अमेरिका के पेन्सिलवेनिया में स्थित वार्टन बिजनेस स्कूल में उद्बोधन के लिए नरेन्द्र मोदी को दिया गया निमंत्रण वापिस ले लिया गया है। इस निर्णय ;मार्च 2013 पर विविध प्रतिक्रियाएं हुई हैं। जो लोग इस निर्णय का विरोध कर रहे हैंए उनका कहना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार है। उनका तर्क है कि मोदी,भारतीय व्यवस्था में चुने हुए जनप्रतिनिधि हैं और उनके नेतृत्व में गुजरात में हुए विकास के बारे में उनके श्रीमुख से ज्ञान प्राप्त करना उद्योग जगत के लिए आवश्यक और वांछनीय है। उन्हें निमंत्रित करने के विरोधियों का कहना है कि ऐसा करना उनके व्यक्तित्व, कथनों और कार्यकलापों को उनकी संपूर्णता में स्वीकार्यता देना है। इनमें शामिल हैं गुजरात हिंसा में उनकी भूमिका, गुजरात कत्लेआम को रोकने में उनकी असफलताए समय.समय पर उनके द्वारा अल्पसंख्यकों के विरूद्ध विषवमन और दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने के प्रति उनकी उदासीनता। और इन महत्वपूर्ण मुद्दों को तथाकथित विकास से अलग करके नहीं देखा जा सकता। इन लोगों का कहना है कि जहां तक मोदी के कार्यकलापों का विश्लेषण करने या उन्हें वैचारिक चुनौती देने का प्रश्न है, यह उन्हें मुख्य वक्ता के रूप में निमंत्रित कर नहीं किया जा सकता। एक प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान द्वारा उन्हें निमंत्रित करने मात्र से उनके कद में इजाफा होगा और उन्हें एक ऊँचे पायदान से प्रवचन देने का मौका मिलेगा। उनसे बहस की जानी चाहिएए उनके निर्णयों और वक्तव्यों के बारे में उनसे तीखे प्रश्न पूछे जाने चाहिए। परंतु यह तभी संभव है जब वे और उनसे वादविवाद करने के इच्छुक लोग एक ही स्तर पर हों। वे मुख्य वक्ता हों और बाकी सभी श्रोता.यह स्थिति मोदी को निमंत्रण के विरोधियों को स्वीकार्य नहीं थी।
उनका यह तर्क भी था कि गुजरात की प्रगति एकतरफा है और उसे बहुत बढ़ाचढ़ाकर प्रस्तुत किया जा रहा है। गुजरात में कुपोषण व शिशु और मातृ मृत्युदर, अन्य कई राज्यों से अधिक है और गुजरात मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से काफी पीछे है। अनुसूचित जातियों.जनजातियों पर अत्याचार के मामलों में गुजरात में दोषसिद्धी दर, सभी राज्यों में सबसे कम.25 प्रतिशत.है। विश्लेषकों का मानना है कि गुजरात के विकास की बातों में प्रचार अधिक है सच्चाई कम। पिछले 10.12 सालों की अवधि में विकास के विभिन्न मानकों पर कई अन्य राज्यों का प्रदर्शन, गुजरात से कहीं बेहतर रहा है। एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि गुजरात में जो भी विकास हुआ है, उसके लाभ से अनुसूचित जातियां.जनजातियां एवं अल्पसंख्यक लगभग पूरी तरह से वंचित हैं।
मोदी को वार्टन के विद्यार्थियों द्वारा गुजरात के विकास पर व्याख्यान देने के लिए निमंत्रित किया गया था। यह जानकारी सार्वजनिक होने के बाद, वहीं के कुछ प्राध्यापकों ने इस निमंत्रण को वापिस लिए जाने की मांग करते हुए एक अपील जारी की। कुछ ही दिनों में इस अपील को सैकड़ों लोगों का समर्थन प्राप्त हो गया। इस अपील पर हस्ताक्षर करने वालों में वार्टन के कई प्राध्यापकों के अलावा बड़ी संख्या में वहां के वर्तमान व पूर्व छात्रए डाक्टर और वकील शामिल थे। अपील के समर्थकों की बड़ी संख्या और उसमें दिए गए अकाट्य तर्क, निर्णायक सिद्ध हुए और छात्रों . जो इस मामले में अंतिम निर्णय लेते हैं . ने निमंत्रण वापिस ले लिया।
एक राज्य के निर्वाचित मुख्यमंत्री होने के बावजूद, अमेरिका ने सन् 2005 से लेकर अब तक मोदी को वीजा नहीं दिया है। राष्ट्रमंडल देश भी उनसे दूरी बनाए हुए थे परंतु उनकी तीसरी चुनावी विजय और उनके देश के प्रधानमंत्री बनने की चर्चा के कारण ये देश अब उनके साथ अपने संबंध बेहतर बनाना चाहते हैं। अमेरिका ने उन्हें सन् 2002 के कत्लेआम में उनकी भूमिका के कारण वीजा देने से इंकार किया था और अमेरिका अपने इस निर्णय पर अब भी कायम है। जनभावनाओं और एक लंबे जनजागृति अभियान के दबाव में सामाजिक संगठनों ने आरएसएस के अनुषांगिक संगठन 'इंडिया डेव्लपमेंट रिलीफ फन्ड 'को अमेरिका से मिल रही हजारों डालर की सहायता रूकवाने में भी सफलता पाई है। सांस्कृतिक कार्यक्रम चलाने के नाम पर इस फन्ड में भारी धनराशि एकत्र की जा रही थी और इसका इस्तेमाल आरएसएस की राजनैतिक गतिविधियों के संचालन के लिए किया जा रहा था। संघ परिवार का मुख्य और एकमात्र कार्य है अपने विभिन्न संगठनों के माध्यम से अल्पसंख्यकों के विरूद्ध घृणा फैलाना। आतंक की राजनीति में अमेरिका की भूमिका से हम सब वाकिफ हैं। अल्कायदा के निर्माण के पीछे भी अमेरिका था। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि अपने राजनैतिक ,आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए अमेरिका किसी भी देश पर आक्रमण करने में नहीं हिचकिचाता। परंतु इसके साथ हीए यह भी सच है कि अमेरिका के राज्यतंत्र के कई हिस्से कुछ स्वस्थ परंपराओं और नियमों का पालन भी करते आ रहे हैं। इन परंपराओं में शामिल हैं प्रजातांत्रिक मूल्यों को प्रोत्साहन देने की नीति। अमेरिका के आमलोग वहां के तंत्र द्वारा उन्हें उपलब्ध प्रजातांत्रिक अधिकारों का इस्तेमाल, दुनिया के अलग.अलग हिस्सों में मानवाधिकारों के उल्लंघन और प्रतिगामी ताकतों का विरोध करने के लिए करते रहे हैं। अमेरिकी सरकार विदेशी राष्ट्रों से रिश्तों के मामले में दादागिरी करने की आदी है। वह अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की तनिक भी परवाह नहीं करती और कमजोर देशों को घुड़की देना उसकी आदतों में शुमार है। एक महाशक्ति के तौर पर अमेरिका वैश्विक प्रजातंत्र को पलीता लगा रहा है। अमेरिकाए संयुक्त राष्ट्रसंघ को शक्तिशाली नहीं बनने दे रहा है क्योंकि इससे दुनिया के विभिन्न राष्ट्रों के बीच समानता को बढ़ावा मिलेगा। अमेरिका ने दुनिया के कई हिस्सों में तानाशाहों को प्रोत्साहन दिया है और कई सैनिक व अन्य तानाशाहों की अमेरिका से गहरी सांठगांठ रही है।
एक दूसरे स्तर पर, वहां के आमजनों में आधुनिक प्रजातांत्रिक मूल्यों और परंपराओं के प्रति सम्मान है। इस तरह अमेरिका में ये दो परस्पर विरोधी धाराएं एक साथ अस्तित्व में हैं। प्रजातंत्र व मानवाधिकार समर्थक अभियानों और संगठनों के दबाव के चलते ही अमेरिका मोदी को वीजा नहीं दे रहा है। क्या मोदी को वीजा देने से इंकार हमारे देश का अपमान है कतई नहीं। यह सिर्फ हमें आईना दिखाता है। अमेरिका में कई ऐसी संस्थाएं हैं जो दूसरे देशों में धार्मिक स्वातंत्र्य की स्थिति पर नजर रखती हैं। कई दूसरी संस्थाएं आतंकी संगठनों और आतंकवादियों की सूचियां बनाती हैं। यह सब अमेरिकी समाज की विविधिता को दर्शाता है, वहां की सरकार और वहां के नागरिकों के विचारों में विरोधाभास को स्पष्ट करता है। जब अमेरिकी सरकार वियतनाम में नागरिकों पर नेपाम बम गिरा रही थी, उस समय अमेरिकी विश्वविद्यालयों के कैम्पस सरकार की वियतनाम नीति के विरूद्ध विद्यार्थियों की सर्वसम्मत हुंकार से गूंज रहे थे।
वार्टन के छात्रों ने मोदी को दिया गया निमंत्रण वापिस लेकर प्रजातंत्र व धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता तो जाहिर की ही है उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि भले ही मोदी विकास के कितने ही दावे कर रहे हों और कुछ लोग उनके दावों को सही भी मान रहे हों परंतु सच कुछ और है। मोदी को निमंत्रण दिए जाने के विरोधियों की अपील में स्पष्ट कहा गया है कि मानवाधिकारों की रक्षा को विकास से अलग करके नहीं देखा जा सकता। जहां तक मोदी की चुनाव में जीत के सिलसिले का सवाल है, वे समाज का ध्रुवीकरण करके हासिल की गई हैं ना कि प्रजातंत्र के उच्च सिद्धांतों के अनुरूपए समाज के सभी तबकों का समर्थन हासिल करके। वे समाज को विभाजित कर वोट हासिल करते आए हैं और उनके समर्थक जोर.जोर से कह रहे हैं कि चूंकि वे चुनाव जीत गए हैं, इसलिए गुजरात में सब कुछ ठीक है। शायद मोदी के फैन नहीं जानते कि हिटलर भी प्रजातांत्रिक तरीके से चुनाव जीतकर जर्मनी में शासन में आया था और बाद में उसने वहां की संसद को ही आग के हवाले कर दिया था।
जहां तक विकास का सवाल है, गुजरात का विकास केवल बड़े औद्योगिक घरानों का विकास है। ऐसे ही एक औद्योगिक घराने के कर्ताधर्ता अदानी, वार्टन के कार्यक्रम के प्रायोजक थे और ज्योंही मोदी को दिया गया निमंत्रण वापिस लिया गया, उन्होंने कार्यक्रम को प्रायोजित करने से इंकार कर दिया। दरअसल, मोदी के विकास के माडल में टाटा, अदानी और अंबानी को जनता का धन और सार्वजनिक संसाधनों को लूटने की पूरी आजादी है। मोदी को दिए गए निमंत्रण को वापिस लिए जाने से यह साफ है कि मोदी के प्रचार का गुब्बारा पंक्चर हो गया है। इससे यह भी साफ है कि वंचितों और कमजोरों के मानवाधिकारों के उल्लंघन को किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
-राम पुनियानी
उनका यह तर्क भी था कि गुजरात की प्रगति एकतरफा है और उसे बहुत बढ़ाचढ़ाकर प्रस्तुत किया जा रहा है। गुजरात में कुपोषण व शिशु और मातृ मृत्युदर, अन्य कई राज्यों से अधिक है और गुजरात मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से काफी पीछे है। अनुसूचित जातियों.जनजातियों पर अत्याचार के मामलों में गुजरात में दोषसिद्धी दर, सभी राज्यों में सबसे कम.25 प्रतिशत.है। विश्लेषकों का मानना है कि गुजरात के विकास की बातों में प्रचार अधिक है सच्चाई कम। पिछले 10.12 सालों की अवधि में विकास के विभिन्न मानकों पर कई अन्य राज्यों का प्रदर्शन, गुजरात से कहीं बेहतर रहा है। एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि गुजरात में जो भी विकास हुआ है, उसके लाभ से अनुसूचित जातियां.जनजातियां एवं अल्पसंख्यक लगभग पूरी तरह से वंचित हैं।
मोदी को वार्टन के विद्यार्थियों द्वारा गुजरात के विकास पर व्याख्यान देने के लिए निमंत्रित किया गया था। यह जानकारी सार्वजनिक होने के बाद, वहीं के कुछ प्राध्यापकों ने इस निमंत्रण को वापिस लिए जाने की मांग करते हुए एक अपील जारी की। कुछ ही दिनों में इस अपील को सैकड़ों लोगों का समर्थन प्राप्त हो गया। इस अपील पर हस्ताक्षर करने वालों में वार्टन के कई प्राध्यापकों के अलावा बड़ी संख्या में वहां के वर्तमान व पूर्व छात्रए डाक्टर और वकील शामिल थे। अपील के समर्थकों की बड़ी संख्या और उसमें दिए गए अकाट्य तर्क, निर्णायक सिद्ध हुए और छात्रों . जो इस मामले में अंतिम निर्णय लेते हैं . ने निमंत्रण वापिस ले लिया।
एक राज्य के निर्वाचित मुख्यमंत्री होने के बावजूद, अमेरिका ने सन् 2005 से लेकर अब तक मोदी को वीजा नहीं दिया है। राष्ट्रमंडल देश भी उनसे दूरी बनाए हुए थे परंतु उनकी तीसरी चुनावी विजय और उनके देश के प्रधानमंत्री बनने की चर्चा के कारण ये देश अब उनके साथ अपने संबंध बेहतर बनाना चाहते हैं। अमेरिका ने उन्हें सन् 2002 के कत्लेआम में उनकी भूमिका के कारण वीजा देने से इंकार किया था और अमेरिका अपने इस निर्णय पर अब भी कायम है। जनभावनाओं और एक लंबे जनजागृति अभियान के दबाव में सामाजिक संगठनों ने आरएसएस के अनुषांगिक संगठन 'इंडिया डेव्लपमेंट रिलीफ फन्ड 'को अमेरिका से मिल रही हजारों डालर की सहायता रूकवाने में भी सफलता पाई है। सांस्कृतिक कार्यक्रम चलाने के नाम पर इस फन्ड में भारी धनराशि एकत्र की जा रही थी और इसका इस्तेमाल आरएसएस की राजनैतिक गतिविधियों के संचालन के लिए किया जा रहा था। संघ परिवार का मुख्य और एकमात्र कार्य है अपने विभिन्न संगठनों के माध्यम से अल्पसंख्यकों के विरूद्ध घृणा फैलाना। आतंक की राजनीति में अमेरिका की भूमिका से हम सब वाकिफ हैं। अल्कायदा के निर्माण के पीछे भी अमेरिका था। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि अपने राजनैतिक ,आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए अमेरिका किसी भी देश पर आक्रमण करने में नहीं हिचकिचाता। परंतु इसके साथ हीए यह भी सच है कि अमेरिका के राज्यतंत्र के कई हिस्से कुछ स्वस्थ परंपराओं और नियमों का पालन भी करते आ रहे हैं। इन परंपराओं में शामिल हैं प्रजातांत्रिक मूल्यों को प्रोत्साहन देने की नीति। अमेरिका के आमलोग वहां के तंत्र द्वारा उन्हें उपलब्ध प्रजातांत्रिक अधिकारों का इस्तेमाल, दुनिया के अलग.अलग हिस्सों में मानवाधिकारों के उल्लंघन और प्रतिगामी ताकतों का विरोध करने के लिए करते रहे हैं। अमेरिकी सरकार विदेशी राष्ट्रों से रिश्तों के मामले में दादागिरी करने की आदी है। वह अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की तनिक भी परवाह नहीं करती और कमजोर देशों को घुड़की देना उसकी आदतों में शुमार है। एक महाशक्ति के तौर पर अमेरिका वैश्विक प्रजातंत्र को पलीता लगा रहा है। अमेरिकाए संयुक्त राष्ट्रसंघ को शक्तिशाली नहीं बनने दे रहा है क्योंकि इससे दुनिया के विभिन्न राष्ट्रों के बीच समानता को बढ़ावा मिलेगा। अमेरिका ने दुनिया के कई हिस्सों में तानाशाहों को प्रोत्साहन दिया है और कई सैनिक व अन्य तानाशाहों की अमेरिका से गहरी सांठगांठ रही है।
एक दूसरे स्तर पर, वहां के आमजनों में आधुनिक प्रजातांत्रिक मूल्यों और परंपराओं के प्रति सम्मान है। इस तरह अमेरिका में ये दो परस्पर विरोधी धाराएं एक साथ अस्तित्व में हैं। प्रजातंत्र व मानवाधिकार समर्थक अभियानों और संगठनों के दबाव के चलते ही अमेरिका मोदी को वीजा नहीं दे रहा है। क्या मोदी को वीजा देने से इंकार हमारे देश का अपमान है कतई नहीं। यह सिर्फ हमें आईना दिखाता है। अमेरिका में कई ऐसी संस्थाएं हैं जो दूसरे देशों में धार्मिक स्वातंत्र्य की स्थिति पर नजर रखती हैं। कई दूसरी संस्थाएं आतंकी संगठनों और आतंकवादियों की सूचियां बनाती हैं। यह सब अमेरिकी समाज की विविधिता को दर्शाता है, वहां की सरकार और वहां के नागरिकों के विचारों में विरोधाभास को स्पष्ट करता है। जब अमेरिकी सरकार वियतनाम में नागरिकों पर नेपाम बम गिरा रही थी, उस समय अमेरिकी विश्वविद्यालयों के कैम्पस सरकार की वियतनाम नीति के विरूद्ध विद्यार्थियों की सर्वसम्मत हुंकार से गूंज रहे थे।
वार्टन के छात्रों ने मोदी को दिया गया निमंत्रण वापिस लेकर प्रजातंत्र व धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता तो जाहिर की ही है उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि भले ही मोदी विकास के कितने ही दावे कर रहे हों और कुछ लोग उनके दावों को सही भी मान रहे हों परंतु सच कुछ और है। मोदी को निमंत्रण दिए जाने के विरोधियों की अपील में स्पष्ट कहा गया है कि मानवाधिकारों की रक्षा को विकास से अलग करके नहीं देखा जा सकता। जहां तक मोदी की चुनाव में जीत के सिलसिले का सवाल है, वे समाज का ध्रुवीकरण करके हासिल की गई हैं ना कि प्रजातंत्र के उच्च सिद्धांतों के अनुरूपए समाज के सभी तबकों का समर्थन हासिल करके। वे समाज को विभाजित कर वोट हासिल करते आए हैं और उनके समर्थक जोर.जोर से कह रहे हैं कि चूंकि वे चुनाव जीत गए हैं, इसलिए गुजरात में सब कुछ ठीक है। शायद मोदी के फैन नहीं जानते कि हिटलर भी प्रजातांत्रिक तरीके से चुनाव जीतकर जर्मनी में शासन में आया था और बाद में उसने वहां की संसद को ही आग के हवाले कर दिया था।
जहां तक विकास का सवाल है, गुजरात का विकास केवल बड़े औद्योगिक घरानों का विकास है। ऐसे ही एक औद्योगिक घराने के कर्ताधर्ता अदानी, वार्टन के कार्यक्रम के प्रायोजक थे और ज्योंही मोदी को दिया गया निमंत्रण वापिस लिया गया, उन्होंने कार्यक्रम को प्रायोजित करने से इंकार कर दिया। दरअसल, मोदी के विकास के माडल में टाटा, अदानी और अंबानी को जनता का धन और सार्वजनिक संसाधनों को लूटने की पूरी आजादी है। मोदी को दिए गए निमंत्रण को वापिस लिए जाने से यह साफ है कि मोदी के प्रचार का गुब्बारा पंक्चर हो गया है। इससे यह भी साफ है कि वंचितों और कमजोरों के मानवाधिकारों के उल्लंघन को किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
-राम पुनियानी
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