वैशाख शुक्ल-1, विक्रम संवत 2072
हरिद्वारआज
राहुल गांधी ने संसद में मोदी सरकार को ललकारते हुए कहा कि वह सूट-बूट की
सरकार है. बात मेरी समझ में नहीं आई. राहुल ने ऐसा क्यों कहा! जबकि मोदी जी
का सूट तो कब का नीलाम हो चुका है. वह भी करोड़ों में. सोचता हूं मैं भी
अपना सूट नीलाम करवा दूं. निश्चित ही मोदी जी के सूट से ज्यादा धनराशि
प्राप्त होगी. इसके दो कारण है. पहला, मेरे कई धनवान चेले हैं. दूसरा, मेरा
सूट मोदी जी के सूट से कहीं ज्यादा ऐतिहासिक महत्व का है. वह सलवार सूट आज
भी मेरे पास रखा हुआ है जिसे रामलीला मैदान में पहनकर मैंने दिल्ली पुलिस
से जान बचाई थी. आज भी लोग उस सूट को लेकर चुटकुले बनाते हैं और मेरा
परिहास करते हैं. जबकि आपद धर्म में तो सब उचित होता है. आखिर अर्जुन ने भी
अज्ञातवास में बृह्नलला का रूप धरा था. इससे क्या अर्जुन की शूरवीरता कम
हो गई! आपद धर्म में जान बचाने के लिए उस समय जिस वीरांगना बहन का सूट
मैंने लिया था, उसने मुझसे कभी उसे वापस नहीं मांगा. जब मैं खुद ही उसे
वापस करने गया तो वह बोली कि रख लो बाबा, आप को ज्यादा सूट करता है.
मेरा सूट मोदी जी के सूट से कहीं ज्यादा ऐतिहासिक महत्व का है. वह सलवार सूट आज भी मेरे पास रखा हुआ है जिसे पहनकर मैंने दिल्ली पुलिस से जान बचाई थी
वैशाख शुक्ल-2, विक्रम संवत 2072
चंडीगढ़
कल
कैबिनेट मंत्री का दर्जा ठुकरा दिया मैंने. अरे यार! मेरी हैसियत मोदी जी
के बराबर की है और हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर जी मुझे मंत्री का दर्जा
दे रहे हैं. एक बार अपने बयान में मैंने खुद कहा था कि मैं चाहूं तो इस देश
का प्रधानमंत्री बन सकता हूं. ऐसे ही भारत सरकार पद्म भूषण देने का मन बना
रही थी. इसकी औपचारिक घोषणा होने से पहले ही मैंने इसे लेने से मना कर
दिया. कैबिनेट मंत्री पद छोड़कर मैंने एक बार फिर इतिहास रच दिया. लगातार
दो त्याग किए मैंने. सोनिया जी का त्याग मेरे सामने कुछ भी नहीं.
वैशाख शुक्ल-4, विक्रम संवत 2072
हरिद्वार
कल
कांग्रेस के प्रवक्ता मनु सिंघवी ने कहा कि मैंने योग को राजनीति से
जोड़कर राजयोग शुरू कर दिया जिसमें योग पीछे और बाबा की राजनीति आगे है.
मिथ्या आरोप है उनका. मैंने योग को राजनीति से नहीं जोड़ा है अपितु राजनीति
में योग को जोड़ दिया है. राजनीति में योग करते-करते मैंने जाना कि
वस्तुतः राजनीति भी योग का ही तो खेल है. योग अर्थात जोड़ अर्थात जोड़ना.
राजनीति का मर्ज ही जोड़ों का दर्द है. नेता अपने लिए तो जोड़ता जाता है और
समाज में दर्द बांटता जाता है. अपने तनिक से जोड़ के लिए वह किसी को भी
दर्द बांट सकता है. बाबा सब जानता है. बाबा के अधिकांश शिष्य राजनीतिज्ञ ही
तो हैं. वो भी कुशल. मैं योग कराते-कराते राज करने लगा तो कुछ छद्म
राष्ट्रवादियों, मनु सिंघवी जैसे लोगों को सहन नहीं हो रहा है. देश में
कितने योग गुरू हैं. कोई मेरी तरह से वीआईपी नहीं बन पाया. क्यों! क्योंकि
उन्होंने योग में कुछ जोड़ा नहीं. यदि मैं योग में राजनीति को न जोड़ता तो
मेरे विरोधी कब का मेरा आश्रम बंद करवा चुके होते. आज यदि योग और बाबा
रामदेव एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं तो उसका कारण राजयोग ही है.
राहुल गांधी चिंतन करने विदेश चले जाते हैं. जबकि यहां का आम आदमी शौचालय मैं बैठकर ही चिंतन कर लेता है और उसके चिंतन से कुछ न कुछ निकलता जरूर है.
वैशाख शुक्ल-5, विक्रम संवत 2072
दिल्ली
इस
समय अपने को कर्ण जैसा ही उपेक्षित महसूस कर रहा हूं. नरेंदर मोदी की ओर
से लगातार उपेक्षा मिल रही है. जबकि उनकी जीत के लिए अपना सब कुछ दांव पर
लगा दिया था मैंने. उनकी सरकार बनने के पश्चात ही मैं हरिद्वार लौटा था.
अपने योग शिविर को चुनाव प्रचार कार्यालय में बदल दिया था. परंतु मोदी जी….
अरे काहे का जी… यहां कौन-सा सबके सामने भाषण दे रहा हूं. चुनाव जीतने के
बाद एक बार भी पतंजलि योगपीठ नहीं आए. हमारी तरफ पीठ करके बैठ गए. कालेधन
और भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस को घेरने वाला मैं ही था. मोदी के पक्ष में
हवा बनाने के लिए मैं आचार्य बालकृष्ण के साथ आमरण अनशन पर बैठा. नौ दिन
में ही मेरी हवा टाइट हो गई थी. यहां तक कि अस्पताल पहुंच गया. तब श्रीश्री
रविशंकर जी के हाथों जूस पी कर अपना अनशन तोड़ा. उस समय वह जूस नहीं
समुद्र मंथन से निकला हुआ साक्षात अमृत लगा था मुझे. तब लोगों ने कैसे-कैसे
सवाल किए थे. बाबा आप योगी होकर अस्पताल पहुंच गए जबकि बालकृष्ण का बाल भी
बांका न हुआ था. कितनी भद्द पिटी थी मेरी. जिस मोदी के लिए सब कुछ दांव पर
लगा दिया था उसी ने मुझे से दांव खेल दिया. सोचता हूं किसी दिन आश्रम में
आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और संजय जोशी को बुला कर अपनी व्यथा सुनाऊं!
वैशाख शुक्ल-6, विक्रम संवत 2072
करनाल
योग
और आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार के लिए मुझे भी भारत रत्न मिलना चाहिए. मेरा
काम सुश्रुत,धनवंतरी से बढ़कर है. मैंने योग को दर्शनीय बनाया है. भारत
रत्न की लालसा मेरे मन में तब से और ज्यादा बलवती हो गई, जब से इंडिया टीवी
वाले रजत शर्मा को पदम भूषण मिला. वह भी शिक्षा और साहित्य में उनके
योगदान के लिए. उन्होंने कितनी किताबें लिखी हैं, बाबा को पता ही नहीं.
जबकि बाबा सब जानता है. आश्रम में ही रहने वाले मेरे एक प्रिय शिष्य ने आज
मुझसे कहा कि रजत शर्मा वाली अपनी जिज्ञासा आप गूगलबाबा को बताइए न. यह
सुनकर मेरे कान खडे़ हो गए. मैंने सबसे पहले उससे सवाल किया, ‘तेरा गूगल
बाबा योग तो नहीं सिखाता है न!’ वह हंसा. परंतु उसका चमत्कारी गूगल बाबा भी
रजत शर्मा के द्वारा शिक्षा और साहित्य में किए गए योगदान को खोजने में
असफल हो गया. इससे एक बात सिद्ध होती है कि मेरे पास ‘दिव्य फार्मेसी’ है
तो वर्तमान सरकार के पास ‘दिव्य दृष्टि’ है.
यदि इस जिह्वा को वश में रखने वाला में कोई आसन होता तो इस बाबा के खिलाफ जगह-जगह इतने मामले दर्ज होते?
वैशाख शुक्ल-7, विक्रम संवत 2072
करनाल
आज
मेरे एक शिष्य ने पूछा, ‘बाबा आप प्रवचन देते हैं कि भाषण. पता नहीं
चलता.’ आज सुबह से बैठा मैं इसी बात को सोच रहा हूं. शिष्य की बात पर किसी
निष्कर्ष पर पहुंचने की चेष्टा कर रहा हूं. मध्यरात्रि हो चुकी है परंतु
अभी तक सफलता नहीं मिली.
वैशाख शुक्ल-8, विक्रम संवत 2072
दिल्ली
शेर
की तरह दहाड़ने वाले गिरिराज सिंह आज मीनाकुमारी की तरह रोते हुए आए. आते
ही बोले, ‘बाबा जुबान पर काबू रखने के लिए कोई आसन बताइए.’ मैंने उनको झट
से सिंहासन करवा दिया. इसे करने के बाद गिरिराज बाबू बोले कि क्या बाबा
इसमें भी तो मेरी जुबान बाहर ही निकली रही. यह बात मेरे ध्यान में ही नहीं
रही कि यह आसन करते समय जुबान मुंह के बाहर निकालनी पड़ती है. अंत में अपना
पिंड छुड़ाने के लिए मैंने उन्हें नभो मुद्रा जिसमें जुबान तालू में लगानी
होती है और मांडुकी मुद्रा जिसमे जुबान को मसूढ़ों के ऊपर घुमाया जाता है,
करवाया. इसको करने के बाद वह खुशी-खुशी वहां से चले गए. अबोध! अब यह बाबा
उन्हें क्या बताता! यदि इस जिह्वा को वश में रखने वाला में कोई आसन होता तो
इस बाबा के खिलाफ जगह-जगह इतने मामले दर्ज होते?
आज मेरे पास हजारों करोड़ की संपत्ति है, विदेश में एक टापू भी है. सब योग के प्रताप से ही तो है. इसलिए योग पर विश्वास करो. योगा से ही होगा!
वैशाख शुक्ल-9, विक्रम संवत 2072
कुरुक्षेत्र
कुछ
लोगों को शंका है कि योग से ज्यादा फायदा नहीं होता हैा.योग से बहुत फायदा
होता हैं. प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता! आज मेरे पास हजारों
करोड़ की संपत्ति है, विदेश में एक टापू भी है. सब योग के प्रताप से ही तो
है. इसलिए योग पर विश्वास करो. योगा से ही होगा!
वैशाख शुक्ल-11, विक्रम संवत 2072
चंडीगढ़
कल
गत माह की बेलैंस सीट देखी तब से योग करने का मन नहीं कर रहा है. पिछने
महीने पतंजलि उत्पाद केंद्र की बिक्री में गिरावट दर्ज हुई. देखकर मन खिन्न
है. आज पूरा दिन इसी सोच-विचार में व्यतीत करूंगा कि अब कौन-सा नया उत्पाद
लॉन्च किया जाए. ‘दिव्य पुत्रजीवक बीज’ का अप्रत्याशित परिणाम मिला. उसका
विपणन जोरों पर है. जिन्होंने इसका उपयोग किया उनके विषय में मैं कुछ नहीं
कह सकता. हमने मुख्य समाचारपत्रों में प्रथम पृष्ठ पर पूरे-पूरे पृष्ठ का
विज्ञापन दिया था इसका. यद्यपि मीडिया ने इसके नाम को लेकर बखेड़ा खड़ा
करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. इन मूर्खों को पता नहीं कि अनजाने में
वे मेरे उत्पाद का विज्ञापन ही कर रहे थे. प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ गई है.
आयुर्वेद के नाम रोज नई-नई ऐरी-गैरी कंपनियां पैदा हो रही हैं. आसन क्रिया
से अधिक उत्पादों को बेचने में कसरत है. तनाव बहुत बढ़ गया है. शाम के पांच
बज रहे हैं. अभी-अभी भ्रामरी और सुप्त भद्रासन किया है ताकि तनाव कम हो
और मन शांत रहे.
वैशाख शुक्ल-12, विक्रम संवत 2072
चंडीगढ़
विपश्यना!
पाली भाषा का शब्द. जिसका मतलब होता है जो जैसा है, वैसा देखना. इसी के
लिए राहुल गांधी विदेश गए थे. अच्छा है. जिस वय में बालक बिपाशा के लिए
ध्यानमग्न होते हैं वे विपश्यना पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. होना भी
चाहिए क्योंकि पार्टी की दशा चिंतनीय है. पंरतु ऐसा करना उनके पार्टी के
हित में हो सकता है, राष्ट्रहित में नहीं. उन्होंने हमारी परंपरा का पालन
नहीं किया. हमारे यहां हिमालय में जाकर चिंतन-मनन करने की परंपरा रही है.
देखो तो राहुल की वजह से विपश्यना का कितना प्रचार हो गया. अगर वह
प्राणायाम, अनुलोम-विलोम, कपालभाति करते तो कितना अच्छा होता! सबकुछ भूलभाल
के मेरे योग शिविर में ही आ सकते थे. वह तो अच्छा है कि यहां सबकी आर्थिक
स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि विदेश जाकर विपश्यना करें. वरना तो मेरा योग
का धंधा मंदा हो जाता. वैसे जब मैं राहुल को शहजादा कहता हूं तो क्या गलत
कहता हूं. राहुल गांधी चिंतन करने के लिए विदेश जाते हैं और यहां का आम
आदमी शौचालय मैं बैठकर ही चिंतन कर लेता है. यह बात भी महत्वपूर्ण है कि आम
आदमी के चिंतन से कुछ न कुछ निकलता जरूर है अब देखना है कि राहुल गांधी के चिंतन से क्या निकलता है!
- अनूप मणि त्रिपाठी
लोकसंघर्ष पत्रिका में शीघ्र प्रकाशित
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