कोई विवाहित है या अविवाहित, यह बड़ा
निजी मामला होता है। दो बालिग लोगों के बीच किस प्रकार के संबंध हैं, यह भी
तब तक व्यक्तिगत होता है, जब तक कानून का उल्लंघन नहीं होता या उल्लंघन का
केस सार्वजनिक संज्ञान में नहीं आता। लेकिन जब आप उच्चतम सार्वजनिक पद के
दावेदार होते हैं, तब एक हद के आगे व्यक्तिगत कुछ नहीं रह जाता। हर बात
पड़ताल के दायरे में आ जाती है। नरेंद्र मोदी भाजपा के, प्रधानमंत्री पद के
घोषित उम्मीदवार हैं।जसोदा बेन से
इंटरव्यू छापा है, उसी अखबार के अहमदाबाद एडिशन के एक संवाददाता को 2002 के
दंगों के बाद जसोदा बेन से भेंट के दौरान लोहे के चने चबाने पड़े थे। इसीलिए एक अंग्रेजी अखबार ने पहले पेज पर जसोदा बेन
नामक एक महिला से इंटरव्यू छापा।
जसोदा बेन ने इंटरव्यू में कहा, ‘‘मैं 17 साल की थी जब नरेंद्र मोदी के साथ मेरा विवाह हुआ। तीन साल के वैवाहिक जीवन में मैं मुश्किल से तीन महीने उनके साथ रही हूँगी। उनके घर जाने के बाद मेरी पढ़ाई छूट गई थी। मुझे याद है, वह मुझसे पढ़ने के लिए कहा करते थे। अलगाव बिना किसी कटुता के हुआ। मुझे उनके बारे में जो भी मिल जाता है, पढ़ती हूँ। मुझे नहीं लगता कि वह मुझे बुलाएँगे।’’ इस पर संवाददाता ने पूछा, क्या अब भी आप अपने को उनकी पत्नी मानती हैं? उन्होंने जवाब दिया, ‘‘अगर ऐसा न होता तो क्या आप मुझसे बात कर रहे होते?’’
मोदी अपने वैवाहिक जीवन के बारे में कभी कुछ नहीं बोलते। इस इंटरव्यू पर भी उनकी तरफ से प्रतिक्रिया नहीं हुई। लेकिन यहाँ कुछ नैतिक प्रश्न पैदा होते हैं। अगर कोई अपने सामाजिक-राजनैतिक जीवन को आगे बढ़ाने के लिए वैवाहिक अवस्था को छुपाए या झूठ बोले तो उस व्यक्ति की नैतिकता और शुचिता के बारे में क्या निष्कर्ष निकाला जाएगा? भारत में विवाह, वैवाहिक जीवन और उसे भंग करने के बारे में कानूनी व्यवस्था है। अगर कोई उन कानूनी प्रावधानों का पालन न करे तो उस व्यक्ति को किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए? क्या वह व्यक्ति सार्वजनिक पद का पात्र हो सकता है? इस कानूनी और नैतिक पहलू को छोड़ कर, देखने की कोशिश करें कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार, मोदी अपने लक्ष्य को पूरा करने लिए क्या-क्या कर सकते हैं और किस हद तक जा सकते हैं। मोदी के जीवनीकार नीलांजन मुखोपाध्याय के अनुसार जसोदा बेन का गाँव ब्राह्मणवाड़ा, मोदी के गाँव वडनगर के पास ही है। मोदी का महत्व बढ़ते ही जसोदा बेन तक पहुँचना नामुमकिन-सा हो गया। अब जिस अखबार ने
विवाह को गुप्त रखने का कारण यह था कि मोदी आर.एस.एस. में अपने कैरियर को ऊँचे ले जाना चाहते थे। अगर संघ नेतृत्व को सच्चाई का पता चल जाता, तो वह प्रचारक के पद तक न पहुँच पाते। लेकिन पर्दा लंबे समय तक नहीं रह पाया। नीलांजन लिखते हैं कि 1987 में मोदी को संघ से भाजपा में भेज दिया गया, क्योंकि तब तक संघ नेतृत्व को उनके विवाह का पता चल चुका था। मगर तब तक मोदी एक बड़ा लक्ष्य हासिल कर चुके थे।
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
जसोदा बेन ने इंटरव्यू में कहा, ‘‘मैं 17 साल की थी जब नरेंद्र मोदी के साथ मेरा विवाह हुआ। तीन साल के वैवाहिक जीवन में मैं मुश्किल से तीन महीने उनके साथ रही हूँगी। उनके घर जाने के बाद मेरी पढ़ाई छूट गई थी। मुझे याद है, वह मुझसे पढ़ने के लिए कहा करते थे। अलगाव बिना किसी कटुता के हुआ। मुझे उनके बारे में जो भी मिल जाता है, पढ़ती हूँ। मुझे नहीं लगता कि वह मुझे बुलाएँगे।’’ इस पर संवाददाता ने पूछा, क्या अब भी आप अपने को उनकी पत्नी मानती हैं? उन्होंने जवाब दिया, ‘‘अगर ऐसा न होता तो क्या आप मुझसे बात कर रहे होते?’’
मोदी अपने वैवाहिक जीवन के बारे में कभी कुछ नहीं बोलते। इस इंटरव्यू पर भी उनकी तरफ से प्रतिक्रिया नहीं हुई। लेकिन यहाँ कुछ नैतिक प्रश्न पैदा होते हैं। अगर कोई अपने सामाजिक-राजनैतिक जीवन को आगे बढ़ाने के लिए वैवाहिक अवस्था को छुपाए या झूठ बोले तो उस व्यक्ति की नैतिकता और शुचिता के बारे में क्या निष्कर्ष निकाला जाएगा? भारत में विवाह, वैवाहिक जीवन और उसे भंग करने के बारे में कानूनी व्यवस्था है। अगर कोई उन कानूनी प्रावधानों का पालन न करे तो उस व्यक्ति को किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए? क्या वह व्यक्ति सार्वजनिक पद का पात्र हो सकता है? इस कानूनी और नैतिक पहलू को छोड़ कर, देखने की कोशिश करें कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार, मोदी अपने लक्ष्य को पूरा करने लिए क्या-क्या कर सकते हैं और किस हद तक जा सकते हैं। मोदी के जीवनीकार नीलांजन मुखोपाध्याय के अनुसार जसोदा बेन का गाँव ब्राह्मणवाड़ा, मोदी के गाँव वडनगर के पास ही है। मोदी का महत्व बढ़ते ही जसोदा बेन तक पहुँचना नामुमकिन-सा हो गया। अब जिस अखबार ने
विवाह को गुप्त रखने का कारण यह था कि मोदी आर.एस.एस. में अपने कैरियर को ऊँचे ले जाना चाहते थे। अगर संघ नेतृत्व को सच्चाई का पता चल जाता, तो वह प्रचारक के पद तक न पहुँच पाते। लेकिन पर्दा लंबे समय तक नहीं रह पाया। नीलांजन लिखते हैं कि 1987 में मोदी को संघ से भाजपा में भेज दिया गया, क्योंकि तब तक संघ नेतृत्व को उनके विवाह का पता चल चुका था। मगर तब तक मोदी एक बड़ा लक्ष्य हासिल कर चुके थे।
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
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