मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी
पिछले कुछ महीनों ;अप्रैल २०१३ से बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार, उनकी गठबंधन साथी भाजपा द्वारा नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की छवि एक धर्मनिरपेक्ष नेता की होनी चाहिए। स्पष्टतः, उनका इशारा गुजरात के 2002 के कत्लेआम में मोदी की भूमिका की तरफ है। उन्होंने यह भी कहा कि वाजपेयी के साथ काम करने में उन्हें कोई समस्या नहीं थी और ना ही आडवाणी के साथ होगी। यह साफ है कि चाहे मोदी हों, वाजपेयी या आडवाणी.सभी एक ही थाली के चट्टे.बट्टे हैं। ये सब आर.एस.एस. के प्रशिक्षित स्वयंसेवक हैं। आर.एस.एस. हिंदुत्व के प्रति प्रतिबद्ध है और वह भारत को धर्मनिरपेक्ष प्रजातंत्र के स्थान पर हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है। वाजपेयी ने इस लक्ष्य की प्राप्ति में अपने ढंग से योगदान दिया। उन्होंने भाजपा को उस दौर में स्वीकार्यता दिलवाई जब सभी दल उसकी छाया तक से दूर भाग रहे थे। इसके लिए वाजपेयी को उदारवादी मुखौटा लगाना पड़ा। बाबरी मस्जिद के विध्वंस और उसके बाद हुए सांप्रदायिक दंगों की यादें, जनता के दिमाग में ताजा है। उस समय, पार्टी के विभाजकारी एजेंडे को लागू करने की जिम्मेदारी आडवाणी की थी। बाद में, आडवाणी भी अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि गढ़ने का प्रयास करने लगे।
नीतीश कुमार और उनके जैसे अन्य नेताओं.जिनमें जयप्रकाश नारायण भी शामिल हैं.ने ही भाजपा को स्वीकार्यता और सम्मान प्रदान किया है। नीतीश कुमार की कोई वैचारिक प्रतिबद्धता नहीं है और उन्हें सत्ता और केवल सत्ता से मतलब है।
इन दिनों मोदी का इतना विरोध क्यों हो रहा है? एक कारण तो यह है कि कई नेताओं और दलों को ऐसा लग रहा है कि मोदी का विरोध करने से उन्हें मुसलमानों के वोट प्राप्त होंगे। जो भी प्रजातंत्र के पैरोकार और कमजोर वर्गों की अधिकारों की लड़ाई में उनके पक्षधर हैं, उन्हें चाहिए कि वे यह सुनिश्चित करें कि मोदी.भाजपा राजनीति के हाशिए पर रहें और चुनावों में विजय न हासिल कर सकें। नीतीश कुमार क्या और क्यों सोच रहे हैं, यह कहना मुश्किल है। परंतु एक बात साफ है . और वह यह कि भाजपा बदल रही है। सांप्रदायिक एजेंडे वाले एक दल से वह सांप्रदायिक, फासिस्टी कार्यवाहियां करने वाली पार्टी बन रही है। मोदी के नेतृत्व ने उसके सांप्रदायिक, फासिस्टी चरित्र को और उभारा है। अब वह सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं है। वह अपने एजेंडे को लागू करने के लिए अब सड़कों और चौराहों पर खून बहाने को तैयार है।
भाजपा में आया यह परिवर्तन और मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाना, इस बात के सुबूत हैं कि फासीवाद भारत के द्वार पर दस्तक दे रहा है। अगर उदारवादी मूल्यों की पैरोकार और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की हामी ताकतें अब भी नहीं चेतीं तो फासिज्म की भारत में आमद को कोई नहीं रोक सकेगा। जर्मनी और इटली को अपने बूटों तले रोंदने वाले फासीवाद और भाजपा में .विशेषकर मोदी के संभावित नेतृत्व में . कई समानताएं हैं। भाजपा जिन आर्थिक सुधारों पर जोर दे रही है उनमें से कई की उपादेयता से यूपीए का मुख्य घटक दल कांग्रेस भी सहमत है। कई अन्य ऐसे कारक हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि मोदी, कट्टर फासीवादी हैं। मोदी के अल्पसंख्यकों के प्रति रूखे और क्रूर व्यवहार का उद्धेश्य बहुसंख्यक समुदाय को अपने साथ जोड़ना है। निसंदेह, सांप्रदायिक धुव्रीकरण की यह प्रक्रिया भारत में लंबे समय से चल रही है और इसे अंजाम दिया जा रहा है सांप्रदायिक दंगों के जरिए। अभी हाल के कुछ वर्षों में, आर.एस.एस. ने सांप्रदायिक धुव्रीकरण करने के अपने काम की आउटसोर्सिंग राज्यतंत्र को कर दी है। यह महाराष्ट्र के धुले में कुछ माह पहले हुए सांप्रदायिक दंगों से स्पष्ट है जहां कि पुलिसकर्मियों ने मुसलमानों पर हमले किये। धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने और साम्प्रदायिक.फासीवादी विचारधारा को मजबूती देने के लिए आतंकी हमलों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। हर आतंकी हमले के लिएए चाहे वह किसी ने भी किया होए मुसलमानों को दोषी ठहराया जाता है। साम्प्रदायिक दुष्प्रचार ने समाज के एक तबके को इस हद तक प्रभावित कर दिया है कि मोदी, उसके नायक बन गए हैं।
राज्य तंत्र के विभिन्न हिस्सों के साम्प्रदायिकीकरण की प्रक्रिया ने नए आयाम ले लिए हैं। नौकरशाही का एक हिस्सा साम्प्रदायिक ताकतों में शामिल हो गया है। मीडिया, विभाजनकारी सोच को प्रोत्साहन दे रही है और संघ परिवार के सदस्यों के उत्तेजक वक्तव्यों को जरूरत से ज्यादा महत्व। सास भी कभी जैसे सीरियल,प्रतिगामी मूल्यों को बढ़ावा दे रहे हैं। ढ़ेर सारे बाबा , गुरू और भगवान ऊग आए हैं जो मीठी चाशनी में लपेटकर जातिगत और लैंगिक ऊंचनीच के वही पुराने मूल्य जनता के समक्ष पेश कर रहे हैं। यही मूल्य साम्प्रदायिक व विघटनकारी राजनीति का आधार हैं।
मोदीए बड़े औद्योगिक घरानों के अलावा आईटी.एमबीए वर्ग के भी प्रिय पात्र बन गए हैं। यही वर्ग अन्ना.केजरीवाल.रामदेव के उभरने के पीछे भी हैए जिन्होंने संसदीय प्रजातंत्र के प्रति अविश्वास का भाव पैदा करने की कोशिश की और भ्रष्टाचार, जो कि हमारी व्यवस्थागत कमियों का एक लक्षण मात्र है, को बहुत बढ़ा.चढ़ाकर प्रस्तुत किया। अदानी, टाटा और अम्बानी, मोदी के गीत इसलिए गा रहे हैं क्योंकि मोदी ने उन्हें मुफ्त जमीनें और ढेर सारे अनुदान दिए हैं। मोदी ने विकास का छलावा पैदा करने के अलावा स्वयं की छवि एक जनप्रिय नेता की बनाने में भी सफलता हासिल की है। इतिहास गवाह है कि किसी भी देश में फासीवाद का आगाज हमेशा करिश्माई जननेताओं के नेतृत्व में होता रहा है। अपने प्रचार तंत्र और बड़े औद्योगिक समूहों की सहायता से, मोदी करिश्माई नेता के रूप में उभरने की तैयारी कर रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस और अन्य पार्टियां प्रजातंत्र का जीता.जागता प्रतीक हैं। कांग्रेस ने भी कई मौकों पर प्रजातांत्रिक अधिकारों को सीमित करने का प्रयास किया है। परंतु मोदी तो तानाशाही का जीता.जागता नमूना हैं। उनकी राजनीति में मतभिन्नता और उदारता के लिए कोई स्थान नहीं है। गुजरात की राजनीति से साबका रखने वाला हर व्यक्ति जानता है कि वहां मोदी ने किस तरह का एकाधिकार कायम कर रखा है। वे अपने विरोधियों को . चाहे वे पार्टी के अंदर हो या बाहर . तनिक भी सहन नहीं करते। हममें में से कई तानाशाहीपूर्ण शासन और अधिनायकवादी फासीवाद के बीच अंतर नहीं कर पाते। कई राजनैतिक ताकतों ने आपातकाल ;इंदिरा गांधी, 1975 को फासिस्ट राज बताया था। परंतु आपातकाल के लिए फासिज्म शब्द का प्रयोग सही नहीं है। फासिज्म हमेशा एक जनांदोलन से उभरता है। आपातकाल का जन्म किसी जनांदोलन से नहीं हुआ था। इसके विपरीत, भाजपा.मोदी जिस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं वह एक जनांदोलन है और उस आंदोलन के करिश्माई नेता की जिम्मेदारी संभालने के लिए मोदी तैयार बैठे हैं। नीतीश कुमार चाहे जिस कारण से मोदी का विरोध कर रहे हों परंतु हम सबको यह समझना होगा कि आज के हमारे राजनैतिक नेताओं से मोदी कई मामलों में एकदम अलग हैं। आशीष नंदी ने बिल्कुल ठीक कहा था कि मोदी में फासिस्ट नेता के सभी गुणधर्म हैं। अभी हाल में नंदी ने अपने एक लेख ब्लेम द मिडिल क्लास ;मध्यम वर्ग है दोषी में जोर देकर कहा है कि मध्यम वर्ग के कारण ही भारत पर फासीवाद का खतरा मंडरा रहा है और यही वर्ग मोदी का सबसे बड़ा प्रशंसक भी है।
इसके बावजूद, खेल अभी खत्म नहीं हुआ है। भारतीय राजनीति की विभिन्नता, मोदी एण्ड कंपनी के रास्ते में बाधक है। दमित और शोषित वर्गों का अपने अधिकारों के लिए संघर्ष, मोदी के नेतृत्व में साम्प्रदायिक फासीवाद के बढ़ते कदमों को थाम सकता है। परंतु एक प्रमुख समस्या यह है कि जहां तक धर्मनिरपेक्ष मूल्यों में आस्था का प्रश्न है, कांग्रेस की विश्वसनीयता संदिग्ध है। कांग्रेस को आमजन 1984 के सिक्ख कत्लेआम के लिए दोषी ठहराते हैं और यह सही भी है। यह भी सही है कि धर्मनिरपेक्षता और उससे जुड़े मुद्दों पर कांग्रेस ने अवसरवादी नीतियां अपनाई हैं और भाजपा.मोदी, इस स्थिति का पूरा लाभ उठा रहे हैं।
हम सबको यह समझना होगा कि हमारे देश के सभी राजनैतिक दल अवसरवादी हैं और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों से कभी न कभी समझौता कर चुके हैं। परंतु इसके बावजूद, उनमें से किसी की भी तुलना भाजपा.मोदी से नहीं की जा सकती क्योंकि ये दोनों उस आरएसएस के एजेंट हैं जो भारत को फासीवादी, हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनिया के कई देशों में धर्म के नाम पर ऐसी राजनीति का उदय हो रहा है जिसमें फासीवाद की झलक देखी जा सकती है। हमारे पड़ोसी मुल्कों में इस्लाम के नाम पर फासीवाद जड़ें जमा रहा है।
हम सबको यह समझना होगा कि प्रजातंत्र का कोई विकल्प नहीं है और धर्म के नाम पर की जाने वाली राजनीति, प्रजातंत्र को दफ़न कर देगी। भारत में फासीवाद बहुत धीमी गति से अपने कदम बढ़ा रहा है और शायद इसलिए हम उसके खतरे को उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं जितना कि लिया जाना चाहिए। क्या यह फासीवाद नहीं है कि हिन्दुत्व के आलोचकों को हिन्दू.विरोधी बताया जा रहा है?
समय आ गया है कि सभी प्रजातांत्रिक ताकतें एक संयुक्त मोर्चा बनाकर देश को फासीवाद के संकट से बचाएं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो नरेन्द्र मोदी और उनके साथी हमारे देश को फासीवाद की लंबी,अंधेरी सुरंग में धकेल देंगे।
-राम पुनियानी
पिछले कुछ महीनों ;अप्रैल २०१३ से बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार, उनकी गठबंधन साथी भाजपा द्वारा नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की छवि एक धर्मनिरपेक्ष नेता की होनी चाहिए। स्पष्टतः, उनका इशारा गुजरात के 2002 के कत्लेआम में मोदी की भूमिका की तरफ है। उन्होंने यह भी कहा कि वाजपेयी के साथ काम करने में उन्हें कोई समस्या नहीं थी और ना ही आडवाणी के साथ होगी। यह साफ है कि चाहे मोदी हों, वाजपेयी या आडवाणी.सभी एक ही थाली के चट्टे.बट्टे हैं। ये सब आर.एस.एस. के प्रशिक्षित स्वयंसेवक हैं। आर.एस.एस. हिंदुत्व के प्रति प्रतिबद्ध है और वह भारत को धर्मनिरपेक्ष प्रजातंत्र के स्थान पर हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है। वाजपेयी ने इस लक्ष्य की प्राप्ति में अपने ढंग से योगदान दिया। उन्होंने भाजपा को उस दौर में स्वीकार्यता दिलवाई जब सभी दल उसकी छाया तक से दूर भाग रहे थे। इसके लिए वाजपेयी को उदारवादी मुखौटा लगाना पड़ा। बाबरी मस्जिद के विध्वंस और उसके बाद हुए सांप्रदायिक दंगों की यादें, जनता के दिमाग में ताजा है। उस समय, पार्टी के विभाजकारी एजेंडे को लागू करने की जिम्मेदारी आडवाणी की थी। बाद में, आडवाणी भी अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि गढ़ने का प्रयास करने लगे।
नीतीश कुमार और उनके जैसे अन्य नेताओं.जिनमें जयप्रकाश नारायण भी शामिल हैं.ने ही भाजपा को स्वीकार्यता और सम्मान प्रदान किया है। नीतीश कुमार की कोई वैचारिक प्रतिबद्धता नहीं है और उन्हें सत्ता और केवल सत्ता से मतलब है।
इन दिनों मोदी का इतना विरोध क्यों हो रहा है? एक कारण तो यह है कि कई नेताओं और दलों को ऐसा लग रहा है कि मोदी का विरोध करने से उन्हें मुसलमानों के वोट प्राप्त होंगे। जो भी प्रजातंत्र के पैरोकार और कमजोर वर्गों की अधिकारों की लड़ाई में उनके पक्षधर हैं, उन्हें चाहिए कि वे यह सुनिश्चित करें कि मोदी.भाजपा राजनीति के हाशिए पर रहें और चुनावों में विजय न हासिल कर सकें। नीतीश कुमार क्या और क्यों सोच रहे हैं, यह कहना मुश्किल है। परंतु एक बात साफ है . और वह यह कि भाजपा बदल रही है। सांप्रदायिक एजेंडे वाले एक दल से वह सांप्रदायिक, फासिस्टी कार्यवाहियां करने वाली पार्टी बन रही है। मोदी के नेतृत्व ने उसके सांप्रदायिक, फासिस्टी चरित्र को और उभारा है। अब वह सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं है। वह अपने एजेंडे को लागू करने के लिए अब सड़कों और चौराहों पर खून बहाने को तैयार है।
भाजपा में आया यह परिवर्तन और मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाना, इस बात के सुबूत हैं कि फासीवाद भारत के द्वार पर दस्तक दे रहा है। अगर उदारवादी मूल्यों की पैरोकार और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की हामी ताकतें अब भी नहीं चेतीं तो फासिज्म की भारत में आमद को कोई नहीं रोक सकेगा। जर्मनी और इटली को अपने बूटों तले रोंदने वाले फासीवाद और भाजपा में .विशेषकर मोदी के संभावित नेतृत्व में . कई समानताएं हैं। भाजपा जिन आर्थिक सुधारों पर जोर दे रही है उनमें से कई की उपादेयता से यूपीए का मुख्य घटक दल कांग्रेस भी सहमत है। कई अन्य ऐसे कारक हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि मोदी, कट्टर फासीवादी हैं। मोदी के अल्पसंख्यकों के प्रति रूखे और क्रूर व्यवहार का उद्धेश्य बहुसंख्यक समुदाय को अपने साथ जोड़ना है। निसंदेह, सांप्रदायिक धुव्रीकरण की यह प्रक्रिया भारत में लंबे समय से चल रही है और इसे अंजाम दिया जा रहा है सांप्रदायिक दंगों के जरिए। अभी हाल के कुछ वर्षों में, आर.एस.एस. ने सांप्रदायिक धुव्रीकरण करने के अपने काम की आउटसोर्सिंग राज्यतंत्र को कर दी है। यह महाराष्ट्र के धुले में कुछ माह पहले हुए सांप्रदायिक दंगों से स्पष्ट है जहां कि पुलिसकर्मियों ने मुसलमानों पर हमले किये। धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने और साम्प्रदायिक.फासीवादी विचारधारा को मजबूती देने के लिए आतंकी हमलों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। हर आतंकी हमले के लिएए चाहे वह किसी ने भी किया होए मुसलमानों को दोषी ठहराया जाता है। साम्प्रदायिक दुष्प्रचार ने समाज के एक तबके को इस हद तक प्रभावित कर दिया है कि मोदी, उसके नायक बन गए हैं।
राज्य तंत्र के विभिन्न हिस्सों के साम्प्रदायिकीकरण की प्रक्रिया ने नए आयाम ले लिए हैं। नौकरशाही का एक हिस्सा साम्प्रदायिक ताकतों में शामिल हो गया है। मीडिया, विभाजनकारी सोच को प्रोत्साहन दे रही है और संघ परिवार के सदस्यों के उत्तेजक वक्तव्यों को जरूरत से ज्यादा महत्व। सास भी कभी जैसे सीरियल,प्रतिगामी मूल्यों को बढ़ावा दे रहे हैं। ढ़ेर सारे बाबा , गुरू और भगवान ऊग आए हैं जो मीठी चाशनी में लपेटकर जातिगत और लैंगिक ऊंचनीच के वही पुराने मूल्य जनता के समक्ष पेश कर रहे हैं। यही मूल्य साम्प्रदायिक व विघटनकारी राजनीति का आधार हैं।
मोदीए बड़े औद्योगिक घरानों के अलावा आईटी.एमबीए वर्ग के भी प्रिय पात्र बन गए हैं। यही वर्ग अन्ना.केजरीवाल.रामदेव के उभरने के पीछे भी हैए जिन्होंने संसदीय प्रजातंत्र के प्रति अविश्वास का भाव पैदा करने की कोशिश की और भ्रष्टाचार, जो कि हमारी व्यवस्थागत कमियों का एक लक्षण मात्र है, को बहुत बढ़ा.चढ़ाकर प्रस्तुत किया। अदानी, टाटा और अम्बानी, मोदी के गीत इसलिए गा रहे हैं क्योंकि मोदी ने उन्हें मुफ्त जमीनें और ढेर सारे अनुदान दिए हैं। मोदी ने विकास का छलावा पैदा करने के अलावा स्वयं की छवि एक जनप्रिय नेता की बनाने में भी सफलता हासिल की है। इतिहास गवाह है कि किसी भी देश में फासीवाद का आगाज हमेशा करिश्माई जननेताओं के नेतृत्व में होता रहा है। अपने प्रचार तंत्र और बड़े औद्योगिक समूहों की सहायता से, मोदी करिश्माई नेता के रूप में उभरने की तैयारी कर रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस और अन्य पार्टियां प्रजातंत्र का जीता.जागता प्रतीक हैं। कांग्रेस ने भी कई मौकों पर प्रजातांत्रिक अधिकारों को सीमित करने का प्रयास किया है। परंतु मोदी तो तानाशाही का जीता.जागता नमूना हैं। उनकी राजनीति में मतभिन्नता और उदारता के लिए कोई स्थान नहीं है। गुजरात की राजनीति से साबका रखने वाला हर व्यक्ति जानता है कि वहां मोदी ने किस तरह का एकाधिकार कायम कर रखा है। वे अपने विरोधियों को . चाहे वे पार्टी के अंदर हो या बाहर . तनिक भी सहन नहीं करते। हममें में से कई तानाशाहीपूर्ण शासन और अधिनायकवादी फासीवाद के बीच अंतर नहीं कर पाते। कई राजनैतिक ताकतों ने आपातकाल ;इंदिरा गांधी, 1975 को फासिस्ट राज बताया था। परंतु आपातकाल के लिए फासिज्म शब्द का प्रयोग सही नहीं है। फासिज्म हमेशा एक जनांदोलन से उभरता है। आपातकाल का जन्म किसी जनांदोलन से नहीं हुआ था। इसके विपरीत, भाजपा.मोदी जिस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं वह एक जनांदोलन है और उस आंदोलन के करिश्माई नेता की जिम्मेदारी संभालने के लिए मोदी तैयार बैठे हैं। नीतीश कुमार चाहे जिस कारण से मोदी का विरोध कर रहे हों परंतु हम सबको यह समझना होगा कि आज के हमारे राजनैतिक नेताओं से मोदी कई मामलों में एकदम अलग हैं। आशीष नंदी ने बिल्कुल ठीक कहा था कि मोदी में फासिस्ट नेता के सभी गुणधर्म हैं। अभी हाल में नंदी ने अपने एक लेख ब्लेम द मिडिल क्लास ;मध्यम वर्ग है दोषी में जोर देकर कहा है कि मध्यम वर्ग के कारण ही भारत पर फासीवाद का खतरा मंडरा रहा है और यही वर्ग मोदी का सबसे बड़ा प्रशंसक भी है।
इसके बावजूद, खेल अभी खत्म नहीं हुआ है। भारतीय राजनीति की विभिन्नता, मोदी एण्ड कंपनी के रास्ते में बाधक है। दमित और शोषित वर्गों का अपने अधिकारों के लिए संघर्ष, मोदी के नेतृत्व में साम्प्रदायिक फासीवाद के बढ़ते कदमों को थाम सकता है। परंतु एक प्रमुख समस्या यह है कि जहां तक धर्मनिरपेक्ष मूल्यों में आस्था का प्रश्न है, कांग्रेस की विश्वसनीयता संदिग्ध है। कांग्रेस को आमजन 1984 के सिक्ख कत्लेआम के लिए दोषी ठहराते हैं और यह सही भी है। यह भी सही है कि धर्मनिरपेक्षता और उससे जुड़े मुद्दों पर कांग्रेस ने अवसरवादी नीतियां अपनाई हैं और भाजपा.मोदी, इस स्थिति का पूरा लाभ उठा रहे हैं।
हम सबको यह समझना होगा कि हमारे देश के सभी राजनैतिक दल अवसरवादी हैं और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों से कभी न कभी समझौता कर चुके हैं। परंतु इसके बावजूद, उनमें से किसी की भी तुलना भाजपा.मोदी से नहीं की जा सकती क्योंकि ये दोनों उस आरएसएस के एजेंट हैं जो भारत को फासीवादी, हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनिया के कई देशों में धर्म के नाम पर ऐसी राजनीति का उदय हो रहा है जिसमें फासीवाद की झलक देखी जा सकती है। हमारे पड़ोसी मुल्कों में इस्लाम के नाम पर फासीवाद जड़ें जमा रहा है।
हम सबको यह समझना होगा कि प्रजातंत्र का कोई विकल्प नहीं है और धर्म के नाम पर की जाने वाली राजनीति, प्रजातंत्र को दफ़न कर देगी। भारत में फासीवाद बहुत धीमी गति से अपने कदम बढ़ा रहा है और शायद इसलिए हम उसके खतरे को उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं जितना कि लिया जाना चाहिए। क्या यह फासीवाद नहीं है कि हिन्दुत्व के आलोचकों को हिन्दू.विरोधी बताया जा रहा है?
समय आ गया है कि सभी प्रजातांत्रिक ताकतें एक संयुक्त मोर्चा बनाकर देश को फासीवाद के संकट से बचाएं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो नरेन्द्र मोदी और उनके साथी हमारे देश को फासीवाद की लंबी,अंधेरी सुरंग में धकेल देंगे।
-राम पुनियानी
2 टिप्पणियां:
सभी प्रजातांत्रिक ताकतें एक संयुक्त मोर्चा बनाकर देश को फासीवाद के संकट से बचाएं!!!
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mei koi Modi supporter nahi hu.. but aapne jo bhi critical points bataye wo secular sound karte hain.. but yehi reason hai ki desh dur dasha ki taraf badh raha hai ... hume leader ki jaroorat hai... wo jo commanding ho.. jise aap Modi ka propaganda ar chalawa bata rahei hain ...wo state mei Mai hoke aya ... its worth all the praises !!
No matter what your view point is , with all respect, I wil tell u, to hell with the Secular word of India.. which is nothing but vote bank politics ...I donot know would it be right if Modi becomes the PM but this is forsure .. the so called secular forces have ruined the country so far and hence should be chucked out at any bloody cost !! Its better be ruled by Ashoka and Aurangzeb than by people who dont care for their pupil at all !!
Jai Hind !!
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