अगर नफरत की खुराक पर कोई पला हो, तो उसका असर कभी जाता नहीं। संघ परिवारियों से नफरत के अलावा और किसी बात की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। देखिए नरेंद्र मोदी की भाषा, ‘‘कांग्रेस एक बीमारी है। नेहरू परिवार में नकली गांधी हैं। कांग्रेस के नेता कहते हैं कि कांग्रेस एक विचार है। वास्तव में यह एक विचार था, जब तक गांधी जी जीवित थे। ‘‘चलिए नेहरू परिवार पर हमला बोलने के लिए ही गांधीजी को याद किया। लेकिन यह मोदी की शुद्ध मक्कारी है। महात्मा गांधी, उनके विचारों और उनकी विरासत से संघ का हमेशा 36 का आँकड़ा रहा है। संघ की औपचारिक सदस्यता का कोई रजिस्टर नहीं होता, इसलिए संघ वाले सुविधानुसार खंडन कर देते हैं कि अमुक व्यक्ति संघ में नहीं है। संघ एक विचार है और नफरत के इसी विचार से प्रेरित होकर नाथूराम गोड्से ने गांधीजी की हत्या की थी।
मोदी और अन्य संघ परिवारियों को यह बताना चाहिए कि उन्होंने दूसरे सर संघ चालक माधव राव सदाशिव गोलवलकर के विचारों का त्याग किया है या नहीं। वे हिटलर और मुसोलिनी को प्रेरणा स्रोत के रूप में अब देखते हैं या नहीं? मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों से अब नफरत करते हैं या नहीं? आज उनका विचार क्या है? आखिर यूरोप के फासिस्टों से संघ परिवारियों का चोली-दामन का साथ रहा है।
मोरेश्वर राव मुंजे ने 1931 में इटली के फासिस्ट नेता मुसोलिनी से भेंट की थी और फासिस्ट आंदोलन को सराहा था। दूसरी ओर जवाहर लाल नेहरू ने मुसोलिनी से भेंट के आमंत्रण को ठुकरा दिया था। भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कोलकाता यूनिवर्सिटी के कुलपति के नाते मुसोलिनी की एक सरकारी संस्था से संबंध स्थापित किए थे। गोलवलकर को कांग्रेस का यह सिद्धांत बहुत बुरा लगा कि देश के सभी निवासियों को मिलाकर देश बनता है। संघ ने सिद्धांत प्रतिपादित किया कि भारत हिंदुओं का है। चेकोस्लोवाकिया के जर्मन भाषी इलाके सुडेटेनलैंड पर हिटलर के कब्जे की सराहना करते हुए गोलवलकर ने लिखा कि यह एक बहुजातीय देश की विफलता का प्रमाण है। उन्होंने लिखा, ‘जर्मनी ने अपनी नस्ल और संस्कृति की शुद्धता को बनाए रखने के लिए दुनिया को झटका मार दिया। यहाँ नस्ली गौरव की पराकाष्ठा के दर्शन होते हैं। जर्मनी ने यह भी दिखा दिया कि मूलतः भिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लिए एक राष्ट्र समिश्रित होना कितना असंभव है। हिन्दुस्तान को सीखने और लाभान्वित होने के लिए एक अच्छा पाठ।’ गोलवलकर की मंशा बहुत साफ थी-जैसे हिटलर ने 60 ला
मोदी और अन्य संघ परिवारियों को यह बताना चाहिए कि उन्होंने दूसरे सर संघ चालक माधव राव सदाशिव गोलवलकर के विचारों का त्याग किया है या नहीं। वे हिटलर और मुसोलिनी को प्रेरणा स्रोत के रूप में अब देखते हैं या नहीं? मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों से अब नफरत करते हैं या नहीं? आज उनका विचार क्या है? आखिर यूरोप के फासिस्टों से संघ परिवारियों का चोली-दामन का साथ रहा है।
मोरेश्वर राव मुंजे ने 1931 में इटली के फासिस्ट नेता मुसोलिनी से भेंट की थी और फासिस्ट आंदोलन को सराहा था। दूसरी ओर जवाहर लाल नेहरू ने मुसोलिनी से भेंट के आमंत्रण को ठुकरा दिया था। भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कोलकाता यूनिवर्सिटी के कुलपति के नाते मुसोलिनी की एक सरकारी संस्था से संबंध स्थापित किए थे। गोलवलकर को कांग्रेस का यह सिद्धांत बहुत बुरा लगा कि देश के सभी निवासियों को मिलाकर देश बनता है। संघ ने सिद्धांत प्रतिपादित किया कि भारत हिंदुओं का है। चेकोस्लोवाकिया के जर्मन भाषी इलाके सुडेटेनलैंड पर हिटलर के कब्जे की सराहना करते हुए गोलवलकर ने लिखा कि यह एक बहुजातीय देश की विफलता का प्रमाण है। उन्होंने लिखा, ‘जर्मनी ने अपनी नस्ल और संस्कृति की शुद्धता को बनाए रखने के लिए दुनिया को झटका मार दिया। यहाँ नस्ली गौरव की पराकाष्ठा के दर्शन होते हैं। जर्मनी ने यह भी दिखा दिया कि मूलतः भिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लिए एक राष्ट्र समिश्रित होना कितना असंभव है। हिन्दुस्तान को सीखने और लाभान्वित होने के लिए एक अच्छा पाठ।’ गोलवलकर की मंशा बहुत साफ थी-जैसे हिटलर ने 60 ला
ख यहूदियों को मार डाला, कुछ वैसा ही भारत को भी अपनी नस्ली और सांस्कृतिक शुद्धता के लिए करना चाहिए। 2002 के गुजरात दंगों के संदर्भ में गोलवलकर की घोषणा का पाठ होना चाहिए। मोदी ने अपने संगठन के विचार का उल्लेख किया। उन्हें स्पष्ट करना चाहिए कि गोलवलकर के इस विचार को वह स्वीकार करते हैं या नहीं।
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
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1 टिप्पणी:
राहुल, सोनिया मोदी , केजरीवाल माया ममता मुलायम किसी का गांधीजी से कोई सम्बन्ध नही. सब मतलब के लिए बेचारे बूढ़े की आत्मा को परेशान करते हैं. देश का आज हश्र देखकर उनकी आत्मा रोटी ही होगी. गांधी की हत्या गोडसे ने नहीं की इन नेताओं ने की है.
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