शुक्रवार, 27 जून 2014

ठिठुरता हुआ गणतंत्र

गणतंत्र-समारोह में हर राज्य की झाँकी निकलती है। ये अपने राज्य का सही प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। ‘सत्यमेव जयते’ हमारा मोटो है मगर झाँकियाँ झूठ बोलती हैं। इनमें विकास-कार्य, जनजीवन इतिहास आदि रहते हैं। असल में हर राज्य को उस विशिष्ट बात को यहाँ प्रदर्शित करना चाहिए जिसके कारण पिछले साल वह राज्य मशहूर हुआ। गुजरात की झाँकी में इस साल दंगे का दृश्य होना चाहिए, जलता हुआ घर और आग में झोंके जाते बच्चे। पिछले साल मैंने उम्मीद की थी कि आन्ध्र की झाँकी में हरिजन जलते हुए दिखाए जाएँगे। मगर ऐसा नहीं दिखा। यह कितना बड़ा झूठ है कि कोई राज्य दंगे के कारण अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति पाए, लेकिन झाँकी सजाए लघु उद्योगों की। दंगे से अच्छा गृह-उद्योग तो इस देश में दूसरा है नहीं। साधो, इसी नैतिकता ने यह सिखाया कि स्त्री डब्बे मंे बन्द करने की चीज है। हमारा समाज मुरब्बे का बड़ा शौकीन है। वह बगीचे से फल तोड़कर लाता है, उसका मुरब्बा बनाकर रख लेता है और खाता रहता है। अब इस आधुनिक शिक्षा ने सब गड़बड़ कर दिया। स्त्रियाँ मुरब्बे के डब्बे में रहती नहीं हंै। वे जब बाहर दिख जाती हंै, तब इस देश के पुरुष की आत्मा को बड़ी चोट पहुँचती है। शताब्दियों के उसके करे धरे पर पानी फिर रहा है। नैतिकता का नाश हो रहा है। संस्कृति का पतन हो रहा है। साधो, उसका कर्तव्य है कि वह इसका विरोध करे। वह विद्रोह में आवाजे कसता है, छेड़छाड़ करता है, गाली बकता है। अब बताओ, उसका यह सात्विक पवित्र विद्रोह क्या निंदा का पात्र है?
    स्वामी जी, आपने मेरी बहुत ज्ञान वृद्धि की। एक बात और बताइए। कई राज्यों में गौरक्षा कानून है। बाकी में लागू हो जाएगा। तब यह आंदोलन भी समाप्त हो जाएगा। आगे आप किस की बात करेंगे? अरे बच्चा, आंदोलन विषय है। सिंह दुर्गा का वाहन है। उसे सर्कस वाले पिंजरे में बंद करके रखते हैं और उससे खेल कराते हैं यह अधर्म है। सब सर्कसों के खिलाफ आंदोलन करके, देश में सर्कस बंद करवा देंगे। फिर भगवान का एक अवतार मत्स्यावतार भी है। मछली भगवान का प्रतीक है। हम मछुवारों के खिलाफ आंदोलन छेड़ देंगे। सरकार का मत्स्य पालन विभाग बंद करवाएँगे।      स्वामी जी
उल्लू लक्ष्मी का वाहन है। उसके लिए भी तो कुछ करना चाहिए़? यह सब उसी के लिए तो कर रहे हैं, बच्चा! इस देश में उल्लू को कोई कष्ट नहीं है। वह मजे में है। नाम बदलने में क्या है जो आज हिन्दू धर्म की रक्षा के नारे लगाते है और जो इस्लाम की रक्षा के लिए सम्मेलन करते हैं, वे सब अंग्रेजों की गुलामी कायम रखने में सहयोगी थे, सारे स्वतंत्रता आन्दोलनो को दबाने में धर्मात्मा लोग अंग्रेजों के सहायक थे। यानी धर्म की रक्षा गुलाम बने रहने में होती थी।
-हरिशंकर परसाई
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित

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