गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

बाबरी मस्जिद ध्वंस पर

बाबरी मस्जिद का ध्वंस आज के दिन हिन्दुवत्व वादियों के नेतृत्व में हुआ था। सरकार पहले से ही चुप थी। सरकार पर कारपोरेट जगत का कब्ज़ा या उसके रुपयों से बनने वाली सरकारें देश और प्रदेश में स्थापित हो रही हैं। कारपोरेट जगत चाहता है कि  जल, जंगल, जमीन पर उसका कब्ज़ा बढ़ता ही जाए। वह बहुसंख्यक आबादी के हिस्से की जमीन से निकलने वाली बहुमूल्य धतुवों को वह बेच कर अत्यधिक मुनाफा कमा सके। बहुसंख्यक आबादी के हिस्से की हवा पानी वह भी बेचें और मुनाफा कमाए क्यूंकि मुनाफा कमाने के लिए उद्योगों द्वारा आवश्यक प्रबंध न किये जाने से बहुसंख्यक आबादी की हवा भी नष्ट होती  है। पानी को तो वह लगभग नब्बे प्रतिशत नष्ट कर ही चुके हैं। शेष पानी पर कब्ज़ा करना चाहते हैं वह पंद्रह रुपये लीटर पानी भी बेच लेते हैं। उनकी लूट खसोट के सम्बन्ध में कोई सवाल न उठ खड़ा हो इसलिए आवश्यक है जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता जैसे भावनात्मक सवालों को लेकर बहुसंख्यक जनता वाक् युद्ध से लेकर मल्ल युद्ध तक करती रहे और उनका मुनाफा बढ़ता रहे। बाबरी मस्जिद का ध्वंस उसी कड़ी का एक हिस्सा रहा है। कट्टरपंथियों की जमात उनकी सेवक रही है। सरकार उनकी गुलाम। यदि देश में संविधान के अनुसार धर्मनिरपेक्ष सरकार होती तो संभव ही नहीं था बाबरी मस्जिद का ध्वंस। बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद देश में साम्प्रदायिकता का जो दौर चला उसमें महंगाई, भुखमरी, शोषण, अत्याचार जैसे मुद्दे गायब हो गए और नयी आर्थिक नीतियों के आधार पर कारपोरेट घरानों की लाखों-लाख करोड़ रुपयों की लूट आरंभ हो गयी। सत्तारूढ़ दल और विपक्ष कारपोरेट घरानों की कठपुतलियां ही साबित हो रही हैं। 

सुमन
लो क सं घ र्ष !
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