आरएसएस-भाजपा द्वारा उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने की आशा में, नरेन्द्र मोदी इन दिनों (अगस्त 2013) प्रिंट इलेक्ट्रानिक व सोशल मीडिया पर छा जाने की कोशिश कर रहे हैं। और इसके लिए उस प्रचारतंत्र का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसे मोदी ने बड़ी मेहनत से और बहुत धन खर्च कर खड़ा किया है। गुजरात के 2002 के कत्लेआम में मारे गए लोगांे के लिए मोदी खुलेआम ‘‘कार से दबकर मरने वाले कुत्ते के पिल्ले’’ आदि जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हांेने जोर देकर कहा है कि वे ‘हिन्दू राष्ट्रवादी’ हैं। जहां एनडीए के पुराने गठबंधन साथी एक-एक कर उसे छोड़ते जा रहे हैं, वहीं आरएसएस-भाजपा को उम्मीद है कि भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त और गुजरात को विकास की नई ऊँचाइयों तक ले जाने वाले एक कार्यकुशल प्रशासक की उनकी छवि के कारण मोदी सन् 2014 के चुनाव जीत लेंगे। सोशल मीडिया व अन्य मंचों पर हिन्दुओं का धुव्रीकृत हो चुका हिस्सा और मध्यम वर्ग का एक तबका, मोदी की तारीफों के पुल बांध रहे हैं और ऐसा भ्रम पैदा कर रहे हैं कि मोदी का देश का अगला प्रधानमंत्री बनना तय है।
दरअसल, मोदी के प्रधानमंत्री बनने की कोई संभावना नहीं है। वे केवल एक दिवास्वप्न देख रहे हैं। हम सब जानते हैं कि साम्प्रदायिक हिंसा के पीडि़तों और धार्मिक अल्पसंख्यकों का एक बहुत बड़ा तबका, मोदी को तनिक भी पसंद नहीं करता है। जिन लोगों ने गुजरात के विकास के माडल का गहराई से अध्ययन किया है वे स्पष्ट रूप से कहते हैं कि वह खोखला है। विकास का भ्रम, अंधाधुंध प्रचार के जरिए पैदा किया गया है। परन्तु हम सबको यह समझने की जरूरत है कि ‘मोदी ब्राण्ड’ क्यों और कैसे उभरा और मोदी की राजनीति को नजरअंदाज करने मंे क्या खतरे हैं। यद्यपि मोदी की 2014 में प्रधानमंत्री बनने की कोई संभावना नहीं है। तथापि हमें यह समझने की जरूरत है कि मोदी और उनके जैसे अन्यों की राजनीति, ‘साम्प्रदायिक फासीवाद’ की राजनीति है। ऊपर से देखने में ऐसा लग सकता है कि यह राजनीति केवल अल्पसंख्यक-विरोधी है परन्तु सच यह है कि इस राजनीति का उद्देश्य प्रजातंत्र के रास्ते सत्ता हासिल करना और उसके बाद प्रजातंत्र को ही समाप्त कर देना है। इसके एजेण्डे में शामिल है दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और श्रमिकों के मानवाधिकारों का दमन।
मोदी, आरएसएस के प्रशिक्षित प्रचारक हैं। वे हिन्दू राष्ट्रवाद की विचारधारा में रचे-बसे हैं और हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के एजेण्डे पर काम कर रहे हैं। हमारे देश में, जहां अधिकांश लोगों की जीवन की प्राथमिक आवश्यकताएं ही पूरी नहीं होतीं, आरएसएस ने जानबूझ कर हिन्दुओं के एक तबके की पहचान से जुड़े अप्रासंगिक मुद्दों को सामने लाया। इसके साथ ही, इतिहास के तोड़ेमरोड़े गए तथ्यों और पीडि़तों को दोषी बताकर, एक ऐसा ‘काॅकटेल’ तैयार किया गया, जिसका इस्तेमाल अल्पसंख्यकांे के खिलाफ झूठा प्रचार करने के लिए किया जाने लगा।
सभी धर्मों के लोगों को साथ लेकर चलने की स्वाधीनता आंदोलन के नेतृत्व की नीति, आरएसएस को स्वीकार्य नहीं थी। आरएसएस ने ऐसे स्वयंसेवक तैयार करने शुरू किए जिनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के लिए काम करना था। संघ ने स्वाधीनता आंदोलन से हमेशा दूरी बनाकर रखी। आरएसएस की स्थापना चितपावन ब्राह्मणों ने की थी और यह केवल पुरूषों का संगठन है।
अपनी शाखाओं के जरिए, आरएसएस ने अल्पसंख्यकों के प्रति घृणा फैलाने और धर्मनिरपेक्षता व भारतीय संवैधानिक मूल्यांे को खारिज करने का अपना अभियान शुरू कर दिया। यह अभियान निरन्तर चलता रहा। आरएसएस ने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र में काम करने वालों में भी अपनी घुसपैठ बना ली। आईटी पेशेवरों की ‘वेब बैठकें’ आयोजित की जाने लगीं जिनका नाम ‘आईटी मिलन’ रखा गया। आरएसएस ने सोशल मीडिया का भी बड़ा जबरदस्त और प्रभावी इस्तेमाल शुरू किया। इसके अतिरिक्त, विभिन्न बाबाओं और साधुओं, जिनमें पाण्डुरंग शास्त्री हठावले, आसाराम बापू, बाबा रामदेव, श्रीश्री रविशंकर इत्यादि शामिल हैं, ने भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से संघ की अवधारणाओं और हिन्दू राष्ट्र के मूल्यों का प्रचार शुरू कर दिय
गोधरा के बाद भड़की हिंसा इस बात का सुबूत थी कि किस तरह राज्य, हिंसा को बढ़ावा दे सकता है। गुजरात के पहले तक भारत में पुलिस और राज्य मुख्यतः साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान दर्शक की भूमिका निभाता रहा था और अनेक मामलों में पुलिस, दंगाइयों का साथ देती थी। गुजरात में पहली बार मोदी के नेतृत्व में राज्य ने हिंसा भड़काने और उसे बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभाई। यद्यपि ऐसा दावा किया जा रहा है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांचदल ने मोदी को क्लीन चिट दे दी है तथापि तथ्य यह है कि उसी रिपोर्ट के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त न्यायमित्र राजू रामचन्द्रन का यह मानना है कि मोदी के विरूद्ध, सन् 2002 के दंगों के सिलसिले में मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सुबूत उपलब्ध हैं। हिंसा के बाद, गुजरात सरकार ने पीडि़तों का पुर्नवास करने की अपनी नैतिक व कानूनी जिम्मेदारी से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया। गुजरात में अल्पसंख्यकों को समाज के हाशिए पर पटक दिया गया है। अल्पसंख्यकों की एक बड़ी आबादी, अहमदाबाद तक में अपनी बस्तियों में सिमटने पर मजबूर कर दी गई है। उनके राजनैतिक व सामाजिक अधिकारों के रौंदा जा रहा है और वे दूसरे दर्जें के नागरिकों का जीवन बिताने पर मजबूर हैं। गुजरात के विकास का जमकर ढोल पीटा जा रहा है जबकि तथ्य यह है कि गुजरात, पहले से ही विकसित राज्य था। ‘वाईबे्रन्ट गुजरात’ सम्मेलनों के जरिए, गुजरात में भारी निवेश होने के दावों मंे कोई दम नहीं है। इन सम्मेलनों में निवेश के जो लंबेचैड़े वायदे किए गए, उनमें से अधिकांश पूरे नहीं हुए हैं। गुजरात, विकास के असली मानकों पर काफी पीछे छूट गया है। पिछले 15 सालों में गुजरात में लिंगानुपात तेजी से गिरा है। रोजगार सृजन की दर में कमी आई है, प्रतिव्यक्ति व्यय घटा है और गर्भवती महिलाओं के हीमोग्लोबिन स्तर के मामले में, गुजरात अन्य राज्यों से बहुत पीछे है।
मोदी, हिन्दुत्ववादी एजेण्डे का आक्रामक चेहरा हैं। उन्होंने अब खुलकर यह कहना शुरू कर दिया है कि वे हिन्दू राष्ट्रवादी हैं। यह इंगित करता है उस साम्प्रदायिक फासीवाद को, जिसे संघ परिवार देश पर लादना चाहता है। और मोदी इस परिवार के प्रमुख नेता बनकर उभरे हैं। मोदी के नेतृत्व वाले संघ परिवार का मुख्य आधार एक ओर कारपोरेट सेक्टर है तो दूसरी ओर मध्यम दर्जे के कारपोरेट कर्मचारी व आईटी-एमबीए समुदाय। मोदी ने गुजरात में यह साबित कर दिया है कि वे उद्योगपतियों की खातिर सरकारी खजाने का मुंह खोलने को तत्पर हैं और उन्हें जमीन, कर्ज व अन्य आवश्यक सुविधाएं सस्ती से सस्ती दर पर उपलब्ध करवाने के लिए तैयार हैं। इससे कारपोरेट सेक्टर बहुत प्रभावित है और उनके पीछे मजबूती से खड़ा हो गया है। कारपोरेट मीडिया बिना किसी जांच पड़ताल के, विकास के उनके दावों का अंधाधुंध प्रचार कर रहा है। गुजरात में सरकार ने समाज कल्याण योजनाओं से किनारा कर लिया है और इस कारण वहां के गरीब कष्ट भोग रहे हैं। जहां तक अल्पसंख्यकों का सवाल है, सच्चर समिति की रपट पर आधारित केन्द्रीय योजनाओं को राज्य मंे लागू नहीं किया जा रहा है और मुस्लिम विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा दिए जा रहे अनुदान को हर साल वापस लौटाया जा रहा है। अल्पसंख्यकों की बेहतरी की योजनाओं को मोदी किसी भी स्थिति में लागू करने के लिए तैयार नहीं।
वे कारपोरेट जगत, मध्यम वर्ग, व्यापारियों और आरएसएस के कट्टर समर्थकों के प्रिय पात्र बन गए हैं। ये सभी वर्ग मोदी को अलग-अलग रूप में देखते हैं और वे किसी न किसी तरह, उनके खांचे में फिट बैठ रहे हैं। कारपोरेट सोचते हैं कि मोदी उन्हें संसाधनों को लूटने की छूट देंगे। मध्यम वर्ग जानता है कि मोदी वंचित वर्गों और अल्पसंख्यकों की बेहतरी के लिए सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को रोकने में सबसे सक्षम है।
जहां एक ओर मोदी और आरएसएस के एजेण्डा का जमकर प्रचार किया जा रहा है और बहुत से लोग यह मानकर चल रहे हैं कि मोदी का राष्ट्रीय क्षितिज पर उदय निश्चित है, वहीं इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्ता के ढांचे के शीर्ष पर यदि मोदी पहुंचे तो वे हिटलर के रास्ते पर चलेंगे। हमारे देश में भारी विभिन्नताएं हैं और विभिन्न समूहों के अपने अपने हित हैं। इनमें से बहुत से समूह यह जानते हैं कि मोदी व आरएसएस, देश पर हिन्दू राष्ट्र लादेंगे और यह भी कि हिन्दू राष्ट्र, साम्प्रदायिक फासीवादी राज्य का पर्यायवाची है। भारत की विविधता और मोदी के सत्ता में आने के संभावित नतीजे इसका पर्याप्त प्रमाण हैं कि मोदी हमारे प्रजातंत्र के लिए एक खतरा हैं और उन्हंे हराने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। संघ परिवार और कारपोरेट जगत उनकी छवि को बढ़ाचढ़ा कर प्रस्तुत करेगा परन्तु आमजनों को चाहिए कि वे इस जाल में न फंसे। यद्यपि मोदी ऐसा प्रदर्शित कर रहे हैं मानो वे उदार बन गए हों परन्तु सच यह है कि उनकी मूल प्रवृत्ति और सिद्धांतों में कभी कोई फर्क नहीं आयेगा। मोदी के चुनावी करतबों को आम जनता को सिरे से खारिज करना चाहिए।
-राम पुनियानी
दरअसल, मोदी के प्रधानमंत्री बनने की कोई संभावना नहीं है। वे केवल एक दिवास्वप्न देख रहे हैं। हम सब जानते हैं कि साम्प्रदायिक हिंसा के पीडि़तों और धार्मिक अल्पसंख्यकों का एक बहुत बड़ा तबका, मोदी को तनिक भी पसंद नहीं करता है। जिन लोगों ने गुजरात के विकास के माडल का गहराई से अध्ययन किया है वे स्पष्ट रूप से कहते हैं कि वह खोखला है। विकास का भ्रम, अंधाधुंध प्रचार के जरिए पैदा किया गया है। परन्तु हम सबको यह समझने की जरूरत है कि ‘मोदी ब्राण्ड’ क्यों और कैसे उभरा और मोदी की राजनीति को नजरअंदाज करने मंे क्या खतरे हैं। यद्यपि मोदी की 2014 में प्रधानमंत्री बनने की कोई संभावना नहीं है। तथापि हमें यह समझने की जरूरत है कि मोदी और उनके जैसे अन्यों की राजनीति, ‘साम्प्रदायिक फासीवाद’ की राजनीति है। ऊपर से देखने में ऐसा लग सकता है कि यह राजनीति केवल अल्पसंख्यक-विरोधी है परन्तु सच यह है कि इस राजनीति का उद्देश्य प्रजातंत्र के रास्ते सत्ता हासिल करना और उसके बाद प्रजातंत्र को ही समाप्त कर देना है। इसके एजेण्डे में शामिल है दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और श्रमिकों के मानवाधिकारों का दमन।
मोदी, आरएसएस के प्रशिक्षित प्रचारक हैं। वे हिन्दू राष्ट्रवाद की विचारधारा में रचे-बसे हैं और हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के एजेण्डे पर काम कर रहे हैं। हमारे देश में, जहां अधिकांश लोगों की जीवन की प्राथमिक आवश्यकताएं ही पूरी नहीं होतीं, आरएसएस ने जानबूझ कर हिन्दुओं के एक तबके की पहचान से जुड़े अप्रासंगिक मुद्दों को सामने लाया। इसके साथ ही, इतिहास के तोड़ेमरोड़े गए तथ्यों और पीडि़तों को दोषी बताकर, एक ऐसा ‘काॅकटेल’ तैयार किया गया, जिसका इस्तेमाल अल्पसंख्यकांे के खिलाफ झूठा प्रचार करने के लिए किया जाने लगा।
सभी धर्मों के लोगों को साथ लेकर चलने की स्वाधीनता आंदोलन के नेतृत्व की नीति, आरएसएस को स्वीकार्य नहीं थी। आरएसएस ने ऐसे स्वयंसेवक तैयार करने शुरू किए जिनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के लिए काम करना था। संघ ने स्वाधीनता आंदोलन से हमेशा दूरी बनाकर रखी। आरएसएस की स्थापना चितपावन ब्राह्मणों ने की थी और यह केवल पुरूषों का संगठन है।
अपनी शाखाओं के जरिए, आरएसएस ने अल्पसंख्यकों के प्रति घृणा फैलाने और धर्मनिरपेक्षता व भारतीय संवैधानिक मूल्यांे को खारिज करने का अपना अभियान शुरू कर दिया। यह अभियान निरन्तर चलता रहा। आरएसएस ने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र में काम करने वालों में भी अपनी घुसपैठ बना ली। आईटी पेशेवरों की ‘वेब बैठकें’ आयोजित की जाने लगीं जिनका नाम ‘आईटी मिलन’ रखा गया। आरएसएस ने सोशल मीडिया का भी बड़ा जबरदस्त और प्रभावी इस्तेमाल शुरू किया। इसके अतिरिक्त, विभिन्न बाबाओं और साधुओं, जिनमें पाण्डुरंग शास्त्री हठावले, आसाराम बापू, बाबा रामदेव, श्रीश्री रविशंकर इत्यादि शामिल हैं, ने भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से संघ की अवधारणाओं और हिन्दू राष्ट्र के मूल्यों का प्रचार शुरू कर दिय
गोधरा के बाद भड़की हिंसा इस बात का सुबूत थी कि किस तरह राज्य, हिंसा को बढ़ावा दे सकता है। गुजरात के पहले तक भारत में पुलिस और राज्य मुख्यतः साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान दर्शक की भूमिका निभाता रहा था और अनेक मामलों में पुलिस, दंगाइयों का साथ देती थी। गुजरात में पहली बार मोदी के नेतृत्व में राज्य ने हिंसा भड़काने और उसे बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभाई। यद्यपि ऐसा दावा किया जा रहा है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांचदल ने मोदी को क्लीन चिट दे दी है तथापि तथ्य यह है कि उसी रिपोर्ट के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त न्यायमित्र राजू रामचन्द्रन का यह मानना है कि मोदी के विरूद्ध, सन् 2002 के दंगों के सिलसिले में मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सुबूत उपलब्ध हैं। हिंसा के बाद, गुजरात सरकार ने पीडि़तों का पुर्नवास करने की अपनी नैतिक व कानूनी जिम्मेदारी से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया। गुजरात में अल्पसंख्यकों को समाज के हाशिए पर पटक दिया गया है। अल्पसंख्यकों की एक बड़ी आबादी, अहमदाबाद तक में अपनी बस्तियों में सिमटने पर मजबूर कर दी गई है। उनके राजनैतिक व सामाजिक अधिकारों के रौंदा जा रहा है और वे दूसरे दर्जें के नागरिकों का जीवन बिताने पर मजबूर हैं। गुजरात के विकास का जमकर ढोल पीटा जा रहा है जबकि तथ्य यह है कि गुजरात, पहले से ही विकसित राज्य था। ‘वाईबे्रन्ट गुजरात’ सम्मेलनों के जरिए, गुजरात में भारी निवेश होने के दावों मंे कोई दम नहीं है। इन सम्मेलनों में निवेश के जो लंबेचैड़े वायदे किए गए, उनमें से अधिकांश पूरे नहीं हुए हैं। गुजरात, विकास के असली मानकों पर काफी पीछे छूट गया है। पिछले 15 सालों में गुजरात में लिंगानुपात तेजी से गिरा है। रोजगार सृजन की दर में कमी आई है, प्रतिव्यक्ति व्यय घटा है और गर्भवती महिलाओं के हीमोग्लोबिन स्तर के मामले में, गुजरात अन्य राज्यों से बहुत पीछे है।
मोदी, हिन्दुत्ववादी एजेण्डे का आक्रामक चेहरा हैं। उन्होंने अब खुलकर यह कहना शुरू कर दिया है कि वे हिन्दू राष्ट्रवादी हैं। यह इंगित करता है उस साम्प्रदायिक फासीवाद को, जिसे संघ परिवार देश पर लादना चाहता है। और मोदी इस परिवार के प्रमुख नेता बनकर उभरे हैं। मोदी के नेतृत्व वाले संघ परिवार का मुख्य आधार एक ओर कारपोरेट सेक्टर है तो दूसरी ओर मध्यम दर्जे के कारपोरेट कर्मचारी व आईटी-एमबीए समुदाय। मोदी ने गुजरात में यह साबित कर दिया है कि वे उद्योगपतियों की खातिर सरकारी खजाने का मुंह खोलने को तत्पर हैं और उन्हें जमीन, कर्ज व अन्य आवश्यक सुविधाएं सस्ती से सस्ती दर पर उपलब्ध करवाने के लिए तैयार हैं। इससे कारपोरेट सेक्टर बहुत प्रभावित है और उनके पीछे मजबूती से खड़ा हो गया है। कारपोरेट मीडिया बिना किसी जांच पड़ताल के, विकास के उनके दावों का अंधाधुंध प्रचार कर रहा है। गुजरात में सरकार ने समाज कल्याण योजनाओं से किनारा कर लिया है और इस कारण वहां के गरीब कष्ट भोग रहे हैं। जहां तक अल्पसंख्यकों का सवाल है, सच्चर समिति की रपट पर आधारित केन्द्रीय योजनाओं को राज्य मंे लागू नहीं किया जा रहा है और मुस्लिम विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा दिए जा रहे अनुदान को हर साल वापस लौटाया जा रहा है। अल्पसंख्यकों की बेहतरी की योजनाओं को मोदी किसी भी स्थिति में लागू करने के लिए तैयार नहीं।
वे कारपोरेट जगत, मध्यम वर्ग, व्यापारियों और आरएसएस के कट्टर समर्थकों के प्रिय पात्र बन गए हैं। ये सभी वर्ग मोदी को अलग-अलग रूप में देखते हैं और वे किसी न किसी तरह, उनके खांचे में फिट बैठ रहे हैं। कारपोरेट सोचते हैं कि मोदी उन्हें संसाधनों को लूटने की छूट देंगे। मध्यम वर्ग जानता है कि मोदी वंचित वर्गों और अल्पसंख्यकों की बेहतरी के लिए सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को रोकने में सबसे सक्षम है।
जहां एक ओर मोदी और आरएसएस के एजेण्डा का जमकर प्रचार किया जा रहा है और बहुत से लोग यह मानकर चल रहे हैं कि मोदी का राष्ट्रीय क्षितिज पर उदय निश्चित है, वहीं इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्ता के ढांचे के शीर्ष पर यदि मोदी पहुंचे तो वे हिटलर के रास्ते पर चलेंगे। हमारे देश में भारी विभिन्नताएं हैं और विभिन्न समूहों के अपने अपने हित हैं। इनमें से बहुत से समूह यह जानते हैं कि मोदी व आरएसएस, देश पर हिन्दू राष्ट्र लादेंगे और यह भी कि हिन्दू राष्ट्र, साम्प्रदायिक फासीवादी राज्य का पर्यायवाची है। भारत की विविधता और मोदी के सत्ता में आने के संभावित नतीजे इसका पर्याप्त प्रमाण हैं कि मोदी हमारे प्रजातंत्र के लिए एक खतरा हैं और उन्हंे हराने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। संघ परिवार और कारपोरेट जगत उनकी छवि को बढ़ाचढ़ा कर प्रस्तुत करेगा परन्तु आमजनों को चाहिए कि वे इस जाल में न फंसे। यद्यपि मोदी ऐसा प्रदर्शित कर रहे हैं मानो वे उदार बन गए हों परन्तु सच यह है कि उनकी मूल प्रवृत्ति और सिद्धांतों में कभी कोई फर्क नहीं आयेगा। मोदी के चुनावी करतबों को आम जनता को सिरे से खारिज करना चाहिए।
-राम पुनियानी
2 टिप्पणियां:
बढ़िया आलेख ,,
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rss ko gali dene se pahle se soch lena chahiye ki 1962 ki war me jab sainik 26 jan ke pared me uplabdh ni the tab RSS ne hi us me pared ko sambhav karaya tha aur us samaya nehru ne bhi rss ki tarif ki thi.
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