कुल मिलाकर यदि दंगाइयों की कार्यप्रणाली, आगजनी को अंजाम देने के लिए प्रयुक्त सामग्री, साम्प्रदायिक शक्तियों के साथ एक दो अपवाद को छोड़कर समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेताओं के तालमेल और पुलिस प्रशासन द्वारा दंगाइयों को दी गई खुली छूट से यह निष्कर्ष निकलता है कि फैजाबाद के दंगे समाजवादी सरकार में होने वाले पूर्व के दंगों का विस्तार है। कोसी कलाँ और एस्थान की भाँति यहाँ भी पुलिस ने दंगाइयों को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। यहाँ भी पुलिस ने घंटों तक लगातार चलने वाली लूट और आगजनी को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। यहाँ भी दंगाइयों ने कहीं पुलिस फोर्स का रास्ता रोक लिया तो कहीं फायर ब्रिगेड की गाड़ी दंगाग्रस्त स्थान तक नहीं पहुँचने दी। भदरसा में दूसरे दिन दमकल गाडि़याँ तो पहुँचीं मगर उनके पास पानी नहीं था। आग तो सब कुछ खाक करके बुझ गई और सरकारी कागजों में इसका श्रेय आग बुझाने वाले अमले को मिल गया। प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार दंगों पर काबू पाने में पूरी तरह विफल है। विकराल रूप धारण करती जा रही इस समस्या को सुलझाने के लिए न तो सरकार के पास कोई स्पष्ट नीति है और न ही इच्छा शक्ति। प्रदेश की वर्तमान स्थिति और सरकार के रवैये से यह संदेह भी होता है कि कहीं यह सब जान बूझकर ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए वातावरण निर्मित करने हेतु खेले गए किसी खतरनाक खेल का हिस्सा तो नहीं है। इस संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। सपा सुप्रीमो अपने बेटे की आठ महीने की सरकार को जितने नम्बर भी दे डालें परन्तु वास्तविक्ता तो यह है कि कानून व्यवस्था के मामले में इतनी ही अवधि में किसी भी अन्य सरकार की तुलना में उत्तर प्रदेश की यह अब तक की सबसे नाकाम सरकार है। हकीकत तो यह है कि अब दक्षिण पंथी और मध्यमार्गीय कहे जाने वाले राजनैतिक दलों के एजेन्डों में अन्तर सिमटता जा रहा है अगर कुछ बचा रह गया है तो भाषा और भाषण का। प्रदेश में आज एक वास्तविक सेकुलर राजनैतिक विकल्प की जितनी आवश्यकता महसूस की जा रही है शायद पहले कभी नहीं की गई।
-मसीहुद्दीन संजरी
-मसीहुद्दीन संजरी
2 टिप्पणियां:
फैजाबाद के दंगे समाजवादी सरकार में होने वाले पूर्व के दंगों का विस्तार है।
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बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,,,,
recent post : नववर्ष की बधाई
शानदार लेखन,
जारी रहिये,
बधाई !!
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