बदरीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी
केशवन नंबूदिरी को एक गर्भवती महिला के साथ छेड़छाड़ के आरोप में दिल्ली
में गिरफ्तार किया गया। महिला और उसका परिवार मुख्य पुजारी का भक्त था।
महिला के पिता का कहना है ,हम जिसे भगवान मानते थे, वह शैतान निकला। मुख्य
पुजारी पर इस परिवार को इतना भरोसा था कि उसने रात में महिला को होटल में
मिलने के बुलाया तो परिवार को भेजने में संकोच नहीं हुआ।
महिला की शिकायत पर कानून तो अपना काम करने ही लगा है, मंदिर समिति ने नंबूदिरी को रावल के पद से हटा दिया है। इसे यूँ कहा जा सकता है कि समिति ने महिला की शिकायत को प्रथम दृष्टया कार्रवाई लायक माना। या मुख्य पुजारी को निर्दोष नहीं मान रही। इस बीच यमुनोत्री धाम के तीर्थ पुरोहितों ने नंबूदिरी की निंदा की है। बदरीनाथ से आ रही खबरों के मुताबिक कई अवसरों पर नंबूदिरी का व्यवहार मर्यादा विरुद्ध पाया गया था।
अदालती कार्यवाही शुरू होने से पहले ही भारतीय जनता पार्टी के रूप में नंबूदिरी को एक वकील मिल गया है। उत्तराखंड भाजपा के अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत ने बयान जारी कर कहा कि रावल का पद पूरे विश्व में आस्था और सम्मान का केंद्र है। रावल के निलंबन की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि किसी बड़े षड्यंत्र से इंकार नहीं किया जा सकता। तीरथ ने यह स्पष्ट नहीं किया कि किस आधार पर उन्होंने षड्यंत्र देखा।
एक और घटना को याद करें। आसाराम बापू अपनी पुत्री तुल्य एक महिला के साथ अनाचार के आरोप में कई महीने से जेल में पड़े हैं। उनकी जमानत की नौबत नहीं आ रही। ठीक यही आरोप उनके पुत्र नारायण साईं पर लगा। कई महीने वह गिरफ्तारी से बचने के लिए भागते रहे। अब वह भी जेल में हैं। चार्जशीट दायर होने से पहले ही भाजपा के नेता उनके बचाव में उतर आए।
आसाराम, नारायण साईं और नंबूदिरी निर्दोष हैं या नहीं, यह अदालत को तय करना है। लेकिन भाजपा ने इन सभी केसों में न्यायिक प्रक्रिया को अवरुद्ध करने की कोशिश की है। इन कोशिशों का अर्थ यह है कि अगर कोई महिला अपनी आबरू बचाने के लिए कानून का सहारा ले तो उसे यह सहारा नहीं मिलना चाहिए। हर मामले में भाजपा को हिंदू विरोधी साजिश नजर आने लगती है। ऐसा क्यों होता है?
ऐसा इसलिए होता है कि हिंदू धर्म और दर्शन के उच्च, महान सिद्धांतों और मूल्यों से संघ परिवारियों का वास्तव में कोई संबंध नहीं है। संघ परिवारी हिंदू धर्म का नाम सिर्फ राजनैतिक लाभ के लिए लेते हैं। इसीलिए वे कालांतर में आई बुराइयों और कुरीतियों का विरोध कभी नहीं करते। इसीलिए वह सती प्रथा के समर्थकों की कतार में शामिल होने के लिए मजबूर होते हैं। इसीलिए जब अंधविश्वास के खिलाफ कानून बनाने की बात होती है, तो वे विरोध में सड़कों पर उतर आते हैं। धर्म के उदाŸा महान मूल्यों पर चलने से वोट नहीं मिलते। वोट तो मिलते हैं कर्मकांड, अंधविश्वास और कुरीतियों के पोषण और धर्म के ठेकेदारों का समर्थन जुटाने से। भाजपा-जनसंघ ने जन्म के समय से ही
महिला की शिकायत पर कानून तो अपना काम करने ही लगा है, मंदिर समिति ने नंबूदिरी को रावल के पद से हटा दिया है। इसे यूँ कहा जा सकता है कि समिति ने महिला की शिकायत को प्रथम दृष्टया कार्रवाई लायक माना। या मुख्य पुजारी को निर्दोष नहीं मान रही। इस बीच यमुनोत्री धाम के तीर्थ पुरोहितों ने नंबूदिरी की निंदा की है। बदरीनाथ से आ रही खबरों के मुताबिक कई अवसरों पर नंबूदिरी का व्यवहार मर्यादा विरुद्ध पाया गया था।
अदालती कार्यवाही शुरू होने से पहले ही भारतीय जनता पार्टी के रूप में नंबूदिरी को एक वकील मिल गया है। उत्तराखंड भाजपा के अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत ने बयान जारी कर कहा कि रावल का पद पूरे विश्व में आस्था और सम्मान का केंद्र है। रावल के निलंबन की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि किसी बड़े षड्यंत्र से इंकार नहीं किया जा सकता। तीरथ ने यह स्पष्ट नहीं किया कि किस आधार पर उन्होंने षड्यंत्र देखा।
एक और घटना को याद करें। आसाराम बापू अपनी पुत्री तुल्य एक महिला के साथ अनाचार के आरोप में कई महीने से जेल में पड़े हैं। उनकी जमानत की नौबत नहीं आ रही। ठीक यही आरोप उनके पुत्र नारायण साईं पर लगा। कई महीने वह गिरफ्तारी से बचने के लिए भागते रहे। अब वह भी जेल में हैं। चार्जशीट दायर होने से पहले ही भाजपा के नेता उनके बचाव में उतर आए।
आसाराम, नारायण साईं और नंबूदिरी निर्दोष हैं या नहीं, यह अदालत को तय करना है। लेकिन भाजपा ने इन सभी केसों में न्यायिक प्रक्रिया को अवरुद्ध करने की कोशिश की है। इन कोशिशों का अर्थ यह है कि अगर कोई महिला अपनी आबरू बचाने के लिए कानून का सहारा ले तो उसे यह सहारा नहीं मिलना चाहिए। हर मामले में भाजपा को हिंदू विरोधी साजिश नजर आने लगती है। ऐसा क्यों होता है?
ऐसा इसलिए होता है कि हिंदू धर्म और दर्शन के उच्च, महान सिद्धांतों और मूल्यों से संघ परिवारियों का वास्तव में कोई संबंध नहीं है। संघ परिवारी हिंदू धर्म का नाम सिर्फ राजनैतिक लाभ के लिए लेते हैं। इसीलिए वे कालांतर में आई बुराइयों और कुरीतियों का विरोध कभी नहीं करते। इसीलिए वह सती प्रथा के समर्थकों की कतार में शामिल होने के लिए मजबूर होते हैं। इसीलिए जब अंधविश्वास के खिलाफ कानून बनाने की बात होती है, तो वे विरोध में सड़कों पर उतर आते हैं। धर्म के उदाŸा महान मूल्यों पर चलने से वोट नहीं मिलते। वोट तो मिलते हैं कर्मकांड, अंधविश्वास और कुरीतियों के पोषण और धर्म के ठेकेदारों का समर्थन जुटाने से। भाजपा-जनसंघ ने जन्म के समय से ही
धर्म के दुकानदारों के यहाँ
जुटने वाली भीड़ को अपने वोट बैंक के रूप में देखा है। हे राम!
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
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