लेकिन फिर कल एक फोन ने मेरे सारे विश्वास को डगमगा दिया। दंतेवाड़ा से फिर उसी आदिवासी लडकी ने मुझे बताया की सर, दंतेवाडा के एस0एस0पी0 कल्लूरी नें दो नई नक्सली वारदातों में फिर से उसका नाम जोड़ दिया है और अदालत में उसके खिलाफ चालान भी पेश कर दिया है। वो लड़की रो रही थी कि सर मैं तो रोज अपने स्कूल में पढ़ाती हूँ, वहाँ मेरी हाजिरी लगी हुई है, मैं जेल में अपने पति से मिलने भी जाती हूँ और जेल के रजिस्टर में दस्तखत भी करती हूँ। लेकिन फिर भी एस0एस0पी0 कल्लूरी ने मुझे फरार घोषित कर दिया है और मुझे मारने की फिराक में है। फोन के उस तरफ वो लड़की रोती जा रही थी और फोन के इस तरफ मैं गुस्से, बेबसी, और असमंजस की हालत में उसका रोना सुनता जा रहा था।
लाखों लोग इस देश की आजादी के लिए लड़े थे मेरे पिता भी लड़े थे। क्या यही दिन देखने के लिए उन सारे लोगों ने कुर्बानी दी थी? क्या भगत सिंह इस तरह के देश के लिए शहीद हुए थे? कम से कम मुझे कोई ये तो बता दे की मुझे क्या करना चाहिए? आदिवासी होता तो बन्दूक उठा सकता था। पर सबने गांधीवादी कह कह कर मुझे इतना इज्जतदार बना दिया है कि अब मैं हर अन्याय पर बस इन्टरनेट पर एक लेख लिखता हूँ और सोच लेता हूँ की काफी देश सेवा हो गई। अब तो मीडिया वालों ने मेरे फोन भी उठाने बंद कर दिए हैं।
क्या कोई मेरी बात सुन रहा है? हेल्लो? मीडिया, सरकार, न्याय पालिका? है कोई गरीब जनता, आदिवासियों की बात सुनने वाला? क्या कोई बचा है? कम से कम इस लोकतंत्र को बचाने की आखिरी कोषिष तो कर लो, कोई है जो इस बेबस आदिवासी लड़की को बचा सकता है?
इस बार जब लिंगा दिल्ली से दंतेवाडा जाने लगा तो मैंने उसे जोर से भींच कर गले से लगा लिया। मैंने कहा लिंगा मेरा दिल कह रहा है कि हम अंतिम बार मिल रहे हैं। वो हँसने लगा। और बोला सर मैं अपने दिल से पुलिस का डर निकालना चाहता हूँ। मैंने कोई गलती नहीं की। सारे अपराध पुलिस ने किए। और मैं ही डरूँ? क्यों। इसलिए कि मैं आदिवासी हूँ। और आदिवासियों को पुलिस से डरना चाहिए?
लिंगा वही लड़का है जिसे दंतेवाडा के तत्कालीन डी0आई0जी0 कल्लूरी और एस0पी0 अमरेश मिश्रा ने जबरन एस0पी0ओ0 बनाने के लिए चालीस दिन तक दंतेवाडा थाने के शौचालय में भूखा रखा था और जिसे हम लोगों की मदद से उसकी बुआ सोनी सोरी ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के हस्तक्षेप से मुक्त कराया था। उसके बाद इन दोनों अधिकारियों ने लिंगा की हत्या की कई असफल कोषिषें की। अंत में हमने उसे दिल्ली भेज दिया। वहाँ उसने पत्रकारिता की पढ़ाई की। उसी दौरान डी0आई0जी0 कल्लूरी और एस0पी0 अमरेश मिश्रा ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी थी कि लिंगा कोडोपी कांग्रेसी नेता अवधेश गौतम के घर पर हुए हमले का मास्टर माइंड है। लेकिन जब दिल्ली में शोर मचा कि ये लड़का दिल्ली में है तो दंतेवाडा में कैसे हमला करेगा? तो परम ज्ञानी श्री विश्वरंजन जी ने कहा कि ये विज्ञप्ति गलती से जारी हो गई थी। खैर गलती तो इंसानों से हो ही जाती है। और अच्छे अच्छे पट कथाकार कई बार फ्लाप कहानी भी लिख देते हैं। तो इस बार ये कहानी पिट गई।
मैंने उसे समझाने की बहुत कोषिष की और उससे कहा कि देखो दंतेवाडा में आदिवासियों का जो नरसंहार सरकार कर रही है उस को रोकने के लिए हम सब को काम करना है। तुम वहाँ जाओगे तो या तो सरकार कोई भी फर्जी मामला बना कर तुम्हे जेल में डाल देगी या फर्जी एन्काउन्टर दिखा कर तुम्हे नक्सली सिद्ध कर के मार देगी। वो बोला ऐसे कैसे मुझे नक्सली सिद्ध कर देंगे? मैंने कहा जो लोग नारायण देसाई जैसे प्रख्यात गांधीवादी और प्रोफेसर यशपाल जैसे अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों को माओवादी समर्थक कह कर छत्तीसगढ़ में उनका जलूस निकलवा सकते हैं। उनके लिए तुम्हे माओवादी सिद्ध करना क्या मुष्किल है? छत्तीसगढ़ सरकार तो गुंडागर्दी पर उतरी हुई है।
लिंगा मुझसे कहने लगा कि मेरे गाँव के लोग चाहते हैं कि मैं वहाँ का बन्द स्कूल और अस्पताल शुरू करवा दूँ। मैं ये काम करवा लूँ फिर आगे का सोचूँगा। आखिरकार हमारी इस बात पर सहमति बनी कि लिंगा तीन महीने दंतेवाडा के अपने गाँव में रहने के बाद दिल्ली आकर पत्रकारिता शुरू करेगा।
लिंगा बीच बीच में मुझे फोन करता रहता था। उसने मुझे बताया कि वो बस्तर के कमिष्नर श्रीनिवासलू से और दंतेवाडा के कलेक्टर ओम प्रकाश चैधरी से मिला है और उनको अपने साथ हुई पुरानी पुलिस ज्यादतियों और गाँव में लोगो की तकलीफों के बारे में बताया है। और ये कि इन दोनों ने उसे सहयोग का आष्वासन दिया है। इसके कुछ दिन बाद उसका फिर फोन आया कि सर मुझे नक्सलियों ने बुला कर डांटा है कि मैं इन सरकारी अधिकारियों से क्यों मिला? और ये भी कि नक्सली मुझसे कह रहे थे कि ज्यादा नेतागीरी मत करो! वो मुझसे पूछने लगा कि सर क्या मैं अपने लोगो के भले के लिए काम नहीं कर सकता?
एक दिन उसका फोन आया और वो मुझे बताने लगा कि सर मैं आदिवासी विकास विभाग के एक अधिकारी से मिला और मैंने उनसे कहा कि आपने गाँव में कोई बिल्डिंग नहीं बनाई है पर कलेक्टर को बता दिया है कि बिल्डिंग बनाई गई है। मैं कलेक्टर को इसके बारे में बताऊँगा। इस पर वो अधिकारी महोदय गिड़गिड़ाने लगे और बोले कि आप को हम नई बिल्डिंगे बनाने का ठेका दे देंगे पर आप हमारी शिकायत मत करो। लिंगा ने बताया सर मैंने उन्हें बोला कि मैं यहाँ ठेकेदारी करने नहीं आया हूँ। बल्कि मैं चाहता हूँ आप गाँव में ईमानदारी से काम करें।
इस बीच मई जून में मुझे अमरीका जाना पड़ा। एक दिन उसका फोन आया कि सर हम लोग बहुत मुसीबत में हैंै नक्सलियों ने मेरी बुआ सोनी सोरी के पिता अर्थात मेरे दादा का पूरा घर लूट लिया है और उनके पैर में गोली मार दी है। मैंने कहा ठीक हैैै। मैं तुरंत इस समाचार को सब को भेजता हूँ। तो उसने कहा कि नहीं मैं खुद दिल्ली आ रहा हूँ और मैं खुद इसके बारे में प्रेस को बताऊँगा।
फिर उसका फोन आया कि सर मैं अपना एक मिट्टी का घर बना रहा हूँ। इस बीच उसने बताया कि वो थानेदार से मिला और अपनी मोटरसाइकिल वापिस माँगी तो थानेदार ने लिंगा से कहा कि अगर फिर से मोटर साइकिल माँगने आया तो तुझे किसी भी केस में फँसा कर अन्दर कर देंगे।
-हिमांशु कुमार
लाखों लोग इस देश की आजादी के लिए लड़े थे मेरे पिता भी लड़े थे। क्या यही दिन देखने के लिए उन सारे लोगों ने कुर्बानी दी थी? क्या भगत सिंह इस तरह के देश के लिए शहीद हुए थे? कम से कम मुझे कोई ये तो बता दे की मुझे क्या करना चाहिए? आदिवासी होता तो बन्दूक उठा सकता था। पर सबने गांधीवादी कह कह कर मुझे इतना इज्जतदार बना दिया है कि अब मैं हर अन्याय पर बस इन्टरनेट पर एक लेख लिखता हूँ और सोच लेता हूँ की काफी देश सेवा हो गई। अब तो मीडिया वालों ने मेरे फोन भी उठाने बंद कर दिए हैं।
क्या कोई मेरी बात सुन रहा है? हेल्लो? मीडिया, सरकार, न्याय पालिका? है कोई गरीब जनता, आदिवासियों की बात सुनने वाला? क्या कोई बचा है? कम से कम इस लोकतंत्र को बचाने की आखिरी कोषिष तो कर लो, कोई है जो इस बेबस आदिवासी लड़की को बचा सकता है?
इस बार जब लिंगा दिल्ली से दंतेवाडा जाने लगा तो मैंने उसे जोर से भींच कर गले से लगा लिया। मैंने कहा लिंगा मेरा दिल कह रहा है कि हम अंतिम बार मिल रहे हैं। वो हँसने लगा। और बोला सर मैं अपने दिल से पुलिस का डर निकालना चाहता हूँ। मैंने कोई गलती नहीं की। सारे अपराध पुलिस ने किए। और मैं ही डरूँ? क्यों। इसलिए कि मैं आदिवासी हूँ। और आदिवासियों को पुलिस से डरना चाहिए?
लिंगा वही लड़का है जिसे दंतेवाडा के तत्कालीन डी0आई0जी0 कल्लूरी और एस0पी0 अमरेश मिश्रा ने जबरन एस0पी0ओ0 बनाने के लिए चालीस दिन तक दंतेवाडा थाने के शौचालय में भूखा रखा था और जिसे हम लोगों की मदद से उसकी बुआ सोनी सोरी ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के हस्तक्षेप से मुक्त कराया था। उसके बाद इन दोनों अधिकारियों ने लिंगा की हत्या की कई असफल कोषिषें की। अंत में हमने उसे दिल्ली भेज दिया। वहाँ उसने पत्रकारिता की पढ़ाई की। उसी दौरान डी0आई0जी0 कल्लूरी और एस0पी0 अमरेश मिश्रा ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी थी कि लिंगा कोडोपी कांग्रेसी नेता अवधेश गौतम के घर पर हुए हमले का मास्टर माइंड है। लेकिन जब दिल्ली में शोर मचा कि ये लड़का दिल्ली में है तो दंतेवाडा में कैसे हमला करेगा? तो परम ज्ञानी श्री विश्वरंजन जी ने कहा कि ये विज्ञप्ति गलती से जारी हो गई थी। खैर गलती तो इंसानों से हो ही जाती है। और अच्छे अच्छे पट कथाकार कई बार फ्लाप कहानी भी लिख देते हैं। तो इस बार ये कहानी पिट गई।
मैंने उसे समझाने की बहुत कोषिष की और उससे कहा कि देखो दंतेवाडा में आदिवासियों का जो नरसंहार सरकार कर रही है उस को रोकने के लिए हम सब को काम करना है। तुम वहाँ जाओगे तो या तो सरकार कोई भी फर्जी मामला बना कर तुम्हे जेल में डाल देगी या फर्जी एन्काउन्टर दिखा कर तुम्हे नक्सली सिद्ध कर के मार देगी। वो बोला ऐसे कैसे मुझे नक्सली सिद्ध कर देंगे? मैंने कहा जो लोग नारायण देसाई जैसे प्रख्यात गांधीवादी और प्रोफेसर यशपाल जैसे अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों को माओवादी समर्थक कह कर छत्तीसगढ़ में उनका जलूस निकलवा सकते हैं। उनके लिए तुम्हे माओवादी सिद्ध करना क्या मुष्किल है? छत्तीसगढ़ सरकार तो गुंडागर्दी पर उतरी हुई है।
लिंगा मुझसे कहने लगा कि मेरे गाँव के लोग चाहते हैं कि मैं वहाँ का बन्द स्कूल और अस्पताल शुरू करवा दूँ। मैं ये काम करवा लूँ फिर आगे का सोचूँगा। आखिरकार हमारी इस बात पर सहमति बनी कि लिंगा तीन महीने दंतेवाडा के अपने गाँव में रहने के बाद दिल्ली आकर पत्रकारिता शुरू करेगा।
लिंगा बीच बीच में मुझे फोन करता रहता था। उसने मुझे बताया कि वो बस्तर के कमिष्नर श्रीनिवासलू से और दंतेवाडा के कलेक्टर ओम प्रकाश चैधरी से मिला है और उनको अपने साथ हुई पुरानी पुलिस ज्यादतियों और गाँव में लोगो की तकलीफों के बारे में बताया है। और ये कि इन दोनों ने उसे सहयोग का आष्वासन दिया है। इसके कुछ दिन बाद उसका फिर फोन आया कि सर मुझे नक्सलियों ने बुला कर डांटा है कि मैं इन सरकारी अधिकारियों से क्यों मिला? और ये भी कि नक्सली मुझसे कह रहे थे कि ज्यादा नेतागीरी मत करो! वो मुझसे पूछने लगा कि सर क्या मैं अपने लोगो के भले के लिए काम नहीं कर सकता?
एक दिन उसका फोन आया और वो मुझे बताने लगा कि सर मैं आदिवासी विकास विभाग के एक अधिकारी से मिला और मैंने उनसे कहा कि आपने गाँव में कोई बिल्डिंग नहीं बनाई है पर कलेक्टर को बता दिया है कि बिल्डिंग बनाई गई है। मैं कलेक्टर को इसके बारे में बताऊँगा। इस पर वो अधिकारी महोदय गिड़गिड़ाने लगे और बोले कि आप को हम नई बिल्डिंगे बनाने का ठेका दे देंगे पर आप हमारी शिकायत मत करो। लिंगा ने बताया सर मैंने उन्हें बोला कि मैं यहाँ ठेकेदारी करने नहीं आया हूँ। बल्कि मैं चाहता हूँ आप गाँव में ईमानदारी से काम करें।
इस बीच मई जून में मुझे अमरीका जाना पड़ा। एक दिन उसका फोन आया कि सर हम लोग बहुत मुसीबत में हैंै नक्सलियों ने मेरी बुआ सोनी सोरी के पिता अर्थात मेरे दादा का पूरा घर लूट लिया है और उनके पैर में गोली मार दी है। मैंने कहा ठीक हैैै। मैं तुरंत इस समाचार को सब को भेजता हूँ। तो उसने कहा कि नहीं मैं खुद दिल्ली आ रहा हूँ और मैं खुद इसके बारे में प्रेस को बताऊँगा।
फिर उसका फोन आया कि सर मैं अपना एक मिट्टी का घर बना रहा हूँ। इस बीच उसने बताया कि वो थानेदार से मिला और अपनी मोटरसाइकिल वापिस माँगी तो थानेदार ने लिंगा से कहा कि अगर फिर से मोटर साइकिल माँगने आया तो तुझे किसी भी केस में फँसा कर अन्दर कर देंगे।
-हिमांशु कुमार
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