान या नदी किनारे भी जा सकते है |
गलियों का नगर
शैतान की आँत की भांति यह भूल -भुलैया संसार का एक आश्चर्यजनक दर्शनीय स्थान है | इन गलियों में कितनी आज़ादी है | नगे -घुमो गमछा पहिने चलो ,जहा जी में आये बैठो और जहा जी आये सो जाओ | कोई बिगड़ेगा नही ,भगाया नही और न डाटेगा | गावटी का गम्च्छा या सिल्क का कुर्ता पहने बनारसी रईस भी इन गलियों में छाता लगाए चलते है | शायद आपको जानकर आश्चर्य होगा की जिस गली में सूर्य की रौशनी नही पहुचती ,बरसात का मौसम नही हहै ,फिर भी लोग छाता लगाकर क्यों चलते है ? कारण है -गन्दगी | मान लीजिये आप बाज़ार से लौट रहे है ,अचानक उपर से कूड़े की बरसात हो गयी |यह बात अच्छी तरह जान लीजिये --बनारसी तीन मंजिले या चार मंजिले पर से बिना नीचे झाके ठुक सकता है ,पानी फेक सकता है और कूड़ा गिर सकता है | दूकान झाड बटोरकर आपके चेहरे पर सारा गर्दा फेक सकता है | यह उसका जन्मसिद्ध अधिकार है ;नीचे इस सत्कार्य से घायल व्यक्ति जब गालिया देता है तब सुनकर भाई लोग प्रसन्न हो उठते है | उनका रोम -रोम गाली देने वाले को साधुवाद देगा | अगर कही वे सज्जन चुपचाप चले गये तो इसका उन्हें अपार दुःख होगा और उस दुःख को मिटाने के लिए मुख से अनायास ही निकल जाएगा ----'मुरदार निकसल !'
किसी -किसी गली में बनारसीयो का पनाला इस अदा से पता है की फुहारे का मजा आता है ! गर्मी के दिनों में रात को ऐसी गलियों से गुजरना और खतरनाक होता है | सोते समय 'शंका समाधान 'के लिए बनारसी अपने को अधिक कष्ट नही देगा | परिणाम स्वरूप छत के पनाले से आप पर 'शुद्ध गंगाजल 'बरस सकता है | गुस्सा उतारने के लिए ऐसे घरो में आप घुसने की हिम्मत नही कर सकते | एक तो बाहर का भारी दरवाजा बन्द है ,दूसरे भीतर जाने पर भी यह पता चलना मुश्किल है की यह सत्कार्य किसने किया है | मुँह आपका है ,गालिया बक लीजिये और राह लीजिये ,बस! खासकर नगे पैर चलना तो और भी मुश्किल है | घर के बच्चे 'दीर्घशंका ' गलियों में रात को कर देते है | अगर इन गलियों में भगवान शंकर के किसी मस्ताने वाहन से भेट हो गयी उसने नाराज होकर आपको हुरपेटा तो जान बचाकर भागना मुश्किल हो जाएगा | खासकर उन गलियों में जो आगे बंद मिलती है | क्योंकि आप पीछे भाग नही सकते ,आगे रास्ता बन्द है ,बगल के सभी मकानों में भीतर से भारी सांकल लगी है और इधर सांड महराज हुरपेटते आ रहे है ! साल में दो -एक व्यक्ति इन सांडो के कारण काशी -लाभ करते है | लगे हाथ एक उदाहरण सुन लीजिये | अब्राहम लिकन के बाद जनरल ग्रांट अमेरिका के राष्ट्रपति हुए थे | एक बार जब वे हिन्दुस्तान में दौरे पे आये तब बनारस भी आये थे | उन्होंने इस शहर को 'एक सिटी आफ लेंस "अर्थात गलियों का शहर कहा है | कहा जाता है की उनकी पत्नी शंकर भगवान के वाहन ने अपने सींग पर उठा लिया था |
कहा जाता है की राजा रामचन्द्र के सुपुत्रों (लव -कुश ) से बुरी तरह शिकस्त खाकर पवनसुत हनुमान जी अपनी बिरादरी के साथ बनारस में आकर बस गये | आज वे इन गलियों में क्रीडा -स्थल बनाकर प्रसन्न है | ऐसी घटनाए प्राय: सुनने में आती है की गली से गुजरते समय अचानक उपर छत से पथ्थर का रोड़ा सर पर आ गिरा और बड़ी आसानी से स्वर्ग में सीट रिजर्व हो गयी | असल में यह पवनसुत के वंशजो का महज खिलवाड़ है |' खिलवाड़ ' से अगर कोई स्वर्ग पहुंच जाता है तो वह अपराध कैसे हो सकता है ? पवनसुत के वंशजो का तर्क कानून शास्त्री को घपले में डाल देता है | इस आसमानी खतरे से बचने के दो ही उपाय है -एक तो सिर पर फौजियों वाली लोहे की टोपी या फिर आपका अपना भाग्य ! क्योंकि इस तरह की फौजदारी की घटना किसी थाने में दर्ज नही होती और न इसके मुकदमे अदालत में स्वीकार किए जाते है | इन गलियों के नामकरण और उनकी दूरी को यदि आप नजरअंदाज करे तो बनारस के पोस्टल विभाग की प्रसंशा करेंगे |हर बनारसी अपने को 'सरनाम ' (प्रसिद्ध ) समझता है |मुहल्ले का एक व्यक्ति समूचे मुहल्ले की जानकारी रखता है | उसका विश्वास है की मुहल्ले के डाकिये से मुख्यमंत्री तक उसके नाम से परिचित है | काशी में 'दसपुतरिया गली " महज आठ -दस मकानों का एक मुहल्ला है ,पर वहा के रहने वाले को 'दसपुतरिया 'गली' के नाम पर पत्र मिल जाते है | इस प्रकार छोटी -छोटी गलिया यहा काफी प्रसिद्ध है | नगरपालिका भले ही नेताओं के नाम पर गलियों का नामकरण करे ,पर बनारस वाले अपनी पुरानी परम्परा नही बदल सकते |
इस गलियों में गर्मी के दिनों में शिमला का मजा ,जाड़े में पूरी का मजा ,और बरसात में पहाड़ी स्थानों का मजा अनायास मिलता रहता है | यही वजह है की बनारसी लोग पहाड़ी स्थानों में कभी नही जाते |रहा गंदगी का प्रश्न ,सो कहा नही है | जिस गली में इमली के बीज बिखरे ही समझ ले इस गली में मद्रासी रहते है | जिस गली में मछली महकती हो ,वह बंगालियों का मुहल्ला है |जिस गली में हड्डी लुढकी हो ,वह मुसलमान दोस्तों का मुहल्ला है | इस प्रकार हर गली में प्रत्येक वर्ग का साइन बोर्ड लटकता रहता है | अध्ययन करने वालो को इन साइनबोर्डो से बड़ी हेल्प मिलती है | मदनपुरा ,पांडये हवेली ,सोनारपुरा आदि मुहल्लों में सादिया बनती है और रानी कुआ ,कुंज्गली आदि मुहल्लों में बिकती है | गोविन्दपुरा ,राजा दरवाजा ,कोदई की चाकी में सोने चाँदी का व्यवसाय होता है |कचौड़ी गली की कचौड़ी ,ठठेरी बाजार के पीतल के बर्तन ,विश्वनाथ गली की चुदिया ,लकड़ी के खिलौने भारत प्रसिद्ध है |मिश्रपोखरा स्थित जर्दे के कारखाने ,लोह्तिया और ख़ास में लोहे ,लकड़ी का व्यवसाय होता है |अधिक दूर क्यों ,काशी में मंगलामुखियो का व्यवसाय भी गलियों में ही होता है |दालमंडी -छ्त्ताताले ,म्द्वादिः में आशिक लोग नित्य शाम को जुटा करते है |मतलब यह की बनारस की प्रसिद्धि जिन वस्तुओ के कारण है ,उन वस्तुओ का व्यवसाय गलियों में ही होता है |
-सुनील दत्ता
इन शहरों की तारीफ़ में ख़ास चर्चा मकानों और सडको के बारे में होती है | वहा के मकान इतने ऊँचे है की सडक पर खड़े होकर उपर देखो तो टोपी गिर जाए | सड़के इतनी खुशनुमा है की पैर फिसल जाते है | चौड़ाई तो इतनी की यहा की तीन एक ही में घुस जाए | गलिया तो वहा है ही नही और जो है भी ,वे यहा की सडको की नानी से कम नही | धीरे-धीरे उनकी बातचीत का असर इस कद्र होता है की हम यहा फरमान जारी कर देते है - -- इस साल चाहे जैसे हो कलकत्ता ,बम्बई जाकर ही रहेंगे | हमारे ऐलान को सुनकर हजरत यो मुँह सिकोड़ लेते जैसे 100 ग्रेन कुनैन का मिक्सचर पी लिया हो | मस्तक पर मुठ्ठी भर बल डाले इस अंदाज से कह उठते ,'खुदा झूठ न बोलाए | आज तीन साल हो गये वहा रहते ,पर अभी तक हम यह नही जान सके की कौन सडक किधर जाती है | फंला जगह जाने के लिए किन -किन सडको से या किस बस पर सवार होकर जा सकते है ,नही बता सकते | रात को कौन कहे ,दिन को भी हम अक्सर रास्ता भूल जाते है |फिर आप जैसा आदमी जाए तो खो जाने में कोई शुबहा नही |दाए -बाए का ख्याल न रखे तो हवालात में बन्द हो जाए या सीधे नर्क का टिकट कटाए | अगर आप किसी ठग या सुंदरी के चक्कर में आ गये तो बड़ा गरक ही समझिये |"
चूँकि हम अपने मा -बाप की इकलौती संतान और अपनी बेगम के इकलौते मिया है ,इसलिए मुफ्त में खो जाना या हवालात में बन्द होकर नर्क का टिकट कटाना कतई पसंद नही करते | जबकि हम पैदा होते ही अपने बाप को यह सार्टिफिकेट दे चुके है की आपकी गैरमौजूदगी में मैं और मेरी औलाद आपको पितृपक्ष के दिनों पानी जरुर देंगे |नतीजा यह होता है की हम अपना फैसला चुचाप वापस ले लेते है ,फिर कभी उधर जायंगे -यह ख़्वाब में भी नही लाते है |
यह अजीब इत्तिफाक की बात है की एक बार हमारे घर एक नजूमी आया और उसने बताया और उसने बताया की मैं बम्बई ,कलकत्ता और दिल्ली जैसे शहरों में जरुर जा सकता हूँ | बात ठीक निकली | वह अरमान जो की कुचल दिया गया था ,पुष्पित हो उठा |हम गये और वापस भी चले आये |न कही खोये ,न कही पैर फिसला |न कही टोपी गिरी ,न हवालात में बन्द हुए |ठग और सुन्दरी से भेट हुई ,पर हम उनकी चकल्लस में नही आयी | लेकिन जो मजा बनारस की गलियों में है ,वह मजा दुनिया के किसी पर्दे में नही है | जो आजादी यहा के हर गली -कूंचे में है उसे ये सात जन्म में नही पा सकते |बनारसी गलियों का कुछ मजा सिर्फ मथुरा में मिल सकता है ........
बनारस की सड़के
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स्कूलो में आप ज्योमेट्री की शिक्षा पा चुकर होंगे | मुमकिन है की उसकी याद धुधली हो गयी हो | यदि आप बनारस की सडको पर तहलान दे तो मजबूरन ज्योमेट्री के प्रति दिलचस्पी पैदा ओ जायेगी | जब कोई बैलगाड़ी ,तर्क ,जीप या टैक्सी इस सडको पर से गुजरती है तब हर रंग की हर ढंग की समानान्तर रेखाए ,त्रिभुज ,चत्तुर्भुज और षटकोण के ऐसी अजीब -गरीब नक्शे बन जाती है जिसका अंश बिना परकार की सहायता के ही बताया जा सकता है | नगरपालिका को चाहिए की वह अपने यहा के अध्यापको को इस बात का आदेश दे दे की वे अपने छात्रों को सडक पर बने हुए ज्योमेट्री का परिचय अवश्य करा दे |सुना है काशी के कुछ माडर्न आर्टिस्ट इन नक्शों के सहयोग से प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके है |
यहा की सड़के डाक्टरों की आमदनी भी बढाती है | यही वजह है की अन्य शहरों से कही अधिक बनारस में डाक्टर है |यदि आप किसी रिक्शे पर सवार होकर एक बार शहर की परिक्रमा कर ले तो इसका अनुभव हो जाएगा | बनारस के बाशिंदे तो इसके आदि हो गये है | यहा के कुछ गुरुओ का ,(जो लन्दन ,पेरिस और अमेरिका हो आये है ) कहना है की उन्हें हवाई जहाज या समुद्री जहाज में चक्कर देने वाली बीमारी इन सडको के हिचकोले खाने के कारण नही हुई |इसीलिए आपको जब कभी विदेश जाने की जरूरत हो तो एक बार बनारस आकर रिक्शे की सवारी पर हिचकोले जरुर खाइए | यहा हर पांच कदम पर गढ्ढे है | जब इन गढ़ढो में रिक्शे का पहिया फंसेगा तब पेट का सारा भोजन कंठ तक आ जाएगा | दूसरे दिन बदन में इतना दर्द हो जाएगा की आप को डाक्टर का दरवाजा खटखटाना पडेगा |
अंग्रेजी काल में जब कोई गवर्नर या अधिकारी काशी -दर्शन के लिए आता था तब उसे ख़ास सडको से ले जाया जाता था | जब लगातार लोग यहा आने लगे तब कैंट से नदेसर तक और कैंट से पानी कल तक सीमेंट की सड़के बना दी गयी | विश्वविद्यालय के छात्र खुरापाती होते ही है \एक बार उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व गवर्नर माननीय कन्हैया लाल माणिकलाल मुंशी जी की मोटर लंका से अस्सी की ओर इन लोगो ने चलवा दी | नतीजा यह हुआ की नगरपालिका ने उस सडक की खाज को दूसरे साल मलहम पट्टी लगाकर कुछ हद तक ठीक कर दिया |भगवान करे हर प्रांत के गवर्नर यहा आवे और इस प्रकार प्रत्येक सडक का खाज एक्जिमा दूर होता रहे .....
गलियों की विशेषता ...............
काशी में सडको का कोई महत्व नही है ,इसलिए बहुत कम लोग सडको पर चलते है | सडको का उपयोग जुलूस निकालते समय होता है | उस पर पैदल से अधिक लोग सवारी से चलते है | इधर कुछ ऐसे लोग (शायद मेंटल हास्पिटल से छूटकर ) आ गये है जो सडको को महत्व देने लग गये है | ऐसे लोग लम्बे सडक 'मकान बिकाऊ है 'दूकान खाली है '' अथवा 'भाड़े पर लेना है ' का विज्ञापन छपवाते है |
काशी की अधिकाश गलिया ऐसी है ज़हा सूर्य की रौशनी नही पहुचती | कुछ गलिया ऐसी है जिनमे दो आदमी एक साथ गुजर नही सकते | इन गलियों की बनावट देखकर कई विदेशी इंजीनियरों की बुद्धि गोल हो गयी थी! जो लोग यह कहते है की बम्बई -कलकक्ता की सडको पर खो जाने का डर रहता है ,वे काशी की गलियों का चक्कर काटे तो दिन भर के बाद शायद ही डेरे तक पहुच सकेंगे | आज भी ऐसे अनेक बनारसी मिलेंगे जो बनारस की सभी गलियों को छान चुके है ,कहने में दांत निपोर देंगे |
इन गलियों से गुजरते समय जहा कही चुके तुरंत ही दूसरी गली में जा पहुचेंगे | कलकक्ता ,बम्बई की तरह सडक की मोड़ पर अमुक दूकान ,अमुक निशान रहा -याद रहने पर मंजिल तक पहुच सकते है -- पर बनारस में इस तरह के निशान - दूकान -साइनबोर्ड भीतरी महाल में नही मिलेंगे | नतीजा यह होगा की काफी दूर आगे जाने पर रास्ता बन्द मिलेगा | उधर से गुजरने वाले आपकी ओर इस तरह देखेंगे की यह 'चाईया' इधर कहा जा रहा है | नतीजा यह होगा की आपको पुन:गली के उस छोर तक आना पडेगा ज़हा से आप गडबड़ाकर मुद गये थे |कुछ गलिया ऐसी है की आगे बढने पर मालूम होगा की आगे रास्ता बंद है ,लेकिन गली के छोर के पास पहुचने पर देखेंगे की बगल से एक पतली गली सडक से जा मिली है | अक्सर इन गलियों में जब खो जाने में आता है ,खासकर रात के समय ,तब लगता है जैसे -ऊँचे फादो की घाटियों में खो गये है | इन गलियों में लोग चलते -फिरते कम नजर आते है | जो नजर भी आते है ,वे उस गली के बारे में पूर्ण विवरण नही बता सकते | हो सकता है ,वे भी आपकी तरह चक्कर काट रहे हो | गलियों का तिलस्म इतना भयंकर है की बाहरी व्यक्ति को कौन कहे अन्य लोग भी जाने में हिचकते है | कुछ गलिया ऐसी है जिनसे बाहर निकलने के लिए किसी दरवाजे या मेहराबदार फाटक के भीतर से गुजरना पड़ता है |
बम्बई ,कलकक्ता की तरह यहा की सडको में चार से अधिक रास्ते नही है ,पर गलियों में चार से चौदह तक रास्ते है | किस गली से आप तुरंत घर पहुंच सकते है यह बिना जाने पूछे नही जान सकते |जिस गली से आप घर पहुच सकते है उसी गली से आप श्मशान या नदी किनारे भी जा सकते है |
गलियों का नगर
शैतान की आँत की भांति यह भूल -भुलैया संसार का एक आश्चर्यजनक दर्शनीय स्थान है | इन गलियों में कितनी आज़ादी है | नगे -घुमो गमछा पहिने चलो ,जहा जी में आये बैठो और जहा जी आये सो जाओ | कोई बिगड़ेगा नही ,भगाया नही और न डाटेगा | गावटी का गम्च्छा या सिल्क का कुर्ता पहने बनारसी रईस भी इन गलियों में छाता लगाए चलते है | शायद आपको जानकर आश्चर्य होगा की जिस गली में सूर्य की रौशनी नही पहुचती ,बरसात का मौसम नही हहै ,फिर भी लोग छाता लगाकर क्यों चलते है ? कारण है -गन्दगी | मान लीजिये आप बाज़ार से लौट रहे है ,अचानक उपर से कूड़े की बरसात हो गयी |यह बात अच्छी तरह जान लीजिये --बनारसी तीन मंजिले या चार मंजिले पर से बिना नीचे झाके ठुक सकता है ,पानी फेक सकता है और कूड़ा गिर सकता है | दूकान झाड बटोरकर आपके चेहरे पर सारा गर्दा फेक सकता है | यह उसका जन्मसिद्ध अधिकार है ;नीचे इस सत्कार्य से घायल व्यक्ति जब गालिया देता है तब सुनकर भाई लोग प्रसन्न हो उठते है | उनका रोम -रोम गाली देने वाले को साधुवाद देगा | अगर कही वे सज्जन चुपचाप चले गये तो इसका उन्हें अपार दुःख होगा और उस दुःख को मिटाने के लिए मुख से अनायास ही निकल जाएगा ----'मुरदार निकसल !'
किसी -किसी गली में बनारसीयो का पनाला इस अदा से पता है की फुहारे का मजा आता है ! गर्मी के दिनों में रात को ऐसी गलियों से गुजरना और खतरनाक होता है | सोते समय 'शंका समाधान 'के लिए बनारसी अपने को अधिक कष्ट नही देगा | परिणाम स्वरूप छत के पनाले से आप पर 'शुद्ध गंगाजल 'बरस सकता है | गुस्सा उतारने के लिए ऐसे घरो में आप घुसने की हिम्मत नही कर सकते | एक तो बाहर का भारी दरवाजा बन्द है ,दूसरे भीतर जाने पर भी यह पता चलना मुश्किल है की यह सत्कार्य किसने किया है | मुँह आपका है ,गालिया बक लीजिये और राह लीजिये ,बस! खासकर नगे पैर चलना तो और भी मुश्किल है | घर के बच्चे 'दीर्घशंका ' गलियों में रात को कर देते है | अगर इन गलियों में भगवान शंकर के किसी मस्ताने वाहन से भेट हो गयी उसने नाराज होकर आपको हुरपेटा तो जान बचाकर भागना मुश्किल हो जाएगा | खासकर उन गलियों में जो आगे बंद मिलती है | क्योंकि आप पीछे भाग नही सकते ,आगे रास्ता बन्द है ,बगल के सभी मकानों में भीतर से भारी सांकल लगी है और इधर सांड महराज हुरपेटते आ रहे है ! साल में दो -एक व्यक्ति इन सांडो के कारण काशी -लाभ करते है | लगे हाथ एक उदाहरण सुन लीजिये | अब्राहम लिकन के बाद जनरल ग्रांट अमेरिका के राष्ट्रपति हुए थे | एक बार जब वे हिन्दुस्तान में दौरे पे आये तब बनारस भी आये थे | उन्होंने इस शहर को 'एक सिटी आफ लेंस "अर्थात गलियों का शहर कहा है | कहा जाता है की उनकी पत्नी शंकर भगवान के वाहन ने अपने सींग पर उठा लिया था |
कहा जाता है की राजा रामचन्द्र के सुपुत्रों (लव -कुश ) से बुरी तरह शिकस्त खाकर पवनसुत हनुमान जी अपनी बिरादरी के साथ बनारस में आकर बस गये | आज वे इन गलियों में क्रीडा -स्थल बनाकर प्रसन्न है | ऐसी घटनाए प्राय: सुनने में आती है की गली से गुजरते समय अचानक उपर छत से पथ्थर का रोड़ा सर पर आ गिरा और बड़ी आसानी से स्वर्ग में सीट रिजर्व हो गयी | असल में यह पवनसुत के वंशजो का महज खिलवाड़ है |' खिलवाड़ ' से अगर कोई स्वर्ग पहुंच जाता है तो वह अपराध कैसे हो सकता है ? पवनसुत के वंशजो का तर्क कानून शास्त्री को घपले में डाल देता है | इस आसमानी खतरे से बचने के दो ही उपाय है -एक तो सिर पर फौजियों वाली लोहे की टोपी या फिर आपका अपना भाग्य ! क्योंकि इस तरह की फौजदारी की घटना किसी थाने में दर्ज नही होती और न इसके मुकदमे अदालत में स्वीकार किए जाते है | इन गलियों के नामकरण और उनकी दूरी को यदि आप नजरअंदाज करे तो बनारस के पोस्टल विभाग की प्रसंशा करेंगे |हर बनारसी अपने को 'सरनाम ' (प्रसिद्ध ) समझता है |मुहल्ले का एक व्यक्ति समूचे मुहल्ले की जानकारी रखता है | उसका विश्वास है की मुहल्ले के डाकिये से मुख्यमंत्री तक उसके नाम से परिचित है | काशी में 'दसपुतरिया गली " महज आठ -दस मकानों का एक मुहल्ला है ,पर वहा के रहने वाले को 'दसपुतरिया 'गली' के नाम पर पत्र मिल जाते है | इस प्रकार छोटी -छोटी गलिया यहा काफी प्रसिद्ध है | नगरपालिका भले ही नेताओं के नाम पर गलियों का नामकरण करे ,पर बनारस वाले अपनी पुरानी परम्परा नही बदल सकते |
इस गलियों में गर्मी के दिनों में शिमला का मजा ,जाड़े में पूरी का मजा ,और बरसात में पहाड़ी स्थानों का मजा अनायास मिलता रहता है | यही वजह है की बनारसी लोग पहाड़ी स्थानों में कभी नही जाते |रहा गंदगी का प्रश्न ,सो कहा नही है | जिस गली में इमली के बीज बिखरे ही समझ ले इस गली में मद्रासी रहते है | जिस गली में मछली महकती हो ,वह बंगालियों का मुहल्ला है |जिस गली में हड्डी लुढकी हो ,वह मुसलमान दोस्तों का मुहल्ला है | इस प्रकार हर गली में प्रत्येक वर्ग का साइन बोर्ड लटकता रहता है | अध्ययन करने वालो को इन साइनबोर्डो से बड़ी हेल्प मिलती है | मदनपुरा ,पांडये हवेली ,सोनारपुरा आदि मुहल्लों में सादिया बनती है और रानी कुआ ,कुंज्गली आदि मुहल्लों में बिकती है | गोविन्दपुरा ,राजा दरवाजा ,कोदई की चाकी में सोने चाँदी का व्यवसाय होता है |कचौड़ी गली की कचौड़ी ,ठठेरी बाजार के पीतल के बर्तन ,विश्वनाथ गली की चुदिया ,लकड़ी के खिलौने भारत प्रसिद्ध है |मिश्रपोखरा स्थित जर्दे के कारखाने ,लोह्तिया और ख़ास में लोहे ,लकड़ी का व्यवसाय होता है |अधिक दूर क्यों ,काशी में मंगलामुखियो का व्यवसाय भी गलियों में ही होता है |दालमंडी -छ्त्ताताले ,म्द्वादिः में आशिक लोग नित्य शाम को जुटा करते है |मतलब यह की बनारस की प्रसिद्धि जिन वस्तुओ के कारण है ,उन वस्तुओ का व्यवसाय गलियों में ही होता है |
-सुनील दत्ता
आभार विश्वनाथ मुखर्जी "" बना रहे बनारस से ''
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