गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

हिन्दू बनने की चाह में शम्बूक वध भूल गए

साभार
हिन्दू बनने की चाह में शम्बूक वध को भूल कर एक दलित मंदिर चला गया और उसकी हत्या कर दी गयी . कहने को देश में लोकतंत्र है, समानता का अधिकार है, न्याय मिलेगा लेकिन यह कोरे कागजों पर है. दलितों को हिन्दू न मानने की परंपरा बहुत पुराणी है. उसी परंपरा का निर्वाह नागपुरी मुख्यालय करता है. वोट के लिए नागपुर मुख्यालय दलितों को हिन्दू बनाने की मुहीम चलता है और उनमें अल्पसंख्यक विरोध के घृणा का भाव भरता है और दंगे कराता है लेकिन जब वही हिंदुवत्व वाला दलित जब मंदिर जाने लगता है तो उनका धर्म खतरे में पड़ जाता है और उसकी हत्या तक हो जाती है, नागपुर मुख्यालय चुपचाप रहता है. नागपुर मुख्यालय मनुस्मृति आधारित हिंदुवत्ववादी समाज बनाना चाहता है. जिसमें दलितों और पिछड़ों का कोई स्थान नहीं होगा. सेवा भाव ही उनका धर्म होगा. 
नागपुरी मुख्यालय के विषाक्त विचारधारा के कारण बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में  मंदिर जा रहे एक दलित बुजुर्ग को अगड़ी जाति के शख्स ने वहां जाने से रोका।  रोके जाने के बावजूद न मानने पर पहले उसके सिर पर कुल्हाड़ी मारी, फिर मौके पर ही जिंदा जला दिया।
आसपास के लोगों ने काफी देर बाद आरोपी को पकड़ा और पुलिस को सूचना दी। जलालपुर थाने के एसओ रामाश्रय यादव के अनुसार, आरोपी को हत्या की धाराओं में गिरफ्तार कर लिया गया है।
जलालपुर के बिलगांव के बाहर मैदानी बाबा का मंदिर बना है। गांव के छिम्मा (90) अपने बेटे दुर्जन, भाई और पत्नी के साथ बुजुर्गों का पिंडदान करने बुधवार को गया जा रहे थे। परंपरा के तहत इसके पहले वह दर्शनों के लिए बुधवार शाम मैदानी बाबा के मंदिर पहुंचे। वहां उन्हें संजय तिवारी मिला और अंदर जाने से मना किया। छिम्मा ने इनकार किया तो संजय बौखला गया और कुल्हाड़ी से वार करने भागा। यह देख छिम्मा की पत्नी और भाई वहां से भागकर मदद मांगने के लिए गांव पहुंचे। इस बीच संजय ने छिम्मा के सिर पर कुल्हाड़ी से कई वार किए। बेसुध होने के बाद उसे केरोसिन डालकर जिंदा जला दिया और आज कोई भी हिन्दुवत्ववादी नेता इन घटनाओ की निंदा नहीं कर रहा है और चुप्पी साधे हुए है. उसी तरह से अल्पसंख्यकों का नरसंहार करने के लिए विभिन्न बहाने ढूंढे जा रहे हैं. दादरी में घटित घटना इस प्रत्यक्ष प्रमाण है. मनुस्मृति (अध्याय - 5, पद्य - 35) में उल्लेख है:- ."(श्राद्ध और मधुपर्क में) तथा विधि नियुक्ति होने पर जो मनुष्य माँस नहीं खाता वह मरने के इक्कीस जन्म तक पशु होता है।"  को नागपुरी जब चाहे माने, जब चाहे न माने अल्पसंख्यकों को मारना पीटना हो तो गाय हमारी माता है अन्यथा मांस उत्पादन में प्रथम स्थान भी चाहिए. 
दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, प्रगतिशील, तर्कशील व बौद्धिक तबके को आगे आकर नागपुरी विचारधारा का विरोध करना पड़ेगा अन्यथा इस देश का यह इतना नुक्सान कर देंगे कि सैकड़ों साल तक उसकी भरपाई संभव नहीं होगी. ऐतिहासिक तथ्यों को भूल कर सम्मान पाने की जिजीविषा में दलित शम्बूक वध भूल कर हिन्दुवत्व वाली विचारधारा की ओर अग्रसर हो रहा है. यह खतरे की घंटी है उसी के लिए. 

सुमन 

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-10-2015) को "तलाश आम आदमी की" (चर्चा अंक-2117) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

भवितव्य आर्य ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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