ऐ मेरे आख्नो के पहले सपने , रंगीन सपने मायूस सपने
एक असफल प्रेमी
तेरी सूरत जो दिलनशीं की है
आशना शक्ल हर हसीं की है
हुस्न से दिल लगा के हस्ती की
हर घड़ी हमने आतशीं की है
इन्द्रधनुष के सात रंगों की चमक और गंभीरता लिए हिन्दी सिनेमा में एक अनोखा प्यार का राही जिसने बचपन में ही ठान लिया था कि वो अपना सम्पूर्ण जीवन अभिनय को समर्पित कर देगा और उसने अपने बचपन के सपने को साकार भी किया | रंगमंचो से गुजरता हुआ वो नौजवान हरिभाई जरीवाला से संजीव कुमार बन गया और सिनेमा के रुपहले पर्दे पर अपने अभिनय द्वारा एक स्वर्ण युग छोड़ गया |
संजीव कुमार का जन्म 9 जुलाई 1938 में एक मध्यम गुजराती परिवार में हुआ था संजीव की अभिनय की यात्रा बचपन में ही शुरू हो चुकी थी वो अपने समकालीन युवको के साथ स्टेज पर अभिनय किया करते थे और अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला ले लिया | गुरुदत्त की असमय मौत के बाद निर्माता निर्देशक के . आसिफ एक महत्वाकाक्षी फिल्म '' लव एंड गाड '' बना रहे थे पर उनको वो फिल्म बंद करनी पड़ी और एक नई फिल्म की शुरुआत की '' सस्ता खून महगा पानी '' के निर्माण में जुट गये |
राजस्थान के खुबसूरत नगर जोधपुर में इस फिल्म की शूटिंग चल रही थी उसी दौरान एक नवोदित कलाकार फिल्म में अपनी बारी आने का इन्तजार कर रहा था | लगभग दस दिन बीत गये उसे काम करने का अवसर नही मिला बाद में के आसिफ ने उसे मुंबई लौट जाने को कहा बड़े निराशा से संजीव कुमार को वापस को वापस आना पडा | गुरुदत्त की मौत के बाद के . आसिफ को ऐसे कलाकार की तलाश थी जिसकी आँखे रुपहले परदे पर बोलती हो -- के आसिफ को संजीव कुमार के रूप में अभिनेता मिल चुका था |
राजश्री प्रोड्क्शन निर्मित फिल्म '' आरती '' के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमे वो सफल नही हुए |
संजीव कुमार ने 1960 में हम हिन्दुस्तानी से अपने अभिनय यात्रा की शुरुआत की 1965 में '' फिल्म '' निशाँन '' में बतौर नायक बनकर सामने आये और अभिनय के क्षेत्र में अपना पैर जमाया उसके बाद 1968 में ट्रेडजी किंग दिलीप कुमार के साथ फिल्म '' संघर्ष '' में अपने अभिनय से यह साबित कर दिया की अब फ़िल्मी दुनिया के रुपहले पर्दे पर दिलीप साहब को टक्कर देना वाला नायक इस दुनिया को मिल चूका है | उसके बाद 1970 में फिल्म '' खिलौना '' में एक असफल प्रेमी जो अपना मानसिक संतुलन खो देता है उस चरित्र को अपने अन्दर आत्मसात कर लिया था संजीव कुमार के अभिनय ने असल जिन्दगी में भी असफल रहे उन्होंने ड्रीम गर्ल्स से प्यार किया ये पूरी फ़िल्मी
दुनिया जानती थी पर ड्रीम गर्ल्स ने उनके प्यार का कोई उत्तर नही दिया |
फिल्मकार गुलजार ने संजीव के अभिनय की बारीकियो को सिनेमा के कैनवास पर बड़े करीने से सवारा और सजाया है चाहे '' परिचय '' का किरदार हो या '' आंधी '' का नायक जो अपने मोहब्बत को बड़े शिद्दत से महसूस करता हो या कोशिश का वो बेजुबान चरित्र अपने मूक अभिनय से पूरी दुनिया को एहसास दिलाता हो और पूरी दुनिया उसके मूक भाषा को समझ लेती है 1970 में प्रदर्शित फिल्म '' दस्तक '' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में राष्ट्रीय पुरूस्कार से सम्मानित किया गया |
संजीव कुमार ही फ़िल्मी दुनिया के ऐसे नायक है जिन्होंने फिल्म '' नया दिन नई रात '' में अभिनय के नौ रासो को अभिनीत करके हिन्दी सिनेमा में इतिहास रचा |
फिल्म '' मनचली '' का वो मनचला नवयुवक हो या फिल्म त्रिशूल का वो ऐसा मजबूर पिता या शोले का वो ठाकुर जो अपने परिवार के मौत पे इंतकाम की ज्वाला में झुलस रहा इंसान '' आपकी कसम का वो डाक्टर जो एक सच्चा दोस्त होता है मनोरंजन फिल्म का वो दीवान सिपाही जो संवेदनाओ में जीता है | उनके अभिनीत फिल्मे '' ऐ यार तेरी यारी '' मूर्ति गणेश की '' वक्त की दीवार ' स्मगलर ' पति पत्नी और वो '' हुस्न इश्क '' गुनहगार '' अनेको फिल्मो में अपने अभिनय के जलवे दिखाए संजीव आजीवन कुवारे ही रहे उनको उनका प्यार नसीब नही हुआ | आज उनकी पूण्य तिथि है उनको शत शत नमन -------------
-सुनील दत्ता
स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक
एक असफल प्रेमी
तेरी सूरत जो दिलनशीं की है
आशना शक्ल हर हसीं की है
हुस्न से दिल लगा के हस्ती की
हर घड़ी हमने आतशीं की है
इन्द्रधनुष के सात रंगों की चमक और गंभीरता लिए हिन्दी सिनेमा में एक अनोखा प्यार का राही जिसने बचपन में ही ठान लिया था कि वो अपना सम्पूर्ण जीवन अभिनय को समर्पित कर देगा और उसने अपने बचपन के सपने को साकार भी किया | रंगमंचो से गुजरता हुआ वो नौजवान हरिभाई जरीवाला से संजीव कुमार बन गया और सिनेमा के रुपहले पर्दे पर अपने अभिनय द्वारा एक स्वर्ण युग छोड़ गया |
संजीव कुमार का जन्म 9 जुलाई 1938 में एक मध्यम गुजराती परिवार में हुआ था संजीव की अभिनय की यात्रा बचपन में ही शुरू हो चुकी थी वो अपने समकालीन युवको के साथ स्टेज पर अभिनय किया करते थे और अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला ले लिया | गुरुदत्त की असमय मौत के बाद निर्माता निर्देशक के . आसिफ एक महत्वाकाक्षी फिल्म '' लव एंड गाड '' बना रहे थे पर उनको वो फिल्म बंद करनी पड़ी और एक नई फिल्म की शुरुआत की '' सस्ता खून महगा पानी '' के निर्माण में जुट गये |
राजस्थान के खुबसूरत नगर जोधपुर में इस फिल्म की शूटिंग चल रही थी उसी दौरान एक नवोदित कलाकार फिल्म में अपनी बारी आने का इन्तजार कर रहा था | लगभग दस दिन बीत गये उसे काम करने का अवसर नही मिला बाद में के आसिफ ने उसे मुंबई लौट जाने को कहा बड़े निराशा से संजीव कुमार को वापस को वापस आना पडा | गुरुदत्त की मौत के बाद के . आसिफ को ऐसे कलाकार की तलाश थी जिसकी आँखे रुपहले परदे पर बोलती हो -- के आसिफ को संजीव कुमार के रूप में अभिनेता मिल चुका था |
राजश्री प्रोड्क्शन निर्मित फिल्म '' आरती '' के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमे वो सफल नही हुए |
संजीव कुमार ने 1960 में हम हिन्दुस्तानी से अपने अभिनय यात्रा की शुरुआत की 1965 में '' फिल्म '' निशाँन '' में बतौर नायक बनकर सामने आये और अभिनय के क्षेत्र में अपना पैर जमाया उसके बाद 1968 में ट्रेडजी किंग दिलीप कुमार के साथ फिल्म '' संघर्ष '' में अपने अभिनय से यह साबित कर दिया की अब फ़िल्मी दुनिया के रुपहले पर्दे पर दिलीप साहब को टक्कर देना वाला नायक इस दुनिया को मिल चूका है | उसके बाद 1970 में फिल्म '' खिलौना '' में एक असफल प्रेमी जो अपना मानसिक संतुलन खो देता है उस चरित्र को अपने अन्दर आत्मसात कर लिया था संजीव कुमार के अभिनय ने असल जिन्दगी में भी असफल रहे उन्होंने ड्रीम गर्ल्स से प्यार किया ये पूरी फ़िल्मी
दुनिया जानती थी पर ड्रीम गर्ल्स ने उनके प्यार का कोई उत्तर नही दिया |
फिल्मकार गुलजार ने संजीव के अभिनय की बारीकियो को सिनेमा के कैनवास पर बड़े करीने से सवारा और सजाया है चाहे '' परिचय '' का किरदार हो या '' आंधी '' का नायक जो अपने मोहब्बत को बड़े शिद्दत से महसूस करता हो या कोशिश का वो बेजुबान चरित्र अपने मूक अभिनय से पूरी दुनिया को एहसास दिलाता हो और पूरी दुनिया उसके मूक भाषा को समझ लेती है 1970 में प्रदर्शित फिल्म '' दस्तक '' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में राष्ट्रीय पुरूस्कार से सम्मानित किया गया |
संजीव कुमार ही फ़िल्मी दुनिया के ऐसे नायक है जिन्होंने फिल्म '' नया दिन नई रात '' में अभिनय के नौ रासो को अभिनीत करके हिन्दी सिनेमा में इतिहास रचा |
फिल्म '' मनचली '' का वो मनचला नवयुवक हो या फिल्म त्रिशूल का वो ऐसा मजबूर पिता या शोले का वो ठाकुर जो अपने परिवार के मौत पे इंतकाम की ज्वाला में झुलस रहा इंसान '' आपकी कसम का वो डाक्टर जो एक सच्चा दोस्त होता है मनोरंजन फिल्म का वो दीवान सिपाही जो संवेदनाओ में जीता है | उनके अभिनीत फिल्मे '' ऐ यार तेरी यारी '' मूर्ति गणेश की '' वक्त की दीवार ' स्मगलर ' पति पत्नी और वो '' हुस्न इश्क '' गुनहगार '' अनेको फिल्मो में अपने अभिनय के जलवे दिखाए संजीव आजीवन कुवारे ही रहे उनको उनका प्यार नसीब नही हुआ | आज उनकी पूण्य तिथि है उनको शत शत नमन -------------
-सुनील दत्ता
स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक
1 टिप्पणी:
संजीव कुमार जी की पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन।।
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