बलिदानी वीर सपूतों के सपनो का हिंदुस्तान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
आधिसदी से ज्यादा बीती, कब तक फुटपाथों पर सोयें।
सरके ऊपर छत होगी, हम कब तक सपने और संजोयें।।
हमको झूठा आश्वासन, न सरकारी फरमान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
भूख, कुपोषण, बीमारी से घुट-घुट मरे हमारे बच्चे।
(ये) हम तरसें सूखी रोटी को, छप्पन भोग तुम्हारे बच्चे।।
तरह-तरह के तुम्हे सैकड़ों व्यंजन व पकवान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
सर्दी की रातों में कितने ठिठुर-ठिठुर इस साल मर गए।
नंग धडंगे, भूखे बच्चे माँ की सूनी गोद कर गए।।
वे सर कहाँ छिपाते उनको भी कोई स्थान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
तर-तर चुए पसीना तन से चुन-चुन कर हम महल बनाये।
हम मेहनतकश आसमान के नीचे सो कर रात बिताएं।।
हमें तुम्हारा शाही बंगला, महल न आलीशान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
बेगारी, बेकारी की हम मार झेलते मर-मर जीते।
जल भी शुद्ध नसीब न हमको, दूध तुम्हारे कुत्ते पीते।।
तुम्हे महीने में लाखों की व्हिस्की, जलपान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
अरबों-खरबों के घोटाले कर देश लुटेरे लूट रहे।
कईसे चूल्हा आज जली, बुधई के पसीने छूट रहे।।
इन भ्रष्टों देश लुटेरों के फांसी का दंड विधान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
सत्ता के सिंहासन पर हम, अरे धूर्तों तुम्हे बिठाएं।
तुम मुर्गा बिरयानी चाँपों , हम सूखी रोटी खाएं।।
बेरोजगार मुरझाये चेहरों पर हमको मुस्कान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
तम्बू ताने या झोपड़ियों में हम जीवन बसर करें।
लुटे-पिटे और ठुसे-ठुसे हम बस ट्रेनों में सफ़र करें।।
तुमको एसी कार मुफ्त उड़ने को वायुयान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
अभिसप्त जहाँ दूषित जल पीने को अब भी आधी आबादी।
शिक्षा और चिकित्सा जैसी ना ही सुविधाएं बुनियादी।।
हमको भी अधिकार हमारा, भिक्षा न अनुदान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
गुंडे-डकैत निर्भय होकर, अब लूट रहे बस रेलों में।
अपराधी घूमैं स्वतन्त्र, निर्दोष सड़ रहे जेलों में।।
हमको शीघ्र पारदर्शी समता का न्याय विधान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
दूर गरीबी होगी झूठे सपने हमें दिखने वालों।
बच्चा-बच्चा शिक्षित होगा, हमको मूर्ख बनाने वालों।।
कल की बातें छोडो, हमको भविष्य नहीं वर्तमान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
दीन -हीन सदियों से जो, शोषित और सताएं हैं।
भूखे रहकर भी आजीवन, सेवा का धर्म निभाएं..
उन वंचित, पीड़ित, पतितों व पद दलितों का उठान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
वरसा, सर्दी, गर्मी सहकर जो धरती से अन्न उगायें।
भूखे मरै उन्ही के बच्चे, वे ही करे आत्म हत्याएं।।
उन मजदूर किसानो को भी, सुख, सुविधा, सम्मान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
सांसद और विधायक बनकर खद्दर धारी देश लूटते।
घोटालों पर घोटाले कर, ये जनता का रक्त चूसते।।
विधान सभा व संसद में भेडिये नहीं इंसान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
नेताओं नौकरशाहों के दौलत का कोई हिसाब नहीं।
औ न्यायलय से न्याय कब मिले इसका कोई जवाब नहीं।।
भ्रष्टाचार, डकैती, चोरी का अब शीघ्र निदान चाहिए
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
भारी भरकम फ़ोर्स रात दिन लगी है इनकी रक्षा में।
मानवता के हत्यारों पर अरबों खर्च सुरक्षा में।।
दंगाई देश लुटेरों को फिर राजकीय सम्मान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
ध्वस्त हुई कानून व्यवस्था निर्भय अत्याचारी घूमै।
खुले आम अब रेल बसों में, दरिन्दे व्यभिचारी घूमै।।
हैवानियत की हदें टूटती, इसका सख्त निदान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
महंगाई सुरसा डाइन सौ मुंह फैलाए खड़ी हुई है।
सारा देश निगल जाने को, वरसो से यह अड़ी हुई है।।
भूखों को रोटी दाल मिले, फिर बम या रॉकेट यान चाहिए।
सत्ताधीशों हमको रोटी, कपडा और मकान चाहिए।।
-मोहम्मद जमील शास्त्री
मो- 08081337028
1 टिप्पणी:
वन्देमातरम् !
गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ!
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