चौराहे पर ढाढ़ किसनऊ, ताकैं चारिउ वार
देश का को है जिम्मेदार।
कहूँ न जोति दिया न बाती, कोई हितू न सखा संघाती,
चलै बिकट बौझरा पछहियाँ, उड़ै रथी जस तिनका पाती ।
उडि़ लै अंधकार चैगिर्दा, सूझि न परै अगार।
देश का को है जिम्मेदार
नौकर कहैं कि हम चाकर हैं , अफसर कहैं कि हम नौकर हैं,
मेम्बर कहैं न हम रहबर हैं, मंत्री कहैं कि खिदमतगार हैं।
कहैं गवरनर पद जरूर है, मुला न कुछ अधिकार।
देश का को है जिम्मेदार।।
जिलाधीश-परगनाधीश, कोई न्यायाधीश कोई प्रांतपति है,
नगरपाल, कोई लेखपाल, कोई राज्यपाल, कोई राष्ट्रपति है।
तबहूँ बिना नाथ बिन पगहा, भारत की सरकार।
देश का को है जिम्मेदार।।
लंका गोवा ब्रह्मा छिनिगा, असम भोट नैपाली हटिगा,
पेशावर लाहौर, करांची, बंग, सिंध, कश्मीरी बँटिगा।
मैकमोहन लद्दाखौ, लुटिगा, कोई न सेवनहार।।
देश का को है जिम्मेदार।।
खेतिहर का न काम से फुरसति, मंत्री का न डिनर से फुरसति,
अफसर का न ऐश से फुरसति, डाकुन का न लूटि से फुरसति,
को देखै, को सुनै कोहू की, केहिका है दरकार।
देश का को है जिम्मेदार।।
चीन दबावै, रूस चिढ़ावै, अमरीका दै कर्ज फँसावै,
पाकिस्तान लुकेठा लै-लै, दूनौ वार ते लूक लगावै।
झरसि रही है भारत माता, कोई न सींचनहार।
देश का को है जिम्मेदार।।
भ्रष्टाचार दमन के तन पर, चढ़ी सड़ी सरकार पतन पर,
लुढ़कति जाय देश का दाबै, महानाश की महा निधन पर।
लेक्चर दै-दै मंत्री मेम्बर, फूँकि रहे कप्पार।
देश का को है जिम्मेदार।।
सत्य ‘सिमिटगा एक्टवाद माँ’ न्याय सिमिटगा पार्टिवाद माँ,
दया-धरम उपकार समुन्नति, सिमिटी फैशन-स्वार्थवाद माँ।
चोरी डाका कतल भुखमरी, गर्जि रहा संहार।
देश का को है जिम्मेदार।।
आगे का धौं होने वाला, धौं शासन का भवा देवाला,
निकरि गवा को घरि से, कोई रहा न धूनी देने वाला।
चैकस आधा देश बँटा, जो रहा न रहनेहार।
देश का को है जिम्मेदार।।
नाप बदलिगै तौल बदलिगै, सिक्का लेखा नीति बदलिगै,
मिलनि चलनि बतुवानि सभ्यता, भाषा भूषा रीति बदलिगै।
रोय रही वीरता न कोई आँसू पोछनहार।
देश का को है जिम्मेदार।।
बरस सैकरन चली लड़ाई तब गण गौड़रि शाही आई,
जो मिटिगे सा पनपि न पाये, तबलौं मौत फेरि घिरि आई।
फिरि धांै भारत बिकी चीन, अमरीका के बाजार।
देश का को है जिम्मेदार।।
जो चाहै सो अकड़ दिखावै, जो चाहै सो लुटै-लुटावै,
चारिउ चूरा ढील बोल्टू, जो चाहै सो धुरा दबावै।
हाय बीर भारत का डाटैं, कायर, क्रूर, लबार।
देश का को है जिम्मेदार।।
अरे हुकूमत के मक्कारों, ओट-नोट के लूटन हारौ,
उत्तर देउ दीन भारत का, ओ पार्टिन के ठेकेदारौ।
काहे बरगलाय के बेड़ा, बोरि दिहेउ मँझधार।
देश का को है जिम्मेदार।।
-वंशीधर शुक्ल
देश का को है जिम्मेदार।
कहूँ न जोति दिया न बाती, कोई हितू न सखा संघाती,
चलै बिकट बौझरा पछहियाँ, उड़ै रथी जस तिनका पाती ।
उडि़ लै अंधकार चैगिर्दा, सूझि न परै अगार।
देश का को है जिम्मेदार
नौकर कहैं कि हम चाकर हैं , अफसर कहैं कि हम नौकर हैं,
मेम्बर कहैं न हम रहबर हैं, मंत्री कहैं कि खिदमतगार हैं।
कहैं गवरनर पद जरूर है, मुला न कुछ अधिकार।
देश का को है जिम्मेदार।।
जिलाधीश-परगनाधीश, कोई न्यायाधीश कोई प्रांतपति है,
नगरपाल, कोई लेखपाल, कोई राज्यपाल, कोई राष्ट्रपति है।
तबहूँ बिना नाथ बिन पगहा, भारत की सरकार।
देश का को है जिम्मेदार।।
लंका गोवा ब्रह्मा छिनिगा, असम भोट नैपाली हटिगा,
पेशावर लाहौर, करांची, बंग, सिंध, कश्मीरी बँटिगा।
मैकमोहन लद्दाखौ, लुटिगा, कोई न सेवनहार।।
देश का को है जिम्मेदार।।
खेतिहर का न काम से फुरसति, मंत्री का न डिनर से फुरसति,
अफसर का न ऐश से फुरसति, डाकुन का न लूटि से फुरसति,
को देखै, को सुनै कोहू की, केहिका है दरकार।
देश का को है जिम्मेदार।।
चीन दबावै, रूस चिढ़ावै, अमरीका दै कर्ज फँसावै,
पाकिस्तान लुकेठा लै-लै, दूनौ वार ते लूक लगावै।
झरसि रही है भारत माता, कोई न सींचनहार।
देश का को है जिम्मेदार।।
भ्रष्टाचार दमन के तन पर, चढ़ी सड़ी सरकार पतन पर,
लुढ़कति जाय देश का दाबै, महानाश की महा निधन पर।
लेक्चर दै-दै मंत्री मेम्बर, फूँकि रहे कप्पार।
देश का को है जिम्मेदार।।
सत्य ‘सिमिटगा एक्टवाद माँ’ न्याय सिमिटगा पार्टिवाद माँ,
दया-धरम उपकार समुन्नति, सिमिटी फैशन-स्वार्थवाद माँ।
चोरी डाका कतल भुखमरी, गर्जि रहा संहार।
देश का को है जिम्मेदार।।
आगे का धौं होने वाला, धौं शासन का भवा देवाला,
निकरि गवा को घरि से, कोई रहा न धूनी देने वाला।
चैकस आधा देश बँटा, जो रहा न रहनेहार।
देश का को है जिम्मेदार।।
नाप बदलिगै तौल बदलिगै, सिक्का लेखा नीति बदलिगै,
मिलनि चलनि बतुवानि सभ्यता, भाषा भूषा रीति बदलिगै।
रोय रही वीरता न कोई आँसू पोछनहार।
देश का को है जिम्मेदार।।
बरस सैकरन चली लड़ाई तब गण गौड़रि शाही आई,
जो मिटिगे सा पनपि न पाये, तबलौं मौत फेरि घिरि आई।
फिरि धांै भारत बिकी चीन, अमरीका के बाजार।
देश का को है जिम्मेदार।।
जो चाहै सो अकड़ दिखावै, जो चाहै सो लुटै-लुटावै,
चारिउ चूरा ढील बोल्टू, जो चाहै सो धुरा दबावै।
हाय बीर भारत का डाटैं, कायर, क्रूर, लबार।
देश का को है जिम्मेदार।।
अरे हुकूमत के मक्कारों, ओट-नोट के लूटन हारौ,
उत्तर देउ दीन भारत का, ओ पार्टिन के ठेकेदारौ।
काहे बरगलाय के बेड़ा, बोरि दिहेउ मँझधार।
देश का को है जिम्मेदार।।
-वंशीधर शुक्ल
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