भारतीय सेना की यह शानदार परंपरा है कि उसमें धर्म, जाति रंग या नस्ल पर कभी कोई विचार नहीं होता। हर तरह का विभाजक विचार वहाँ वर्जित है। बस देश की रक्षा का सैनिक धर्म होता है। कोई किसी भी धर्म का अनुयाई हो, देश की इज्जत के लिए जान न्योछावर करने के लिए सभी तैयार रहते हैं, लेकिन अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चली, तो यह सब खतरे में पड़ सकता है। तब देश की सुरक्षा के पूरे तंत्र के सामने गंभीर स्थिति पैदा हो जाएगी।
संघ के मासिक पत्र ‘राष्ट्र धर्म’ के संपादक आनंद मिश्र ‘अभय’ ने संघ के साप्ताहिक पत्र ‘पाञ्चजन्य’ में लिखा है, ‘वीर विनायक दामोदर सावरकर ने भी राष्ट्र रक्षा के लिए एक बहुआयामी मंत्र दिया था-हिंदू का सैनिकीकरण और सेना का हिंदूकरण। इस राष्ट्र रक्षा मंत्र का प्रयोग करने का अवसर आसन्न है। पर इसकी सिद्धि के लिए हमें पहले दिल्ली विजय करनी होगी। रणभेरी बज रही है, सुनें और समझें तथा समझ-बूझ कर प्रजातंत्र के सबसे बड़े हथियार का उपयोग करें। ‘ इसका एकमात्र भाष्य यह हुआ कि आगामी लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी को प्रबल बहुमत से विजयी बनाएँ। बहुमत इतना भारी हो कि संघ के सिद्धांतों और विचारों के अनुरूप कानून बनाए जा सके और संविधान में संशोधन भी किया जा सके। हिंदू के सैनिकीकरण और सेना के हिंदूकरण के मंत्र का प्रयोग तभी संभव हो सकेगा।
संघ परिवारी सदैव अपने को इस लाभदायक स्थिति में रखते हैं कि सुविधानुसार जब जो चाहें स्वीकार या अस्वीकार कर लें। लेकिन वैचारिक निरंतरता की आधारशिला एक ही रहती है। जैसे मोदी संघ की पाठशाला में कूट-कूट कर शिक्षित और संस्कारित हुए। उनका संपूर्ण विचार-व्यक्तित्व संघ की देन है। आज वह संघ के पोलिटिकल फ्रंट, बी.जे.पी. के नेता हैं। पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार वह संघ की कृपा से ही बन पाए। इसलिए यह मान कर चला जा सकता है कि ‘पाञ्चजन्य’ में जो छपा है, उससे मोदी और उनके सहयोगी अवश्य सहमत होंगे। अगर यह तर्क दिया जाए कि वह एक पत्र में व्यक्त किए गए विचार हैं, तो वह छल-कपट होगा। बी.जे.पी. सत्ता की दावेदार है, इसलिए उसे राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण देना चाहिए।
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
संघ के मासिक पत्र ‘राष्ट्र धर्म’ के संपादक आनंद मिश्र ‘अभय’ ने संघ के साप्ताहिक पत्र ‘पाञ्चजन्य’ में लिखा है, ‘वीर विनायक दामोदर सावरकर ने भी राष्ट्र रक्षा के लिए एक बहुआयामी मंत्र दिया था-हिंदू का सैनिकीकरण और सेना का हिंदूकरण। इस राष्ट्र रक्षा मंत्र का प्रयोग करने का अवसर आसन्न है। पर इसकी सिद्धि के लिए हमें पहले दिल्ली विजय करनी होगी। रणभेरी बज रही है, सुनें और समझें तथा समझ-बूझ कर प्रजातंत्र के सबसे बड़े हथियार का उपयोग करें। ‘ इसका एकमात्र भाष्य यह हुआ कि आगामी लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी को प्रबल बहुमत से विजयी बनाएँ। बहुमत इतना भारी हो कि संघ के सिद्धांतों और विचारों के अनुरूप कानून बनाए जा सके और संविधान में संशोधन भी किया जा सके। हिंदू के सैनिकीकरण और सेना के हिंदूकरण के मंत्र का प्रयोग तभी संभव हो सकेगा।
संघ परिवारी सदैव अपने को इस लाभदायक स्थिति में रखते हैं कि सुविधानुसार जब जो चाहें स्वीकार या अस्वीकार कर लें। लेकिन वैचारिक निरंतरता की आधारशिला एक ही रहती है। जैसे मोदी संघ की पाठशाला में कूट-कूट कर शिक्षित और संस्कारित हुए। उनका संपूर्ण विचार-व्यक्तित्व संघ की देन है। आज वह संघ के पोलिटिकल फ्रंट, बी.जे.पी. के नेता हैं। पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार वह संघ की कृपा से ही बन पाए। इसलिए यह मान कर चला जा सकता है कि ‘पाञ्चजन्य’ में जो छपा है, उससे मोदी और उनके सहयोगी अवश्य सहमत होंगे। अगर यह तर्क दिया जाए कि वह एक पत्र में व्यक्त किए गए विचार हैं, तो वह छल-कपट होगा। बी.जे.पी. सत्ता की दावेदार है, इसलिए उसे राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण देना चाहिए।
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
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