शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

तसलीमा के बयान की जांच करायी जाय

अभी अभी केंद्र सरकार ने दिल्ली बलात्कार कांड के परिप्रेक्ष्य में युवा आक्रोश का सम्मान करते हुए बलात्कार को खत्म करने के लिए वर्मा  कमीशन की सिफारेशों को दरकिनार करते हुए अध्यादेश लाने का ऐलान किया है। बलात्कार और यौन उत्पीड़न अब एकाकार है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के राष्ट्र के नाम संबोधन से इसका संकेत पहले ही मिल गया था। क्या इस अध्यादेश के आलोक मेंतसलीमा के उस बयान की भी जांच करायी जायेगी कि उनका ​​यौन शोषण हुआ बंगाल में, बांग्ला ही नहीं भारतीय साहित्य के एक पुरोधा के हाथों महीनों बीत गये, साहित्य और संसकृति के क्षेत्र में यौन उत्पीड़न के खुलासे के बाद न मीडिया ने इसे तरजीह दी और न सरकार ने इस आरोप का​ ​संज्ञान लिया। पर तसलीमा से सहानुभूति जताने वाले लोग और खास तौर पर उनके उपन्यास लज्जा से हिंदुत्व की राजनीति में उनका उपयोग ​​करने वाले लोग यह जानने की कोशिश  करते हुए भी नहीं देखे गये कि आखिर सच क्या है।?

महिला अधिकार समूहों ने रेप कानूनों पर केंद्र सरकार के अध्यादेश को खारिज करते हुए कहा है कि इसमें जस्टिस वर्मा आयोग की चुनिंदा सिफारिशों को ही शामिल किया गया है।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने शुक्रवार को महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए कानून को सख्त बनाने और संशोधन के लिए अध्यादेश को मंजूरी दे दी, जिसमें बेहद गंभीर मामलों में मौत की सजा तक का प्रावधान किया गया है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार और विवादास्पद आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट ;एएफएसपीए पर जस्टिस वर्मा आयोग की सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया है।
महिला अधिकार समूहों ने रेप कानूनों पर केंद्र सरकार के अध्यादेश को खारिज करते हुए कहा है कि इसमें जस्टिस वर्मा आयोग की चुनिंदा सिफारिशों को ही शामिल किया गया है।
उन्होंने एक संयुक्त बयान में कहा कि सरकार ने पूरी तरह से पारदर्शिता की कमी बरती और हम राष्ट्रपति से आग्रह करते हैं कि वह ऐसे अध्यादेश पर हस्ताक्षर नहीं करें। इस समूह में महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली वकील वृंदा ग्रोवर,जागोरी की सुनीता धर, ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वूमेन्स एसोसिएशन की कविता कृष्णन और पार्टनर्स फॉर लॉ एंड डेवलेपमेंट की मधु मेहरा शामिल थीं।
.-पलाश विश्वास
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