संघ परिवार से असंबद्ध अनेक लोग आशा व्यक्त करते रहे हैं कि केंद्रीय सत्ता हासिल करने के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार कोई विभाजक मुद्दा नहीं उठाएगी। चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने भी यह कह कर आश्वस्त किया कि भारतीय संविधान सर्वोपरि है और उनकी सरकार किसी के साथ भेदभाव नहीं बरतेगी। मोदी सरकार के गठन के मुश्किल से 24 घंटे हुए थे कि प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने संविधान के अनुच्छेद 370 के वजूद पर सवालिया निशान लगा दिया। अगर किसी और मंत्री ने बयान दिया होता तो शायद इतनी गंभीरता से न लिया जाता। जितेंद्र सिंह साधारण मंत्री नहीं हैं। वह अच्छी खासी मेडिकल प्रैक्टिस छोड़कर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के रास्ते बीजेपी में आए। वह बीजेपी के गहरे प्रभाव वाले, जम्मू क्षेत्र की ऊधमपुर सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं और पीएमओ में प्रधानमंत्री का विश्वासपात्र ही मंत्री हो सकता है। उनके बयान पर बवाल स्वाभाविक था।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की तरफ से सख्त प्रतिक्रिया आई। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर अनुच्छेद 370 खत्म किया गया तो कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रहेगा। चुनाव में बीजेपी की सहयोगी, महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रैटिक पार्टी ने भी जितेंद्र सिंह के बयान पर एतराज किया। संघ परिवार ने उमर अब्दुल्ला के बयान को सही संदर्भ में समझने के बजाए और कठोर बयान दे डाला-कुछ भी रहे न रहे, कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहेगा। संघ परिवार को
विरोध का अंदाजा नहीं रहा होगा। शुरू की वीरोचित घोषणाओं के बाद बीजेपी नेता नरम पड़ने लगे। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अनुच्छेद 370 पर विचार-विमर्श की बात कही तो कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि मोदी सरकार उचित समय पर अपनी राय जाहिर करेगी। क्या जितेंद्र सिंह के जरिए पानी की थाह ली जा रही थी? लगता ऐसा ही है। अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार संघ के नेताओं ने 370 पर बहस का इशारा किया था। खुद मोदी की सोच क्या है? मोदी की अब तक की सबसे प्रामाणिक जीवनी ‘नरेंद्र मोदी रूद मैन’ द टाइम्स के लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय के अनुसार मोदी ने उनसे कहा ‘‘लोग विचारधारा को कार्यक्रम मान बैठकर प्रायः भ्रमित हो जाते हैं। विचारधारा कार्यक्रम नहीं है और कार्यक्रम विचारधारा नहीं है। हमारी विचारधारा बिलकुल सीधी है-भारत सर्वोपरि। बाकी सब कार्यक्रम और परियोजनाएँ हैं। हम दो तिहाई बहुमत के बगैर उद्देश्य को कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
हम अनुच्छेद 370 को कैसे समाप्त कर सकते हैं? तो सबसे पहले हमें दो तिहाई बहुमत हासिल करना चाहिए। हमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनानी चाहिए। अगर आप के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है तो आप किसी खास एजेंडे को कैसे अख्तियार कर सकते हैं? काल-परिस्थिति की विशेष अवस्था में कार्यक्रम तय किए जाते हैं। बीजेपी अच्छे बहुमत से सत्ता में आई है। सहयोगी दलों को मिलाकर भी उसे लोकसभा में दो तिहाई बहुमत नहीं प्राप्त है। लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों की कुल संख्या देखें तो बीजेपी कोई विभाजक संविधान संशोधन करने की स्थिति में नहीं हैं। तब फिर 370 का विवादास्पद विषय क्यों उठाया गया? उत्तर एक ही निकलता है। मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को विजय दिलाने के लिए संघ ने पूरी ताकत झोंक दी। अब मोदी और उनके सहयोगी गुरुदक्षिणा से भाग नहीं सकते। उन्हें संघ को भरोसा दिलाना है कि एजेंडे को भुलाया नहीं गया है। यह मुद्दे को जिंदा रखने की राजनीति है। अगर अगले चुनाव में या कभी भविष्य में संविधान संशोधन भर की सीटें बीजेपी को मिल गईं तो मान कर चलिए कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने की पुरजोर कोशिश की जाएगी। जब
विचारधारा स्थाई और अपरिवर्तनीय हो और कार्यक्रम समय के अनुरूप तय किए जाते हों तो राजनीति की यह गति अनिवार्य और अवश्यम्भावी हो जाती है। संघ परिवार के लिए कुछ नहीं बदला है। 1947 में उसने जो कश्मीर नीति तय की थी, उसमें परिवर्तन की जरूरत नहीं महसूस की जाती। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में नारा दिया गया था, एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान नहीं चलेंगे। संघ परिवार आज भी उनके महान बलिदान का गर्व से उल्लेख करता है। वे कहते नहीं थकते कि जवाहर लाल नेहरू का सब बिगाड़ा हुआ है, अगर सरदार पटेल के हाथ में कश्मीर मसला होता तो कोई समस्या ही नहीं होती। सच यह है कि हिंदुत्ववादियों की चलती तो कश्मीर भारत में आता ही नहीं। शेरे कश्मीर शेख अब्दुल्ला ने श्रीनगर के लाल चैक से ऐलान किया था, हम महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के भारत में कश्मीर का विलय कर रहे हैं। मौजूदा पीढ़ी के लिए शेख अब्दुल्ला का अर्थ समझना जरूरी है। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को शेख पसंद नहीं करते थे। कश्मीरी मुसलमानों के एकछत्र और निर्विवाद नेता शेख अब्दुल्ला ने पाकिस्तान आंदोलन में मुस्लिम लीग का साथ देने से इनकार कर दिया था।
भारत-पाकिस्तान में राज्यों के विलय या स्वतंत्रता का जो फार्मूला बना था, उसके अनुसार मुस्लिम बहुल जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान के साथ जाना चाहिए था या वह स्वतंत्र रह सकता था। रियासत के राजा हरि सिंह एशिया के स्विट्जरलैंड के रूप में कश्मीर रियासत को स्वतंत्र रखना चाहते थे। इसी बीच पाकिस्तान ने हमला कर दिया। हमलावर श्रीनगर के नाके तक पहुँच चुके थे। राज परिवार जान बचाकर श्रीनगर से भागा था। जम्मू में पड़ाव डालने के बाद राजा ने अपने एडीसी से कहा था, अगर पाकिस्तानी हमलावर रात में यहां तक आ जाएँ तो मुझे शैय्या पर ही गोली मार देना। उन हालात में लाल चैक में शेख अब्दुल्ला ने मोर्चा संभाला था। अगर हमलावर बारामूला में लूट और बलात्कार के घिनौने खेल में न फँसे होते तो भारतीय सेना के पहुँचने से पहले श्रीनगर पर पाकिस्तान का कब्जा हो चुका होता। शेख अब्दुल्ला होने का मतलब यह है कि उन्होंने भारत में विलय के लिए कश्मीर घाटी और जम्मू के मुसलमानों की सहमति जुटाई। उस शेख पर उँगली उठाना बहुत घटिया दर्जे की अहसान फरामोशी होगी।
कश्मीर मसले को हिंदू-मुस्लिम चश्मे से देखने वालों को याद रखना चाहिए कि कश्मीर भारत में आया शेरे कश्मीर की बदौलत और कश्मीर की खातिर पहली शहादत हुई एक मुसलमान की। वह थे भारतीय सेना के ब्रिगेडियर उस्मान। इलाहाबाद में उनकी समाधि बनी हुई है, उपेक्षित, भुलाई हुई।
उमर अब्दुल्ला के बयान का भी गलत अर्थ निकाला गया। मानों वे कश्मीर को भारत से अलग करने की बात कर रहे हों। अनुच्छेद 370 दरअसल भारत से कश्मीर के रिश्ते को स्थापित और परिभाषित करता है। वह एक तरह की नाभिनाल है। अगर कश्मीर का मुसलमान तय कर ले 370 की अब जरूरत नहीं है, तो उसकी समाप्ति बेशक संभव हो सकती है। लेकिन मौजूदा स्थितियों में वह मुमकिन नहीं है। बीजेपी की सरकार को महसूस करना चाहिए कि सुलझे हुए मसलों को उलझाना विनाशक आग से खेलने से कम नहीं होता। पहले से बारूद के ढेर पर बैठे कश्मीर पर दहकते कोयले नहीं फेंके जाने चाहिए।
नेहरू-अब्दुल्ला सोच के दायरे में बनी राष्ट्रीय सहमति को पलट कर हिंदुत्ववादी एजेंडे को थोपने की कोशिशों से भारत निःसंदेह कमजोर होगा। अगर लाठी और बंदूक से कश्मीर में स्थायी शांति संभव होती, तो वह कब की कायम हो चुकी होती। उम्मीद की जाए कि दो विधान की तरह 370 भी कश्मीर सहित पूरे भारत में शांति के लिए बना रहेगा।
-प्रदीप कुमार
मोबाइल: 09810994447
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की तरफ से सख्त प्रतिक्रिया आई। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर अनुच्छेद 370 खत्म किया गया तो कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रहेगा। चुनाव में बीजेपी की सहयोगी, महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रैटिक पार्टी ने भी जितेंद्र सिंह के बयान पर एतराज किया। संघ परिवार ने उमर अब्दुल्ला के बयान को सही संदर्भ में समझने के बजाए और कठोर बयान दे डाला-कुछ भी रहे न रहे, कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहेगा। संघ परिवार को
विरोध का अंदाजा नहीं रहा होगा। शुरू की वीरोचित घोषणाओं के बाद बीजेपी नेता नरम पड़ने लगे। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अनुच्छेद 370 पर विचार-विमर्श की बात कही तो कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि मोदी सरकार उचित समय पर अपनी राय जाहिर करेगी। क्या जितेंद्र सिंह के जरिए पानी की थाह ली जा रही थी? लगता ऐसा ही है। अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार संघ के नेताओं ने 370 पर बहस का इशारा किया था। खुद मोदी की सोच क्या है? मोदी की अब तक की सबसे प्रामाणिक जीवनी ‘नरेंद्र मोदी रूद मैन’ द टाइम्स के लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय के अनुसार मोदी ने उनसे कहा ‘‘लोग विचारधारा को कार्यक्रम मान बैठकर प्रायः भ्रमित हो जाते हैं। विचारधारा कार्यक्रम नहीं है और कार्यक्रम विचारधारा नहीं है। हमारी विचारधारा बिलकुल सीधी है-भारत सर्वोपरि। बाकी सब कार्यक्रम और परियोजनाएँ हैं। हम दो तिहाई बहुमत के बगैर उद्देश्य को कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
हम अनुच्छेद 370 को कैसे समाप्त कर सकते हैं? तो सबसे पहले हमें दो तिहाई बहुमत हासिल करना चाहिए। हमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनानी चाहिए। अगर आप के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है तो आप किसी खास एजेंडे को कैसे अख्तियार कर सकते हैं? काल-परिस्थिति की विशेष अवस्था में कार्यक्रम तय किए जाते हैं। बीजेपी अच्छे बहुमत से सत्ता में आई है। सहयोगी दलों को मिलाकर भी उसे लोकसभा में दो तिहाई बहुमत नहीं प्राप्त है। लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों की कुल संख्या देखें तो बीजेपी कोई विभाजक संविधान संशोधन करने की स्थिति में नहीं हैं। तब फिर 370 का विवादास्पद विषय क्यों उठाया गया? उत्तर एक ही निकलता है। मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को विजय दिलाने के लिए संघ ने पूरी ताकत झोंक दी। अब मोदी और उनके सहयोगी गुरुदक्षिणा से भाग नहीं सकते। उन्हें संघ को भरोसा दिलाना है कि एजेंडे को भुलाया नहीं गया है। यह मुद्दे को जिंदा रखने की राजनीति है। अगर अगले चुनाव में या कभी भविष्य में संविधान संशोधन भर की सीटें बीजेपी को मिल गईं तो मान कर चलिए कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने की पुरजोर कोशिश की जाएगी। जब
विचारधारा स्थाई और अपरिवर्तनीय हो और कार्यक्रम समय के अनुरूप तय किए जाते हों तो राजनीति की यह गति अनिवार्य और अवश्यम्भावी हो जाती है। संघ परिवार के लिए कुछ नहीं बदला है। 1947 में उसने जो कश्मीर नीति तय की थी, उसमें परिवर्तन की जरूरत नहीं महसूस की जाती। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में नारा दिया गया था, एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान नहीं चलेंगे। संघ परिवार आज भी उनके महान बलिदान का गर्व से उल्लेख करता है। वे कहते नहीं थकते कि जवाहर लाल नेहरू का सब बिगाड़ा हुआ है, अगर सरदार पटेल के हाथ में कश्मीर मसला होता तो कोई समस्या ही नहीं होती। सच यह है कि हिंदुत्ववादियों की चलती तो कश्मीर भारत में आता ही नहीं। शेरे कश्मीर शेख अब्दुल्ला ने श्रीनगर के लाल चैक से ऐलान किया था, हम महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के भारत में कश्मीर का विलय कर रहे हैं। मौजूदा पीढ़ी के लिए शेख अब्दुल्ला का अर्थ समझना जरूरी है। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को शेख पसंद नहीं करते थे। कश्मीरी मुसलमानों के एकछत्र और निर्विवाद नेता शेख अब्दुल्ला ने पाकिस्तान आंदोलन में मुस्लिम लीग का साथ देने से इनकार कर दिया था।
भारत-पाकिस्तान में राज्यों के विलय या स्वतंत्रता का जो फार्मूला बना था, उसके अनुसार मुस्लिम बहुल जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान के साथ जाना चाहिए था या वह स्वतंत्र रह सकता था। रियासत के राजा हरि सिंह एशिया के स्विट्जरलैंड के रूप में कश्मीर रियासत को स्वतंत्र रखना चाहते थे। इसी बीच पाकिस्तान ने हमला कर दिया। हमलावर श्रीनगर के नाके तक पहुँच चुके थे। राज परिवार जान बचाकर श्रीनगर से भागा था। जम्मू में पड़ाव डालने के बाद राजा ने अपने एडीसी से कहा था, अगर पाकिस्तानी हमलावर रात में यहां तक आ जाएँ तो मुझे शैय्या पर ही गोली मार देना। उन हालात में लाल चैक में शेख अब्दुल्ला ने मोर्चा संभाला था। अगर हमलावर बारामूला में लूट और बलात्कार के घिनौने खेल में न फँसे होते तो भारतीय सेना के पहुँचने से पहले श्रीनगर पर पाकिस्तान का कब्जा हो चुका होता। शेख अब्दुल्ला होने का मतलब यह है कि उन्होंने भारत में विलय के लिए कश्मीर घाटी और जम्मू के मुसलमानों की सहमति जुटाई। उस शेख पर उँगली उठाना बहुत घटिया दर्जे की अहसान फरामोशी होगी।
कश्मीर मसले को हिंदू-मुस्लिम चश्मे से देखने वालों को याद रखना चाहिए कि कश्मीर भारत में आया शेरे कश्मीर की बदौलत और कश्मीर की खातिर पहली शहादत हुई एक मुसलमान की। वह थे भारतीय सेना के ब्रिगेडियर उस्मान। इलाहाबाद में उनकी समाधि बनी हुई है, उपेक्षित, भुलाई हुई।
उमर अब्दुल्ला के बयान का भी गलत अर्थ निकाला गया। मानों वे कश्मीर को भारत से अलग करने की बात कर रहे हों। अनुच्छेद 370 दरअसल भारत से कश्मीर के रिश्ते को स्थापित और परिभाषित करता है। वह एक तरह की नाभिनाल है। अगर कश्मीर का मुसलमान तय कर ले 370 की अब जरूरत नहीं है, तो उसकी समाप्ति बेशक संभव हो सकती है। लेकिन मौजूदा स्थितियों में वह मुमकिन नहीं है। बीजेपी की सरकार को महसूस करना चाहिए कि सुलझे हुए मसलों को उलझाना विनाशक आग से खेलने से कम नहीं होता। पहले से बारूद के ढेर पर बैठे कश्मीर पर दहकते कोयले नहीं फेंके जाने चाहिए।
नेहरू-अब्दुल्ला सोच के दायरे में बनी राष्ट्रीय सहमति को पलट कर हिंदुत्ववादी एजेंडे को थोपने की कोशिशों से भारत निःसंदेह कमजोर होगा। अगर लाठी और बंदूक से कश्मीर में स्थायी शांति संभव होती, तो वह कब की कायम हो चुकी होती। उम्मीद की जाए कि दो विधान की तरह 370 भी कश्मीर सहित पूरे भारत में शांति के लिए बना रहेगा।
-प्रदीप कुमार
मोबाइल: 09810994447
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
1 टिप्पणी:
कल 23/जून/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
एक टिप्पणी भेजें