भारतीय जनसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय का रहस्यमय परिस्तिथियों में शव 11 फरवरी 1968 में उत्तर प्रदेश के मुग़लसराय रेलवे स्टेशन पर मिला था. उनके परिवारजनों ने लगभग 47-48 साल बाद उनकी संदिग्ध परिस्तिथियों में हुई मौत की जांच कराने की मांग की है. उपाध्याय की भतीजी मधु शर्मा, बीना शर्मा तथा विनोद शुक्ला ने उनकी मौत की जांच की मांग की थी. इसके पूर्व भारतीय जनसंघ के ही अध्यक्ष डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की भी संदिग्ध परिस्तिथियों में मौत हो गयी थी.
चर्चाओं के अनुसार नागपुर मुख्यालय से जिन नेताओं ने जरा सा भी विद्रोह का स्वर अपनाया उनकी हत्या या सदिग्ध परिस्तिथियों में मौत हो गयी. चाहे प्रधान चौकीदार के गुरु की मौत हो या रामदेव के गुरु की मौत हो. ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या हो, इन सभी मौतों में कहीं न कहीं संदिग्धता है और इसकी एक लम्बी श्रृंखला है और यह इस बाद का इशारा करती है कि नागपुरी मुख्यालय से जरा सा भी मतभेद हुआ तो उसकी मृत्यु सदिग्ध परिस्तिथियों में हो जाती है.
हिंदुवत्व वादी आतंकवाद के प्रणेता सुनील जोशी की हत्या हो जाती है. क्या कारण है कि यह सभी मौतें होती हैं और देश में इनकी जांच नहीं हो पाती है.
आज नागपुरी मुख्यालय द्वारा पोषित हार्दिक पटेल ने सीधे-सीधे कहा है कि उनकी जान को खतरा अमित शाह भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से है. जब कोई भी नागपुर मुख्यालय से नियंत्रित होने वाला व्यक्ति जरा सा भी उनके दिशा निर्देशों को मानने में कोताही करता है तो उसकी संदिग्ध परिस्तिथियों में मौत हो जाती है. अगर व्यक्ति ख़ामोशी अख्तियार कर लेता है तो गोविन्दाचार्य या अडवानी की तरह जीवन तो पा लेता है लेकिन अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मोहताज होता है.
अटल बिहारी बाजपेई के विशेष कार्याधिकारी रहे सुधीन्द्र कुलकर्णी के चेहरे के ऊपर कालिख पोतने की घटना उग्र हिंदुवत्व का इशारा है कि जरा सा भी लाइन से हटे तो इसी तरह बेइज्जत कर दिए जाओगे. संघी स्तंभकार देवधर के लेख छपने बंद हो गए हैं, उनका क्या परिणाम होगा यह आने वाला समय बताएगा.
आज जरूरत इस बात की है कि सभी हिंदुवत्व वादी नेताओं की संदिग्ध परिस्तिथियों में मौत की जांच एक आयोग बना कर की जाए तथा नागपुरी हत्यारों के ऊपर लगाम लगे जाए अन्यथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है.
गुजरात में जितने भी एनकाउंटर आतंकवाद के नाम पर हुए हैं वह कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में तत्कालीन मुख्यमंत्री के कार्यालय से जुड़े हुए रहे हैं. अमित शाह का नाम सुनकर गुजरात में अच्छे-अच्छे लोगों की बोलती बंद हो जाती है. अगर उसको सांस लेना है तो शाह साहब की अनुमति की जरूरत होती है.
हम नए फ़ासिस्ट दौर में पहुँच रहे हैं. तर्क और बुद्धि की बात करने वाले लोगों की हत्याएं हो रही हैं. नरेन्द्र दाभोलकर, गोविन्द पानसरे तथा एम एम कुलबर्गी की हत्याएं की जिम्मेदारी नागपुरी मुख्यालय की है. उसने जो विषाक्त वातावरण तैयार किया है तथा हज़ारों रावण वाले मुखौटे लगा कर आदमी की सांस छीन लेने का कार्य कर रहा है इसलिए आज आवश्यक हो गया है कि इन सभी मौतों की जांच अविलम्ब करायी जाए और नागपुर मुख्यालय में बैठे हुए हत्यारों को गिरफ्तार किया जाए.
सुमन
1 टिप्पणी:
जय माँ अम्बे।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-10-2015) को "देवी पूजा की शुरुआत" (चर्चा अंक - 2132) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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