गर खुदा मुझसे कहे कुछ मांग ये बन्दे मेरे मैं ये मांगू महफ़िलो के दौर यू चलते रहे
हम प्याला , हम निवाला, हम सफर हम राज हो ता कयामत जो चिरागों की तरह जलते रहे |
यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिन्दगी -------------
एक ऐसा खलनायक जो सारे लोगो के दिल पर राज किया प्राण
दिल्ली की वल्ली मारा मोहल्ले की गलबहिया डाले पेचीदा सी गलिया , कमरजोड़ कर बने मकानों के मुँह चूमते छज्जे , घरो के नीचे बनी दुकानों से इलाके में फैली चहल -- पहल , चिल्लाती रिक्शे की घंटिया , फुसफुसाती पैरो की आवाज , एक दूसरे को पीछे छोड़ते लोगो का बेपनाह शोर , चन्द दरवाजो पर गुजरे कल के
दस्तक देते हवेलियों का अक्स , कही कबूतरों की गुटरगूं तो कही पंख फडफडाने की आवाज , धुधलायी हुई शाम की बेनूर अँधेरी सी गली इस बेनूर अँधेरी सी गली सौदागरान से एक तरतीब चिरागों की शुरू होती है एक हुनर ए सुखन का सफा खुलता है प्राण किशन सिकन्द का पता मिलता है अदाकारी के प्राण खलनायकी के
नायक प्राण साथ वर्षो तक एक छत्र राज किया फ़िल्मी दुनिया में |
कसमे वादे प्यार वफा सब बाते है बातो का क्या
कोई किसी का नही ये झूठे नाते है नातो का क्या --------------जिन्दगी को जिन्दादिली से जीने की कला , अनुशासन के पाबन्द समय के मूल्य की पहचान और सदा अपने चेहरे पर मुस्कान लिए शक्स पिता लाला केवल किशन सिकन्द और माता रामेश्वरी के संयोग से एक ऐसा हीरा आया जो फ़िल्मी दुनिया के रुपहले पर्दे पर छ: दशको तक भारतीय सिनेमा की खलनायकी का नायक बना रहा |
दिल्ली में जन्मे प्राण का पूरा नाम प्राण किशन सिकन्द था | उनके पिता सिविल इंजिनियर थे इसलिए उनको अलग -- अलग स्थानों पर काम करना पडा | प्राण की प्राइमरी की शिक्षा दिशा उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुई उन्होंने इण्टर की पढ़ाई रामपुर के हामिद इण्टर कालेज से पूरी की | उसके बाद प्राण के पिता लाहौर चले गये | प्राण की दिली तमन्ना थी की वो फोटोग्राफर बने | इसके लिए वो शिमला चले गये पर उनका मन वहा नही लगा तो फिर वो लाहौर अपने पिता के पास चले गये और वही पर वो तीन सौ रूपये पर नौकरी शुरू कर दी |लाहौर ने उनके जिन्दगी के नये पन्ने लिखने शुरू किये | एक दिन एक घटना घटी प्राण पान खाने के बड़े शौक़ीन थे | जब वे एक दिन पान की दूकान पर पान खाने गये तो उसी दूकान पर उस वक्त के मशहूर अफ़साना नगमा निगार वली मोहम्मद वली साहब भी पान खाने पहुचे | थोड़ी देर वली साहब प्राण को देखते रहे प्राण की हर अदा उनको भा गयी और प्राण से उन्होंने पूछा क्या हीरो बनोगे | प्राण ने कहा क्या मजाक कर रहे है पर वली साहब ने उनको अपनी फिल्म में हीरो की भूमिका का निमंत्रण दिया | सन 1940 में पंजाबी फिल्म '' जट यमला '' में बतौर नायक की भूमिका से प्राण ने अपने जीवन के अभिनय की शुरुआत की | उसके बाद प्राण कभी पीछे नही मुड़े | सन 1947 में बटवारे के वक्त प्राण 14 अगस्त को दिल्ली आ गये | वही से उन्होंने मुंबई की तरफ रुख किया | जब प्राण लाहौर छोड़कर आये थे तब उनकी माली हालात ठीक नही थी | ऐसे समय में वो मुंबई के फ़िल्मी स्टूडियो में काम की तलाश में घुमने लगे तब उनको उर्दू के मशहूर अफ़साना नगमा निगार सहादत हसन मंटो के प्रयास से फिल्म '' जिद्दी '' मिली | जिसके हीरो थे देवानंद और हीरोइन थी कामनी कौशल | प्राण ने फिल्म जिद्दी में अविस्मर्णीय खलनायक की भूमिका अदा की और फिर प्राण ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा और वही से प्राण खलनायकों की दुनिया के बेताज नायक बादशाह बन गये | उसके बाद वो देवानंद , दिलीप कुमार राजकपूर के फिल्मो में खलनायक की भूमिका अदा करने लगे | उन्होंने करीब चार सौ फिल्मो में काम किया और हर फिल्म में खलनायकी के अलग किरदारों में अपने अभिनय से जीवंत कर दिया उन चरित्रों को पत्थर के सनम , कश्मीर की कली , , औरत ' बड़ी बहन , हाफ टिकट , जिस देश में गंगा बहती है में डाकू के चरित्र को ऐसा जीवंत किया साथ ही फिल्म '' जंजीर '' में शेर खान की भूमिका में अपने अभिनय की वो छाप छोड़ी जो दर्शको के दिलोदिमाग में सिहरन पैदा करती है | प्राण की खलनायकी अदा ऐसी थी की जब वो पर्दे पर आते तो दर्शक अपनी साँसे रोक लेता कि अब क्या करेंगे प्राण | यह बात सर्वविदित है कि पिछले 6 दशको से किसी ने अपने बच्चो का नाम प्राण नही रखा खलनायकी में पहला ऐसा खलनायक रहा जिसके नाम से बच्चे डरते थे | प्राण की यही खासियत उनको अभिनय की दुनिया में सर्वश्रेष्ठ खलनायक स्थापित करता है | ऐसा नही है की प्राण ने सिर्फ खलनायकी की है उन्होंने किशोर कुमार के साथ मिलकर हास्य अभिनय भी किया है | सन 1968 में मनोज कुमार द्वारा निर्मित फिल्म "" उपकार '' ने प्राण के चरित्र को ही बदल दिया ''मलग बाबा '' के रूप में उसके बाद तो प्राण ने चरित्र अभिनेता के रूप में भी अपने को स्थापित किया | फिल्म उपकार में मलग बाबा के चरित्र पर दर्शक भी रो पड़े ऐसा जीवंत अभिनय किया था प्राण ने | उसके बाद प्रकाश मेहरा की फिल्म जंजीर में शेर अली पठान की महत्वपूर्ण किरदार में प्राण ने अपने अभिनय से उस चरित्र को जिदा किया और ऐसी दोस्ती का मिशाल कायम किया जो आज भी दर्शक भूल नही पाया है फ़िल्मी दुनिया में नये हीरो तो आते जाते रहते है पर प्राण ने 6 दशको तक उसी तरह बरकरार रहे अपने खलनायकी और चरित्र अभिनेता के रूप में प्राण साहब को मिलेनियम खलनायक के पुरस्कार से नावाजा गया अभी हाल में उन्हें दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया प्राण साहब ने 93 वर्ष में आज अंतिम साँसे लेकर इस दुनिया से विदाई ली | प्राण जैसा खलनायक न कभी हुआ है और न होगा उनको शत -- शत नमन
-सुनील दत्ता
स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक
हम प्याला , हम निवाला, हम सफर हम राज हो ता कयामत जो चिरागों की तरह जलते रहे |
यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिन्दगी -------------
एक ऐसा खलनायक जो सारे लोगो के दिल पर राज किया प्राण
दिल्ली की वल्ली मारा मोहल्ले की गलबहिया डाले पेचीदा सी गलिया , कमरजोड़ कर बने मकानों के मुँह चूमते छज्जे , घरो के नीचे बनी दुकानों से इलाके में फैली चहल -- पहल , चिल्लाती रिक्शे की घंटिया , फुसफुसाती पैरो की आवाज , एक दूसरे को पीछे छोड़ते लोगो का बेपनाह शोर , चन्द दरवाजो पर गुजरे कल के
दस्तक देते हवेलियों का अक्स , कही कबूतरों की गुटरगूं तो कही पंख फडफडाने की आवाज , धुधलायी हुई शाम की बेनूर अँधेरी सी गली इस बेनूर अँधेरी सी गली सौदागरान से एक तरतीब चिरागों की शुरू होती है एक हुनर ए सुखन का सफा खुलता है प्राण किशन सिकन्द का पता मिलता है अदाकारी के प्राण खलनायकी के
नायक प्राण साथ वर्षो तक एक छत्र राज किया फ़िल्मी दुनिया में |
कसमे वादे प्यार वफा सब बाते है बातो का क्या
कोई किसी का नही ये झूठे नाते है नातो का क्या --------------जिन्दगी को जिन्दादिली से जीने की कला , अनुशासन के पाबन्द समय के मूल्य की पहचान और सदा अपने चेहरे पर मुस्कान लिए शक्स पिता लाला केवल किशन सिकन्द और माता रामेश्वरी के संयोग से एक ऐसा हीरा आया जो फ़िल्मी दुनिया के रुपहले पर्दे पर छ: दशको तक भारतीय सिनेमा की खलनायकी का नायक बना रहा |
दिल्ली में जन्मे प्राण का पूरा नाम प्राण किशन सिकन्द था | उनके पिता सिविल इंजिनियर थे इसलिए उनको अलग -- अलग स्थानों पर काम करना पडा | प्राण की प्राइमरी की शिक्षा दिशा उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुई उन्होंने इण्टर की पढ़ाई रामपुर के हामिद इण्टर कालेज से पूरी की | उसके बाद प्राण के पिता लाहौर चले गये | प्राण की दिली तमन्ना थी की वो फोटोग्राफर बने | इसके लिए वो शिमला चले गये पर उनका मन वहा नही लगा तो फिर वो लाहौर अपने पिता के पास चले गये और वही पर वो तीन सौ रूपये पर नौकरी शुरू कर दी |लाहौर ने उनके जिन्दगी के नये पन्ने लिखने शुरू किये | एक दिन एक घटना घटी प्राण पान खाने के बड़े शौक़ीन थे | जब वे एक दिन पान की दूकान पर पान खाने गये तो उसी दूकान पर उस वक्त के मशहूर अफ़साना नगमा निगार वली मोहम्मद वली साहब भी पान खाने पहुचे | थोड़ी देर वली साहब प्राण को देखते रहे प्राण की हर अदा उनको भा गयी और प्राण से उन्होंने पूछा क्या हीरो बनोगे | प्राण ने कहा क्या मजाक कर रहे है पर वली साहब ने उनको अपनी फिल्म में हीरो की भूमिका का निमंत्रण दिया | सन 1940 में पंजाबी फिल्म '' जट यमला '' में बतौर नायक की भूमिका से प्राण ने अपने जीवन के अभिनय की शुरुआत की | उसके बाद प्राण कभी पीछे नही मुड़े | सन 1947 में बटवारे के वक्त प्राण 14 अगस्त को दिल्ली आ गये | वही से उन्होंने मुंबई की तरफ रुख किया | जब प्राण लाहौर छोड़कर आये थे तब उनकी माली हालात ठीक नही थी | ऐसे समय में वो मुंबई के फ़िल्मी स्टूडियो में काम की तलाश में घुमने लगे तब उनको उर्दू के मशहूर अफ़साना नगमा निगार सहादत हसन मंटो के प्रयास से फिल्म '' जिद्दी '' मिली | जिसके हीरो थे देवानंद और हीरोइन थी कामनी कौशल | प्राण ने फिल्म जिद्दी में अविस्मर्णीय खलनायक की भूमिका अदा की और फिर प्राण ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा और वही से प्राण खलनायकों की दुनिया के बेताज नायक बादशाह बन गये | उसके बाद वो देवानंद , दिलीप कुमार राजकपूर के फिल्मो में खलनायक की भूमिका अदा करने लगे | उन्होंने करीब चार सौ फिल्मो में काम किया और हर फिल्म में खलनायकी के अलग किरदारों में अपने अभिनय से जीवंत कर दिया उन चरित्रों को पत्थर के सनम , कश्मीर की कली , , औरत ' बड़ी बहन , हाफ टिकट , जिस देश में गंगा बहती है में डाकू के चरित्र को ऐसा जीवंत किया साथ ही फिल्म '' जंजीर '' में शेर खान की भूमिका में अपने अभिनय की वो छाप छोड़ी जो दर्शको के दिलोदिमाग में सिहरन पैदा करती है | प्राण की खलनायकी अदा ऐसी थी की जब वो पर्दे पर आते तो दर्शक अपनी साँसे रोक लेता कि अब क्या करेंगे प्राण | यह बात सर्वविदित है कि पिछले 6 दशको से किसी ने अपने बच्चो का नाम प्राण नही रखा खलनायकी में पहला ऐसा खलनायक रहा जिसके नाम से बच्चे डरते थे | प्राण की यही खासियत उनको अभिनय की दुनिया में सर्वश्रेष्ठ खलनायक स्थापित करता है | ऐसा नही है की प्राण ने सिर्फ खलनायकी की है उन्होंने किशोर कुमार के साथ मिलकर हास्य अभिनय भी किया है | सन 1968 में मनोज कुमार द्वारा निर्मित फिल्म "" उपकार '' ने प्राण के चरित्र को ही बदल दिया ''मलग बाबा '' के रूप में उसके बाद तो प्राण ने चरित्र अभिनेता के रूप में भी अपने को स्थापित किया | फिल्म उपकार में मलग बाबा के चरित्र पर दर्शक भी रो पड़े ऐसा जीवंत अभिनय किया था प्राण ने | उसके बाद प्रकाश मेहरा की फिल्म जंजीर में शेर अली पठान की महत्वपूर्ण किरदार में प्राण ने अपने अभिनय से उस चरित्र को जिदा किया और ऐसी दोस्ती का मिशाल कायम किया जो आज भी दर्शक भूल नही पाया है फ़िल्मी दुनिया में नये हीरो तो आते जाते रहते है पर प्राण ने 6 दशको तक उसी तरह बरकरार रहे अपने खलनायकी और चरित्र अभिनेता के रूप में प्राण साहब को मिलेनियम खलनायक के पुरस्कार से नावाजा गया अभी हाल में उन्हें दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया प्राण साहब ने 93 वर्ष में आज अंतिम साँसे लेकर इस दुनिया से विदाई ली | प्राण जैसा खलनायक न कभी हुआ है और न होगा उनको शत -- शत नमन
-सुनील दत्ता
स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक
3 टिप्पणियां:
प्राण साहब को शत शत नमन,,,,
RECENT POST : अपनी पहचान
जिस तरह एक ताज महल है, एक दिलीप कुमार है, एक लता मंगेशकर है!! ठीक उसी तरह एक प्राण है।। प्राण साहब को नम आँखों से भावभीनी श्रद्धांजलि।। प्राण साहब हमेशा हम सबकी यादों में रहेंगे। वो जहाँ भी रहे, सदा खुश रहे।
शत शत नमन,,,
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