इस बार चूके तो लंबे समय तक हिंदुओं को प्रताडि़त होना पड़ेगा - डाॅ.
कृष्ण गोपाल, सह सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। अभी चुनाव नहीं
घोषित हुए हैं, मगर संघ ने असामान्य जहरीला दुष्प्रचार शुरू कर दिया है।
संघ ने अपनी राजनैतिक शाखा, भारतीय जनसंघ, भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनाव
में हमेशा काम किया है। लेकिन इस बार सीन बिल्कुल बदला हुआ है। संघ के
पदाधिकारी भाजपा को विजय दिलाने के लिए खुल कर मैदान में इस तरह पहली बार
उतरे हैं। पहली बार उन्होंने पाखंड का यह चोला उतार फेंका है कि संघ तो
समाज-राष्ट्र निर्माण को समर्पित एक सांस्कृतिक संगठन है।
सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल का वक्तव्य संघ परिवार की आशा और चिंता, दोनों को व्यक्त कर रहा है। आशा यह कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपने विरोधियों के खिलाफ व्यापक दुष्प्रचार और कार्पोरेट जगत से लेकर आम आदमी सहित विभिन्न वर्गों को सब्ज बाग दिखाकर इस बार केंद्र की कुर्सी तक पहुँचा जा सकता है। चिंता यह कि मोदी का व्यक्तित्व अटल बिहारी वाजपेयी की तरह नहीं है, जिसे उनसे असहमत लोग भी स्वीकार कर लें। अब अगर मोदी के विभाजक व्यक्तित्व के कारण भाजपा सत्ता से वंचित रह गई, तो फिर लंबे समय के लिए वनवास झेलना होगा। दूसरे शब्दों में, संघ परिवार मोदी को फिलहाल अपने तरकश का आखिरी तीर मान रहा है। एड़ी-चोटी का जोर लगा देने का यही कारण है।
लोकतंत्र में सत्ता हासिल करना एक वाजिब राजनैतिक अधिकार है। लेकिन इस अधिकार पर अमल मर्यादा की जिस सीमा में होना चाहिए, संघ परिवार उसका नृशंस उल्लंघन करने में जुट गया है। देखिए सह सरकार्यवाह क्या कह रहे हैं, ‘‘इस बार चूके तो लंबे समय के लिए हिंदुओं को हिंदू विरोधी ताकतों के हाथों अपमानित और उत्पीडि़त होना पड़ेगा। जाति के नाम पर वोट की ताकत हासिल करने वाले (मानों भाजपा यूपी से लेकर कर्णाटक तक यह करती ही नहीं रही है!) यह नेता इस बार सत्ता में आए तो हिंदुओं को और दीनहीन और उत्पीड़न का शिकार बना कर छोड़ेंगे। इनको वोट का मतलब देशद्रोहियों का समर्थन है। यह सामान्य चुनाव नहीं है। यह देश को संक्रमण काल से उबारने का मौका है। संघ परिवार पर बड़ी जिम्मेदारी है।’’
नफरत और उन्माद के बूते जब कोई अपना वजूद बनाए हो तो तर्क और विवेक के लिए गुंजाइश नहीं रह जाती। यह सोच पाने की क्षमता नष्ट हो जाती है कि कथन का भावार्थ क्या है। गौर करिए, संघ के सह सरकार्यवाह ने पूरे हिंदू समाज को देशद्रोही बता डाला! कांग्रेस और सेकुलर राजनीति के प्रति अडिग आस्था रखने वाली अन्य पार्टियाँ आखिर ‘‘विधर्मियों और म्लेच्छों’’ (इस शब्दावली पर कॉपी राइट संघ का है) के वोट के बल पर सत्ता में नहीं आती रही हैं। आखिर कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिंदुओं के विराट बहुमत ने आज तक जनसंघ-भाजपा को वोट नहीं दिया है। तो क्या हिंदुओं की यह कोटि-कोटि संख्या अभी तक देशद्रोह का समर्थन करती रही है? देशद्रोह का समर्थन करने वाले भी तो देशद्रोही हुए!
बात देशद्रोह तक आ गई है तो बस एक सवाल। आजादी की लड़ाई में मूक दर्शक बने रहने वालों को किस श्रेणी में रखा जाए? संघ की स्थापना 1925 में हुई थी। 1925 से 1947 के बीच संघ के अनेक नेताओं और कार्यकर्ताओं की उम्र वही थी, जो जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद, आचार्य कृपलानी, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, इंदिरा गांधी (कहाँ तक उल्लेख करें, बहुत लंबी लिस्ट है) खुदीराम बोस, हेमू कालाणी, चाफेकर बंधुओं, असेंबली बम कांड, काकोरी और चटगाँव के वीर सैनिकों की थी। संघ की शाखाओं में यह गीत प्रायः गाया जाता है- शीश दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है, युगों-युगों से यही हमारी बनी रही परिपाटी है। कृपया एक नाम बताइए जिसने 1925 से 1947 के बीच भारत माता के लिए शीश दिया हो। डमी तलवारों से खड्ग युद्ध का प्रशिक्षण लेकर और लाठियाँ भाँज-भाँज कर आखिर भारत माता के यशस्वी पुत्रों का कैसा परिवार तैयार हुआ जिससे एक भी खुदीराम बोस नहीं निकल सका? हाँ, माफीनामा लिखने वालों के नाम जरूर मिल जाएँगे!
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल का वक्तव्य संघ परिवार की आशा और चिंता, दोनों को व्यक्त कर रहा है। आशा यह कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपने विरोधियों के खिलाफ व्यापक दुष्प्रचार और कार्पोरेट जगत से लेकर आम आदमी सहित विभिन्न वर्गों को सब्ज बाग दिखाकर इस बार केंद्र की कुर्सी तक पहुँचा जा सकता है। चिंता यह कि मोदी का व्यक्तित्व अटल बिहारी वाजपेयी की तरह नहीं है, जिसे उनसे असहमत लोग भी स्वीकार कर लें। अब अगर मोदी के विभाजक व्यक्तित्व के कारण भाजपा सत्ता से वंचित रह गई, तो फिर लंबे समय के लिए वनवास झेलना होगा। दूसरे शब्दों में, संघ परिवार मोदी को फिलहाल अपने तरकश का आखिरी तीर मान रहा है। एड़ी-चोटी का जोर लगा देने का यही कारण है।
लोकतंत्र में सत्ता हासिल करना एक वाजिब राजनैतिक अधिकार है। लेकिन इस अधिकार पर अमल मर्यादा की जिस सीमा में होना चाहिए, संघ परिवार उसका नृशंस उल्लंघन करने में जुट गया है। देखिए सह सरकार्यवाह क्या कह रहे हैं, ‘‘इस बार चूके तो लंबे समय के लिए हिंदुओं को हिंदू विरोधी ताकतों के हाथों अपमानित और उत्पीडि़त होना पड़ेगा। जाति के नाम पर वोट की ताकत हासिल करने वाले (मानों भाजपा यूपी से लेकर कर्णाटक तक यह करती ही नहीं रही है!) यह नेता इस बार सत्ता में आए तो हिंदुओं को और दीनहीन और उत्पीड़न का शिकार बना कर छोड़ेंगे। इनको वोट का मतलब देशद्रोहियों का समर्थन है। यह सामान्य चुनाव नहीं है। यह देश को संक्रमण काल से उबारने का मौका है। संघ परिवार पर बड़ी जिम्मेदारी है।’’
नफरत और उन्माद के बूते जब कोई अपना वजूद बनाए हो तो तर्क और विवेक के लिए गुंजाइश नहीं रह जाती। यह सोच पाने की क्षमता नष्ट हो जाती है कि कथन का भावार्थ क्या है। गौर करिए, संघ के सह सरकार्यवाह ने पूरे हिंदू समाज को देशद्रोही बता डाला! कांग्रेस और सेकुलर राजनीति के प्रति अडिग आस्था रखने वाली अन्य पार्टियाँ आखिर ‘‘विधर्मियों और म्लेच्छों’’ (इस शब्दावली पर कॉपी राइट संघ का है) के वोट के बल पर सत्ता में नहीं आती रही हैं। आखिर कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिंदुओं के विराट बहुमत ने आज तक जनसंघ-भाजपा को वोट नहीं दिया है। तो क्या हिंदुओं की यह कोटि-कोटि संख्या अभी तक देशद्रोह का समर्थन करती रही है? देशद्रोह का समर्थन करने वाले भी तो देशद्रोही हुए!
बात देशद्रोह तक आ गई है तो बस एक सवाल। आजादी की लड़ाई में मूक दर्शक बने रहने वालों को किस श्रेणी में रखा जाए? संघ की स्थापना 1925 में हुई थी। 1925 से 1947 के बीच संघ के अनेक नेताओं और कार्यकर्ताओं की उम्र वही थी, जो जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद, आचार्य कृपलानी, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, इंदिरा गांधी (कहाँ तक उल्लेख करें, बहुत लंबी लिस्ट है) खुदीराम बोस, हेमू कालाणी, चाफेकर बंधुओं, असेंबली बम कांड, काकोरी और चटगाँव के वीर सैनिकों की थी। संघ की शाखाओं में यह गीत प्रायः गाया जाता है- शीश दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है, युगों-युगों से यही हमारी बनी रही परिपाटी है। कृपया एक नाम बताइए जिसने 1925 से 1947 के बीच भारत माता के लिए शीश दिया हो। डमी तलवारों से खड्ग युद्ध का प्रशिक्षण लेकर और लाठियाँ भाँज-भाँज कर आखिर भारत माता के यशस्वी पुत्रों का कैसा परिवार तैयार हुआ जिससे एक भी खुदीराम बोस नहीं निकल सका? हाँ, माफीनामा लिखने वालों के नाम जरूर मिल जाएँगे!
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
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