सोमवार, 7 अप्रैल 2014

गरीबों ही नहीं, राष्ट्रीयता का भी अनादर

  प्रधानमंत्री पद के लिए बीजेपी के उम्मीदवार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के वित्तमंत्री नितिन पटेल ने कहा है कि यूपी-बिहार से आए लोगों के कारण गुजरात में गरीबी बढ़ी है। इस बयान के कई दिन हो गए, नितिन पटेल ने न तो इसे वापस लेकर खेद प्रकट किया है और न मोदी ने ही कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पटेल के कहने का अर्थ एक ही हो सकता है और वह यह कि नरेंद्र मोदी के ‘‘ऑटॉनमस रिपब्लिक ऑफ गुजरात’’ में यूपी और बिहार के लोगों को, और इस तर्क के आधार पर भारत के किसी भी भाग के लोगों को काम के लिए जाने का अधिकार नहीं है।
    पटेल ने दरअसल बड़ी खतरनाक बात कही। याद करें ,संघ परिवार की लंगोटिया यार शिवसेना ने सबसे पहले मुंबई में दक्षिण भारतीयों के खिलाफ अभियान शुरू किया था। शिव सेना को हाजी मस्तान, यूसुफ पटेल और तस्करों की समूची काली दुनिया बुरा नजर नहीं आया था। मुंबई के अंडरवल्र्ड से भी कोई  परेशानी नहीं हुई थी। उसने मुंबई में हर बुराई की जड़ दक्षिण भारतीयों में देखी। कुछ वर्ष बाद नफरत के लिए मुसलमानों को निशाना बनाया जाने लगा। तब तक पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदी भाषियों के खिलाफ अभियान नहीं शुरू हुआ था। उगांडा और केन्या से भारतीय मूल के उद्यमियों ,जिनमें अधिकतर गुजराती थे, का निष्कासन भी नहीं शुरू हुआ था।
 
    इन अलगाववादी-आतंकवादी संगठनों के विपरीत संघ परिवार अपने को एकमात्र राष्ट्रवादी मानता है। संघ की गुजरात रूपी महती प्रयोगशाला के एक वरिष्ठ कर्मी ने यूपी-बिहार के श्रमिकों के विरुद्ध विष वमन कर सिद्ध कर दिया है कि संघ के राष्ट्रवाद के सिद्धांत में राष्ट्रीय विखंडन के तत्व समाहित हैं। वैसे भी धर्म, जाति, संस्कृति, भाषा और क्षेत्र से परे एक समान भारतीय राष्ट्रीयता और नागरिकता में जिनकी आस्था नहीं होती, वह सच्चे राष्ट्रवादी नहीं हो सकते। नितिन पटेल के बयान और उस पर उनके वरिष्ठों की चुप्पी ने चेहरे बेनकाब कर दिए।
  नितिन पटेल की यू.पी.-बिहार विरोधी थिअरी पर अमल का अर्थ यह होगा कि इन राज्यों के श्रमिकों को हिंसक तरीकों से गुजरात से बाहर कर दिया जाए। असम में ‘उल्फा’ और बोडो उग्रवादी यही तो करते रहे हैं। वह मारवाड़ी उद्यमियों से लेकर साधारण हिंदी भाषी मजदूरों तक, सबको असम की आर्थिक-सामाजिक समस्याओं के लिए दोषी मानते हैं। लेकिन ‘उल्फा’ और बोडो उग्रवादी अखिल भारतीयता में आस्था नहीं रखते। ‘उल्फा’ पाकिस्तानी एजेंसी आई.एस.आई. की मदद से स्वतंत्र असम राज्य की स्थापना करना चाहता है। पूर्वोत्तर के राज्यों में सक्रिय कोई भी हथियारबंद संगठन भारतीय गणराज्य और राष्ट्रीय एकता की अवधारणा को स्वीकार नहीं करता। 
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका  चुनाव विशेषांक से

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