किसी भी देश के समाज वहके ऐतिहासिक , सांस्कृतिक , विकास , उत्थान , पतन , शोषण के काल को
दस्तावेजो को काव्य विधा , गद्द विधा और नाट्य विधा के साथ ही द्र्श्याकन विधा और नाट्य विधा से अपने देश के आने वाली पीढ़ी को बताता है |
अभी तो लड़ना है तब तक
जब तक माउस रहेंगे फूल
तितलियों को नही मिलेगा हक़
जब तक अपनी जडो से लौटेंगे पेड़
अभी तो लड़ना है तब तक
जब तक हलो को रोकती रहेगी लाठिया
भूखा रहेगा हथौडे का पेट
जब तक सीमाओं पर भाल नही होगी शान्ति '
अभी तो लड़ना है तब तक
जब तक आत्महत्याए करती रहेगी शिक्षा
जेबों में सोता रहेगा रीतापन
जब तक आदमी को पीटता रहेगा वक्त .............
आजमगढ़ दत्तात्रेय , दुर्वासा ,चन्द्रमा मुनि के तपोस्थली की पावन धरती पर कामरेड झारखडेय राय ,कामरेड तेज बहादुर सिंह और जय बहादुर सिंह , राहुल सांकृत्यायन , कैफ़ी और
एक आग छुपाये रंगकर्मी अभिषेक पंडित आचार्य चन्द्रबली पांडये जैसे प्रकाण्ड हिन्दी साहित्य के विद्वान् और हिन्दी साहित्य के युगधारा के नाती अभिषेक अपने अन्दर समाज के दर्द को बखूबी महसूस करते है | कहा जाता है कि कही ना
कही पिछले पीढियों का जींस उनके वशं वृक्ष के किसी फल में मिलता है और वही फल है अभिषेक 19 जुलाई 1981 को जन्मे अभिषेक पंडित नई दिल्ली द्वारा नाट्य निर्देशन में '' शार्ट टाइम्स डिप्लोमा कोर्स किया है
अभिषेक के अन्दर हर वक्त एल परिवर्तन की आग जलती है | इसीलिए समाज और देश के
विकृतियों को उन्होंने पिछले 15 वर्षो से '' सुधार '' नाट्य संस्था के माध्यम से अब तक लगभग सम्पूर्ण देश के विभिन्न अंचलो में 125 से ज्यादा नाटको की प्रस्तितिया दी है |
अभिषेक पंडित ने पद्मश्री श्री राज बिसारिया , पद्मश्री श्री राबिन्दास , पद्मश्री रजिन्दर पद्मश्री त्रिपुरारी शर्मा व विश्व विख्यात नौटंकी शैली के मर्मज्ञ आत्मजीत सिंह के सानिध्य में रंगकर्म के प्रशिक्षण के साथ ही रंग्मंव्ह की बारीक सूत्रों को बड़ी तन्मयता और गहराई से समझा व जाना है |
'' सूत्रधार '' संस्था के माध्यम से उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी लखनऊ द्वारा आयोजित सम्भागीय
नाट्य समारोह 2007 एवं राज्य नाट्य समारोह 2008 में अपने नाटको की सफल प्रस्तुती देकर अपने निर्देशन की क्षमता का लोहा मनवा कर एक न्य कृतिमान स्थापित किया है |
'' मैं खुश हूँ औजार बन तू , तू ही बन हथियार
वक्त करेगा फैसला , कौन हुआ बेकार ''
रंगकर्म के साथ निर्देशन में दखल रखने के कारण अभिषेक के नाटको को देखने का अवसर
प्राप्त हुआ है | इन्होने अपने नाटको में विभिन्न शैलियों का समावेश करके नूतन प्रयोग किया है | इनके नाटको का कथ्य सैम -- सामायिक होते है | अभिषेक के नाटको में सबसे विशेष बात यह रही कि ये कथ्यों को गीतों का स्वरूप देकर बड़े सहज ही ढंग से दर्शको के मानसपटल पर अपनी वेदना को समाहित कर लेते है
| यह इनके नाटक का सबसे मजबूत पक्ष है | इन्होने बड़े कहानीकारो के कहानियों पर अनेक नाटक प्रस्तुत किये है काशीनाथ सिंह की कहानी '' काशी का अस्सी '' के एक भाग को इन्होने उठाया पांडये कौन कुमत तोहे लागी तो दूसरी तरफ प्रेमचन्द जी की कहानियों पर पोंगा पंडित और कवि गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर की गुगी कहानी को नाट्य रूप देकर सफल प्रस्तुतिया की है नाट्य विधा के विविध क्षेत्रो में भी ये विशेष दखल रखते है |इसके साथ ही अभिषेक पंडित और इनके साथियो द्वारा '' सूत्रधार '' संस्था के माध्यम से विगत दस वर्षो से प्रति वर्ष चार दिवसीय '' आरगम '' का आयोजन किया जा रहा है |
'' आरगम '' का उद्देश्य हमारी भारिटी पुरातन लोक शैली व संस्कृति को जिससे भारत वर्ष की पहचान पूरी दुनिया में है | परन्तु इस बाजार वादी और वैश्वीकरणवादी नीतियों के कारण वो धीरे -- धीरे मृत: प्राय होती जा रही है | उसी लोक संस्कृति , लोक रंग , लोक माटी , लोक भूषा , लोक भाषा को जीवित रखने की परम्परा का निर्वाह कर रही है | अपना भारत विविध रंगों से भरा है तभी तो कहा जाता है | दस कोस पे पानी बदले , बीस कोस पे बानी लोकरंग और उसके माटी के सुगन्ध को बहाने के लिए सूत्रधार संस्था कटिबद्ध है और इसकी सबसे बड़ी विशेषता कि ये संस्था किसी से भी चंदा नही मांगती अपने कार्यक्रमों को करने के लिए | कार्यक्रमों के अवसर पर ये लोग एक दान पेटिका रखते है और अपील करते है जिसका जो सामर्थ्य को अगर वो दान दे सके तो उचित होगा | उसी से यह कार्यक्रम विगत दस वर्षो से होता आ रहा है |
1957 में आजमगढ़ में तत्कालीन जिलाधिकारी कृपा नारायण श्रीवास्तव के प्रयास से एक संस्कृति कर्मियों के लिए '' कला भवन '' का निर्माण कराया गया | कहा जाता है कि इस कला भवन को स्वरूप देने में नाट्य गजट के मनीषी , पुरोधा स्वर्गीय पृथ्वीराज कपूर का पूरा योगदान रहा उन्होंने ही इस कला भवन का नक्शा बनाया था |
कला भवन जनपद की रंग परम्परा को पहचान देने वाली एक ऐसी संस्था बनी , उस कला भवन का अपना एक विशाल व गौरवशाली इतिहास रहा है | ब्रज भाषा -- खड़ी बोली के प्रखर कवि अयोध्या सिंह '' हरिऔध '' के नाम पर बनी यह संस्था अपने हृदय के पटल पर अनेको इतिहासों को समा के रखा है | इस मंच पर लगाता आज पचास वर्षो से बंग सोसायटी द्वारा हिन्दी और बंगला नाटको का मंचन होता आ रहा है और समय -- समय पर जनपद की अन्य नाट्य संस्था द्वारा इस मंच पर नाटक मंचित होने के साथ यह कलाभवन कवि सम्मेलनों का साक्षी रहा है कि इस मंच पर साहित्य मनीषियों डाक्टर हरिबंश राय बच्चन , महादेवी वर्मा , गोपालदास नीरज गोविन्द व्यास , संतोषा आनन्द प्रख्यात प्रगतिशील शायर कैफ़ी आज़मी फिराक गोरखपुरी , दान बहादुर सिंह सूड फैजाबादी ने अपने सृजनात्मक अभिव्यक्तियों से सजाया है व इस मंच पर प्रधानमन्त्री सर्गिय इन्दिरा गांधी व बहुत विशिष्ठ जानो ने इस कला भवन के मन का गौरव बढाया है |
इस कला भवन को महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने दुर्लभ पांडुलिपियों और प्रातन काल के अव्शेहो से इसके पुस्तकालय को सवारा था |
अल्लाहमाह शिब्ली नोमानी के सर जमी पर अश्वघोष के शब्दों को यथार्थ की धरातल पर उतारता आज़न्गढ़ का होनहार नौजवान अपने अन्दर
आजमगढ़ पुरे भारत में अपनी एक अलग पहचान रखती | परन्तु पिछले दस वर्षो से उपर हो गया इस ऐतिहासिक कला भवन की स्थिति अब धीरे -- धीरे प्रशासनिक उपेक्षा के कारण खण्डहर में तब्दील होती जा रही है | पर हमारे आजमगढ़ के उत्साहित और विद्रोही रंगकर्मी इस कला भवन के उस पुरातन संस्कृति और इसके सम्मान के लिए लगातार संघर्षरत है | विगत दस वर्षो से इस को जीवित रखने के लिए अभिषेक पंडित अपनी सूत्रधार के साथियो के प्रतिदिन कला की क्षाओ को चलाने के साथी नाटको का रिहर्सल भी करते है और इस खण्डहर को साफ़ -- सुधरा रखे हुए है |
2007 में तत्कालीन जिलाधिकारी सुभाष चन्द्र शर्मा द्वारा इस संस्था के प्रागं में दर्शक वीथिका के विशाल परिसर में एक बड़ी '' पानी की टंकी '' का निर्माण कार्य शुरू किया तब शहर के बुद्धिजीवी लोक प्रशासनिक भय से इसका प्रतिरोध न कर सके | ऐसे वक्त में उस ऐतिहासिक कलाभवन की अस्मिता को बचाने के लिए अभिषेक अपने नाट्यकर्मी साथी राघवेन्द्र मिश्र को साथ लेकर उस कला विधिका के लिए '' आमरण अनशन की शुरुआत की , जिसके परिणाम स्वरूप जिला प्रशासन को अपना तानाशाही निर्णय को वापस लेना पडा | कला भवन की घोर उपेक्षा के कारण वह के रख -- रखाव को अभिषेक और उनके साथियो द्वारा किया जाता है और लगातार वह पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा नाटको का मंचन होता है और अभिषेक द्वारा वह नाटको के प्रशिक्षण व कार्यशालाए आयोजित किये जाते है | इन समारोह में जनपद के वरिष्ठ संवेदनशील रचनाकारों , वरिष्ठ रंगकर्मियों और साहित्यकारों का भरपूर सहयोग और आशीर्वाद प्राप्त है |
24 मार्च 2010 को जब कला भवन के पुस्तकालय से दुर्लभ पांडुलिपियों और पुरातात्विक चीजो की चोरी हुई तब अभिषेक पंडित व उनके साथी रंगकर्मियों द्वारा 6 दिन का लगातार आमरण अनशन किया | तब जाकर प्रशासन की बन्द आँखे खुली और तत्कालीन जिलाधिकारी मनीष चौहान मौके पर जाकर इस प्रकरण को जाना और प्रशासन की तरफ से प्राथमिकी दर्ज कराई | पर इसका नतीजा शून्य ही निकला |
कला भवन को एक सम्पूर्ण सांस्कृतिक केंद्र बनाने के लिए सतत संघर्ष में जुटे रंगकर्मी अभिषेक के नेतृत्व में 6 माह पहले वर्तमान के समाजवादी पार्टी की सरकार के काबिना मंत्री माननीय बलराम यादव , माननीय दुर्गा प्रसाद यादव , माननीय वसीम अहमद समेत जिलाधिकारी , पुलिस कप्तान का घेराव कर कड़ा प्रतिरोध किया और उन्हें याद दिलाया कि आपके मुखिया व राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय मुलायम सिंह यादव ने जब पहली बार उत्तर प्रदेश का नेतृत्व सम्भाला था तब उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में कला भवन की आधार शिला रखी थी जिसके परिणाम स्वरूप वर्तमान प्रदेश के मुखिया श्री अखिलेश यादव जी द्वारा कला भवन के पुन: निर्माण के लिए बजट दिया है | सूत्रधार संस्था के साथ ही जनपद के सारे साहित्यकार , वरिष्ठ रंगकर्मी व साहित्य प्रेमी जनपद के मंत्रियों के प्रति आभार व्यक्त करते है | परन्तु अभी भी एक सशंय बनी हुई है कि कही '' कलाभवन '' बाजार का स्वरूप न बन जाए |
उसके सुचारू स्वरूप और संचालन के लिए कलात्मक दृष्टिकोण व विचार रखने वाले संवेदनशील व
रंगकर्मियों की आवश्यकता है | वरना कलाभवन भी राहुल प्रेक्षागृह की तरह बदहाल न हो जाए | इन बातो को हमारे काबिना मंत्रीगण और प्रशासन के लोगो को समझना होगा , इसके साथ ही जनपद के हर रचनाशील और संवेदनशील व्यक्ति को सचेत रहकर कलाभवन को बाजार बनने से रोकना होगा |
-सुनील दत्ता
पत्रकार
दस्तावेजो को काव्य विधा , गद्द विधा और नाट्य विधा के साथ ही द्र्श्याकन विधा और नाट्य विधा से अपने देश के आने वाली पीढ़ी को बताता है |
अभी तो लड़ना है तब तक
जब तक माउस रहेंगे फूल
तितलियों को नही मिलेगा हक़
जब तक अपनी जडो से लौटेंगे पेड़
अभी तो लड़ना है तब तक
जब तक हलो को रोकती रहेगी लाठिया
भूखा रहेगा हथौडे का पेट
जब तक सीमाओं पर भाल नही होगी शान्ति '
अभी तो लड़ना है तब तक
जब तक आत्महत्याए करती रहेगी शिक्षा
जेबों में सोता रहेगा रीतापन
जब तक आदमी को पीटता रहेगा वक्त .............
आजमगढ़ दत्तात्रेय , दुर्वासा ,चन्द्रमा मुनि के तपोस्थली की पावन धरती पर कामरेड झारखडेय राय ,कामरेड तेज बहादुर सिंह और जय बहादुर सिंह , राहुल सांकृत्यायन , कैफ़ी और
एक आग छुपाये रंगकर्मी अभिषेक पंडित आचार्य चन्द्रबली पांडये जैसे प्रकाण्ड हिन्दी साहित्य के विद्वान् और हिन्दी साहित्य के युगधारा के नाती अभिषेक अपने अन्दर समाज के दर्द को बखूबी महसूस करते है | कहा जाता है कि कही ना
कही पिछले पीढियों का जींस उनके वशं वृक्ष के किसी फल में मिलता है और वही फल है अभिषेक 19 जुलाई 1981 को जन्मे अभिषेक पंडित नई दिल्ली द्वारा नाट्य निर्देशन में '' शार्ट टाइम्स डिप्लोमा कोर्स किया है
अभिषेक के अन्दर हर वक्त एल परिवर्तन की आग जलती है | इसीलिए समाज और देश के
विकृतियों को उन्होंने पिछले 15 वर्षो से '' सुधार '' नाट्य संस्था के माध्यम से अब तक लगभग सम्पूर्ण देश के विभिन्न अंचलो में 125 से ज्यादा नाटको की प्रस्तितिया दी है |
अभिषेक पंडित ने पद्मश्री श्री राज बिसारिया , पद्मश्री श्री राबिन्दास , पद्मश्री रजिन्दर पद्मश्री त्रिपुरारी शर्मा व विश्व विख्यात नौटंकी शैली के मर्मज्ञ आत्मजीत सिंह के सानिध्य में रंगकर्म के प्रशिक्षण के साथ ही रंग्मंव्ह की बारीक सूत्रों को बड़ी तन्मयता और गहराई से समझा व जाना है |
'' सूत्रधार '' संस्था के माध्यम से उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी लखनऊ द्वारा आयोजित सम्भागीय
नाट्य समारोह 2007 एवं राज्य नाट्य समारोह 2008 में अपने नाटको की सफल प्रस्तुती देकर अपने निर्देशन की क्षमता का लोहा मनवा कर एक न्य कृतिमान स्थापित किया है |
'' मैं खुश हूँ औजार बन तू , तू ही बन हथियार
वक्त करेगा फैसला , कौन हुआ बेकार ''
रंगकर्म के साथ निर्देशन में दखल रखने के कारण अभिषेक के नाटको को देखने का अवसर
प्राप्त हुआ है | इन्होने अपने नाटको में विभिन्न शैलियों का समावेश करके नूतन प्रयोग किया है | इनके नाटको का कथ्य सैम -- सामायिक होते है | अभिषेक के नाटको में सबसे विशेष बात यह रही कि ये कथ्यों को गीतों का स्वरूप देकर बड़े सहज ही ढंग से दर्शको के मानसपटल पर अपनी वेदना को समाहित कर लेते है
| यह इनके नाटक का सबसे मजबूत पक्ष है | इन्होने बड़े कहानीकारो के कहानियों पर अनेक नाटक प्रस्तुत किये है काशीनाथ सिंह की कहानी '' काशी का अस्सी '' के एक भाग को इन्होने उठाया पांडये कौन कुमत तोहे लागी तो दूसरी तरफ प्रेमचन्द जी की कहानियों पर पोंगा पंडित और कवि गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर की गुगी कहानी को नाट्य रूप देकर सफल प्रस्तुतिया की है नाट्य विधा के विविध क्षेत्रो में भी ये विशेष दखल रखते है |इसके साथ ही अभिषेक पंडित और इनके साथियो द्वारा '' सूत्रधार '' संस्था के माध्यम से विगत दस वर्षो से प्रति वर्ष चार दिवसीय '' आरगम '' का आयोजन किया जा रहा है |
'' आरगम '' का उद्देश्य हमारी भारिटी पुरातन लोक शैली व संस्कृति को जिससे भारत वर्ष की पहचान पूरी दुनिया में है | परन्तु इस बाजार वादी और वैश्वीकरणवादी नीतियों के कारण वो धीरे -- धीरे मृत: प्राय होती जा रही है | उसी लोक संस्कृति , लोक रंग , लोक माटी , लोक भूषा , लोक भाषा को जीवित रखने की परम्परा का निर्वाह कर रही है | अपना भारत विविध रंगों से भरा है तभी तो कहा जाता है | दस कोस पे पानी बदले , बीस कोस पे बानी लोकरंग और उसके माटी के सुगन्ध को बहाने के लिए सूत्रधार संस्था कटिबद्ध है और इसकी सबसे बड़ी विशेषता कि ये संस्था किसी से भी चंदा नही मांगती अपने कार्यक्रमों को करने के लिए | कार्यक्रमों के अवसर पर ये लोग एक दान पेटिका रखते है और अपील करते है जिसका जो सामर्थ्य को अगर वो दान दे सके तो उचित होगा | उसी से यह कार्यक्रम विगत दस वर्षो से होता आ रहा है |
1957 में आजमगढ़ में तत्कालीन जिलाधिकारी कृपा नारायण श्रीवास्तव के प्रयास से एक संस्कृति कर्मियों के लिए '' कला भवन '' का निर्माण कराया गया | कहा जाता है कि इस कला भवन को स्वरूप देने में नाट्य गजट के मनीषी , पुरोधा स्वर्गीय पृथ्वीराज कपूर का पूरा योगदान रहा उन्होंने ही इस कला भवन का नक्शा बनाया था |
कला भवन जनपद की रंग परम्परा को पहचान देने वाली एक ऐसी संस्था बनी , उस कला भवन का अपना एक विशाल व गौरवशाली इतिहास रहा है | ब्रज भाषा -- खड़ी बोली के प्रखर कवि अयोध्या सिंह '' हरिऔध '' के नाम पर बनी यह संस्था अपने हृदय के पटल पर अनेको इतिहासों को समा के रखा है | इस मंच पर लगाता आज पचास वर्षो से बंग सोसायटी द्वारा हिन्दी और बंगला नाटको का मंचन होता आ रहा है और समय -- समय पर जनपद की अन्य नाट्य संस्था द्वारा इस मंच पर नाटक मंचित होने के साथ यह कलाभवन कवि सम्मेलनों का साक्षी रहा है कि इस मंच पर साहित्य मनीषियों डाक्टर हरिबंश राय बच्चन , महादेवी वर्मा , गोपालदास नीरज गोविन्द व्यास , संतोषा आनन्द प्रख्यात प्रगतिशील शायर कैफ़ी आज़मी फिराक गोरखपुरी , दान बहादुर सिंह सूड फैजाबादी ने अपने सृजनात्मक अभिव्यक्तियों से सजाया है व इस मंच पर प्रधानमन्त्री सर्गिय इन्दिरा गांधी व बहुत विशिष्ठ जानो ने इस कला भवन के मन का गौरव बढाया है |
इस कला भवन को महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने दुर्लभ पांडुलिपियों और प्रातन काल के अव्शेहो से इसके पुस्तकालय को सवारा था |
अल्लाहमाह शिब्ली नोमानी के सर जमी पर अश्वघोष के शब्दों को यथार्थ की धरातल पर उतारता आज़न्गढ़ का होनहार नौजवान अपने अन्दर
आजमगढ़ पुरे भारत में अपनी एक अलग पहचान रखती | परन्तु पिछले दस वर्षो से उपर हो गया इस ऐतिहासिक कला भवन की स्थिति अब धीरे -- धीरे प्रशासनिक उपेक्षा के कारण खण्डहर में तब्दील होती जा रही है | पर हमारे आजमगढ़ के उत्साहित और विद्रोही रंगकर्मी इस कला भवन के उस पुरातन संस्कृति और इसके सम्मान के लिए लगातार संघर्षरत है | विगत दस वर्षो से इस को जीवित रखने के लिए अभिषेक पंडित अपनी सूत्रधार के साथियो के प्रतिदिन कला की क्षाओ को चलाने के साथी नाटको का रिहर्सल भी करते है और इस खण्डहर को साफ़ -- सुधरा रखे हुए है |
2007 में तत्कालीन जिलाधिकारी सुभाष चन्द्र शर्मा द्वारा इस संस्था के प्रागं में दर्शक वीथिका के विशाल परिसर में एक बड़ी '' पानी की टंकी '' का निर्माण कार्य शुरू किया तब शहर के बुद्धिजीवी लोक प्रशासनिक भय से इसका प्रतिरोध न कर सके | ऐसे वक्त में उस ऐतिहासिक कलाभवन की अस्मिता को बचाने के लिए अभिषेक अपने नाट्यकर्मी साथी राघवेन्द्र मिश्र को साथ लेकर उस कला विधिका के लिए '' आमरण अनशन की शुरुआत की , जिसके परिणाम स्वरूप जिला प्रशासन को अपना तानाशाही निर्णय को वापस लेना पडा | कला भवन की घोर उपेक्षा के कारण वह के रख -- रखाव को अभिषेक और उनके साथियो द्वारा किया जाता है और लगातार वह पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा नाटको का मंचन होता है और अभिषेक द्वारा वह नाटको के प्रशिक्षण व कार्यशालाए आयोजित किये जाते है | इन समारोह में जनपद के वरिष्ठ संवेदनशील रचनाकारों , वरिष्ठ रंगकर्मियों और साहित्यकारों का भरपूर सहयोग और आशीर्वाद प्राप्त है |
24 मार्च 2010 को जब कला भवन के पुस्तकालय से दुर्लभ पांडुलिपियों और पुरातात्विक चीजो की चोरी हुई तब अभिषेक पंडित व उनके साथी रंगकर्मियों द्वारा 6 दिन का लगातार आमरण अनशन किया | तब जाकर प्रशासन की बन्द आँखे खुली और तत्कालीन जिलाधिकारी मनीष चौहान मौके पर जाकर इस प्रकरण को जाना और प्रशासन की तरफ से प्राथमिकी दर्ज कराई | पर इसका नतीजा शून्य ही निकला |
कला भवन को एक सम्पूर्ण सांस्कृतिक केंद्र बनाने के लिए सतत संघर्ष में जुटे रंगकर्मी अभिषेक के नेतृत्व में 6 माह पहले वर्तमान के समाजवादी पार्टी की सरकार के काबिना मंत्री माननीय बलराम यादव , माननीय दुर्गा प्रसाद यादव , माननीय वसीम अहमद समेत जिलाधिकारी , पुलिस कप्तान का घेराव कर कड़ा प्रतिरोध किया और उन्हें याद दिलाया कि आपके मुखिया व राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय मुलायम सिंह यादव ने जब पहली बार उत्तर प्रदेश का नेतृत्व सम्भाला था तब उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में कला भवन की आधार शिला रखी थी जिसके परिणाम स्वरूप वर्तमान प्रदेश के मुखिया श्री अखिलेश यादव जी द्वारा कला भवन के पुन: निर्माण के लिए बजट दिया है | सूत्रधार संस्था के साथ ही जनपद के सारे साहित्यकार , वरिष्ठ रंगकर्मी व साहित्य प्रेमी जनपद के मंत्रियों के प्रति आभार व्यक्त करते है | परन्तु अभी भी एक सशंय बनी हुई है कि कही '' कलाभवन '' बाजार का स्वरूप न बन जाए |
उसके सुचारू स्वरूप और संचालन के लिए कलात्मक दृष्टिकोण व विचार रखने वाले संवेदनशील व
रंगकर्मियों की आवश्यकता है | वरना कलाभवन भी राहुल प्रेक्षागृह की तरह बदहाल न हो जाए | इन बातो को हमारे काबिना मंत्रीगण और प्रशासन के लोगो को समझना होगा , इसके साथ ही जनपद के हर रचनाशील और संवेदनशील व्यक्ति को सचेत रहकर कलाभवन को बाजार बनने से रोकना होगा |
-सुनील दत्ता
पत्रकार
1 टिप्पणी:
बहुत कुछ जानकारी देता हुआ आलेख
एक टिप्पणी भेजें