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यह चिन्ह छीनते ही हैसियत मालूम हो जाती है |
किस्सा यह है कि आज एक अधिवक्ता थाना रामनगर जनपद बाराबंकी में अपने क्लाइंट, जो लॉकअप में निरुद्ध था, मिलने गए। वहाँ पर दीवान से अनुमति मांगी उसने कहा कि पांच मिनट बात कर लो। जिस पर अधिवक्ता महोदय उस व्यक्ति से बात करने लगे तभी थाने में तैनात दरोगा शुद्धि भूषण दूबे आये और अधिवक्ता से बदतमीजीपूर्ण तरीके से बात करने लगे तभी एक दूसरा दरोगा आ गया और उसने कहा कि वकील का तस्करा लिख दो। गनीमत यह थी कि अधिवक्ता महोदय फौजदारी के थे और नियम कानून कायदों की बात होने लगी जिससे एक बड़ी घटना होते-होते बची।
शुद्धि भूषण दूबे दरोगा जी थाना आपके बाप का नहीं है और फर्जी तस्करा लिखने वाले दरोगा जी न आप के ही बाप का है। आप तो जनता के नौकर हैं और मालिक से बात करने का शऊर आपको आना चाहिए। लोकतंत्र में कानून से बड़ा कोई नही होता है। आप भी कानून से बड़े नहीं हैं और न हम। और अगर आप अपने को कानून से ऊपर समझते हैं तो नौकरी आपको नही करनी चाहिए बल्कि मवालियों की तरह अपनी गुंडागर्दी की बातें जो आप करते हैं उसी का हिस्सा हो जाइये। आप की जानकारी के लिए लिख रहा हूँ कि मानवाधिकार आयोग तथा माननीय सर्वोच्च न्यायलय के दिशा-निर्देशों के अनुसार पुलिस बल को कार्य करना चाहिए नहीं तो अपराधी और आप में क्या अंतर रहेगा ? एक अपराधी को घोड़िया लाद कर मिठाई खिलाते हुए ले जाते हुए आप लोगों को शर्म नही महसूस होती है और समाज के भले लोगों के साथ दुर्व्यवहार करने का जरा सा भी अवसर मिलता है तो आप चूकते नही हैं। आप अपने परिवार में किस तरीके से रहते होंगे। इसीलिए कोई भी पीड़ित व्यक्ति थाने जाना पसंद नही करता है।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
2 टिप्पणियां:
ek vkil ke sath esa ?
Keep fighting, people like you can contribute to the change !
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