शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

‘लव जिहाद’ के झूठ का सच


                                           मेरठ का खरखौदा सामूहिक बलात्कार और धर्म परिवर्तन मामला, जिसे  ‘लव जिहाद’ का नाम दिया गया, के झूठे होने की बात सामने आ रही है। पीडि़ता ने खुद ही पुलिस के पास जाकर यह बयान दिया है कि न तो उसका अपहरण और बलात्कार किया गया था और न ही उसका जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया था। बल्कि, वह अपनी मर्जी से दूसरे समुदाय के अपने प्रेमी के साथ गई थी। उसने अपने परिवार से ही जान का खतरा होने की शिकायत दर्ज कराई है। उसने यह भी बताया कि घरवालों को नेताओं से पैसे मिलते थे जो कि अब बंद हो गए हैं। ऐसे में उससे पूछा जाता था कि आखिर अब पैसा क्यों नहीं आ रहा? इस वजह से घरवाले उसके साथ मारपीट भी करते थे और उसे जान से मारने की साजिश भी रच रहे थे। इसलिए, वह घर से चुपचाप भाग आई है। वहीं एक न्यूज चैनल ने सात अगस्त 2014 को भाजपा के व्यापार प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष विनीत अग्रवाल द्वारा पीडि़त लड़की की माँ को पैसे देने की बात कहते हुए भाजपा को सवालों के घेरे में ला दिया है। अब आरोप और सबूत दोनों भाजपा को आईना दिखा रहे हैं। अब देखना है, सपा सरकार को कि क्या वह ‘लव जिहाद’ के नाम पर पीडि़ता के परिजनों को पैसा देकर झूठा मामला बनाने वाले सांप्रदायिक नेता के खिलाफ कोई कार्यवाही करने की हिम्मत करती भी है या नहीं? इस झूठे आरोप में फँसाए गए मुस्लिमों, जिनकी देश की जेलों में आबादी से ज्यादा संख्या होने की नियति हो गई है, को अगर ताक पर रख भी दिया जाए तो क्या इस सवाल को आधार बनाकर पूरे मुस्लिम समुदाय और मदरसों पर जो आरोप लगाए गए थे, वे खत्म हो गए? यह एक बड़ा सवाल है?
    तो वहीं, खरखौदा प्रकरण को लेकर जिन हिन्दुत्ववादी संगठनों ने ‘लव जिहाद’ का माहौल बनाकर इसे अन्तर्राष्ट्रीय साजिश करार दिया था, के मकसद की तफ्तीश अनिवार्य हो गई हैं। पूरे प्रकरण को उनके द्वारा ‘दिखाने’ का और उसे ‘हल’ करने का क्या नजरिया था? ऐसा इसलिए कि इस प्रकरण की सच्चाई जो पहले भी सामने थी और आज भी है, से समाज में जो विघटन हुआ, उसे जोड़ना इतना आसान नहीं होगा। क्योंकि निर्माण एक धीमी गति से चलने वाली सृजनात्मक प्रक्रिया है और विघ्वंस एक तीव्र आक्रोश की प्रतिक्रिया है। यह हमारे समाज के हर उस ढांचे को नेस्तानाबूद कर देना चाहती है, जो हमें जोड़ती है। यहाँ हिन्दुओं की ‘बड़ी चिंता’ करने वाले विश्व हिन्दू परिषद सरीखे संगठनों से सवाल है कि अगर वे इस षड्यंत्र में नहीं शामिल हैं तो हिन्दू धर्म की एक लड़की को मोहरा बनाकर उसे बदनाम करके राजनीति करने वाली भाजपा के खिलाफ क्या वे जाएँगे, बहुसंख्यक हिन्दू समाज को बरगलाने वाले इन संगठनों की माँगों पर गौर करें तो इनकी सांप्रदायिक जेहनियत का पता चल जाएगा कि यह ‘हिन्दू लड़की’ को न्याय नहीं बल्कि मुस्लिम समाज को उत्पीडि़त करने के लिए ऐसा कर रहे थे।
      विश्व हिंदू परिषद ने पीडि़ता को ‘हिन्दू अध्यापिका’ कहते हुए महिला उत्पीड़न की घटना को सांप्रदायिक रूप दिया। वहीं मदरसे में मोलवियों द्वारा सामूहिक बलात्कार और जबरन धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए, देशभर के मदरसों पर छापा मारकर खोई लड़कियों को तलाश करने की माँग की। ऐसा माहौल बनाया जैसे पूरे देश में जिन लड़कियों का अपहरण हो रहा है, उसके लिए मुस्लिम समाज और मदरसे ही जिम्मेदार हैं। विश्व हिंदू परिषद के ‘अन्तर्राष्ट्रीय’ अध्यक्ष प्रवीण तोगडि़या ने और आगे बढ़कर मेरठ, हापुड़, मुजफ्फरनगर व अन्य ऐसे मदरसों पर ताला लगाने की माँग करते हुए कहा कि मदरसे जिस इस्लामिक मूल संगठन से जुड़े हैं, उनके प्रमुखों और इन मदरसों के सभी मोलवियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए। बजरंग दल ने मदरसों को बदनाम करने के लए अफवाह फैलाई कि चार और हिंदू लड़कियों की बरामदगी मदरसे से हुई।
    विश्व हिन्दू परिषद, हिन्दू जागरण मंच, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भारतीय जनता युवा मोर्चा ने ’लव-जिहाद’ से लड़ने के लिए ’मेरठ बचाओ मंच’ तक का गठन कर दिया। हर बात के लिए इस्लाम को दोष देने वाले इन संगठनों ने इसे अन्तर्राष्ट्रीय साजिश करार देते हुए कहा कि मेरठ की ‘हिन्दू अध्यापिका’ अकेली इस गैंग की शिकार नहीं है। हिन्दू लड़कियों के साथ मदरसों में सामूहिक बलात्कार किया जा रहा है और उन्हें जबरन मुसलमान बनाकर अरबी शेखों के लिए दुबई भेजा जा रहा है।
    ‘सिर्फ यूपी के मदरसों में ही ऐसे ‘जिहादी गुनाह’ होते हैं, ऐसा नहीं है,’ कहते हुए पूरे देश में ‘लव जिहाद’ का माहौल बनाया गया। विश्व हिन्दू परिषद और हिन्दू हेल्प लाइन ने दावा किया कि केरल, तमिलनाडु, आंध्र, महाराष्ट्र, बंगाल समेत पूरे देश से उनके पास शिकायतें हैं। ऐसे में भारत का केंद्रीय गृह विभाग ऐसे मामलों में गंभीरता से संज्ञान लेकर देश के सभी मदरसों की तलाशी ले और ऐसी लड़कियों को मुक्त कराए।
    बची-खुची कसर संचार माध्यमों ने घटना का नाट्य रूपांतरण कर पूरी कर दी। और हाँ कई ने तो नाट्य रूपान्तरण कर ‘लव जिहादियों’ के स्टिंग करने का दावा करते हुए, खूब टीआरपी बटोरी। चेहरे पर हल्की दाढ़ी दिखाते हुए, कैमरा उसके होठों पर जूम हो जाता और वह बताने लगता कि वह एक मुसलमान है। पर वह अपना हिंदू नाम बताता है और हिंदू लड़की को अपने प्रेम जाल में फँसाने के लिए कलावा बांधे हुए है, ऐसा वह एक साजिश के तहत कर रहा है। इस तरह से अफवाह वाले कार्यक्रम और पीडि़त लड़कियों के फर्जी नाट्य रूपान्तरण से समाज में एक दूसरे के प्रति गहरी खाई, टीवी स्क्रीनों ने प्रायोजित की। स्क्रीनों पर चीखती आवाजें जो ‘लव जिहाद’ की आड़ में एक पूरे समुदाय को हैवान के बतौर पेश कर रही थीं, को भूलना शायद मुश्किल होगा। लड़कियों के गायब होने, मानव अंग तस्करी और अमानवीय सेक्स व्यापार की घटनाओं व आकड़ों को एक सांप्रदायिक नजरिया दिया जा रहा था।
    जिस मदरसे ने एक हिन्दू लड़की को आर्थिक सहयोग देने के लिए, बिना किसी धार्मिक भेद-भाव के उसे अध्यापिका के रुप में नियुक्त किया, वही उसका सबसे बड़ा गुनाह हो गया। हिन्दुत्वादी समूहों ने मदरसों के प्रति हीन भावना पैदा करते हुए प्रचारित किया कि ग्रेजुएट होकर भी मेरठ की हिन्दू लड़की को मदरसे जैसे स्थान पर नौकरी ढूँढने जाना पड़ता है। ‘लव जिहाद’ के बहाने वे अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने की नीति पर निशाना साधते हुए, इसे बहुंसख्यकों के प्रति दोहरा रवैया बताकर, सांप्रदायिक विभाजन की अपनी रणनीति पर काम करते हैं। ‘लव जिहाद’ की ओट लेकर अल्पसंख्यक आयोग की तरह हिन्दू मानवाधिकार आयोग की ‘सख्त जरूरत’ की बात कही जाने लगी। इसके लिए प्रचारित किया गया कि विश्व हिन्दू परिषद और हिन्दू हेल्प लाइन का हिन्दू मानवाधिकार आयोग पहले से है। अब केंद्र सरकार को इस आयोग को कानूनन मान्यता देकर उसे कार्मिक और कानूनी अधिकार दे देना चाहिए।
      हिन्दू अस्मिता के नाम पर ‘मेरठ बचाओं मंच’ जैसे संगठनों का निर्माण कर वे एक क्षेत्रीय आक्रामक अस्मितावादी सांप्रदायिकता को भड़काने की फिराक में हैं। खरखौदा प्रकरण की वास्तविकता के बाद वे थोड़ा ठहर भले सकते हैं। पर वे उस सांप्रदायिक जेहनियत के विस्तार में और तेजी लाएँगे, जिसे हमारे समाज में निहित पितृसत्ता खाद-पानी देती है। वे इसको प्रचारित करेंगे कि एक हिंदू लड़की जो एक मुसलमान के पास चली गई थी, को वापस लाने के लिए उन्होंने यह सब किया। जिसका, उनको समाज का रुढि़वादी ढाँचा मौन स्वीकृति देता है। ऐसे में हमें व्यापकता में प्रेम संबन्धों पर अपनी जेहनियत का विस्तार करना होगा। सांप्रदायिक ताकतों के निशाने पर 1857 की साझी शहादत और साझी विरासत की नगरी मेरठ को ठहर कर सोचना होगा, नहीं तो वे उसके इस ऐतिहासिक ढाँचे को ध्वस्त कर देंगे।
    -राजीव कुमार यादव
 मोबाइल: 09452800752
 लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
दिसम्बर --2014

1 टिप्पणी:

Neetu Singhal ने कहा…

इन झोला छाप जर्नलिस्टन से कोई बचाए.....

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