भारतीय इतिहास में आज़ादी के बाद हिन्दुवत्वादियों द्वारा बाबरी मस्जिद का ध्वंस सबसे बड़ी आतंकी घटना है। यह घटना 6 दिसंबर 1992 को जर्मन नाजीवादी विचारधारा से लैस हिन्दुवत्वादियों ने की थी और भारतीय लोकतंत्र उसको न बचा पाने पर शर्मिंदा हुआ था। फेसबुक पर मित्रों के निम्नलिखित विचार आयें हैं :-
Jagadishwar Chaturvedi
आज
6 दिसम्बर है।यह स्वतंत्र भारत का कलंकमय दिन है। आज के ही दिन 1992 में
बाबरी मस्जिद गिरायी गयी। जब यह मस्जिद गिरायी गयी तो मसजिद गिराने वालों
ने एक ऐतिहासिक मसजिद को नष्ट किया, हमारे देश के संविधान और कानून की
अवमानना की।इसके अलावा उस दिन अकेले अयोध्या में 14 मुसलमान मारे गए।267घर
जलाए गए या तोड़े गए।19मजार और मदरसों को क्षतिग्रस्त किया
गया।4500मुसलमानों को अयोध्या छोड़कर भागना पड़ा।इसके अलावा देश के विभिन्न
इलाकों में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क उठी। दुखद यह है कि जिन संगठनों ने यह
सब काण्ड किया उनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई।
Anand Pradhan
बाबरी
मस्जिद का ध्वंस आधुनिक भारत के इतिहास की सबसे शर्मनाक और त्रासद घटनाओं
में से एक है. इस दिन भगवा सांप्रदायिक ताकतों ने एक बहुधार्मिक,
बहुसांस्कृतिक, बहुराष्ट्रीय और बहुभाषी भारत के विचार को मर्मान्तक चोट
पहुंचाने की कोशिश की थी. इसलिए यह आज़ाद भारत के इतिहास का एक काला दिन है
जिसे बेहतर समाज और देश चाहनेवालों को कभी भुलाना नहीं चाहिए.
Girijesh Tiwari
आइए, आज फिर एक बार अदम गोंडवी को याद करें
और साम्प्रदायिक सौहार्द की गंगा-जमनी तहज़ीब की हिफ़ाज़त के लिये
पहलकदमी करें.
"हिन्दू और मुस्लिम के एहसासात को मत छेडिये;
अपनी कुर्सी के लिए जज़्बात को मत छेडिये.
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है;
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए.
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थी, जुम्मन का घर फिर क्यों जले;
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए.
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ;
मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए.
छेड़िए असली जंग, मिल-जुल कर गरीबी ख़िलाफ़;
दोस्त, मेरे मज़हबी नग्मात को मत छेड़िए !"
और साम्प्रदायिक सौहार्द की गंगा-जमनी तहज़ीब की हिफ़ाज़त के लिये
पहलकदमी करें.
"हिन्दू और मुस्लिम के एहसासात को मत छेडिये;
अपनी कुर्सी के लिए जज़्बात को मत छेडिये.
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है;
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए.
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थी, जुम्मन का घर फिर क्यों जले;
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए.
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ;
मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए.
छेड़िए असली जंग, मिल-जुल कर गरीबी ख़िलाफ़;
दोस्त, मेरे मज़हबी नग्मात को मत छेड़िए !"
Saleem Akhter Siddiqui
छह
दिसंबर को आज की पीढ़ी भूलती जा रही है। हो सकता है वक्त के साथ यह तारीख
इतिहास में कहीं दफन हो जाए। ऐसे ही जैसे 1949 से लेकर 31 जनवरी 1986 तक
का वक्फा दफन रहा था। लेकिन 1 फरवरी 1986 ने सब कुछ बदल दिया। जो एक साल
पहले दो सीटें लेकर इतिहास बनने की ओर अग्रसर थे, वे अचानक हमलावर हो गए। 2
से 88 और फिर 180 तक जा पहुंचे। देश की राजनीति का घोर सांप्रदायिकरण कर
दिया गया। उस फसल को देश आज तक काट रहा है। मामला भले ही सुप्रीम कोर्ट में
हो, लेकिन पता नहीं कौन और कब इसे दोबारा भड़काकर देश को अस्सी के दशक जैसे
डरावने दौर में ले जाए।
Ali Sohrab
मंदिर तो एक बहाना है, मक़सद नफरत फैलाना है ,यह देश भले टूटे या रहे उनको सत्ता हथियाना है।
हिलमिल कर सब साथ रहें क्या यह बिल्कुल नामुमकिन है?
इक मंदिर बने अयोध्या में इसमें तो किसी को उज्र नहीं
पर वह मस्जिद की जगह बने यह अंधी जिद है, धर्म नहीं।
क्या राम जन्म नहीं ले सकते मस्जिद से थोड़ा हट करके?
किसकी कट जाएगी नाक अगर मंदिर मस्जिद हों सट करके?
इंसान के दिल से बढ़कर भी क्या कोई मंदिर हो सकता?
जो लाख दिलों को तोड़ बने क्या वह पूजा घर हो सकता?
मंदिर तो एक बहाना है मक़सद नफरत फैलाना है
यह देश भले टूटे या रहे उनको सत्ता हथियाना है।
इस लम्बे-चौड़े भारत में मुश्किल है बहुमत पायेंगे
यह सोच के ओछे मन वाले अब हिन्दू राष्ट्र बनायेंगे।
इतिहास का बदला लेने को जो आज तुम्हें उकसाता है
वह वर्तमान के मरघट में भूतों के भूत जगाता है।
इतिहास-दृष्टि नहीं मिली जिसे इतिहास से सीख न पाता है
बेचारा बेबस होकर फिर इतिहास मरा दुहराता है।
जो राम के नाम पे भड़काए समझो वह राम का दुश्मन है।
जो खून-खराबा करवाए समझो वह देश का दुश्मन है।
वह दुश्मन शान्ति व्यवस्था का वह अमन का असली दुश्मन है।
दुश्मन है भाई चारे का इस चमन का असली दुश्मन है।
मंदिर भी बने, मस्जिद भी रहे ज़रा सोचो क्या कठिनाई है?
जन्मभूमि है पूरा देश यह इसे मत तोड़ो राम दुहाई है।
-डॉ. रण्जीत
Ranjan Yadav
आज
कोई बाबरी विध्वंश का जश्न मना रहा है ,कोई गम में पागल हुए जा रहा है |
लेकिन कुछ ऐसा है जो भारत के जातिवाद गद्दार समाज के खिलाफ मुहीम को
अंजाम दे रहे है ,मेरा नाम उसी लिस्ट में शामिल करे |असरफ हिन्दू और स्वरण मुस्लिम के लिए बाबरी और राम मंदिर मुद्दा दोनों में कोई अंतर नहीं है ,इनके लिए धर्म भी कोई मायने नहीं रखती है ,इनके लिए मायने रखती है तो सिर्फ और सिर्फ राज सत्ता !
देश के 60 फीसदी आबादी जब मंडल मुहीम में अपनी सविन्धानिक हक और आर्थिक हितो के लिए एकत्र हो रही थी ,तभी अडवानी मुरलीमनोहर जोशी जैसे जातिवादी असरफ स्वर्णों ने मंदिर -मस्जिद प्रकरण को आवाज दी |मंडल दब के रह गया ,आवाज दबी देश के आधी आबादी की ,अब खुद सोचे क्या इनके पाप इस जन्म में माफ़ किये जा सकते है ?
तुम्हारे शौर्य दिवस कलंक है देश पर !
संक्षेप में इनके लिए सिर्फ और सिर्फ एक शब्द "देशद्रोही गद्दार जातिवादी |
जंग जारी रहे ,लिखते रहिये लोगो को बताते रहिये ,समझाते रहिये ,गद्दार जातिवादी लोगो के चहरे सामने आनी ही चहिये | जब पेट भरा रहेगा तभी राम भजन होगा
Rajendra Singh
हम
6 दिसम्बर को ही भारत के संविधान को तार-तार करने वाली घटना भी हुई थी। मैं
मुस्लिम भाइयो से बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए माफ़ी मांगता हूँ। हमारे
समुदाय के लोगो ने जो गलत किया इस बात के लिए।
सुमन
6 टिप्पणियां:
६-दिसम्बर देश के लिए कलंक है ...!
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Recent post -: वोट से पहले .
६-दिसम्बर देश के लिए कलंक है ...!
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (07-12-2013) को "याद आती है माँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1454 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सभी ने संतुलित विचार रखें हैं ।निश्चित रूप से यह घटना भारत के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे को नुकसान पहुँचाने वाली थी।लेकिन आदरणीटय सुमन जी,जरा बताएँगे कि आपने पोस्ट के शीर्षक में ऐसी मूर्खतापूर्ण बात क्यों लिखी?इनमें से किसकी बात से यह मतलब निकलता है कि यही सबसे बड़ी साम्प्रदायिक घटना थी?
हिन्दुवत्वादियों द्वारा बाबरी मस्जिद का ध्वंस सबसे बड़ी आतंकी घटना..
भारतीय इतिहास में आज़ादी के बाद हिन्दुवत्वादियों द्वारा बाबरी मस्जिद का ध्वंस सबसे बड़ी आतंकी घटना है। यह घटना 6 दिसंबर 1992 को जर्मन नाजीवादी विचारधारा से लैस हिन्दुवत्वादियों ने की थी और भारतीय लोकतंत्र उसको न बचा पाने पर शर्मिंदा हुआ था। फेसबुक पर मित्रों के निम्नलिखित विचार आयें हैं :-
लो फिर आ गए रक्त रंगी लेफ्टिए ,
लिए अयोध्या प्रलाप
Rajendra Singh
हम 6 दिसम्बर को ही भारत के संविधान को तार-तार करने वाली घटना भी हुई थी। मैं मुस्लिम भाइयो से बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए माफ़ी मांगता हूँ। हमारे समुदाय के लोगो ने जो गलत किया इस बात के लिए।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
एक माफ़ी तो भाई साहब शाहबानो मामले पर भी बनती है। संविधानिक संस्थाओं को बेअसर करने की कोशिश जस्टिस सिन्हा को धकियाके इंदिराजी ने शुरू की थी एक माफ़ी उसके लिए भी मांग लो भैया तबसे एक के बाद एक संविधानिक संस्थाएं टूट रहीं हैं थमने का नाम नहीं। आखिर कब तक चलेगा ये सिलसिला।
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