भारत से मुसलमानों के पलायन का सिलसिला मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपने जज्बाती भाषणों से रोक तो दिया लेकिन हिन्दू महासभा के लोगों को जाते हुए मुसलमानों का देश में रुके रहना एक आँख नहीं भाया। दोनों देशों के आजाद हो जाने के बाद दोनों ही देश के रहनुमाओं क्रमशः मुहम्मद अली जिनाह व देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पाकिस्तान व भारत को गैर धार्मिक स्टेट बनाने का एलान कर धार्मिक कट्टरपंथियों के इरादों पर रोक लगा दी। भारत में तो यह नुस्खा काफी हद तक कामयाब रहा लेकिन पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरपंथ सदैव हावी रहा।
पाकिस्तान में तो मात्र 1 प्रतिशत हिन्दू बचे थे परन्तु भारत में उस समय भी 10 प्रतिशत से अधिक आबादी मुसलमानों की रह गई थी। जिसने मौलाना आजाद की पुकार और गांधी, नेहरू जैसे धर्मनिरपेक्ष लीडरों ने सुरक्षा की यकीन दहानी कराके उनके उखड़ चुके कदमों को फिर से अपने मादरे वतन में जमाने का भरोसा दिया।
26 जनवरी 1950 को भारत के संविधान में जब देश की अक्लियतों को विशेष अधिकार दिए गए, जिसमें उनकी धार्मिक आजादी की जमानत दी गई थी उनको अपने धार्मिक स्वरूप व शरई कानूनों की पाबन्दी के साथ जिन्दगी बिताने की गारन्टी दी गई थी, मुसलमानों ने राहत की सांस ली और वे इस मुल्क की तरक्की व उसके लिए मर मिटने तक में अपने वतन के साथ जुट गए। 1947 के बाद पाकिस्तान के तीन हमलों क्रमशः 1947, 1965 और 1971 में भारतीय मुसलमानों ने देश की सुरक्षा के लिए सरहद पर अपना खून भी बहाया और शहादत का जाम भी नोश फरमाया।
आजाद भारत में कांग्रेस ने प्रथम चक्र में 1947 से 1977 तक और द्वितीय चक्र में 1980 से 1989 तक और फिर तृतीय चक्र में 1991 से 1996 तक फिर चैथे चक्र में यू0पी0ए0 के गठबंधन के साथ 2004 से 2014 तक देश में 54 वर्ष तक हुकूमत की। इसमें 17, 17 साल पं0 जवाहर लाल नेहरू व इंदिरा गांधी की हुकूमत रही। बाकी दस वर्ष यू0पी0ए0 के गठबंधन के साथ मनमोहन की हुकूमत व 5-5 वर्ष राजीव गांधी व नरसिम्हा राव की हुकूमतें रहीं।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को जहाँ इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने आजाद भारत के स्वरूप को एक बहुरंगीय व बहुधर्मी सभ्यता से सुसज्जित समाज के साथ आधुनिक वैज्ञानिक सोच तथा समाजवादी आर्थिक नीतियों से सजाकर देश के आम आदमी को यह एहसास दिलाया कि इस देश की तरक्की में उसका भी महत्वपूर्ण योगदान है। पंडित नेहरू ने जब देश की बांगडोर संभाली तो उनके सामने दो तरह के माॅडल अर्थ व्यवस्था के थे। एक पूँजीवाद का माॅडल जिसमें साम्राज्यवादी शक्तियों के पास सारे आर्थिक अधिकार सीमित हो जाते हैं। दूसरा सोवियत यूनियन व अन्य कम्युनिस्ट विचारधाराओं वाले राष्ट्रों की सामन्त शाही निजाम का सोशलिस्ट आर्थिक माॅडल। पंडित नेहरू ने दोनों के बीच का रास्ता चुना और मिक्सड एकनाॅमी का अनुसरण किया। उन्होंने देश के पूँजीपति टाटा, बिरला इत्यादि को यदि देश की औद्योगिक उन्नति की ओर ले जाने का जिम्मा सौंपा तो वहीं उनके ऊपर सरकारी अंकुश भी लगाए रखा। पंडित नेहरू ने शिक्षा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, कृषि, रक्षा, विज्ञान, पर्यावरण, प्राकृतिक, संसाधन इत्यादि के श्रोतों को सार्वजनिक क्षेत्रों के हवाले रखा। पंडित नेहरू के नेतृत्व में लगभग हर क्षेत्र में देश ने उन्नति की। 1950 से 1965 तक 7 प्रतिशत की औद्योगिक विकास इसका सुबूत है। उनके समय में विकासशील देशों में भारत अग्रिम पंक्ति में खड़ा हो गया था और विश्व में औद्योगिक विकास के मामले में 7वें स्थान पर भारत था। पंडित नेहरू के समय हुई उन्नति से परेशान साम्राजी शक्तियों जो भारत को बहुत मजबूरी में छोड़ कर गयी थी ने पड़ोसी राष्ट्र के साथ उसके संबंधों में खटास पैदा करनी शुरू कर दी। जबकि पंडित नेहरू ने चीन के साथ पंचशील समझौता करके चीन व भारत के बीच परस्पर सांस्कृतिक, आर्थिक व व्यावसायिक सहयोग करके रिश्तों को सुदृढ़ कर दिया था।
साम्राजी शक्तियों ने दो विकास शील पड़ोसी मित्र राष्ट्रों की मित्रता को शत्रुता में परिवर्तित कर दिया। नतीजे में 1962 में हिन्द चीन युद्ध हुआ और सैन्य शक्ति में कमजोर भारत को चीन के हाथों पराजय का मुँह देखना पड़ा। चीन ने भारत की काफी भूमि अपने कब्जे में कर ली जो अब भी उसी के पास है। पंडित नेहरू को यह सजा साम्राजी शक्तियों ने दो कारणों से दी। एक साम्राज्यवादी नीतियों के स्थान पर समाजवादी नीतियों का अनुसरण और दूसरा दोनों सुपर पावर राष्ट्र अमरीका व सोवियत यूनियन के गुट में न शामिल होकर गुटनिरपेक्षता की राह अपनाना।
अपने प्रयासों में विफल पंडित नेहरू इसके बाद अधिक दिन तक जीवित न रह सके और 1964 को उनका असामायिक निधन हो गया।
पंडित नेहरू के निधन के बाद उनकी जानशीन इन्दिरा गांधी ने अपने पिता के अधूरे सपनों को और तेजी के साथ पूरा करना शुरू कर दिया। प्रारम्भ में उन्हें कांग्रेस के भीतर छिपे साम्राजी व साम्प्रदायिक शक्तियों के समर्थकों के विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन मुजाहिद बाप की बेटी भी उनसे कहीं कमजोर मुजाहिद नहीं निकली। उनके ऊपर कांग्रेस को विभाजित करने का आरोप लगा। जिद्दी मिजाजी व तानाशाही रवैये का इल्जाम लगाया गया लेकिन वे अपनी मजबूत, इच्छा शक्ति के सहारे किसी के दबाव के आगे नहीझुकीं और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती ही गई। इंदिरा गांधी के दौर में ही भारत ने अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त की। हरित क्रान्ति का नारा देकर उन्होंने कृषि को उसके उन्नति के शिखर पर पहुँचाया। विज्ञान एवं तकनीक के मामले में भी उन्होंने देश को विकासशील राष्ट्रों की फेहरिस्त में अग्रणी रखा। बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर ग्रामीण अंचलों तक बैंक की सुविधाएँ पहुँचा दीं। बेरोजगारी दूर करने के लिए छोटे-छोटे कुटीर उद्योग लगाने के लिए शिक्षित युवाओं को प्रोत्साहित किया। रक्षा क्षेत्र में भी उन्हीं के दौर में देश ने निपुणता हासिल की और अमरीका के दबाव को नकारते हुए 1975 में उन्होंने परमाणु विस्फोट कर उपमहाद्वीप में अपना सैन्य वर्चस्व स्थापित कर दिया। इंदिरा गांधी की ही राह का अनुसरण कर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्ठो ने भी अपने देश को औद्योगिक प्रगति तथा आर्थिक समृद्धि की ओर ले जाने की ओर कदम बढ़ा दिए। साथ ही हिन्द पाक रिश्तों में भी दोनों लीडरों ने सुधार के संकेत देने शुरू कर दिए। इन सबसे नाराज अमरीका ने दोनों को सबक सिखाने की मंसूबा साजी कर दी। दोनों ही लीडरों को उनके राजनैतिक प्रतिद्वन्द्वियों ने घेरना शुरू किया। भुट्ठो ने तो चुनाव में पाला मार लिया लेकिन इंदिरा गांधी अपने राजनैतिक विरोधियों के जाल में फँस गई और घबराकर उन्होंने देश में आपात काल की घोषणा कर दी। इससे उनके विरुद्ध ऐसा सियासी माहौल तैयार हुआ कि 1977 के आम लोकसभा चुनाव में वह परास्त हो कर सत्ता से बेदखल हो गईं। देश में पहली बार गैर कांग्रेसी हुकूमत मोरारजी देसाई के नेतृत्व में स्थापित हो गई और लीडरों की बैसाखी के सहारे साम्राज्यवादी व साम्प्रदायिक सोच रखने वाली भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता का मजा पहली बार चखा।
पाकिस्तान में तो मात्र 1 प्रतिशत हिन्दू बचे थे परन्तु भारत में उस समय भी 10 प्रतिशत से अधिक आबादी मुसलमानों की रह गई थी। जिसने मौलाना आजाद की पुकार और गांधी, नेहरू जैसे धर्मनिरपेक्ष लीडरों ने सुरक्षा की यकीन दहानी कराके उनके उखड़ चुके कदमों को फिर से अपने मादरे वतन में जमाने का भरोसा दिया।
26 जनवरी 1950 को भारत के संविधान में जब देश की अक्लियतों को विशेष अधिकार दिए गए, जिसमें उनकी धार्मिक आजादी की जमानत दी गई थी उनको अपने धार्मिक स्वरूप व शरई कानूनों की पाबन्दी के साथ जिन्दगी बिताने की गारन्टी दी गई थी, मुसलमानों ने राहत की सांस ली और वे इस मुल्क की तरक्की व उसके लिए मर मिटने तक में अपने वतन के साथ जुट गए। 1947 के बाद पाकिस्तान के तीन हमलों क्रमशः 1947, 1965 और 1971 में भारतीय मुसलमानों ने देश की सुरक्षा के लिए सरहद पर अपना खून भी बहाया और शहादत का जाम भी नोश फरमाया।
आजाद भारत में कांग्रेस ने प्रथम चक्र में 1947 से 1977 तक और द्वितीय चक्र में 1980 से 1989 तक और फिर तृतीय चक्र में 1991 से 1996 तक फिर चैथे चक्र में यू0पी0ए0 के गठबंधन के साथ 2004 से 2014 तक देश में 54 वर्ष तक हुकूमत की। इसमें 17, 17 साल पं0 जवाहर लाल नेहरू व इंदिरा गांधी की हुकूमत रही। बाकी दस वर्ष यू0पी0ए0 के गठबंधन के साथ मनमोहन की हुकूमत व 5-5 वर्ष राजीव गांधी व नरसिम्हा राव की हुकूमतें रहीं।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को जहाँ इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने आजाद भारत के स्वरूप को एक बहुरंगीय व बहुधर्मी सभ्यता से सुसज्जित समाज के साथ आधुनिक वैज्ञानिक सोच तथा समाजवादी आर्थिक नीतियों से सजाकर देश के आम आदमी को यह एहसास दिलाया कि इस देश की तरक्की में उसका भी महत्वपूर्ण योगदान है। पंडित नेहरू ने जब देश की बांगडोर संभाली तो उनके सामने दो तरह के माॅडल अर्थ व्यवस्था के थे। एक पूँजीवाद का माॅडल जिसमें साम्राज्यवादी शक्तियों के पास सारे आर्थिक अधिकार सीमित हो जाते हैं। दूसरा सोवियत यूनियन व अन्य कम्युनिस्ट विचारधाराओं वाले राष्ट्रों की सामन्त शाही निजाम का सोशलिस्ट आर्थिक माॅडल। पंडित नेहरू ने दोनों के बीच का रास्ता चुना और मिक्सड एकनाॅमी का अनुसरण किया। उन्होंने देश के पूँजीपति टाटा, बिरला इत्यादि को यदि देश की औद्योगिक उन्नति की ओर ले जाने का जिम्मा सौंपा तो वहीं उनके ऊपर सरकारी अंकुश भी लगाए रखा। पंडित नेहरू ने शिक्षा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, कृषि, रक्षा, विज्ञान, पर्यावरण, प्राकृतिक, संसाधन इत्यादि के श्रोतों को सार्वजनिक क्षेत्रों के हवाले रखा। पंडित नेहरू के नेतृत्व में लगभग हर क्षेत्र में देश ने उन्नति की। 1950 से 1965 तक 7 प्रतिशत की औद्योगिक विकास इसका सुबूत है। उनके समय में विकासशील देशों में भारत अग्रिम पंक्ति में खड़ा हो गया था और विश्व में औद्योगिक विकास के मामले में 7वें स्थान पर भारत था। पंडित नेहरू के समय हुई उन्नति से परेशान साम्राजी शक्तियों जो भारत को बहुत मजबूरी में छोड़ कर गयी थी ने पड़ोसी राष्ट्र के साथ उसके संबंधों में खटास पैदा करनी शुरू कर दी। जबकि पंडित नेहरू ने चीन के साथ पंचशील समझौता करके चीन व भारत के बीच परस्पर सांस्कृतिक, आर्थिक व व्यावसायिक सहयोग करके रिश्तों को सुदृढ़ कर दिया था।
साम्राजी शक्तियों ने दो विकास शील पड़ोसी मित्र राष्ट्रों की मित्रता को शत्रुता में परिवर्तित कर दिया। नतीजे में 1962 में हिन्द चीन युद्ध हुआ और सैन्य शक्ति में कमजोर भारत को चीन के हाथों पराजय का मुँह देखना पड़ा। चीन ने भारत की काफी भूमि अपने कब्जे में कर ली जो अब भी उसी के पास है। पंडित नेहरू को यह सजा साम्राजी शक्तियों ने दो कारणों से दी। एक साम्राज्यवादी नीतियों के स्थान पर समाजवादी नीतियों का अनुसरण और दूसरा दोनों सुपर पावर राष्ट्र अमरीका व सोवियत यूनियन के गुट में न शामिल होकर गुटनिरपेक्षता की राह अपनाना।
अपने प्रयासों में विफल पंडित नेहरू इसके बाद अधिक दिन तक जीवित न रह सके और 1964 को उनका असामायिक निधन हो गया।
पंडित नेहरू के निधन के बाद उनकी जानशीन इन्दिरा गांधी ने अपने पिता के अधूरे सपनों को और तेजी के साथ पूरा करना शुरू कर दिया। प्रारम्भ में उन्हें कांग्रेस के भीतर छिपे साम्राजी व साम्प्रदायिक शक्तियों के समर्थकों के विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन मुजाहिद बाप की बेटी भी उनसे कहीं कमजोर मुजाहिद नहीं निकली। उनके ऊपर कांग्रेस को विभाजित करने का आरोप लगा। जिद्दी मिजाजी व तानाशाही रवैये का इल्जाम लगाया गया लेकिन वे अपनी मजबूत, इच्छा शक्ति के सहारे किसी के दबाव के आगे नहीझुकीं और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती ही गई। इंदिरा गांधी के दौर में ही भारत ने अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त की। हरित क्रान्ति का नारा देकर उन्होंने कृषि को उसके उन्नति के शिखर पर पहुँचाया। विज्ञान एवं तकनीक के मामले में भी उन्होंने देश को विकासशील राष्ट्रों की फेहरिस्त में अग्रणी रखा। बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर ग्रामीण अंचलों तक बैंक की सुविधाएँ पहुँचा दीं। बेरोजगारी दूर करने के लिए छोटे-छोटे कुटीर उद्योग लगाने के लिए शिक्षित युवाओं को प्रोत्साहित किया। रक्षा क्षेत्र में भी उन्हीं के दौर में देश ने निपुणता हासिल की और अमरीका के दबाव को नकारते हुए 1975 में उन्होंने परमाणु विस्फोट कर उपमहाद्वीप में अपना सैन्य वर्चस्व स्थापित कर दिया। इंदिरा गांधी की ही राह का अनुसरण कर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्ठो ने भी अपने देश को औद्योगिक प्रगति तथा आर्थिक समृद्धि की ओर ले जाने की ओर कदम बढ़ा दिए। साथ ही हिन्द पाक रिश्तों में भी दोनों लीडरों ने सुधार के संकेत देने शुरू कर दिए। इन सबसे नाराज अमरीका ने दोनों को सबक सिखाने की मंसूबा साजी कर दी। दोनों ही लीडरों को उनके राजनैतिक प्रतिद्वन्द्वियों ने घेरना शुरू किया। भुट्ठो ने तो चुनाव में पाला मार लिया लेकिन इंदिरा गांधी अपने राजनैतिक विरोधियों के जाल में फँस गई और घबराकर उन्होंने देश में आपात काल की घोषणा कर दी। इससे उनके विरुद्ध ऐसा सियासी माहौल तैयार हुआ कि 1977 के आम लोकसभा चुनाव में वह परास्त हो कर सत्ता से बेदखल हो गईं। देश में पहली बार गैर कांग्रेसी हुकूमत मोरारजी देसाई के नेतृत्व में स्थापित हो गई और लीडरों की बैसाखी के सहारे साम्राज्यवादी व साम्प्रदायिक सोच रखने वाली भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता का मजा पहली बार चखा।
2 टिप्पणियां:
पलायन किसे कहते हैं.....?
अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
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