क्या यही हमारा लोकतंत्र ?
क्या यही हमारी सत्ता है ?
वे सोच रहे, क्या-क्या खाएं,
हमको न जूठा पत्ता है ।।1।।
हैं चोर-लुटेरे महलों में,
हमको न टूटी छानी है।
देखो-देखो दुनिया वालों,
भारत की अजब कहानी है ।।2।।
धर्म-अधर्म के बीच खिंची,
अब नहीं रह गयी रेखा है।
गिरगिट जैसा रंग बदलते,
नेताओं को देखा है ।।3।।
नाम, दान, स्नान तुम्हारा ,
लटका, झटका, टटका है।
मंजिल कैसे मिल पायेगी
जब 'पथिक' ही पथ का भटका है ।।4।।
-गुरु प्रसाद सिंह मृगेश
बी .एल . यादव "पथिक"
ग्राम व पोस्ट- बडेल
जिला- बाराबंकी
मो- 9795180883
3 टिप्पणियां:
सराहनीय एवं दिग्दर्शक विचार।
बढ़िया भाव |
:)
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