रसोई में आग के बीच आम उपभोक्ता अब बिजली का झटका खाने के लिए भी तैयार रहें!देश की विकासशील अर्थव्यवस्था को अधिक बिजली चाहिए और इस मांग को पूरा करने में घरेलू कोयला उत्पादन काफी नहीं है। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के बिजली कंपनियों को कोयला आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए जारी डिक्री के बावजूद बिजली परियोजनाओं के लिए अब भी ईंधन अब भी भारी सरदर्द बना हुआ है। बिजली उत्पादन की बढ़ती लागत के मद्देनजर सरकार इस संकट से निजात पाने के लिए देशभर में बिजली की दरें बढ़ाने की तैयारी में हऐ। रसोई में आग के बीच आम उपभोक्ता अब बिजली का झटका खाने के लिए भी तैयार रहें।इसी बीच रेटिंग एजंसी फिच ने इस कोयलाजनित ईंधन संकट के लिए भारत की विकास दर बाधित हो जाने की चेतावनी जारी कर दी है। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि कोयला खनन के क्षेत्र में पर्यावरण से जुड़ी सैकड़ों मामलों के लंबित हो जाने से पैदा हो गयी है। सुप्रीम कोर्ट में एक ही खंडपीठ में इन मामलों का निपटारा हो रहा है। जिससे कर्नाटक, ओड़ीशा, झारखंड समेत देश के विभिन्न हिस्से में पर्यावरण हरी झंडी के के इंतजार में कोयला परियोजनाएं लटकी हुई हैए जिसका सीधा असर बिजली उत्पादन पर हो रहा है। कोयला ब्लाकों के आवंटन के विवाद ने भी पीछा नहीं छोड़ा है।वनक्षेत्र के अलावा पर्यावरण कानून के दायरे से बाहर जो कोयला का विशाल भंडार हैए भूमि अधिग्रहण संबंधी समस्या के कारण उसका दोहन भी फिलहाल संभव नहीं है। इस बीच सरकार ने कहा है कि जिन राज्यों में कोयला खानों का आवंटन किया जा रहा है, उन्हें खदानों की नियमित निगरानी के लिए व्यवस्था तैयार करनी होगी और उसके विकास के बारे में तिमाही आधार पर रिपोर्ट सौंपनी होगी।वित्त मंत्री पी. चिदंबरम की अध्यक्षता में मंत्रियों का एक समूह कोयला नियामक विधेयक के मसौदे पर 21 जनवरी को होने वाली बैठक में चर्चा कर सकता है।इस विधेयक के तहत कोयला क्षेत्र के लिए एक नियामकीय प्राधिकरण गठित करने का प्रस्ताव है।कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहाए यह कोयला नियामक पर मंत्रिसमूह 21 जनवरी को बैठक कर सकता है।उल्लेखनीय है कि कुछ मंत्रियों के गैरहाजिर रहने की वजह से मंत्रिसमूह की बैठक पहले दो बार टाली जा चुकी है.पहली बार बैठक 18 दिसंबर को होनी थी, जबकि दूसरी बार 4 जनवरी को होनी थी।मंत्रिमंडल ने कोयला क्षेत्र के लिए नियामकीय प्राधिकरण के गठन के विधेयक का मसौदा मंत्रिसमूह के पास भेज दिया था।कोयला मंत्री ने नवंबर में कहा था कि कोयला क्षेत्र के नियामक का गठन करने का जिम्मा थामने वाला मंत्रिसमूह जल्द ही अपनी अंतिम सिफारिशें देगा।
राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित 57वीं राष्ट्रीय विकास परिषद ;एनडीसी की बैठक का उद्घाटन करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा देश में ईंधन के दाम कम हैं। कोयला, पेट्रोलियम पदार्थों और प्राकृतिक गैस सभी के दाम उनकी अंतरराष्ट्रीय कीमतों के मुकाबले कम हैं। कुछ खास उपभोक्ताओं के लिये बिजली की प्रभावी दर भी कम रखी गई है।प्रधानमंत्री ने पेट्रोलियम पदार्थों, कोयला और बिजली के दाम धीरे.धीरे बढ़ाने की मजबूत पैरवी करते हुए गुरूवार को कहा कि इन पर दी जाने वाली सरकारी सहायता पर यदि अंकुश नहीं लगाया गया, तो इसका असर जनकल्याण की योजनाओं पर पड़ सकता है।पेट्रोलियाम पदार्थों का हश्र तो सामने है , अब बिजली की बारी है।बिजली मंत्रालय ने भी विद्युत की दरें कुछ और बढ़ाए जाने के संकेत दिए हैं। दरअसल, मंत्रालय ने कहा है कि बिजली की दरों को कच्चे माल की बढ़ती कीमतों के अनुरूप समायोजित करना है।बिजली सचिव पी. उमा शंकर ने कहाए अगर इनपुट ;कच्चे माल की कीमतें बढ़ रही हैं तो आउटपुट ;बिजली की दरें भी बढ़ाकर उसके अनुरूप करनी ही होंगी। बिजली सचिव ने ऐसे समय में यह टिप्पणी की है जब विद्युत उत्पादन से जुड़े महत्वपूर्ण कच्चे माल जैसे कोयले व गैस की कीमतें बढ़ रही हैं।
भारत में बिजली की पीक.आवर के हिसाब से 13 फीसदी की कमी है। एशिया की इस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में उद्योगों की तरफ से बिजली की मांग में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। साथ ही घरों एवं शॉपिंग मॉल जैसे नए सेगमेंट से भी बिजली की मांग बढ़ रही है। लेकिनए दूसरी तरफ बिजली सेक्टर में यहां निवेश में स्लोडाउन का रुख देखा जा रहा है। परमाणु ऊर्जा को बतौर विकल्प पेश कर रही है सरकार ए लेकिन मांग के हिसाब से परमाणु ऊर्जा ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है और उसकी लागत तो और भी ज्यादा है।अगले दो दशक में भारत के सात लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी बन जाने की उम्मीद है। लेकिन इसके लिए इसे बड़ी तादाद में ऊर्जा की जरूरत होगी। जबकि हकीकत यह है कि भारत की ऊर्जा जरूरत का 50 फीसदी कोयले पर निर्भर है। आने वाले दिनों में अगर इस देश में ऊर्जा उत्पादन में तेजी नहीं आई तो इसकी विशाल युवा आबादी के लिए रोजगार का सृजन मुश्किल हो जाएगा।जबकि यहां पर ऊर्जा पर सबसे ज्यादा टैक्स भी है और सब्सिडी भी। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एक कार्यक्रम के दौरान यूएस.इंडिया बिजनेस काउंसिल के प्रेसिडेंट रोन सोमर्स ने कहा कि अपनी जरूरतों के मद्देनजर भारत को ऊर्जा के विश्वसनीय स्रोतों की तलाश करनी होगी। वह भारत में पंचवर्षीय योजना के जरिये ऊर्जा नीति को साधने के मिथक पर अपनी राय जाहिर कर रहे थे। सोमर्स ने कहा कि उनकी नजर में भारत को हासिल होने वाले तेल और गैस स्रोतों में से अधिकतर के साथ कोई न कोई समस्या है। इनमें भू.राजनैतिक पहलुओं से लेकर स्थानीय मुद्दे तक शामिल हैं। इस सिलसिले में उन्होंने ईरान.पाकिस्तान से लेकर म्यांमार.बांग्लादेश गैस पाइपलाइन की भू.राजनैतिक समस्याएं गिनाईं और बड़े बांधों से विस्थापन जैसे पहलुओं के राजनीतिक संदर्भों का हवाला दिया।उन्होंने कहा कि राजस्थान में केयर्न एनर्जी की ओर से तलाशे गए तेल भंडारों और रिलांयस की ओर से केजी बेसिन में गैस की खोज से भारत की जरूरत पूरी नहीं होगी। उनके हिसाब से भारत में छोटे डैमों से हासिल बिजली और न्यूक्लियर एनर्जी से एक मात्र उम्मीद बंधती है और यह भारत के लिए सबसे मुफीद बैठेगी।लेकिन इसमें भी परमाणु ऊर्जा के मामले में उत्तरदायित्व का मुद्दा सुलझना जरूरी है। उनका कहना था कि भारत अपनी तेल जरूरतों का 70 से 80 फीसदी आयात करता है और यह सरकारी खजाने की तबाही की बड़ी वजह है। भारत पवन और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है लेकिन इसकी विशाल ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए यह नगण्य है।
नये सुधारों से फिलहाल रुपया मजबूत दिख रहा है ए लेकिन हकीकत यह है कि डॉलर की तुलना में रुपये में दर्ज की जा रही गिरावट के चलते आयातित कोयले की लागत में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। इससे देश की बिजली कंपनियों पर दबाव भी बढ़ता जा रहा है। अब तो इस बात की भी आशंका जताई जाने लगी है कि बिजली कंपनियां अपने कर्ज के भुगतान में डिफॉल्ट न करने लगें। यह आशंका जताई है क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने अपनी ताजा रिपोर्ट में। जानकारों की राय में इस समस्या का एक ही समाधान है कि बिजली की दरों को बढ़ाया जाए।फिच के ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर ग्रुप के डायरेक्टर वेंकटरमन राजारमन ने कहा है कि अगर प्रवर्तकों की तरफ से अतिरिक्त पूंजी का निवेश नहीं किया जाता है या फिर बिजली की दरों में खासी बढ़ोतरी नहीं की जाती है तो बिजली परियोजनाओं के वित्तीय मार्जिन पर भारी दबाव पैदा हो सकता है। भारत के अधिकांश बिजली परियोजनाएं आयातित कोयले पर निर्भर हैं और बीते एक साल के दौरान इनकी लागत में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
अपनी रिपोर्ट में फिच ने अनुमान लगाया है कि अगर यही स्थिति बनी रहती है तो बिजली उत्पादक कंपनियों की उत्पादन लागत 4ण्41 रुपये प्रति किलोवाट घंटे के औसत पर पहुंच सकती है।मौजूदा समय में इन कंपनियों की बिजली उत्पादन की लागत औसतन 2.29 रुपये प्रति किलोवाट घंटे है। बीते तकरीबन चार माह के दौरान डॉलर की तुलना में रुपये के भाव में करीब 16.18 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की जा चुकी हैयहां समस्या की बात यह है कि भारत के कुल बिजली उत्पादन में कोयले से बनने वाली बिजली की हिस्सेदारी 55 फीसदी के स्तर पर है। भारत में मौजूदा समय में 1ए82ए344 मेगावाट की बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता है।हालांकिए भारत में दुनिया के कुल कोयला भंडार का करीब 10 फीसदी उपलब्ध है। लेकिनए पर्यावरण एवं भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों की वजह से घरेलू बिजली कंपनियों को कोल लिंकेज हासिल करने में खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इससे बिजली कंपनियों की आयातित कोयले पर निर्भरता और भी बढ़ जाती है।फिच ने कहा है कि अगर बिजली कंपनियां अपनी बढ़ी हुई लागत का भार अपने ग्राहकों की तरफ नहीं धकेल पाईं तो इनके मार्जिन पर बहुत ज्यादा दबाव बन जाएगा। ऐसी स्थिति में कई बिजली परियोजनाएं तो परिचालन के मामले में आर्थिक रूप से व्यावहारिक तक नहीं रह जाएंगी।
कोयले के आवंटन में चल रही धाधली को ही बिजली संकट का मूल कारण बताया जा रहा है। कोयले की आपूर्ति में कमी और पूरे देश के थर्मल पावर स्टेशनों की खस्ता हालात की वजह से आज देश में बिजली संकट इतना ज्यादा गहरा गया है।गौरतलब है कि देश में ५४ फीसदी बिजली का उत्पादन कोयले से ही होता हैण् कोयला सप्लाई करने में केंद्र सरकार की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड सीआईएल की मोनोपॉली है। कोल कंपनियां न तो मौजूदा खदानों से सौ फीसदी खनन करवा पा रही है और न ही नए खदानों से तेजी से कोयला निकलवाने में कामयाब हो रही है। कोल कंपनियों की आर्थिक हालत भी कहीं ना कहीं इस स्थिति की जिम्मेदार है।गौरतलब है कि २०१७ तक ७४२० लाख टन कोयले की जरूरत हैए जबकि मात्र ५२७० लाख टन मिलने की उम्मीद है। हालांकि मॉनसून की बेरूखी की वजह से भी कोयला उत्पादन काफी हद तक प्रभावित हुआ है। परमाणु बिजली या पनबिजली परियोजनाओं को आगे बढाने के मामले में भी सुस्ती से काम लिया जा रहा है। अमेरिका से परमाणु करार होने के बाद उम्मीद थी कि कुल बिजली उत्पादन में परमाणु बिजली का हिस्सा २ण्६२ फीसदी से बढ कर ९ फीसदी तक हो जाएगाएलेकिन जैतपुर महाराष्ट्रऔर कुडानकुलम तमिलनाडु में नये परमाणु बिजली घर बनाने की राह में आयी रुकावटों को सरकार दूर नहीं कर पा रही है। बिजली चोरी और वितरण में धांधली के चलते बिजली बर्बाद करने वाले देश के चार प्रमुख राज्यों में क्रमश बिहार, झारखंड, जम्मू.कश्मीर और मध्य प्रदेश शामिल हैं। बिहार में तो कुल उत्पादित बिजली का ४२ प्रतिशत हिस्सा बर्बाद हो रहा है। झारखंड और जम्मू.कश्मीर में ४० प्रतिशत तथा मध्य प्रदेश में ३९ प्रतिशत बिजली बर्बाद हो रही है।यानी प्रति १०० मेगावाट में से ३९ मेगावाट बिजली ट्रासमिशन लॉस, तकनीकी खामियों और बिजली चोरी के कारण बर्बाद हो जाती है।
विद्युत क्षेत्र के लिए ईंधन उपलब्धता की किल्लतए ईंधन आपूर्ति समझौतों ;एफएसए पर हस्ताक्षर का अभाव और वितरण कंपनियों को हो रहे नुकसान जैसी समस्याएं लगातार बनी हुई हैं। जहां ऊर्जा मंत्रालय की ओर से जारी किया गया आदर्श बिजली खरीद समझौता ;पीपीए कहता है कि ईंधन की कीमतों का बोझ आगे डाला जा सकता हैए वहीं ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों का मानना है कि आदर्श दस्तावेज में कई ऐसे निषेध प्रावधान और बेंचमार्क हैं जो लागत वसूली पर रोक लगाते हैं।
ठीक एक साल पहले बिजली उद्योग के दिग्गजों ने प्रधानमंत्री और कुछ दूसरे मंत्रियों के साथ बैठक कर उद्योग के सामने 15 बड़ी चुनौतियों पर चर्चा की थी और अपनी ओर से 51 से अधिक सुझाव भी दिए थे। हालांकि एक साल बाद भी इनमें से कुछ ही मसलों पर ध्यान दिया गया है और गिने चुने कदम ही उठाए गए हैं।
राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित 57वीं राष्ट्रीय विकास परिषद ;एनडीसी की बैठक का उद्घाटन करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा देश में ईंधन के दाम कम हैं। कोयला, पेट्रोलियम पदार्थों और प्राकृतिक गैस सभी के दाम उनकी अंतरराष्ट्रीय कीमतों के मुकाबले कम हैं। कुछ खास उपभोक्ताओं के लिये बिजली की प्रभावी दर भी कम रखी गई है।प्रधानमंत्री ने पेट्रोलियम पदार्थों, कोयला और बिजली के दाम धीरे.धीरे बढ़ाने की मजबूत पैरवी करते हुए गुरूवार को कहा कि इन पर दी जाने वाली सरकारी सहायता पर यदि अंकुश नहीं लगाया गया, तो इसका असर जनकल्याण की योजनाओं पर पड़ सकता है।पेट्रोलियाम पदार्थों का हश्र तो सामने है , अब बिजली की बारी है।बिजली मंत्रालय ने भी विद्युत की दरें कुछ और बढ़ाए जाने के संकेत दिए हैं। दरअसल, मंत्रालय ने कहा है कि बिजली की दरों को कच्चे माल की बढ़ती कीमतों के अनुरूप समायोजित करना है।बिजली सचिव पी. उमा शंकर ने कहाए अगर इनपुट ;कच्चे माल की कीमतें बढ़ रही हैं तो आउटपुट ;बिजली की दरें भी बढ़ाकर उसके अनुरूप करनी ही होंगी। बिजली सचिव ने ऐसे समय में यह टिप्पणी की है जब विद्युत उत्पादन से जुड़े महत्वपूर्ण कच्चे माल जैसे कोयले व गैस की कीमतें बढ़ रही हैं।
भारत में बिजली की पीक.आवर के हिसाब से 13 फीसदी की कमी है। एशिया की इस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में उद्योगों की तरफ से बिजली की मांग में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। साथ ही घरों एवं शॉपिंग मॉल जैसे नए सेगमेंट से भी बिजली की मांग बढ़ रही है। लेकिनए दूसरी तरफ बिजली सेक्टर में यहां निवेश में स्लोडाउन का रुख देखा जा रहा है। परमाणु ऊर्जा को बतौर विकल्प पेश कर रही है सरकार ए लेकिन मांग के हिसाब से परमाणु ऊर्जा ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है और उसकी लागत तो और भी ज्यादा है।अगले दो दशक में भारत के सात लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी बन जाने की उम्मीद है। लेकिन इसके लिए इसे बड़ी तादाद में ऊर्जा की जरूरत होगी। जबकि हकीकत यह है कि भारत की ऊर्जा जरूरत का 50 फीसदी कोयले पर निर्भर है। आने वाले दिनों में अगर इस देश में ऊर्जा उत्पादन में तेजी नहीं आई तो इसकी विशाल युवा आबादी के लिए रोजगार का सृजन मुश्किल हो जाएगा।जबकि यहां पर ऊर्जा पर सबसे ज्यादा टैक्स भी है और सब्सिडी भी। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एक कार्यक्रम के दौरान यूएस.इंडिया बिजनेस काउंसिल के प्रेसिडेंट रोन सोमर्स ने कहा कि अपनी जरूरतों के मद्देनजर भारत को ऊर्जा के विश्वसनीय स्रोतों की तलाश करनी होगी। वह भारत में पंचवर्षीय योजना के जरिये ऊर्जा नीति को साधने के मिथक पर अपनी राय जाहिर कर रहे थे। सोमर्स ने कहा कि उनकी नजर में भारत को हासिल होने वाले तेल और गैस स्रोतों में से अधिकतर के साथ कोई न कोई समस्या है। इनमें भू.राजनैतिक पहलुओं से लेकर स्थानीय मुद्दे तक शामिल हैं। इस सिलसिले में उन्होंने ईरान.पाकिस्तान से लेकर म्यांमार.बांग्लादेश गैस पाइपलाइन की भू.राजनैतिक समस्याएं गिनाईं और बड़े बांधों से विस्थापन जैसे पहलुओं के राजनीतिक संदर्भों का हवाला दिया।उन्होंने कहा कि राजस्थान में केयर्न एनर्जी की ओर से तलाशे गए तेल भंडारों और रिलांयस की ओर से केजी बेसिन में गैस की खोज से भारत की जरूरत पूरी नहीं होगी। उनके हिसाब से भारत में छोटे डैमों से हासिल बिजली और न्यूक्लियर एनर्जी से एक मात्र उम्मीद बंधती है और यह भारत के लिए सबसे मुफीद बैठेगी।लेकिन इसमें भी परमाणु ऊर्जा के मामले में उत्तरदायित्व का मुद्दा सुलझना जरूरी है। उनका कहना था कि भारत अपनी तेल जरूरतों का 70 से 80 फीसदी आयात करता है और यह सरकारी खजाने की तबाही की बड़ी वजह है। भारत पवन और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है लेकिन इसकी विशाल ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए यह नगण्य है।
नये सुधारों से फिलहाल रुपया मजबूत दिख रहा है ए लेकिन हकीकत यह है कि डॉलर की तुलना में रुपये में दर्ज की जा रही गिरावट के चलते आयातित कोयले की लागत में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। इससे देश की बिजली कंपनियों पर दबाव भी बढ़ता जा रहा है। अब तो इस बात की भी आशंका जताई जाने लगी है कि बिजली कंपनियां अपने कर्ज के भुगतान में डिफॉल्ट न करने लगें। यह आशंका जताई है क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने अपनी ताजा रिपोर्ट में। जानकारों की राय में इस समस्या का एक ही समाधान है कि बिजली की दरों को बढ़ाया जाए।फिच के ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर ग्रुप के डायरेक्टर वेंकटरमन राजारमन ने कहा है कि अगर प्रवर्तकों की तरफ से अतिरिक्त पूंजी का निवेश नहीं किया जाता है या फिर बिजली की दरों में खासी बढ़ोतरी नहीं की जाती है तो बिजली परियोजनाओं के वित्तीय मार्जिन पर भारी दबाव पैदा हो सकता है। भारत के अधिकांश बिजली परियोजनाएं आयातित कोयले पर निर्भर हैं और बीते एक साल के दौरान इनकी लागत में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
अपनी रिपोर्ट में फिच ने अनुमान लगाया है कि अगर यही स्थिति बनी रहती है तो बिजली उत्पादक कंपनियों की उत्पादन लागत 4ण्41 रुपये प्रति किलोवाट घंटे के औसत पर पहुंच सकती है।मौजूदा समय में इन कंपनियों की बिजली उत्पादन की लागत औसतन 2.29 रुपये प्रति किलोवाट घंटे है। बीते तकरीबन चार माह के दौरान डॉलर की तुलना में रुपये के भाव में करीब 16.18 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की जा चुकी हैयहां समस्या की बात यह है कि भारत के कुल बिजली उत्पादन में कोयले से बनने वाली बिजली की हिस्सेदारी 55 फीसदी के स्तर पर है। भारत में मौजूदा समय में 1ए82ए344 मेगावाट की बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता है।हालांकिए भारत में दुनिया के कुल कोयला भंडार का करीब 10 फीसदी उपलब्ध है। लेकिनए पर्यावरण एवं भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों की वजह से घरेलू बिजली कंपनियों को कोल लिंकेज हासिल करने में खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इससे बिजली कंपनियों की आयातित कोयले पर निर्भरता और भी बढ़ जाती है।फिच ने कहा है कि अगर बिजली कंपनियां अपनी बढ़ी हुई लागत का भार अपने ग्राहकों की तरफ नहीं धकेल पाईं तो इनके मार्जिन पर बहुत ज्यादा दबाव बन जाएगा। ऐसी स्थिति में कई बिजली परियोजनाएं तो परिचालन के मामले में आर्थिक रूप से व्यावहारिक तक नहीं रह जाएंगी।
कोयले के आवंटन में चल रही धाधली को ही बिजली संकट का मूल कारण बताया जा रहा है। कोयले की आपूर्ति में कमी और पूरे देश के थर्मल पावर स्टेशनों की खस्ता हालात की वजह से आज देश में बिजली संकट इतना ज्यादा गहरा गया है।गौरतलब है कि देश में ५४ फीसदी बिजली का उत्पादन कोयले से ही होता हैण् कोयला सप्लाई करने में केंद्र सरकार की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड सीआईएल की मोनोपॉली है। कोल कंपनियां न तो मौजूदा खदानों से सौ फीसदी खनन करवा पा रही है और न ही नए खदानों से तेजी से कोयला निकलवाने में कामयाब हो रही है। कोल कंपनियों की आर्थिक हालत भी कहीं ना कहीं इस स्थिति की जिम्मेदार है।गौरतलब है कि २०१७ तक ७४२० लाख टन कोयले की जरूरत हैए जबकि मात्र ५२७० लाख टन मिलने की उम्मीद है। हालांकि मॉनसून की बेरूखी की वजह से भी कोयला उत्पादन काफी हद तक प्रभावित हुआ है। परमाणु बिजली या पनबिजली परियोजनाओं को आगे बढाने के मामले में भी सुस्ती से काम लिया जा रहा है। अमेरिका से परमाणु करार होने के बाद उम्मीद थी कि कुल बिजली उत्पादन में परमाणु बिजली का हिस्सा २ण्६२ फीसदी से बढ कर ९ फीसदी तक हो जाएगाएलेकिन जैतपुर महाराष्ट्रऔर कुडानकुलम तमिलनाडु में नये परमाणु बिजली घर बनाने की राह में आयी रुकावटों को सरकार दूर नहीं कर पा रही है। बिजली चोरी और वितरण में धांधली के चलते बिजली बर्बाद करने वाले देश के चार प्रमुख राज्यों में क्रमश बिहार, झारखंड, जम्मू.कश्मीर और मध्य प्रदेश शामिल हैं। बिहार में तो कुल उत्पादित बिजली का ४२ प्रतिशत हिस्सा बर्बाद हो रहा है। झारखंड और जम्मू.कश्मीर में ४० प्रतिशत तथा मध्य प्रदेश में ३९ प्रतिशत बिजली बर्बाद हो रही है।यानी प्रति १०० मेगावाट में से ३९ मेगावाट बिजली ट्रासमिशन लॉस, तकनीकी खामियों और बिजली चोरी के कारण बर्बाद हो जाती है।
विद्युत क्षेत्र के लिए ईंधन उपलब्धता की किल्लतए ईंधन आपूर्ति समझौतों ;एफएसए पर हस्ताक्षर का अभाव और वितरण कंपनियों को हो रहे नुकसान जैसी समस्याएं लगातार बनी हुई हैं। जहां ऊर्जा मंत्रालय की ओर से जारी किया गया आदर्श बिजली खरीद समझौता ;पीपीए कहता है कि ईंधन की कीमतों का बोझ आगे डाला जा सकता हैए वहीं ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों का मानना है कि आदर्श दस्तावेज में कई ऐसे निषेध प्रावधान और बेंचमार्क हैं जो लागत वसूली पर रोक लगाते हैं।
ठीक एक साल पहले बिजली उद्योग के दिग्गजों ने प्रधानमंत्री और कुछ दूसरे मंत्रियों के साथ बैठक कर उद्योग के सामने 15 बड़ी चुनौतियों पर चर्चा की थी और अपनी ओर से 51 से अधिक सुझाव भी दिए थे। हालांकि एक साल बाद भी इनमें से कुछ ही मसलों पर ध्यान दिया गया है और गिने चुने कदम ही उठाए गए हैं।
कौन.कौन राज्य . बिजली दरों में बढ़ोतरी की याचिका दायर करने वाले राज्यों में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश, जम्मू.कश्मीर, केरल, नगालैंड, उड़ीसा व आंध्र प्रदेश हैं शामिल अन्य राज्य भी तैयारी में . बिजली दरों में परिवर्तन के लिए राज्य विद्युत नियामक आयोग में याचिका दायर करने की तैयारी में हैं कई अन्य प्रदेश भी
-एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
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