13 दिसम्बर 2001 के दिन संसद पर हुए हमले की साजिश में अभियुक्त करार दिए गए जम्मू कश्मीर प्रांत के निवासी मुहम्मद अफजल गुरू को 9 फरवरी 2013 की प्रातः 7ः30 पर तिहाड़ जेल की बैरक संख्या (3) में अचानक गुपचुप तरीके से फाँसी पर लटकाए जाने का निर्णय कितना देश हित में और कितना कांग्रेस के राजनैतिक हित में है? यदि इसका आकलन अतीत में कांग्रेस की कश्मीर पालिसी को लेकर किया जाए तो यह बात स्पष्ट रूप से सामने आती है कि कश्मीर को लेकर कांग्रेस पार्टी ने अब तक जो भी निर्णय लिए है वे देश हित में कम कांग्रेस हित में अधिक रहे हैं।
देश के उत्तरी भाग में हिमालय की गोद में स्वर्ग की संज्ञा से नवाजे जाने वाले कश्मीर की संस्कृति एवं उसकी सभ्यता को यदि मुगल शासक शाहजहाँ ने शालीमार बाग से सुसज्जित किया था तो वहीं ऋषि मुनियों व पीर व मुर्शिदों की तपस्या, सूफियाना तहरीक ने गंगा जमुनी तहजीब को परवान चढ़ाया था। 18वीं शताब्दी तक कश्मीर प्रान्त पर अफगानियों की हुकूमत थी परन्तु 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी प्रभुता स्थापित कर ली थी। 19वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेज शासको ने ताबड़तोड़ कई हमले करके सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य की चूलें हिला दीं। अंततः 1848 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के आगे महाराजा रणजीत सिंह ने समर्पण कर दिया जो कि लाहौर संधि के नाम से जाना जाता है। अंग्रेज शासकों ने अपनी पिट्ठू हुकूमत महाराजा हरिसिंह के द्वारा कश्मीर में स्थापित कर दी।
भारत के विभाजन के समय सरदार वल्लभ भाई पटेल के तमाम प्रयासों के बावजूद महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर प्रान्त का विलय स्वतंत्र भारत में नहीं किया जबकि देश की सैकड़ों रियासतों के भाग्य का फैसला वहाँ की धार्मिक आबादी के आधार पर किया गया।
हैदराबाद के निजाम द्वारा भी महाराजा हरि सिंह की भाँति अपने प्रान्त का स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखने का निर्णय लिया गया, परन्तु सरदार पटेल ने मजबूत इरादों का परिचय देते हुए सैन्य बल की सहायता से निज़्ााम की प्रतिरोध शक्ति को तोड़ दिया।
महाराजा हरि सिंह के साम्राज्य पर संकट के बादल अक्टूबर 1947 में उस समय घिर आए जब पाकिस्तानी शासकों के समर्थन से पठान कबायल के भेष में पाकिस्तानी सेना ने आक्रमण कर दिया और संभावना इस बात की प्रबल हो चली कि 60 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी वाला जम्मू कश्मीर प्रान्त पाकिस्तानियों के कब्जे में चला जाएगा, विवश होकर महाराजा हरि सिंह ने भारत के शासकों और लार्डमाउण्ट वेटन को लिखे गए पत्र द्वारा सैन्य सहायता की माँग की। अन्ततः 25 अक्टूबर को महाराजा हरि सिंह और लार्डमाउण्ट बेटन, जो इस समय वर्मा के शासक थे के बीच एक सन्धि का प्रस्ताव हस्ताक्षरित हुआ जिसे लार्डमाउण्ट बेटन के हस्तक्षेप से 27 अक्टूबर 1947 को भारत सरकार ने सशर्त स्वीकार कर लिया।
भारत से सैन्य सहायता प्राप्त कर कश्मीर की जनता व महाराजा हरि सिंह की सेना ने संयुक्त रूप से आक्रमणकारियों को खदेड़ना प्रारम्भ कर दिया। इस युद्ध में नेशनल कांफ्रेंस के शेख अब्दुल्ला ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनके कार्यकर्ताओं ने भारतीय सेना के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर साथ दिया, जब ऐसा लग रहा था कि सम्पूर्ण कश्मीर पर पुनः भारत का प्रभुत्व स्थापित हो जाएगा तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने युद्ध विराम करने के संदेश के साथ हस्तक्षेप किया जिसे प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू ने युद्ध विराम के रूप में स्वीकार कर लिया। परिणामस्वरूप कश्मीर के 37 प्रतिशत भाग पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया और 43 प्रतिशत भाग भारत के हिस्से में आया। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशों पर भारत ने अमल तो कर लिया परन्तु पाकिस्तान ने अपनी सेना कश्मीर से वापस नहीं बुलाई और अपने कब्जे में लिए गए कश्मीर भाग को आजाद कश्मीर बना दिया।
मो .9455804309
-तारिक खान
देश के उत्तरी भाग में हिमालय की गोद में स्वर्ग की संज्ञा से नवाजे जाने वाले कश्मीर की संस्कृति एवं उसकी सभ्यता को यदि मुगल शासक शाहजहाँ ने शालीमार बाग से सुसज्जित किया था तो वहीं ऋषि मुनियों व पीर व मुर्शिदों की तपस्या, सूफियाना तहरीक ने गंगा जमुनी तहजीब को परवान चढ़ाया था। 18वीं शताब्दी तक कश्मीर प्रान्त पर अफगानियों की हुकूमत थी परन्तु 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी प्रभुता स्थापित कर ली थी। 19वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेज शासको ने ताबड़तोड़ कई हमले करके सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य की चूलें हिला दीं। अंततः 1848 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के आगे महाराजा रणजीत सिंह ने समर्पण कर दिया जो कि लाहौर संधि के नाम से जाना जाता है। अंग्रेज शासकों ने अपनी पिट्ठू हुकूमत महाराजा हरिसिंह के द्वारा कश्मीर में स्थापित कर दी।
भारत के विभाजन के समय सरदार वल्लभ भाई पटेल के तमाम प्रयासों के बावजूद महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर प्रान्त का विलय स्वतंत्र भारत में नहीं किया जबकि देश की सैकड़ों रियासतों के भाग्य का फैसला वहाँ की धार्मिक आबादी के आधार पर किया गया।
हैदराबाद के निजाम द्वारा भी महाराजा हरि सिंह की भाँति अपने प्रान्त का स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखने का निर्णय लिया गया, परन्तु सरदार पटेल ने मजबूत इरादों का परिचय देते हुए सैन्य बल की सहायता से निज़्ााम की प्रतिरोध शक्ति को तोड़ दिया।
महाराजा हरि सिंह के साम्राज्य पर संकट के बादल अक्टूबर 1947 में उस समय घिर आए जब पाकिस्तानी शासकों के समर्थन से पठान कबायल के भेष में पाकिस्तानी सेना ने आक्रमण कर दिया और संभावना इस बात की प्रबल हो चली कि 60 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी वाला जम्मू कश्मीर प्रान्त पाकिस्तानियों के कब्जे में चला जाएगा, विवश होकर महाराजा हरि सिंह ने भारत के शासकों और लार्डमाउण्ट वेटन को लिखे गए पत्र द्वारा सैन्य सहायता की माँग की। अन्ततः 25 अक्टूबर को महाराजा हरि सिंह और लार्डमाउण्ट बेटन, जो इस समय वर्मा के शासक थे के बीच एक सन्धि का प्रस्ताव हस्ताक्षरित हुआ जिसे लार्डमाउण्ट बेटन के हस्तक्षेप से 27 अक्टूबर 1947 को भारत सरकार ने सशर्त स्वीकार कर लिया।
भारत से सैन्य सहायता प्राप्त कर कश्मीर की जनता व महाराजा हरि सिंह की सेना ने संयुक्त रूप से आक्रमणकारियों को खदेड़ना प्रारम्भ कर दिया। इस युद्ध में नेशनल कांफ्रेंस के शेख अब्दुल्ला ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनके कार्यकर्ताओं ने भारतीय सेना के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर साथ दिया, जब ऐसा लग रहा था कि सम्पूर्ण कश्मीर पर पुनः भारत का प्रभुत्व स्थापित हो जाएगा तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने युद्ध विराम करने के संदेश के साथ हस्तक्षेप किया जिसे प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू ने युद्ध विराम के रूप में स्वीकार कर लिया। परिणामस्वरूप कश्मीर के 37 प्रतिशत भाग पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया और 43 प्रतिशत भाग भारत के हिस्से में आया। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशों पर भारत ने अमल तो कर लिया परन्तु पाकिस्तान ने अपनी सेना कश्मीर से वापस नहीं बुलाई और अपने कब्जे में लिए गए कश्मीर भाग को आजाद कश्मीर बना दिया।
मो .9455804309
-तारिक खान
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