बुधवार, 6 मार्च 2013

भगवा आतंकवाद के उद्गम स्थल की पुष्टि-3

संघ और भा0ज0पा0 ने षिंदे के इस वक्तव्य पर अपनी राजनैतिक बिसात बिछाना शुरू कर दिया। बहुत साफ तरीके से इसे हिन्दुओं का अपमान बता कर भावनात्मक शोषण और नफरत की राजनीति का शंखनाद हो गया। हालाँकि अगर उन्होंने स्वंय आतंकवाद को धर्म से जोड़कर मुसलमानों को कटघरे में खड़ा करने और उससे राजनैतिक लाभ उठाने की परम्परा कायम न की होती तो शायद आतंक के इस चेहरे के सामने आने के बाद भी इसे मात्र आतंकवाद ही कहा जाता। देष का सामाजिक ढाँचा भी और मजबूत होता और आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई भी। भा0ज0पा0 ने इतने ही पर बस नहीं किया उसने षिंदे के वक्तव्य पर हाफिज सईद की प्रतिक्रिया का भी भरपूर इस्तेमाल करने की कोषिष की। देष की अखंडता से जुड़े इस गम्भीर मुद्दे पर अपनी सांगठनिक वफादारी को कुर्बान कर देने के बजाए हाफिज सईद की बकवास के नाम पर आतंकवाद के इस दूसरे चेहरे को फिर से नकारने के प्रयास में लग गए। प्रचारित यह किया जाने लगा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का केस कमजोर हो गया। वास्तविक्ता तो यह है कि समझौता एक्सप्रेस धमाके के बाद लष्कर-ए-तैयबा और सिमी पर आरोप लगा कर इनकी संलिप्तता के जो सुबूत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को दिए गए थे वह झूठे और गढ़े हुए थे। बाद की तफतीष के नतीजे में होने वाली गिरफ्तारियों से उन प्रमाणों का दूर का भी कोई सम्बन्ध साबित न होने की वजह से हमारी विष्वसनीयता को गहरा आघात लगा था। परन्तु भा0ज0पा0 को इससे कोई आघात नहीं पहुँचा। उसने यह सवाल उस समय नहीं उठाया कि इससे आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई को नुकसान पहुँचा है। समझौता विस्फोट के मामले में पाकिस्तानी अधिकारियों की टिप्पणियों पर भी उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। इस बार भी संघ या भा0ज0पा0 को आतंकवाद के खिलाफ देष के अभियान के कमजोर पड़ने की चिन्ता नहीं है। दरअसल बौखलाहट उस हकीकत से है जिसका उल्लेख षिंदे ने पहली बार नाम लेकर कर दिया।
    सवाल यह भी उठाया गया कि षिंदे ने यह बात 2014 के आम चुनाव के मद्दे नजर अल्पसंखयकों को लुभाने के लिए कही है परन्तु इससे सच्चाई तो नहीं बदल सकती। षिंदे के बयान और कांग्रेस सरकारों की आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों के साथ होने वाली ज्यादतियों के प्रति संवेदनहीन रवैयों को देखते हुए वक्तव्य के समय और कांग्रेस के दोगलेपन की आलोचना की जानी चाहिए। परन्तु इस बहाने से तथ्यों पर परदा डालने की कोई भी कोषिष निंदनीय है। सवाल यह भी है कि कांग्रेस सरकार के गृहमंत्री को अगर यह पता था कि धमाके करवा कर मुसलमानों को फँसाने का खेल खेला गया है तो उन्हें यह भी बताना चाहिए था कि उनकी सरकार ने इस सिलसिले में कौन से कदम उठाए हैं? आतंकवाद के आरोप में गिरफतार आरोपियों में कांग्रेस शासित प्रदेषों में धर्म के आधार पर भेदभाव क्यों हो रहा है? जिन स्थानों पर तफतीष से यह साबित हो चुका है कि धमाकों में उन बेकसूरों का हाथ नहीं था जिन्हें पहले गिरफ्तार किया गया था तो अब तक उनके ऊपर से मुकदमें उठा कर उनके पुनर्वास के लिए कुछ क्यों नहीं किया गया? महाराष्ट्र और केन्द्र में सरकार में होने के बावजूद नान्देड़, परभनी, जालना और पूरना के धमाकों की जाँच करवा कर इंसाफ क्यों नहीं किया गया? मामला इंसाफ करने और दोषियों पर षिकंजा कसने का नहीं है। बात वोट बैंक की है। सपा ने बेकसूर मुस्लिम नौजवानों को रिहा करने का वादा करके मुस्लिम वोट बैंक को अपने साथ लाने में सफलता पाई थी। कवायद बस इतनी है कि अखिलेष सरकार के वादा नहीं पूरा करने पर नाराज मुस्लिम मतदाता को अपनी ओर आकर्षित किया जाए। भा0ज0पा0 भी अपने उसी एजेन्डे पर है। आतंकवाद, मुसलमान, हाफिज सईद, पाकिस्तान किसी भी बहाने से ध्रुवीकरण हो और उसका लाभ उसे मिले, देष और समाज का उससे अहित होता है तो होता रहे।  
    षिंदे के वक्तव्य और संघ व भा0ज0पा0 की प्रतिक्रिया ने जो बहस छेड़ी है राष्ट्रीय स्तर पर इसकी आवष्यकता थी। इससे देष की सुरक्षा से जुड़े इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर जनता में सकारात्मक समझ विकसित होने का अवसर मिलेगा।
-मसीहुद्दीन संजरी
     
  मोबाइल: 9455571488

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