बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

अफजल गुरू की फांसी कांग्रेस हित में या देश हित में?-2

कश्मीर का भारत में विलय सशर्त हुआ था जिसमें संविधान के अनुच्छेद 370के अन्तर्गत कश्मीर प्रान्त को विशेष दर्जा दिया गया था जिसके अन्तर्गत कश्मीर प्रान्त की सुरक्षा, कानून व्यवस्था एव ंविकास योजनाएँ बनाने का अधिकार भारत सरकार के संघीय ढाँचे को दिया गया था, परन्तु कश्मीर के लोकतांत्रिक स्वरूप के अस्तित्व को विशेष दर्जा देते हुए प्रदेश मुखिया को  प्रधानमंत्री का दर्जा दिया गया था। प्रधानमंत्री रामचन्द्र काक कश्मीर प्रान्त के पहले  प्रधानमंत्री बनाए गए जिनका सम्बन्ध इण्डिन नेशनल कांग्रेस से था। उसके बाद 5 मार्च 1948 को कश्मीरियों के जन प्रिय नेता शेख अब्दुल्ला कश्मीर के प्रधानमंत्री बने जिनके पूर्वज हिन्दू थे। शेख अब्दुल्ला पं0 जवाहर लाल नेहरू के पुराने मित्र थे परन्तु इस मित्रता में खटास सत्तासीन होने के पश्चात पड़नी प्रारम हो गई और पाकिस्तान की ओर उनके बढ़ते झुकाव का आरोप लगाकर शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार करके कश्मीर की सत्ता बक्शी गुलाम मोहम्मद के हाथों में कांग्रेस द्वारा सौंप दी गई। कश्मीर की जनता ने इसका जमकर विरोध किया और भारत से अलगाववाद की सोच ने जन्म ले लिया। बक्शी गुलाम मोहम्मद का कार्यकाल दस वर्षो से अधिक समय तक रहा उनके पश्चात ख्वाजा शमसुद्दीन और जी0एम0 सादिक कश्मीर के प्रधानमंत्री बने, जो बाद में कश्मीर के अन्तिम प्रधानमंत्री साबित हुए, क्योंकि वर्ष 1965 में लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्रित्व काल मेें विलय की शर्तों में संशोधन करते हुए प्रधानमंत्री का पद समाप्त कर दिया गया  और जी0एम0 सादिक कश्मीर प्रान्त के पहले मुख्यमंत्री बने। शेख अब्दुल्ला के साथ राजनैतिक द्वेष भावना से किए गए सलूक से खिन्न होकर पनप रही अलगाववादी सोच के ऊपर पेट्रोल छिड़कने का काम पाकिस्तानियों ने प्रारम्भ कर दिया और कश्मीर की जनता के बीच अपने एजेन्ट भेजकर इस बात का अनुमान पाकिस्तानी शासक अय्यूब खाँ लगाने में जुट गए कि कश्मीर की जनता का स्नेह भारत के प्रति अब कितना बचा है और पाकिस्तानियों की ओर कितना बढ़ा है।
    अय्यूब खाँ ने दिसम्बर 1965 में अपने इसी आकलन का सहारा लेकर कश्मीर पर हमला कर दिया परन्तु उनका आकलन गलत सिद्ध हुआ। कश्मीर के नागरिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ जमकर मुकाबला किया और पराजित होकर वापस भागती अय्यूब खाँ की सेना का पीछा करते भारतीय सेना जब लाइन आॅफ कन्ट्रोल को पार करके आजाद कश्मीर में घुस गई तो एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र संघ ने हस्तक्षेप किया और ताशकन्द में अय्यूब खाँ के साथ बातचीत के उपरान्त संधि करके तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री मानसिक रूप से इतने उत्पीडि़त हुए कि वे जीवित वतन वापस न लौट सके।
    लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद सत्तासीन हुईं देश की प्रथम महिला  प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने वर्ष 1971 में पाकिस्तान को छठीं का दूध याद दिलाते हुए जो विजयश्री भारत पाक युद्ध में प्राप्त की और जिस प्रकार पाकिस्तान के एक भाग को उससे जुदा करके बंगलादेश राष्ट्र की स्थापना करने में अपना योगदान दिया उसने पाकिस्तान के आक्रामक तेवरों की रीढ़ की हड्डी तोड़ डाली। परिणाम स्वरूप कश्मीर की अलगाववादी सोच भी शिथिल पड़ गई। अवसर को बेहतर मानकर प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने वर्षों से जेल में बन्द शेख अब्दुल्ला को रिहा कर दिया और 25 फरवरी 1975 को 22 वर्षों के उपरान्त कश्मीर की सत्ता कांग्रेस के मुख्यमंत्री सैय्यद मीर कासिम के हाथों से लेकर शेख अब्दुल्ला को सौंप दी।
    शेख अब्दुल्ला और इन्दिरा गांधी की संधि सन् 1975 की संधि के नाम से जानी जाती है।
    इन्दिरा गांधी की सत्ता पर संकट के दिन तब मँडराना शुरू हुए जब उन्होंने सत्ता पर जमे रहने की दृष्टि से आपात्काल की 1975 में घोषणा करके देश के लोकतंत्र का गला घोटने का प्रयास किया। शेख अब्दुल्ला की सत्ता भी जनता पार्टी के समय डावांडोल होने लगी। परिणाम स्वरूप बाद में शेख अब्दुल्ला की सरकार को जनता पार्टी के शासकों ने बर्खास्त कर वहाँ राष्ट्रपति शासन लगा दिया। परन्तु बाद में शेख अब्दुल्ला को पुनः 9 जुलाई 1977 को जनता ने मुख्यमंत्री चुन लिया।
 -तारिक खान
मो .9455804309



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