शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

मुज़़फ्फरनगर का सांप्रदायिक दंगा - भाग 2

 नंगला मंदौड़ की महापंचायत के बाद भड़की हिंसा
वास्तव में मुज़फ़्फ़रनगर में हुए सांप्रदायिक दंगे निश्चित रूप से हमारे कुछ  राजनैतिक दलों की लाशों पर राजनीति करने की परम्परा और कुछ नेताओं की चुनावी लोलुपता के सिवाय कुछ नहीं। समाजवादी पार्टी और भा.ज.पा. के गठजोड़ में प्रायोजित इन दंगों ने न केवल राष्ट्रीय लोकदल और भारतीय किसान यूनियन के भविष्य पर ही सवालिया निशान लगा दिया है बल्कि जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच सन्देह की ऐसी दीवार खड़ी कर दी है जिसका गिराया जाना दोनों समुदायों के लिए समय की नितान्त आवश्यकता है। दंगों के कारण जानमाल की हानि और गाँव के क्षेत्रों से होने वाला एक समुदाय विशोष का पलायन केवल एक क्षणिक आवेश में आकर भयाक्रान्त समुदाय का ही पलायन नहीं है बल्कि यह बड़े चौधरी के आदशोर्ं और एक किसान के तौर पर दोनों समुदायों की सामाजिक, राजनैतिक आवश्यकताओं और समस्याओं को लेकर बनी और आजतक चली आ रही भारतीय किसान यूनियन की बुनियाद से होने वाले पलायन के तौर पर भी इतिहास में दर्ज होगा।
घटना का ब्यौरा
मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के (जानसठ) कवाल गाँव में 27 अगस्त 2013 को मोटर साइकिलों पर सवार दो समुदायों के युवकों के आपस में टकरा जाने की एक छोटी सी घटना से भड़की हिंसा में शाहनवाज़, गौरव और सचिन की हत्या के बाद से मुज़फ़्फ़रनगर, शामली समेत उसके आसपास के गाँवों में हुए साम्प्रदायिक दंगों से जहाँ आम आदमी ख़ौफ़ और दहशत के साए में जी रहा है वहीं इन दंगों से मुज़फ़्फ़रनगर, शामली, बाग़पत, मेरठ और सहारनपुर समेत आसपास के शहरों का व्यापार भी बहुत प्रभावित हुआ है। इस साम्प्रदायिक दंगे में सरकारी आँकड़ों के अनुसार 50 से 60 और ग़ैर सरकारी आँकड़ों के अनुसार सैंकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और गम्भीर रूप से घायलों की संख्या तो अनगिनत है।
साम्प्रदायिकता की आग में सुलगता मुज़फ़्फ़रनगर
मुज़फ़्फ़रनगर कवाल घटना पर 7 सितम्बर 2013 को नंगला मंदौड़ में हुई महापंचायत में शामिल होने जा रही बस में सवार लोगों ने अल्पसंख्यक समुदाय के एक आदमी को पीटपीट कर मार दिए जाने के बाद हालात क़ाबू से बाहर हो गए और दोनों समुदायों के लोग आमनेसामने आ गए और जमकर पथराव, लूटपाट, आगज़नी और फ़ायरिंग हुई जिसमें कई लोगों की मृत्यु हुई। मरने वालों में, एक टी.वी. चैनल का रिपोर्टर भी शामिल है। दंगे में मुज़फ़्फ़रनगर शहर के शेर नगर, मीनाक्षी चौक, अबुपुरा, अल्मासपुरा, खादरवाला, लद्घावाला, रूड़की चुंगी, जौली गंगनहर, व मीरापुर के मुंझेड़ा आदि में जमकर हिंसा हुई। हिंसा में मुस्लिम महिलाओं के साथ अभद्रता का व्यवहार कर उनको जान से मार दिया गया और मासूम बच्चों को भी नहीं बख़्शा गया। दंगे में बहुत सी मस्जिदों और मदरसों को भी निशाना बनाया गया। जौली गंगनहर पर साम्प्रदायिकता का नंगा नाच पुलिस और पी.ए.सी. की मौजूदगी में हुआ। स्थिति को नियन्ति्रत करने के
लिए ज़िले के तीन थाना क्षेत्रों में कफ्र्यू लगा दिया गया था।
दंगे में तबाह हुए घर
उसके बाद गाँवों और कस्बों में असामाजिक तत्वों ने कोहराम मचा दिया था खेतों में घुसकर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का नरसंहार किया जहाँ रोज़ाना लाश्ों बरामद हुईं। लेकिन प्रशासन ने इस ख़बर को बिल्कुल ही छुपा दिया। पुलिस और प्रशासन स्थिति पर नियन्त्रण नहीं कर सके। इसलिए वहाँ पर सेना को तैनात कर दिया गया था जहाँ पर बहुत अधिक संख्या में लाश्ों पड़ी हुई थीं। दंगों के नतीजे में मुज़फफ़रनगर के आसपास के ज़िलों शामली, बाग़पत, मेरठ और सहारनपुर में सार्वजनिक स्तर पर 50 से 60 लोगों की मृत्यु हुई और 60 से ज़्यादा लोग गम्भीर रूप से घायल हुए। हालाँकि मरने वालों की संख्या सैंकड़ों में है और घायलों की तो गिनती ही नहीं की जा सकती। ज़िले के शहरी और गाँव क्षेत्रों में सलामती दस्तों की लगभग 50 कम्पनियाँ तैनात की गई थीं और सेना, अर्द्धसैनिक बल और सिविल पुलिस का फ़्लैग मार्च जारी रहा और आसपास के ज़िलों में भी कड़ी निगरानी रखी गई क्योंकि मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों के बाद इन क्षेत्रों में भी कशीदगी पैदा की गई थी। इससे निपटने के लिए मेरठ रेंज के चार ज़िलों में अधिकारियों की फ़ौज पड़ी रही और पैरा मिलिट्री के अलावा सेना भी स्थिति पर नियन्त्रण करने में नाकाम रही।
-डा0 मोहम्मद आरिफ


क्रमश:
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित

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