पठानकोट में कई दिनों से एयर फ़ोर्स के एयर बेस पर कुछ आतंकवादियों ने घुस कर गोला बारी शुरू कर दी. अन्तोगत्वा अभी तक ज्ञात 6 आतंकवादी मारे जा चुके हैं. भारतीय सैनिक लगभग 7 से अधिक मारे गए हैं तथा 17 से अधिक सैनिक घायल हुए हैं. दो आतंकवादियों को मारने के लिए पूरी इमारत को टैंक ध्वस्त कर देना पड़ा तो वहीँ प्रधानमंत्री मोदी योग तथा 5 E मंत्र का जाप का सन्देश देश को दे रहे थे.
वहीँ खुफिया तंत्र की बात अगर सही माने तो पठानकोट एयरबेस पर हमले का अलर्ट 16 महीने पहले ही कर
दिया गया था, लेकिन इसके बावजूद भी हमले को नहीं रोका जा सकता। अगस्त 2014
में जासूसी के आरोप में एक जवान की गिरफ्तारी हुई थी। सूत्रों के अनुसार
एक साल से पठानकोट पर हमले की साजिश रची जा रही थी। पुलिस ने बेस कैंप की जानकारी पाकिस्तान पहुंचाने के आरोप में 30 अगस्त को सेना के जवान
सुनील कुमार को गिरफ्तार किया था। इस मामले में पुलिस वक्त पर चालान नहीं
पेश कर पाई और सुनील कुमार को जमानत मिल गई। सुनील फेसबुक पर आईएस की कथित
महिला के संपर्क में था। वहीं आईएस से जुड़े होने के शक में पिछले दो महीने
में 14 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। बावजूद इसके पठानकोट एयरबेस पर
हमला हो जाता है।फिर क्या कारण है कि इस हमले को रोका नहीं जा सका या यूँ कहिये की खुफिया एजेंसियां बगैर सर पैर के बहुत सारी सूचनाएं अपनी पीठ थपथपाते हुए सरकार को भ्रमित करती हैं. सरकार ने 2 जनवरी 16 को ऑपरेशन समाप्त होने की घोषणा कर दी थी, उसके बाद भी सरकार सेना खुफिया तंत्र को कथित आतंकवादियों की संख्या की जानकारी आज भी नहीं है.
देश के अन्दर करोड़ों रुपये खुफिया तंत्र व सैन्य अधिकारीयों के ऊपर खर्च किया जाता है लेकिन उनकी कोई जवाबदेही तय नहीं है. जवाबदेही न होने के कारण इस तरह की घटनाएं घटती रहती हैं. कुछ लोग मरते हैं, कुछ लोग रोते हैं और फिर परिणाम कुछ नहीं.
कूटनीति व विदेश नीति के नाम पर अचानक जाकर साथ खाना, डांस करना, ड्रम बजाना और लफ्फाजी करना क्या राज नेतृत्व का कार्य है. आप लाहौर से लौटे नहीं कि तोहफा मिला या यूँ कहें की सोची समझी रणनीति का यह परिणाम है.
आतंकवादियों के मोबाइल फोन पर उसकी माँ ने कहा 'बेटा ! मरने से पहले खाना खा लेना' इस मारपीट की इस आपाधापी में इन शब्दों का अर्थ समझने का प्रयास नहीं हो रहा है. दुनिया के अंदर जिन्दा रहने का सवाल मुख्य सवाल है. उस सवाल का हल व्यवस्थाओं के पास नहीं है. हमारे देश के मजदूर किसान अपने पेट की ज्वाला शांत करने के लिए अपने बेटों को एक सैनिक के रूप में तब्दील कर जिंदा रहने के सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं. वहीँ, कुछ मुल्कों में इसी सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश में फिदायीन या आतंकी बनते हैं. दुनिया को या दुनिया में रहने वाले धर्मों को सबसे पहले जिंदा रहने के सवाल का जवाब देना होगा. कोई भी इंसान दुसरे इंसान की जान नहीं लेना चाहता है लेकिन हमारी आपकी फितरतें उनकी जिंदा रहने के हक़ को जब छिनने लगती हैं तब मजबूर होकर पेट क्षुधा को शांत करने के लिए एक-दुसरे का खून बहाने के लिए मजबूर होना पड़ता है. पकिस्तान की जनता के सन्दर्भ में सुप्रसिद्ध गीतकार शंकर शैलेन्द्र ने लिखा था-
सुन भैय्या रहिमू पाकिस्तान के
भुलआ पुकारे हिंदुस्तान से
भुलवा जो था तेरे पड़ोस में
संग-संग थे जब से आए होश में
सोना- रूपा धरती की गोद में
खेले हम दो बेटे किसान के |
सुन भैय्या …
दोनों के आँगन एक थे भैय्या
कजरा औ “सावन एक थे भैया
ओढत -पहरावन एक थे भैय्या
जोधा हम दोनों एक मैदान के |
सुन भैय्या …
परदेशी कैसी चाल चल गया
झूठे सपनो से हमको छल गया
डर के वह घर से तो निकल गया
दो आँगन कर गया मकान के |
सुन भैय्या …
मुश्किल से भर पाए है दिल के घाव
कल ही बुझा लाशो का अलाव
अब भी मझधार में है अपनी नाव
फिर क्यों आसार है तूफान के |
सुन भैय्या …
तेरे मन भाया जो नया मेहमान
आया जो देने शक्ति का वरदान
आँखों से काम ले भैया पहचान
लिया चेहरे -मोहरे शैतान के |
सुन भैया …
इसने ही जग को दिया हथियार
फांसी के फंदे बांटे है उधार
इसका तो काम लाशो का ब्यापार
बचना ये सौदे है नुकसान के |
सुन भैया …
मै सभलू भैया तू भी घर संभाल
गोला-बारूद ये लकड़ी की ढाल
छत पर मत रखो यह परदेशी माल
कहते है नर-नारी जहान के |
सुन भैया …
हर कोई गुस्सा थूको मुस्कराओ
जो भी उलझन है मिल-जुल के सुलझाओ
सपनो का स्वर्ग धरती पर बसाओ
बरसाओ मोती गेहू -धान के |
सुन भैया …
सुमनलो क सं घ र्ष !
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