कारपोरेट मीडिया
कारपोरेट सेक्टर व मीडिया द्वारा फैलाए गए उन्माद में सत्ता परिवर्तन करके नई सरकार का सृजन किया गया जो अब अस्तित्व में आ गई, सत्ता में आते ही सरकार ने प्रधानमंत्री सचिवालय के अधिकारी नृपेन्द्र मिश्रा की नियुक्ति की। नियुक्ति के पूर्व केन्द्र सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा जिससे उन नियमों को शिथिल या निरस्त किया जा सके जो नृपेन्द्र मिश्र की नियुक्त में बाधक हैं। पता नहीं कौन सी मजबूरियाँ थी जिनके चलते नवनिर्वाचित सत्तारुढ़ दल को यह कदम उठाना पड़ा। ट्राई के अध्यक्ष पद पर आसीन व्यक्ति वहाँ से हटने के बाद सरकारी या गैर सरकारी पद पर नहीं रह सकता है। इस नियम को अध्यादेश के माध्यम से प्रभाव हीन किया गया। हल्ला तब मचना शुरू हुआ जब लखनऊ से प्रकाशित एक अखबार ने 29 मई 2014 को अपने मुख्य पृष्ठ पर यह प्रकाशित किया कि नृपेन्द्र मिश्र कहीं सी0आई0ए0 एजेण्ट तो नहीं हैं फिर धीरे-धीरे यह खबर न्यू मीडिया होते हुए हिन्दी उर्दू अखबारों में छोटी या बड़ी खबर के रूप में प्रकाशित हुई। लखनऊ की सामाजिक कार्यकत्र्री ‘नूतन ठाकुर’ ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इसकी जाँच कराने की माँग कर डाली। सरकार के गठन होते ही इस तरह के विवाद शुभ संकेत नहीं होते हैं, मंत्रिमण्डल के गठन के बाद कई मंत्रियों के सम्बन्ध में विवादग्रस्त चीजे सामर्ने आइं। कुछ लोगों को भाजपा ने ही पिछली सरकार में मंत्री पद पर रहते हुए भ्रष्टाचारी मंत्री घोषित किया था और अब वही लोग फिर इस सरकार में भी मंत्री पद पर आसीन किए गए हैं। गलत शपथ-पत्र के कई मामले जो मंत्रियों द्वारा दाखिल किए गए थे सामने आए। जिस सामाजिक सुचिता व आदर्शों की दुहाई देकर सत्तारुढ़ दल ने 31 प्रतिशत मतदाताओं का विश्वास हासिल किया था वह अपने को कहीं न कहीं असहाय महसूस कर रहा है। वहीं उग्र या फायर ब्राण्ड सोच के मतदाता या कार्यकर्ताओं की बोलती बन्द है। क्योंकि एक के बदले दस सिर लाने वाले लोग या मियाँ शरीफ को चिकन बिरयानी खिलाने वाले कांग्रेसियों की निन्दा करते-करते न थकने वाले लोग, शपथ-ग्रहण समारोह में मियाँ शरीफ को मटन-मछली, चिकन के अच्छे व्यंजन परोसकर, पाकिस्तान उपहार भेजने के कदम से हतप्रभ हंै। क्योंकि उनके देखने की आदत हिन्दू-मुसलमान के चश्मे हैं। उनकी सोच यह रहती है कि धर्म के आधार पर भारतीयों की बहुसंख्यक आबादी के भावनाओं को उत्तेजित कर उसको मतदाता के रूप में तब्दील करो। उनकी समझ में यह कभी नहीं आएगा कि भारत बहुधर्मी बहुभाषीय देश है और इसकी खूबसूरती तभी और चमकदार होगी जब विविधता में एकता बनी रहे।
खतरनाक मीडिया
कारपोरेट सेक्टर व मीडिया द्वारा फैलाए गए उन्माद में सत्ता परिवर्तन करके नई सरकार का सृजन किया गया जो अब अस्तित्व में आ गई, सत्ता में आते ही सरकार ने प्रधानमंत्री सचिवालय के अधिकारी नृपेन्द्र मिश्रा की नियुक्ति की। नियुक्ति के पूर्व केन्द्र सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा जिससे उन नियमों को शिथिल या निरस्त किया जा सके जो नृपेन्द्र मिश्र की नियुक्त में बाधक हैं। पता नहीं कौन सी मजबूरियाँ थी जिनके चलते नवनिर्वाचित सत्तारुढ़ दल को यह कदम उठाना पड़ा। ट्राई के अध्यक्ष पद पर आसीन व्यक्ति वहाँ से हटने के बाद सरकारी या गैर सरकारी पद पर नहीं रह सकता है। इस नियम को अध्यादेश के माध्यम से प्रभाव हीन किया गया। हल्ला तब मचना शुरू हुआ जब लखनऊ से प्रकाशित एक अखबार ने 29 मई 2014 को अपने मुख्य पृष्ठ पर यह प्रकाशित किया कि नृपेन्द्र मिश्र कहीं सी0आई0ए0 एजेण्ट तो नहीं हैं फिर धीरे-धीरे यह खबर न्यू मीडिया होते हुए हिन्दी उर्दू अखबारों में छोटी या बड़ी खबर के रूप में प्रकाशित हुई। लखनऊ की सामाजिक कार्यकत्र्री ‘नूतन ठाकुर’ ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इसकी जाँच कराने की माँग कर डाली। सरकार के गठन होते ही इस तरह के विवाद शुभ संकेत नहीं होते हैं, मंत्रिमण्डल के गठन के बाद कई मंत्रियों के सम्बन्ध में विवादग्रस्त चीजे सामर्ने आइं। कुछ लोगों को भाजपा ने ही पिछली सरकार में मंत्री पद पर रहते हुए भ्रष्टाचारी मंत्री घोषित किया था और अब वही लोग फिर इस सरकार में भी मंत्री पद पर आसीन किए गए हैं। गलत शपथ-पत्र के कई मामले जो मंत्रियों द्वारा दाखिल किए गए थे सामने आए। जिस सामाजिक सुचिता व आदर्शों की दुहाई देकर सत्तारुढ़ दल ने 31 प्रतिशत मतदाताओं का विश्वास हासिल किया था वह अपने को कहीं न कहीं असहाय महसूस कर रहा है। वहीं उग्र या फायर ब्राण्ड सोच के मतदाता या कार्यकर्ताओं की बोलती बन्द है। क्योंकि एक के बदले दस सिर लाने वाले लोग या मियाँ शरीफ को चिकन बिरयानी खिलाने वाले कांग्रेसियों की निन्दा करते-करते न थकने वाले लोग, शपथ-ग्रहण समारोह में मियाँ शरीफ को मटन-मछली, चिकन के अच्छे व्यंजन परोसकर, पाकिस्तान उपहार भेजने के कदम से हतप्रभ हंै। क्योंकि उनके देखने की आदत हिन्दू-मुसलमान के चश्मे हैं। उनकी सोच यह रहती है कि धर्म के आधार पर भारतीयों की बहुसंख्यक आबादी के भावनाओं को उत्तेजित कर उसको मतदाता के रूप में तब्दील करो। उनकी समझ में यह कभी नहीं आएगा कि भारत बहुधर्मी बहुभाषीय देश है और इसकी खूबसूरती तभी और चमकदार होगी जब विविधता में एकता बनी रहे।
खतरनाक मीडिया
मीडिया अपने आकाओं के इशारे पर नमोः सरकार स्थापित करने के बाद उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार को हटाने के लिए प्रयासरत हो गया है अधिकांश चैनलों ने बलात्कार, कानून व्यवस्था के ऊपर अपना फोकस कर जनता के अन्दर सत्तारूढ़ दल के खिलाफ घृणा या उन्माद पैदा करने का प्रयास शुरू कर दिया है, उत्तर प्रदेश में हो रही घटनाओं का समर्थन किसी भी कीमत पर नहीं किया जा सकता है किन्तु बद से बदतर भाजपा शासित छत्तीसगढ़, राजस्थान, गोवा की घटनाएँ भयावह पूर्ण स्थित को प्रकट करती है, लेकिन मीडिया उस ओर जरा सा भी ध्यान नहीं देता है क्योंकि उन्हीं सरकारों द्वारा पोषित यह मीडिया संचालित हो रहा है। मीडिया द्वारा जान बूझकर जनता को उकसाना या अर्द्धसत्यों का सहारा लेकर प्रचार करना कहीं से भी न्यायोचित नहीं है अगर यही स्थित बनी रही तो मीडिया लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित होगी आज उसके अधिकांश समाचार या तो पेड न्यूज हैं या किसी के हित साधन के लिए प्रसारित किए जा रहे हैं
-मुहम्मद शुऐब -रणधीर सिंह ‘सुमन’
सम्पादकीय -लोकसंघर्ष पत्रिका
सम्पादकीय -लोकसंघर्ष पत्रिका
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