दंतेवाडा से मुझे तीन माह पहले एक आदिवासी महिला का फोन आया, सर, दंतेवाडा का एस.एस.पी. कल्लूरी मुझसे कह रहा है कि अगर तुम अपने भतीजे लिंगा को दिल्ली से वापिस बुलाकर हमें नहीं सौंपोगी, तो हम तुम्हारी जिन्दगी बर्बाद कर देंगे और आज तीन माह के बाद वह लड़की मुझे बताती है, सर, आपने कुछ नहीं किया, और इस बीच पुलिस ने मेरे पति को जेल में डाल दिया है और मेरे खिलाफ दो एफ.आई.आर. लिख दी हैं, जिसमें एक थाने पर हमला करने और दूसरी एक राजपूत कांग्रेसी नेता अवधेश गौतम के घर में नक्सलियों के साथ मिलकर हमला करने का आरोप लगाती हैं।
वह लड़की मुझसे रोकर कहती है, सर, मेरे तीन बच्चे हैं। मैं कैसे थाने पर और कांग्रेसी नेता पर हमला करने जाऊँगी?वह कहती है, मैं जाकर कल्लूरी से मिलकर रोई, गिड़-गिड़ाई। पर उसकी एक ही शर्त थी कि दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे लिंगा कोडोपी को लाकर पुलिस को सौंपा जाए, तभी उसे और मेरे पति को इस मामले से मुक्त किया जाएगा।
इस आदिवासी लड़की को मैंने आज से बारह साल पहले पहली बार देखा था। तब वह बारहवीं कक्षा में पढ़ती थी। बस्तर में विनोबा भावे के शिष्य पद्मश्री धर्मपाल सैनी शिक्षण संस्थाएँ चलाते हैं। मैं और मेरी पत्नी अक्सर इस शिक्षण संस्था में जाकर बच्चों से मिलते थे। वहीं पर सोनी नामक लड़की हमें मिली थी। तब इसके चाचा नंदा राम सोरी दंतेवाडा से सी.पी.आई. के एम.एल.ए. थे।
बारह साल के अंतराल के बाद यह लड़की पिछले साल अक्टूबर में फिर मेरे पास आई और उसने बताया कि उसके भतीजे लिंगाराम कोडोपी को पुलिस घर से उठा कर ले गई है और उस पर एस0पी0ओ0 बनने का दबाव डाल रही है, और उसे दंतेवाडा थाने के शौचालय में छिपा कर रखा हुआ है। एस0एस0पी0 अमरेश मिश्रा और डी0आई0जी0 कल्लूरी उसकी नित्य पिटाई करते हैं।
मैंने तुरंत हाई कोर्ट में हेबियस कॉर्पस दायर करने की सलाह दी। सोनी की सलाह पर लिंगा के बड़े भाई मासाराम कोडोपी ने बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में अपने भाई लिंगा को कोर्ट में पेश करने का आवेदन दिया। पुलिस ने कोर्ट में कहा कि लिंगा अपनी मर्जी से एस0पी0ओ0 बना हुआ है। कोर्ट ने लिंगा को हाजिर करने का हुक्म दिया और कोर्ट में लिंगा ने कह दिया कि वह एस0पी0ओ0 नहीं बनना चाहता, बल्कि अपने घर जाना चाहता है। कोर्ट ने पुलिस से लिंगा को तुरंत छोड़ने और घर जाने देने का आदेश किया।
कोर्ट से घर वापिस आते समय लिंगा को अहसास था कि पुलिस उसे घर तक नहीं पहुँचने देगी क्योंकि थाने में कैद के दौरान एस0पी0 अमरेश मिश्रा और डी0आई0जी0 कल्लूरी ने उससे और उसके परिवार वालों से कहा था कि अगर इस लड़के लिंगा को वे अदालत के सहारे पुलिस से छुड़वा भी लेंगे, तो पुलिस उसे बाद में गोली से उड़ा देगी और एन्काउंटर बता देगी। इस धमकी को याद रखते हुए लिंगा रास्ते में अपनी गाड़ी से उतर गया और अपने एक मित्र के घर रुक गया। उधर जैसा कि आदेश था, पुलिस ने लिंगा को पकड़ने के लिए आगे नाकाबंदी की हुई थी। लिंगा के परिवार की गाड़ी रुकवाई गई। पर लिंगा को न पाकर एस0पी0 अमरेश मिश्रा और डी0आई0जी0 कल्लूरी की हवाइयाँ उड़ गईं। उन्होंने लिंगा के छिपने के ठिकाने के बारे में पूछताछ करने के लिए लिंगा के बड़े भाई मासा राम कोडोपी को रास्ते में पकड़ लिया।
लिंगा को इस बात का पता चला, तो छिपते-छिपते मेरे पास आया। हमने तुरंत हाई कोर्ट को फैक्स द्वारा शिकायत भेजी कि हाई कोर्ट में शिकायत दर्ज करने वाले को ही पुलिस ने गायब कर दिया है। फैक्स मिलने पर अगले दिन हाई कोर्ट ने छत्तीसगढ़ पुलिस से जब लिंगा के भाई के बारे में नोटिस जारी कर जवाब पूछा, तो पुलिस ने लिंगा के भाई को दो दिन के बाद छोड़ दिया।
लेकिन एक हफ्ते के बाद फिर लिंगा को मारने के लिए रात को उसके गाँव पर हमला कर दिया गया। लिंगा को इस बात का अंदेशा तो था ही। इसलिए वह अपने घर न सोकर गाँव के बाहर एक खँडहर में सोया था। पुलिस ने गाँव के हर घर में घुसकर लिंगा को तलाश किया। लेकिन जब लिंगा नहीं मिला, तो पुलिस उसके बूढ़े बाप और गाँव के पाँच और लोगों को पकड़कर लिंगा के बारे में पूछताछ करने ले गई। लिंगा फिर मेरे पास आया, और इस समय वह बहुत गुस्से में था। वह बार-बार बड़बड़ा रहा था, ठीक है, अगर सरकार ऐसा करेगी, तो मैं भी नक्सलवादियों के साथ मिल जाता हूँ। मैंने उससे कहा, लिंगा, सरकार यही चाहती है कि आदिवासी लड़के बन्दूक उठाएँ, जिससे सरकार को उन्हें मार देने का बहाना मिल जाए। हम कानून की लड़ाई लड़ेंगे, गलती से भी बंदूक मत उठाना। हम लोगों ने फिर से एक शिकायत लिखकर राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट, प्रधान मंत्री, मानवाधिकार आयोग, डी0जी0पी0, एस0पी0 आदि को भेजी। पुलिसने एक हफ्ते बाद लिंगा के पिता को छोड़ दिया। बाकी के पाँच गाँव वालों को एक महीने के बाद छोड़ा गया। इस पूरे मामले में भी सोनी सोरी लगातार गाँव वालों को छुड़ाने में लगी रही इस बीच पुलिस की टीमें लिंगा को लगातार गाँव में जाकर मार डालने के लिए ढूँढती रहीं, हालाँकि उसका कोई अपराध नहीं था। कोर्ट से उसे संरक्षण प्राप्त था। लेकिन छत्तीसगढ़ में पुलिस और सरकार कोर्ट को पैरों की जूती समझती है।
-हिमांशु कुमार
वह लड़की मुझसे रोकर कहती है, सर, मेरे तीन बच्चे हैं। मैं कैसे थाने पर और कांग्रेसी नेता पर हमला करने जाऊँगी?वह कहती है, मैं जाकर कल्लूरी से मिलकर रोई, गिड़-गिड़ाई। पर उसकी एक ही शर्त थी कि दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे लिंगा कोडोपी को लाकर पुलिस को सौंपा जाए, तभी उसे और मेरे पति को इस मामले से मुक्त किया जाएगा।
इस आदिवासी लड़की को मैंने आज से बारह साल पहले पहली बार देखा था। तब वह बारहवीं कक्षा में पढ़ती थी। बस्तर में विनोबा भावे के शिष्य पद्मश्री धर्मपाल सैनी शिक्षण संस्थाएँ चलाते हैं। मैं और मेरी पत्नी अक्सर इस शिक्षण संस्था में जाकर बच्चों से मिलते थे। वहीं पर सोनी नामक लड़की हमें मिली थी। तब इसके चाचा नंदा राम सोरी दंतेवाडा से सी.पी.आई. के एम.एल.ए. थे।
बारह साल के अंतराल के बाद यह लड़की पिछले साल अक्टूबर में फिर मेरे पास आई और उसने बताया कि उसके भतीजे लिंगाराम कोडोपी को पुलिस घर से उठा कर ले गई है और उस पर एस0पी0ओ0 बनने का दबाव डाल रही है, और उसे दंतेवाडा थाने के शौचालय में छिपा कर रखा हुआ है। एस0एस0पी0 अमरेश मिश्रा और डी0आई0जी0 कल्लूरी उसकी नित्य पिटाई करते हैं।
मैंने तुरंत हाई कोर्ट में हेबियस कॉर्पस दायर करने की सलाह दी। सोनी की सलाह पर लिंगा के बड़े भाई मासाराम कोडोपी ने बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में अपने भाई लिंगा को कोर्ट में पेश करने का आवेदन दिया। पुलिस ने कोर्ट में कहा कि लिंगा अपनी मर्जी से एस0पी0ओ0 बना हुआ है। कोर्ट ने लिंगा को हाजिर करने का हुक्म दिया और कोर्ट में लिंगा ने कह दिया कि वह एस0पी0ओ0 नहीं बनना चाहता, बल्कि अपने घर जाना चाहता है। कोर्ट ने पुलिस से लिंगा को तुरंत छोड़ने और घर जाने देने का आदेश किया।
कोर्ट से घर वापिस आते समय लिंगा को अहसास था कि पुलिस उसे घर तक नहीं पहुँचने देगी क्योंकि थाने में कैद के दौरान एस0पी0 अमरेश मिश्रा और डी0आई0जी0 कल्लूरी ने उससे और उसके परिवार वालों से कहा था कि अगर इस लड़के लिंगा को वे अदालत के सहारे पुलिस से छुड़वा भी लेंगे, तो पुलिस उसे बाद में गोली से उड़ा देगी और एन्काउंटर बता देगी। इस धमकी को याद रखते हुए लिंगा रास्ते में अपनी गाड़ी से उतर गया और अपने एक मित्र के घर रुक गया। उधर जैसा कि आदेश था, पुलिस ने लिंगा को पकड़ने के लिए आगे नाकाबंदी की हुई थी। लिंगा के परिवार की गाड़ी रुकवाई गई। पर लिंगा को न पाकर एस0पी0 अमरेश मिश्रा और डी0आई0जी0 कल्लूरी की हवाइयाँ उड़ गईं। उन्होंने लिंगा के छिपने के ठिकाने के बारे में पूछताछ करने के लिए लिंगा के बड़े भाई मासा राम कोडोपी को रास्ते में पकड़ लिया।
लिंगा को इस बात का पता चला, तो छिपते-छिपते मेरे पास आया। हमने तुरंत हाई कोर्ट को फैक्स द्वारा शिकायत भेजी कि हाई कोर्ट में शिकायत दर्ज करने वाले को ही पुलिस ने गायब कर दिया है। फैक्स मिलने पर अगले दिन हाई कोर्ट ने छत्तीसगढ़ पुलिस से जब लिंगा के भाई के बारे में नोटिस जारी कर जवाब पूछा, तो पुलिस ने लिंगा के भाई को दो दिन के बाद छोड़ दिया।
लेकिन एक हफ्ते के बाद फिर लिंगा को मारने के लिए रात को उसके गाँव पर हमला कर दिया गया। लिंगा को इस बात का अंदेशा तो था ही। इसलिए वह अपने घर न सोकर गाँव के बाहर एक खँडहर में सोया था। पुलिस ने गाँव के हर घर में घुसकर लिंगा को तलाश किया। लेकिन जब लिंगा नहीं मिला, तो पुलिस उसके बूढ़े बाप और गाँव के पाँच और लोगों को पकड़कर लिंगा के बारे में पूछताछ करने ले गई। लिंगा फिर मेरे पास आया, और इस समय वह बहुत गुस्से में था। वह बार-बार बड़बड़ा रहा था, ठीक है, अगर सरकार ऐसा करेगी, तो मैं भी नक्सलवादियों के साथ मिल जाता हूँ। मैंने उससे कहा, लिंगा, सरकार यही चाहती है कि आदिवासी लड़के बन्दूक उठाएँ, जिससे सरकार को उन्हें मार देने का बहाना मिल जाए। हम कानून की लड़ाई लड़ेंगे, गलती से भी बंदूक मत उठाना। हम लोगों ने फिर से एक शिकायत लिखकर राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट, प्रधान मंत्री, मानवाधिकार आयोग, डी0जी0पी0, एस0पी0 आदि को भेजी। पुलिसने एक हफ्ते बाद लिंगा के पिता को छोड़ दिया। बाकी के पाँच गाँव वालों को एक महीने के बाद छोड़ा गया। इस पूरे मामले में भी सोनी सोरी लगातार गाँव वालों को छुड़ाने में लगी रही इस बीच पुलिस की टीमें लिंगा को लगातार गाँव में जाकर मार डालने के लिए ढूँढती रहीं, हालाँकि उसका कोई अपराध नहीं था। कोर्ट से उसे संरक्षण प्राप्त था। लेकिन छत्तीसगढ़ में पुलिस और सरकार कोर्ट को पैरों की जूती समझती है।
-हिमांशु कुमार
1 टिप्पणी:
असल में पुलिस की ऐसी कार्यवाही निर्दोष लोगों को अपराधी बनती है,यह बहुत ही गंभीर विचारनीय विषय है.बहुत कम ऐसे भाग्यशाली लोग होते हैं जो पुलिस के ऐसे करतब से बच पाते हैं.वे ही बच पाते हैं जो या तो पैसे दे दें,अथवा कोर्ट में पुलिस उन्हें अपराधी सिद्ध न कर सके.खाकी का यह अपराध दंडनीय होना चाहिए.,
एक टिप्पणी भेजें