नरेन्द्र मोदी, जिनके प्रति कुछ यूरोपीय देशों के रुख में नरमी आ रही थी, को अमरीका से आ रही ताज़ा ख़बरों से काफी निराशा हुई होगी। अमरीका में एक विशिष्ट लाबी द्वारा उन्हें वीसा प्रदान किये जाने का दवाब बनाने के बावजूदए 'यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन फार इंटरनेशनल रिलीजीयस फ्रीडम' ;यूएससीआईआरएफ ने ओबामा प्रशासन से यह मांग की है की सन २००२ के गुजरात कत्लेआम, जिसमें २ए००० से अधिक लोग मरे गए थे और १,५०,००० से अधिक अपने घर.बार से बेदखल कर दिए गए थे, में मोदी के भूमिका के चलते, उन्हें वीसा देने पर प्रतिबंध जारी रखा जाये.
कमीशन की अध्यक्षा केटरीना लान्तोस स्वेट ने कहाए 'गुजरात में हिंसा 'और वहां के भयावह घटनाक्रम से मोदी के जुडाव के महत्वपूर्ण प्रमाण उपलब्ध हैं और इसलिए उन्हें वीसा प्रदान किया जाना उचित नहीं होगा.हाल के वर्षों में, मोदी शायद एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें इस मानवाधिकार संस्था ने इतना लांछित किया है। वर्तमान अमरीकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने भी, जब वे सीनेट के सदस्य थे, मोदी के बारे में ऐसे ही विचार प्रगट किये थे। उन्होंने विदेश विभाग को लिखा था कि सन २००२ के मुसलमानों के कत्लेआम में मोदी की संभावित भूमिका के कारण, उन्हें वीसा नहीं दिया जाना चाहिए, अमरीका का 'अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियमए १९९८' ऐसे विदेशियों का अमरीका में प्रवेश प्रतिबंधित करता है जो 'धार्मिक स्वातंत्र्य के सीधे और गंभीर हनन के लिए जिम्मेदार हैं'.
अमरीकी संस्था का कहना है कि कत्लेआम से मोदी को जोड़ने वाले कई सुबूत उपलब्ध हैं। इसी आधार पर सन २००५ से, मोदी उन व्यक्तियों की सूची में है, जिन्हें वीसा नहीं दिया जाना है, मोदी.समर्थकों के लाख सर पटकने के बाद भी गुजरे आठ सालों में इस स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है। संस्था की रपट, मुसलमानों के इस संदेह का भी ज़िक्र करती है कि मोदी ने माया कोडनानी, जो कि अभी जेल में हैं, को बलि का बकरा बना दिया है। आयोग ने धार्मिक स्वतंत्रता की दृष्टि से, भारत को दूसरी श्रेणी में रखा है। रपट यह भी कहती है कि भारत के विभिन्न राज्यों में 'धार्मिक स्वातंत्र्य कानून' बनने के बाद से, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और उन्हें डराने.धमकाने की घटनाओं में वृद्धि हुई है।यद्यपि ये कानून मुख्यतः भाजपा.शासित प्रदेशों में बनाये गए हैं तथापि कुछ अन्य राज्यों ने भी इस प्रकार के असंवैधानिक कदम उठाये हैं।
भारत में पिछले तीन दशकों में सांप्रदायिकता में वृद्धि हुई है और धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकित करने की घटनाएँ बढ़ी हैं। १९८४ में दिल्ली में सिक्खों, डांग, कंधमाल व अन्य आदिवासी इलाकों में ईसाईयों व मेरठ, मलयाना, भागलपुर, मुंबई, गुजरात व उत्तरप्रदेश के अन्य इलाकों में मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा के घटनाएं हुई हैं। हिंसा के अलावाए सामाजिक स्तर पर भी अल्पसंख्यकों को आतंकित करने की कोशिशें हो रहीं हैं।इसका एक उदाहरण हैं डांग व अन्य कई स्थानों पर आयोजित किये गए शबरी कुम्भ जैसे धार्मिक कार्यक्रमए जिनका लक्ष्य, हिंदुओं व विशेषकर आदिवासियों को अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भडकाना है।मुसलमानों के खिलाफ अनवरत हिंसा ने ऐसी चंतपेजीपलं हालात पैदा कर दिए हैं कि मुसलमान स्वयं को दोयम दर्जे का नागरिक महसूस करने लगे हैं। कई राज्यों में धार्मिक स्वातंत्र्य कानून बनाये गए हैं, जो कि अपने नाम के ठीक विपरीत, धार्मिक स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का हनन करते हैं। ये कानून भारतीय संविधान के मूल्यों के विरुद्ध हैं और वे सांप्रदायिक ताकतों को, राज्यतंत्र के सांप्रदायिकता के रंग में रंग चुके तबके की सहायता से, असहाय धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकित करने का अवसर प्रदान करते हैं। इन सब कार्यवाहियों का अंतिम उद्देश्य है, धार्मिक ध्रुवीकरण के रास्ते देश में धार्मिक राष्ट्रवाद.सांप्रदायिक फासीवाद का आगाज करना.
अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के तौर.तरीकों में बदलाव आया है। कम अवधि में बड़े पैमाने पर हिंसा करने की बजाय लम्बे समय तक छुटपुट हमले करने की प्रवृत्ति पूरे देश में सामने आ रही है। इस तरह की कार्यवाहियां मुख्यतः उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे गैर.भाजपा शासित राज्यों में हो रही हैं। इन राज्यों के शहरी इलाकों में साम्प्रदायिक हिंसा का बोलबाला तेजी से बड़ा है और इससे समाज का साम्प्रदायिकीकरण हो रहा है। इस सब से अंततः उस साम्प्रदायिक राजनैतिक दल की ताकत बढ़ेगी, जो धार्मिक राष्ट्रवाद के अपने एजेण्डे को लागू करने के लिए आतुर शक्तियों की राजनैतिक शाखा है। मोदी ने एक कुटिल रणनीति के तहत अपने भाषणों में साम्प्रदायिकता के बजाय विकास की बातें करनी शुरू कर दी , हालांकि मोदी के विकास को छद्म विकास ही कहा जा सकता है। मोदी ने साम्प्रदायिक सोच वाले तबके को पहले ही अपना घनघोर प्रशंसक बना लिया है और अब वे विकास की बात कर अन्य हिन्दुओं को अपने साथ लेना चाहते हैं ताकि चुनाव में उनकी विजय और आसान हो सके। यद्यपि कई कारणों से कानून उन्हें सजा नहीं दे सका है तथापि उनकी सारी कुटिलता के चलते भी उनके खून से रंगे हाथ अभी भी साफ नहीं हो सके हैं।
अमरीकी आयोग की रपट से साम्प्रदायिकता.विरोधी ताकतों को संबल मिलेगा। हमारे देश की न्याय प्रणाली और कानून ऐसे हैं कि जहाँ एक ओर सांप्रदायिक हिंसा के दोषियों को सजा नहीं मिल पा रही है वहीँ दंगों में मासूम मारे जा रहे हैं। सांप्रदायिक हिंसा में हिस्सा लेने वालों और उसे रोकने के अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करने वालों को सजा देने के लिए कानून बनाये जाने की मांग को जल्दी से जल्दी पूरा किया जाना चाहिए। हमें आशा करनी चाहिए कि सांप्रदायिक हिंसा के दोषियों को सजा दिलवाने के लिए हमें अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सियों की मदद नहीं लेनी पड़ेगी.
किसी भी प्रजातंत्र की सफलता.असफलता का एक महत्वपूर्ण मानक यह है कि उसमें अल्पसंख्यक स्वयं को कितना सुरक्षित अनुभव करते हैं और उनका जीवन कितना गरिमापूर्ण है। इस मानक पर भारत लगातार नीचेए और नीचे खिसकता जा रहा है। यह ींतहमारे प्रजातंत्र पर बदनुमा दाग है। अब समय आ गया है कि बिना धर्म, जाति और नस्ल के भेदभाव के, हम सभी निर्दोषों की रक्षा के लिए आगे आयें। हमें ऐसा कानून भी बनाना होगा जिसके चलते अमानवीय हिंसा को चुपचाप देखते रहने वालों या उसे बढावा देने वालों को उनके किये का खामियाजा भुगतना पड़े.
इस सिलसिले में यह भी महत्वपूर्ण है कि पूरे दक्षिण एशिया में धार्मिक स्वतंत्रता को बाधित किया जा रहा है।हाल में पाकिस्तान में हिंदुओं और सिक्खों, बांग्लादेश में बौद्धों और हिंदुओं और श्रीलंका व बर्मा में मुसलमाओं पर अत्याचारों की दुखद खबरें सामने आयीं हैं। दक्षिण एशिया में प्रजातंत्र की रुग्णता, खेद का विषय है। हम जानते हैं कि दुनिया में राष्ट्रों के समूह एक साथ प्रगति करते हैं। दक्षिण एशिया में जहाँ भारत प्रजातंत्र का स्तंभ है, वहीं अन्य राष्ट्र प्रजातंत्र बनने की ओ़र अलग अलग गति से अग्रसर हैं। वर्तमान में, कहीं सेना के जनरलों की प्रभुता है तो कहीं कट्टरपंथी ताकतों का राज चल रहा है। यह त्रासद है कि भारत,प्रजातान्त्रिक मूल्यों के सन्दर्भ में, फिसलन भरी राह पर चल पड़ा है। हमें स्वाधीनता आन्दोलन और भारतीय संविधान के मूल्यों को याद रखने की ज़रूरत है
-राम पुनियानी
कमीशन की अध्यक्षा केटरीना लान्तोस स्वेट ने कहाए 'गुजरात में हिंसा 'और वहां के भयावह घटनाक्रम से मोदी के जुडाव के महत्वपूर्ण प्रमाण उपलब्ध हैं और इसलिए उन्हें वीसा प्रदान किया जाना उचित नहीं होगा.हाल के वर्षों में, मोदी शायद एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें इस मानवाधिकार संस्था ने इतना लांछित किया है। वर्तमान अमरीकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने भी, जब वे सीनेट के सदस्य थे, मोदी के बारे में ऐसे ही विचार प्रगट किये थे। उन्होंने विदेश विभाग को लिखा था कि सन २००२ के मुसलमानों के कत्लेआम में मोदी की संभावित भूमिका के कारण, उन्हें वीसा नहीं दिया जाना चाहिए, अमरीका का 'अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियमए १९९८' ऐसे विदेशियों का अमरीका में प्रवेश प्रतिबंधित करता है जो 'धार्मिक स्वातंत्र्य के सीधे और गंभीर हनन के लिए जिम्मेदार हैं'.
अमरीकी संस्था का कहना है कि कत्लेआम से मोदी को जोड़ने वाले कई सुबूत उपलब्ध हैं। इसी आधार पर सन २००५ से, मोदी उन व्यक्तियों की सूची में है, जिन्हें वीसा नहीं दिया जाना है, मोदी.समर्थकों के लाख सर पटकने के बाद भी गुजरे आठ सालों में इस स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है। संस्था की रपट, मुसलमानों के इस संदेह का भी ज़िक्र करती है कि मोदी ने माया कोडनानी, जो कि अभी जेल में हैं, को बलि का बकरा बना दिया है। आयोग ने धार्मिक स्वतंत्रता की दृष्टि से, भारत को दूसरी श्रेणी में रखा है। रपट यह भी कहती है कि भारत के विभिन्न राज्यों में 'धार्मिक स्वातंत्र्य कानून' बनने के बाद से, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और उन्हें डराने.धमकाने की घटनाओं में वृद्धि हुई है।यद्यपि ये कानून मुख्यतः भाजपा.शासित प्रदेशों में बनाये गए हैं तथापि कुछ अन्य राज्यों ने भी इस प्रकार के असंवैधानिक कदम उठाये हैं।
भारत में पिछले तीन दशकों में सांप्रदायिकता में वृद्धि हुई है और धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकित करने की घटनाएँ बढ़ी हैं। १९८४ में दिल्ली में सिक्खों, डांग, कंधमाल व अन्य आदिवासी इलाकों में ईसाईयों व मेरठ, मलयाना, भागलपुर, मुंबई, गुजरात व उत्तरप्रदेश के अन्य इलाकों में मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा के घटनाएं हुई हैं। हिंसा के अलावाए सामाजिक स्तर पर भी अल्पसंख्यकों को आतंकित करने की कोशिशें हो रहीं हैं।इसका एक उदाहरण हैं डांग व अन्य कई स्थानों पर आयोजित किये गए शबरी कुम्भ जैसे धार्मिक कार्यक्रमए जिनका लक्ष्य, हिंदुओं व विशेषकर आदिवासियों को अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भडकाना है।मुसलमानों के खिलाफ अनवरत हिंसा ने ऐसी चंतपेजीपलं हालात पैदा कर दिए हैं कि मुसलमान स्वयं को दोयम दर्जे का नागरिक महसूस करने लगे हैं। कई राज्यों में धार्मिक स्वातंत्र्य कानून बनाये गए हैं, जो कि अपने नाम के ठीक विपरीत, धार्मिक स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का हनन करते हैं। ये कानून भारतीय संविधान के मूल्यों के विरुद्ध हैं और वे सांप्रदायिक ताकतों को, राज्यतंत्र के सांप्रदायिकता के रंग में रंग चुके तबके की सहायता से, असहाय धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकित करने का अवसर प्रदान करते हैं। इन सब कार्यवाहियों का अंतिम उद्देश्य है, धार्मिक ध्रुवीकरण के रास्ते देश में धार्मिक राष्ट्रवाद.सांप्रदायिक फासीवाद का आगाज करना.
अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के तौर.तरीकों में बदलाव आया है। कम अवधि में बड़े पैमाने पर हिंसा करने की बजाय लम्बे समय तक छुटपुट हमले करने की प्रवृत्ति पूरे देश में सामने आ रही है। इस तरह की कार्यवाहियां मुख्यतः उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे गैर.भाजपा शासित राज्यों में हो रही हैं। इन राज्यों के शहरी इलाकों में साम्प्रदायिक हिंसा का बोलबाला तेजी से बड़ा है और इससे समाज का साम्प्रदायिकीकरण हो रहा है। इस सब से अंततः उस साम्प्रदायिक राजनैतिक दल की ताकत बढ़ेगी, जो धार्मिक राष्ट्रवाद के अपने एजेण्डे को लागू करने के लिए आतुर शक्तियों की राजनैतिक शाखा है। मोदी ने एक कुटिल रणनीति के तहत अपने भाषणों में साम्प्रदायिकता के बजाय विकास की बातें करनी शुरू कर दी , हालांकि मोदी के विकास को छद्म विकास ही कहा जा सकता है। मोदी ने साम्प्रदायिक सोच वाले तबके को पहले ही अपना घनघोर प्रशंसक बना लिया है और अब वे विकास की बात कर अन्य हिन्दुओं को अपने साथ लेना चाहते हैं ताकि चुनाव में उनकी विजय और आसान हो सके। यद्यपि कई कारणों से कानून उन्हें सजा नहीं दे सका है तथापि उनकी सारी कुटिलता के चलते भी उनके खून से रंगे हाथ अभी भी साफ नहीं हो सके हैं।
अमरीकी आयोग की रपट से साम्प्रदायिकता.विरोधी ताकतों को संबल मिलेगा। हमारे देश की न्याय प्रणाली और कानून ऐसे हैं कि जहाँ एक ओर सांप्रदायिक हिंसा के दोषियों को सजा नहीं मिल पा रही है वहीँ दंगों में मासूम मारे जा रहे हैं। सांप्रदायिक हिंसा में हिस्सा लेने वालों और उसे रोकने के अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करने वालों को सजा देने के लिए कानून बनाये जाने की मांग को जल्दी से जल्दी पूरा किया जाना चाहिए। हमें आशा करनी चाहिए कि सांप्रदायिक हिंसा के दोषियों को सजा दिलवाने के लिए हमें अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सियों की मदद नहीं लेनी पड़ेगी.
किसी भी प्रजातंत्र की सफलता.असफलता का एक महत्वपूर्ण मानक यह है कि उसमें अल्पसंख्यक स्वयं को कितना सुरक्षित अनुभव करते हैं और उनका जीवन कितना गरिमापूर्ण है। इस मानक पर भारत लगातार नीचेए और नीचे खिसकता जा रहा है। यह ींतहमारे प्रजातंत्र पर बदनुमा दाग है। अब समय आ गया है कि बिना धर्म, जाति और नस्ल के भेदभाव के, हम सभी निर्दोषों की रक्षा के लिए आगे आयें। हमें ऐसा कानून भी बनाना होगा जिसके चलते अमानवीय हिंसा को चुपचाप देखते रहने वालों या उसे बढावा देने वालों को उनके किये का खामियाजा भुगतना पड़े.
इस सिलसिले में यह भी महत्वपूर्ण है कि पूरे दक्षिण एशिया में धार्मिक स्वतंत्रता को बाधित किया जा रहा है।हाल में पाकिस्तान में हिंदुओं और सिक्खों, बांग्लादेश में बौद्धों और हिंदुओं और श्रीलंका व बर्मा में मुसलमाओं पर अत्याचारों की दुखद खबरें सामने आयीं हैं। दक्षिण एशिया में प्रजातंत्र की रुग्णता, खेद का विषय है। हम जानते हैं कि दुनिया में राष्ट्रों के समूह एक साथ प्रगति करते हैं। दक्षिण एशिया में जहाँ भारत प्रजातंत्र का स्तंभ है, वहीं अन्य राष्ट्र प्रजातंत्र बनने की ओ़र अलग अलग गति से अग्रसर हैं। वर्तमान में, कहीं सेना के जनरलों की प्रभुता है तो कहीं कट्टरपंथी ताकतों का राज चल रहा है। यह त्रासद है कि भारत,प्रजातान्त्रिक मूल्यों के सन्दर्भ में, फिसलन भरी राह पर चल पड़ा है। हमें स्वाधीनता आन्दोलन और भारतीय संविधान के मूल्यों को याद रखने की ज़रूरत है
-राम पुनियानी
1 टिप्पणी:
वामपंथी प्रलाप का एक शानदार नमूना, इसी प्रलाप ने आज मोदी को हीरो बना रखा है,
मोदी के खिलाफ प्रलाप जारी रखिये इसी में आपको व मोदी दोनों का फायदा है शायद !!
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