हाल में स्वामी विवेकानंद के 150 वें जन्मोत्सव पर राजधानी दिल्ली में आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने धार्मिक कट्टरता और नफरत से देश में पैदा हो रहे खतरे की ओर ध्यान आकर्षित किया। स्वामी विवेकानंद के जन्मोत्सव पर यह चेतावनी इस महापुरुष को बहुत प्रासंगिक श्रद्धांजलि है। हिंदू धर्म के इस मनीषी ने धर्म के वास्तविक तत्व को आम जन के सामने प्रस्तुत किया। स्वामीजी हर तरह की संकीर्णता, कट्टरपन, नफरत और धार्मिक वैमनस्य के खिलाफ थे।
स्वामीजी की धार्मिक सहिष्णुता और आज भी उनके विचारों की प्रासंगिकता पर आगे बढ़ने से पहले देखते हैं कि जिस दिन प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष धार्मिक कट्टरपन के खिलाफ आगाह कर रहे थे, उस दिन पणजी में क्या हुआ। प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने पणजी की सभा में गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के एक सुझाव को लेकर उन पर जमकर हमला बोला। शिंदे का सुझाव अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों की गिरफ्तारी के बारे में सतर्कता बरतने से सम्बंधित था। इसमें क्या बुरा था? यह सच है कि दर्जनों अल्पसंख्यकों की निराधार गिरफ्तारी के मामले प्रकाश में आ चुके हैं। वे अदालतों से निर्दोष साबित हुए हैं। भारतीय संविधान और वैधानिक प्रक्रिया में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति सहमत होगा कि किसी भी वर्ग में सताए जाने का भाव नहीं पैदा होना चाहिए। अगर कोई देश विरोधी काम में लिप्त है तो बेशक कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन शिंदे का एक सकारात्मक सुझाव मोदी को बहुत नागवार गुजरा।
इसकी वजह यह है कि मोदी और उनका संघ परिवार मूलतः मुस्लिम विरोधी है। वक्त की जरूरत और नजाकत ने मुस्लिम विरोध पर थोड़ी चाशनी डालने को मजबूर तो किया, लेकिन इस तरह के आंतरिक विकार को दूर कर देने वाली कोई औषधि अभी तक बनी ही नहीं है। गोस्वामी तुलसी दास ने लिखा है-विष रस भरे कनक घट जैसे। सैकड़ों साल बाद भी भारतीय इतिहास में जब 2002 के गुजरात दंगों को पढ़ा जाएगा, मोदी का नाम भी साथ में अनिवार्यतः आएगा। यों तो स्वामी विवेकानंद शिला स्मारक के दिनों से संघ परिवार ने स्वामी जी को हथियाने की राजनीति चला रखी है, मोदी ने छह-सात महीने से इस महान ‘योद्धा संन्यासी’ पर विशेष ध्यान दिया है।
सच यह है कि स्वामीजी और संघ परिवार विपरीत धु्रव हैं। स्वामी जी के हिन्दुत्व और संघ के हिन्दुत्व में बुनियादी फर्क है। देखिए स्वामी जी ने पैगंबर मुहम्मद साहब और इस्लाम के बारे में क्या विचार व्यक्त किए, ‘‘इस्लाम जनसाधारण के लिए संदेश के रूप में आया। प्रथम संदेश था समानता का। एक धर्म है प्रेम। जाति, रंग या अन्य किसी वस्तु का अब कोई प्रश्न नहीं। इसे अंगीकार करो। उस व्यावहारिक गुण ने बाजी मार ली। वह महान संदेश बिल्कुल सीधा-सादा था। एक ईश्वर में विश्वास करो, जो स्वर्ग और पृथ्वी का सृष्टा है।’
सामाजिक कार्य के संबंध में अखंडानंद ने स्वामीजी से मार्गदर्शन माँगा। समाज के सभी वर्गों को सम्मिलित करने के भाव को रेखांकित करते हुए स्वामी जी ने उन्हें बताया, ‘‘तुम्हें मुसलमान लड़कों को भी लेना चाहिए। परंतु उनके धर्म को कभी दूषित न करना। सभी धर्मों के लड़कों को लेना-हिंदू, मुसलमान, ईसाई या कुछ भी हों।’’ स्वामी जी का संदेश बहुत प्रसिद्ध हो चुका है, ‘‘आज भारत को वेदांती दिमाग और मुसलमानी जिस्म चाहिए।’’ यह एक राष्ट्रीय जाति की उनकी परिकल्पना थी। क्या मोदी और उनके सहयोगियों में स्वामी विवेकानंद के इन विचारों को अंगीकार करने का नैतिक साहस है? स्वाभाविक रूप से वह यह साहस नहीं जुटा
सकते क्योंकि तब उन्हें अपनी पूरी विरासत का त्याग करना पड़ेगा।
स्वामीजी की धार्मिक सहिष्णुता और आज भी उनके विचारों की प्रासंगिकता पर आगे बढ़ने से पहले देखते हैं कि जिस दिन प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष धार्मिक कट्टरपन के खिलाफ आगाह कर रहे थे, उस दिन पणजी में क्या हुआ। प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने पणजी की सभा में गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के एक सुझाव को लेकर उन पर जमकर हमला बोला। शिंदे का सुझाव अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों की गिरफ्तारी के बारे में सतर्कता बरतने से सम्बंधित था। इसमें क्या बुरा था? यह सच है कि दर्जनों अल्पसंख्यकों की निराधार गिरफ्तारी के मामले प्रकाश में आ चुके हैं। वे अदालतों से निर्दोष साबित हुए हैं। भारतीय संविधान और वैधानिक प्रक्रिया में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति सहमत होगा कि किसी भी वर्ग में सताए जाने का भाव नहीं पैदा होना चाहिए। अगर कोई देश विरोधी काम में लिप्त है तो बेशक कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन शिंदे का एक सकारात्मक सुझाव मोदी को बहुत नागवार गुजरा।
इसकी वजह यह है कि मोदी और उनका संघ परिवार मूलतः मुस्लिम विरोधी है। वक्त की जरूरत और नजाकत ने मुस्लिम विरोध पर थोड़ी चाशनी डालने को मजबूर तो किया, लेकिन इस तरह के आंतरिक विकार को दूर कर देने वाली कोई औषधि अभी तक बनी ही नहीं है। गोस्वामी तुलसी दास ने लिखा है-विष रस भरे कनक घट जैसे। सैकड़ों साल बाद भी भारतीय इतिहास में जब 2002 के गुजरात दंगों को पढ़ा जाएगा, मोदी का नाम भी साथ में अनिवार्यतः आएगा। यों तो स्वामी विवेकानंद शिला स्मारक के दिनों से संघ परिवार ने स्वामी जी को हथियाने की राजनीति चला रखी है, मोदी ने छह-सात महीने से इस महान ‘योद्धा संन्यासी’ पर विशेष ध्यान दिया है।
सच यह है कि स्वामीजी और संघ परिवार विपरीत धु्रव हैं। स्वामी जी के हिन्दुत्व और संघ के हिन्दुत्व में बुनियादी फर्क है। देखिए स्वामी जी ने पैगंबर मुहम्मद साहब और इस्लाम के बारे में क्या विचार व्यक्त किए, ‘‘इस्लाम जनसाधारण के लिए संदेश के रूप में आया। प्रथम संदेश था समानता का। एक धर्म है प्रेम। जाति, रंग या अन्य किसी वस्तु का अब कोई प्रश्न नहीं। इसे अंगीकार करो। उस व्यावहारिक गुण ने बाजी मार ली। वह महान संदेश बिल्कुल सीधा-सादा था। एक ईश्वर में विश्वास करो, जो स्वर्ग और पृथ्वी का सृष्टा है।’
सामाजिक कार्य के संबंध में अखंडानंद ने स्वामीजी से मार्गदर्शन माँगा। समाज के सभी वर्गों को सम्मिलित करने के भाव को रेखांकित करते हुए स्वामी जी ने उन्हें बताया, ‘‘तुम्हें मुसलमान लड़कों को भी लेना चाहिए। परंतु उनके धर्म को कभी दूषित न करना। सभी धर्मों के लड़कों को लेना-हिंदू, मुसलमान, ईसाई या कुछ भी हों।’’ स्वामी जी का संदेश बहुत प्रसिद्ध हो चुका है, ‘‘आज भारत को वेदांती दिमाग और मुसलमानी जिस्म चाहिए।’’ यह एक राष्ट्रीय जाति की उनकी परिकल्पना थी। क्या मोदी और उनके सहयोगियों में स्वामी विवेकानंद के इन विचारों को अंगीकार करने का नैतिक साहस है? स्वाभाविक रूप से वह यह साहस नहीं जुटा
सकते क्योंकि तब उन्हें अपनी पूरी विरासत का त्याग करना पड़ेगा।
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
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