सोमवार, 28 सितंबर 2015

आठ साल बाद रिहाई

आईपीएस अफसर ने सरकारी गवाह बनने के लिए दी धमकी ना मानने पर  मुकदमे में डाला
                        कर्नाटक मुहकमात के आला अफसर आइपीएस अलोक कुमार का नाम सुर्खियों में है। करोड़ों रुपये गबन के मामले में तो अफसरों के नाम बारहाँ आते रहते हंै और इसी के चलते अफसरान माजूल भी किए जाते हैं, लेकिन फिर से दोबारा रुजू भी किये जाते हंै। ऐसे कई अफसर हैं जिन्होंने बेशर्मी की हद पार की हुई है। आलोक कुमार अब लॉट्री कुमार बन चुका है। करोड़ों के लॉट्री घोटाले का सरदार आलोक कुमार के खिलाफ  सबूत हासिल हो चुके हंै खैर अब तो आलोक कुमार ने नौकरी से हाथ धो लिया है, लेकिन आईपीएस जब आईजी पुलिस बन कर अपने फराईज को अंजाम देता रहता है किसी तरह का जुल्म भी करता है इस तरफ ना तो मीडिया देखती है ना कोई इंसानी हुकूक की तंजीम इस पर बात करना पसंद करती है। आईजी पुलिस के ऊँचे ओहदे पर फाइज होकर किस तरह की जेहनियत ये अफसर रखता है इसका पर्दाफाश तब हुआ जब हुबली सिमी मामले में गिरफ्तार सत्रह और अदालत से बाइज्जत रिहाशुदा नौजवानों में से एक सादिक समीर ने हाल ही में मुनअक़द प्रेस कान्फ्रेेंस के दौरान इस बात का खुलासा किया कि कैसे आईजी पुलिस आलोक कुमार ने झूठमूठ का मुकदमा बनाकर फँसाया और धमकी भी दी कि अगर तू सरकारी गवाह बनकर दीगर अफरादों के खिलाफ गवाही नहीं देगा तो तुझे भी इस केस में मुलव्विस किया जाएगा, लेकिन सादिक समीर ने ये कहाकि मैं किसी को भी नहीं जानता तो कैसे झूठी गवाही दूँ। मामला नहीं रुका, समीर सादिक ने इंकार किया तो पहले छोड़ दिया गया। फिर अचानक एक दिन रात साढ़े बारह  बजे न्यू गुरुपन पाल्या जहाँ पर सादिक समीर रिहाइश पजीर है उस इलाके को सीज किया गया, सौ डेढ़ सौ पुलिस तैनात कर पूरे मोहल्ले की नाका-बंदी की गई। समीर के घर पर सर्च लाइट मारे गए और एक बड़ी जीप में आई0जी0 पुलिस आईपीएस आलोक कुमार पूरी मीडिया को लेकर तशरीफ लाए और घर पर रेड किए उस वक्त बीवी और छोटी बच्ची के साथ समीर सादिक मौजूद थे। घर में एक तरह का खौफ का माहौल था, पूरे मोहल्ले में भी एक खौफ का माहोल बनाया गया। देखिए कैसे माहौल बनाकर गिरफ्तारी अमल में लायी जाती है। ताकि अवाम भी सोचने पर मजबूर हो जाती है कि जो शख्स हमारे दरमियान था वो आतंकवादी ही था! गिरफ्तारी अमल में आई। फिर तहकीकात भी शुरू हुई। जबकि पहले से आलोक कुमार को ये मालूम था कि समीर सादिक का इस केस से कोई ताल्लुक नहीं। फिर पूछताछ के दौरान आलोक कुमार ने दबाव और धमकी शुरू की कि छोड़ देता हूँ अगर तू इनके खिलाफ गवाही देगा तो फिर वही समीर सादिक ने दोहराया मैं किसी को भी नहीं पहचानता तो कैसे इनके खिलाफ गवाही दूँ समीर सादिक के घर से मजहबी किताबों को बतौर सबूत बरामद किया गया था और इसी को मुल्क के खिलाफ पढ़ाई जाने वाली किताब ऐसा दस्तावेज होने की बात को दर्ज किया गया। इन किताबों में खास कर दुआओं की किताबें, हदीस, कुरानी आयात, तारीखे इस्लाम, बुजुर्गों के आयत, सीरतउन्नबी की किताबें मौजूद थीं, लेकिन यहाँ पर पूछने वाला कौन था। आगे समीर सादिक ने ये भी बात कही कि मैं किस बात पर उनसे ऐहतजाज करता मंै खुद इतना डर गया था कि मुझे क्या करना है या किया जा रहा समझ में नहीं आ रहा था। पूरा मोहल्ला खौफ  के साये में था। पुलिस की चहल पहल कई दिनों तक चलती रही। तकरीबन आठ साल बाद रिहाई नसीब हुई। तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था। आज भी लोग सलाम का जवाब भी देना मुनासिब नहीं समझते। रिश्तेदारों ने तो कब के ताल्लुक काट दिए है, रोजी रोटी का मसला इम्तेहान बनकर आन पड़ा है। बच्चों के साथ कैसे जिन्दगी गुजार दूँ बताइये, कहते-कहते सादिक समीर रो पड़ा। उसके आँसुओं ने इस मिल्लत की बेहिसी को एक बार फिर उजागर कर दिया, लेकिन कोई फायदा नहीं। इसलिए यहाँ आँसुओं और जज़्बातों की कोई कदर नहीं। सिर्फ पैसा बोलता है।
    रियासत में दहशत गर्द सरगर्मियों के इलजाम में गिरफ्तारी के बाद अदालत से बाइज्जत बरी किये गए सैय्यद सादिक समीर ने यहा अपनी प्रेस कान्फ्रेंस के दौरान रियासत के आईपीएस अफसर आलोक कुमार का भण्डा फोड़ करते हुए कहा कि इन्हें 2008 में  जब रियासत में सिमी तंजीम के जरिए दहशतगर्दाना सरगर्मियों के इलजाम में गिरफ्तार किया गया तो इसके बाद आईपीएस आलोक कुमार ने  इन पर दबाव डाला था के गिरफ्तार शुदा दीगर मुल्जिमीन  के खिलाफ वो गवाही दे कि ये लोग भी सिमी तंजीम के जरिए रियासत में दहशतगर्दाना सरगर्मियां चला रहे हैं। इन्होंने बताया कि सी0आई0डी0 महकमा के डी0आई0जी0 की हैसियत से इनकी कयादत में ही इस मामले की जाँच शुरू हुई थी, इन्हें भी इस केस में गिरफ्तार किया गया और फिर दबाव डाला जाने लगा कि वो गिरफ्तार शुदा दीगर मुल्जिमींन के खिलाफ अदालत में गवाही दे, लेकिन जिन लोगों के बारे में कुछ नहीं जानता था इनके खिलाफ गवाही देने से इन्होंने साफ इंकार कर दिया। सादिक समीर ने कहा के गैर कानूनी तरीके से इक्कीस फरवरी 2008 से 25 फरवरी तक इन्हें कस्टडी में रखा गया इनकी रिहाइश गाह पर जो इस्लामी अदब पर मबनी किताबंे जब्त की गईं इन किताबों को दुश्मन मवाद किताबें करार देकर मीडिया में उछाला गया जबकि ये सारी किताबें खुले बाजार में दस्तयाब किताबें थीं इनमें ऐसा कोई मवाद नहीं था जिसे मुल्क-ए-दुश्मन करार दिया जाता, ना  ही इसमें कोई जिहादी मवाद था अदालत ने भी बाद में वाजेह कर दिया कि इस मामले में गिरफ्तार ज्यादा तर अफराद डॉक्टर्स, इंजीनियर्स और छोटे मोटे ताजिर थे। अदालत ने तमाम गिरफ्तार शुदा सत्रह अफराद को बेगुनाह करार दिया इसके बावजूद अब तक सिर्फ चार अफरादों को रिहा किया गया। बकिया अफराद के खिलाफ दीगर रियासतों में मुकद्दमे दर्ज हैं। बगैर किसी नाकर्दा गुनाह इन अफरादों को अपनी जिन्दगी के आठ साल जेल में गुजारने पड़े और अब इनकी जिन्दगी बर्बाद हो चुकी है। समाज में जो इज्जत थी इसे बिलावजह नीलाम कर दिया गया। अब लोग हमसे राबिता रखने या मामिलात करने से घबरा रहे हैं इस मौके पर इन्होंने कहा के हम तमाम सत्रह अफराद को इल्जामात से बरी करार दिए जाने के धारवाड़ फस्र्ट अडिशनल सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ रियासती हुकूमत अब दुबारा अपील दाखिल ना करे, अब हममें कानूनी जंग लड़ने की मजीद ताकत नहीं है।
 -इकबाल अहमद जकाती
मोबाइल: 08123840957 
लोकसंघर्ष  पत्रिका  के सितम्बर 2015  अंक में प्रकाशित

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