देश अभी हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रतिभाशाली विद्यार्थी रोहित वेमूला की आत्महत्या के सदमे से उबरा भी नहीं था कि मोदी सरकार ने देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक, दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) पर हल्ला बोल दिया। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में जो डरावना घटनाक्रम हुआ वह विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर हमले की शुरूआत थी। यह हमला प्रजातंत्र और स्वतंत्र चिंतन पर भी था। रोहित को अपनी जान लेने के लिए एबीवीपी ने मजबूर किया। संघ की इस विद्यार्थी शाखा ने भाजपा सांसद के जरिए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय पर दबाव बनाकर, रोहित को होस्टल ने निकलवाया और उसकी छात्र वृत्ति को रोक दिया। जेएनयू के मामले में भी एबीवीपी की स्थानीय इकाई ने दबाव बनाकर प्रजातांत्रिक ढंग से चुने गए छात्रसंघ को आतंकित करने की कोशिश की।
ऐसा आरोप है कि जेएनयू में भारत-विरोधी और पाकिस्तान-समर्थक नारे लगाए गए। यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि ये नारे किसने लगाए। जेएनयू और प्रजातांत्रिक स्वतंत्रताओं पर हमला करने का बहाना ढूंढने के लिए छात्रों की संबंधित सभा के वीडियो फुटेज के साथ छेड़छाड़ की गई। इस छेड़छाड़ किए हुए वीडियो के आधार पर जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा कायम कर दिया गया। कुमार, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की विद्यार्थी शाखा एआईएसएफ के सदस्य हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, हमेशा से पाकिस्तान द्वारा समर्थित विघटनकारियों का विरोध करती आई है और इस बात की तनिक भी संभावना नहीं है कि कन्हैया कुमार ने उस तरह के नारे लगाए होंगे, जैसा कि आरोपित है। मूल वीडियो सब चीजों को साफ कर देता है। न केवल कुमार ने कोई नारा नहीं लगाया वरन किसी को भी केवल नारे लगाने के आधार पर राष्ट्रद्रोह का आरोपी नहीं बनाया जा सकता। जानेमाने विधिवेत्ता सोली सोराबजी ने यह स्पष्ट किया है कि केवल जनता को राज्य के विरूद्ध हिंसा करने के लिए उकसाना या चुनी हुई सरकार को पलटने के लिए भड़काना राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है।
दिल्ली पुलिस क्यों और कैसे विश्वविद्यालय कैंपस में घुसी? विश्वविद्यालय के कुलपति, जिन्हें भाजपा सरकार ने नियुक्त किया है, इस मामले में दो तरह की बातें कर रहे हैं। उन्होंने कई टीवी चैनलों पर कहा कि वे कैंपस में पुलिस बुलाने वाले आखिरी व्यक्ति होंगे परंतु जांच से यह जाहिर हुआ है कि उन्होंने पुलिस को पत्र लिखकर उचित कार्यवाही करने की मांग की थी। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के अधीन काम करने वाली दिल्ली पुलिस ने बिना किसी आधार के कुमार पर देश द्रोह का प्रकरण कायम कर दिया। अदालत में वकीलों ने जेएनयू के विद्यार्थियों और उन सब को जो ‘‘जेएनयू के विद्यार्थियों जैसे दिख रहे थे’’ के साथ मारपीट की। एक भाजपा विधायक ने सीपीआई के एक कार्यकर्ता को बुरी तरह मारा। इस विधायक ने यह भी कहा कि अगर उसके पास बंदूक होती तो वह भारत-विरोधी नारे लगाने वालों को गोली मार देता। भाजपा समर्थकों द्वारा एक पत्रकार पर भी हमला किया गया। वकीलों ने अगले दिन भी उसी तरह की हिंसा की और जब कन्हैया को अदालत लाया जा रहा था, तब उस पर भी हमला किया गया।
दरअसल, यह घटनाक्रम, आरएसएस द्वारा नियंत्रित एबीवीपी-भाजपा द्वारा देश के प्रजातांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष तबके को कुचलने का प्रयास है। रोहित वेमूला के मामले की तरह, एबीवीपी की हिम्मत इतनी बढ़ गई है कि वह अपने सभी विरोधियों को राष्ट्रद्रोही बताने लगी है और राज्य की सहायता व समर्थन से प्रगतिशील और सामाजिक न्याय के स्वरों को दबाना चाहती है। भाजपा से जुड़े संगठन, ‘‘राष्ट्रद्रोह’’ के नाम पर देश में उन्माद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। जो लोग आरएसएस के हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद का समर्थन नहीं करते, उन सभी को राष्ट्रद्रोही बताया जा रहा है। प्रषांत भूषण ने इसे फासिस्ट हमला बताया है।
जेएनयू में और उसके बाद जो कुछ हुआ, वह उन सभी मूल्यों और परंपराओं के विरूद्ध है जो भारत के लिए महत्वपूर्ण और मूल्यवान हैं। संघ परिवार इस घटना को एक ऐसे मौके के रूप में देख रहा है जिसका इस्तेमाल वह प्रजातांत्रिक संस्कृति को समाप्त करने और असहमति के स्वरों का गला घोंटने के लिए कर सकता है। यह शर्मनाक है कि पुलिस अधिकारी अपने राजनैतिक आकाओं के इस हद तक गुलाम हैं कि वे उनके इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।
राहुल गांधी जेएनयू पहुंचे और उन्होंने विद्यार्थियों को यह भरोसा दिलाया कि वे उनके साथ हैं। इसके बाद लखनऊ में उन्हें काले झंडे दिखाए गए और उन पर पत्थर फेंके गए। जिन लोगों ने ऐसा किया, उनका कहना था कि राहुल गांधी द्वारा राष्ट्रद्रोहियों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करने के कारण वे उनका विरोध कर रहे हैं। जिस विधायक ने सीपीआई कार्यकर्ता की पिटाई की, उसने भी यह कहा कि जेएनयू मंे राष्ट्रविरोधी गतिविधियां हो रही हैं और वह उन लोगों के प्रति अपने रोष को अभिव्यक्त कर रहा है, जिन्होंने पाकिस्तान समर्थक नारे लगाए। टीवी चैनलों पर भाजपा प्रवक्ता बार-बार वही नारे दोहरा रहे हैं और वही बातें कर रहे हैं। सोषल मीडिया पर भी इसी तरह की अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल हो रहा है।
मंत्रियों से लेकर शीर्ष भाजपा नेताओं और वकीलों से लेकर सड़कों पर पत्थरबाजी करने वालों तक-सभी का एक ही तर्क है कि वे राष्ट्रद्रोहियों को बर्दाष्त नहीं करेंगे। निरंतर दुष्प्रचार के ज़रिए, जेएनयू के विद्यार्थियों का दानवीकरण किया जा रहा है, उन्हें राष्ट्रद्रोही बताया जा रहा है और विश्वविद्यालय को भारत-विरोधी गतिविधियों का अड्डा कहा जा रहा है। जेएनयू के दानवीकरण की प्रक्रिया, इस सरकार के सत्ता में आने के साथ ही शुरू हो गई थी। आरएसएस से जुड़े विहिप आदि संगठनों ने जेएनयू के मुख्यद्वार पर ‘‘राष्ट्रविरोधी जेएनयू विद्यार्थियों और अध्यापकों’’ के खिलाफ प्रदर्षन किए थे।
ये सारी बातें, दरअसल, बहुत गहरे और छुपे हुए एजेंडे का भाग हैं। राष्ट्रद्रोह की माला इसलिए जपी जा रही है ताकि भाजपा की राजनीति से असहमत सभी लोगों के खिलाफ जनोन्माद भड़काया जा सके। इस बहाने से हिंसा इसलिए की जा रही है ताकि जो लोग संघ-भाजपा से सहमत नहीं हैं उन्हें आतंकित किया जा सके। इस उन्माद को इसलिए भड़काया जा रहा है ताकि रोहित वेमूला के मुद्दे पर जो सामाजिक आंदोलन खड़ा हो रहा था, उससे देष का ध्यान हटाया जा सके। रोहित के मुद्दे पर देषभर में हुई तीखी प्रतिक्रिया से भाजपा सकते में आ गई थी। भारत-विरोधी नारों के मुद्दे पर जनोन्माद भड़का कर और अपने विरोधियों के विरूद्ध हिंसा कर, भाजपा और उसके सहयोगी, रोहित वेमूला की मृत्यु से उपजे सवालों पर पर्दा डालना चाहते हैं। विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को समाप्त करने का प्रयास भी, दलितों के मुद्दे को हाशिए पर डालने के षड़यंत्र का हिस्सा है। जेएनयू छात्रसंघ के एबीव्हीपी से जुड़े तीन पदाधिकारियों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपने एक पत्र में सरकार-भाजपा-एबीवीपी द्वारा जेएनयू में बेजा हस्तक्षेप पर असंतोष व्यक्त किया है और रोहित की मृत्यु और दलितों से जुड़े मुद्दों पर भाजपा के रूख पर भी प्रश्नचिन्ह लगाए हैं।
जेएनयू के दानवीकरण का उद्देश्य स्पष्ट है। यह विश्वविद्यालय प्रजातांत्रिक मूल्यों, वैचारिक स्वतंत्रता और प्रगतिशील विचारों का केंद्र है। ये सब एबीवीपी-भाजपा के एजेंडे के अनुरूप नहीं हैं। भारतीय फिल्म व टेलीविजन संस्थान, आईआईटी मद्रास, आईआईटी दिल्ली और हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में जो कुछ हुआ, वह उच्च शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता को समाप्त करने के अभियान का हिस्सा है। जेएनयू को विशेष तौर पर निशाना इसलिए बनाया जा रहा है क्योंकि वह प्रगतिशील-धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और उच्चतम स्तर की अकादमिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है। सरकार और उसके पिछलग्गुओं द्वारा राष्ट्रद्रोह के नाम पर उन्माद खड़ा करना, जेएनयू जैसे प्रगतिशील संस्थान की छवि धूमिल करने के उददेश्य से तो प्रेरित है ही, यह प्रजातांत्रिक सिद्धांतों पर भी हमला है।
हमें उम्मीद है कि अदालतें कन्हैया कुमार को राहत देंगी। परंतु प्रश्न केवल कन्हैया कुमार का नहीं है। प्रश्न यह है कि भारत-विरोधी नारों के बहाने देश में उन्माद और हिंसा का जो ज्वार पैदा कर दिया गया है उसे कैसे नियंत्रित किया जाए। कुमार की गिरफ्तारी, जेएनयू के दानवीकरण व सरकार द्वारा विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता का हनन करने के विरोध में विद्यार्थियों द्वारा देश भर में विशाल रैलियां निकाली गईं। दूसरी ओर, एबीव्हीपी और उससे जुड़े संगठन, ‘‘राष्ट्रद्रोहियों’’ के विरूद्ध देश भर में लोगों को लामबंद करने का प्रयास कर रहे हैं। जेएनयू की विवादित सभा में शामिल विद्यार्थियों और जेएनयू के अन्य विद्यार्थियों ने भारत-विरोधी व पाकिस्तान-समर्थक नारे लगाए जाने की कड़ी निंदा की है। आवष्यकता इस बात की है कि प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा के संघर्ष को आगे ले जाया जाए। आमजनों को यह समझाने की ज़रूरत है कि राष्ट्रद्रोह के नाम पर जो बवाल खड़ा किया जा रहा है, उसका असली उद्देश्य देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी को समाप्त करना है।
-राम पुनियानी
ऐसा आरोप है कि जेएनयू में भारत-विरोधी और पाकिस्तान-समर्थक नारे लगाए गए। यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि ये नारे किसने लगाए। जेएनयू और प्रजातांत्रिक स्वतंत्रताओं पर हमला करने का बहाना ढूंढने के लिए छात्रों की संबंधित सभा के वीडियो फुटेज के साथ छेड़छाड़ की गई। इस छेड़छाड़ किए हुए वीडियो के आधार पर जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा कायम कर दिया गया। कुमार, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की विद्यार्थी शाखा एआईएसएफ के सदस्य हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, हमेशा से पाकिस्तान द्वारा समर्थित विघटनकारियों का विरोध करती आई है और इस बात की तनिक भी संभावना नहीं है कि कन्हैया कुमार ने उस तरह के नारे लगाए होंगे, जैसा कि आरोपित है। मूल वीडियो सब चीजों को साफ कर देता है। न केवल कुमार ने कोई नारा नहीं लगाया वरन किसी को भी केवल नारे लगाने के आधार पर राष्ट्रद्रोह का आरोपी नहीं बनाया जा सकता। जानेमाने विधिवेत्ता सोली सोराबजी ने यह स्पष्ट किया है कि केवल जनता को राज्य के विरूद्ध हिंसा करने के लिए उकसाना या चुनी हुई सरकार को पलटने के लिए भड़काना राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है।
दिल्ली पुलिस क्यों और कैसे विश्वविद्यालय कैंपस में घुसी? विश्वविद्यालय के कुलपति, जिन्हें भाजपा सरकार ने नियुक्त किया है, इस मामले में दो तरह की बातें कर रहे हैं। उन्होंने कई टीवी चैनलों पर कहा कि वे कैंपस में पुलिस बुलाने वाले आखिरी व्यक्ति होंगे परंतु जांच से यह जाहिर हुआ है कि उन्होंने पुलिस को पत्र लिखकर उचित कार्यवाही करने की मांग की थी। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के अधीन काम करने वाली दिल्ली पुलिस ने बिना किसी आधार के कुमार पर देश द्रोह का प्रकरण कायम कर दिया। अदालत में वकीलों ने जेएनयू के विद्यार्थियों और उन सब को जो ‘‘जेएनयू के विद्यार्थियों जैसे दिख रहे थे’’ के साथ मारपीट की। एक भाजपा विधायक ने सीपीआई के एक कार्यकर्ता को बुरी तरह मारा। इस विधायक ने यह भी कहा कि अगर उसके पास बंदूक होती तो वह भारत-विरोधी नारे लगाने वालों को गोली मार देता। भाजपा समर्थकों द्वारा एक पत्रकार पर भी हमला किया गया। वकीलों ने अगले दिन भी उसी तरह की हिंसा की और जब कन्हैया को अदालत लाया जा रहा था, तब उस पर भी हमला किया गया।
दरअसल, यह घटनाक्रम, आरएसएस द्वारा नियंत्रित एबीवीपी-भाजपा द्वारा देश के प्रजातांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष तबके को कुचलने का प्रयास है। रोहित वेमूला के मामले की तरह, एबीवीपी की हिम्मत इतनी बढ़ गई है कि वह अपने सभी विरोधियों को राष्ट्रद्रोही बताने लगी है और राज्य की सहायता व समर्थन से प्रगतिशील और सामाजिक न्याय के स्वरों को दबाना चाहती है। भाजपा से जुड़े संगठन, ‘‘राष्ट्रद्रोह’’ के नाम पर देश में उन्माद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। जो लोग आरएसएस के हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद का समर्थन नहीं करते, उन सभी को राष्ट्रद्रोही बताया जा रहा है। प्रषांत भूषण ने इसे फासिस्ट हमला बताया है।
जेएनयू में और उसके बाद जो कुछ हुआ, वह उन सभी मूल्यों और परंपराओं के विरूद्ध है जो भारत के लिए महत्वपूर्ण और मूल्यवान हैं। संघ परिवार इस घटना को एक ऐसे मौके के रूप में देख रहा है जिसका इस्तेमाल वह प्रजातांत्रिक संस्कृति को समाप्त करने और असहमति के स्वरों का गला घोंटने के लिए कर सकता है। यह शर्मनाक है कि पुलिस अधिकारी अपने राजनैतिक आकाओं के इस हद तक गुलाम हैं कि वे उनके इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।
राहुल गांधी जेएनयू पहुंचे और उन्होंने विद्यार्थियों को यह भरोसा दिलाया कि वे उनके साथ हैं। इसके बाद लखनऊ में उन्हें काले झंडे दिखाए गए और उन पर पत्थर फेंके गए। जिन लोगों ने ऐसा किया, उनका कहना था कि राहुल गांधी द्वारा राष्ट्रद्रोहियों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करने के कारण वे उनका विरोध कर रहे हैं। जिस विधायक ने सीपीआई कार्यकर्ता की पिटाई की, उसने भी यह कहा कि जेएनयू मंे राष्ट्रविरोधी गतिविधियां हो रही हैं और वह उन लोगों के प्रति अपने रोष को अभिव्यक्त कर रहा है, जिन्होंने पाकिस्तान समर्थक नारे लगाए। टीवी चैनलों पर भाजपा प्रवक्ता बार-बार वही नारे दोहरा रहे हैं और वही बातें कर रहे हैं। सोषल मीडिया पर भी इसी तरह की अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल हो रहा है।
मंत्रियों से लेकर शीर्ष भाजपा नेताओं और वकीलों से लेकर सड़कों पर पत्थरबाजी करने वालों तक-सभी का एक ही तर्क है कि वे राष्ट्रद्रोहियों को बर्दाष्त नहीं करेंगे। निरंतर दुष्प्रचार के ज़रिए, जेएनयू के विद्यार्थियों का दानवीकरण किया जा रहा है, उन्हें राष्ट्रद्रोही बताया जा रहा है और विश्वविद्यालय को भारत-विरोधी गतिविधियों का अड्डा कहा जा रहा है। जेएनयू के दानवीकरण की प्रक्रिया, इस सरकार के सत्ता में आने के साथ ही शुरू हो गई थी। आरएसएस से जुड़े विहिप आदि संगठनों ने जेएनयू के मुख्यद्वार पर ‘‘राष्ट्रविरोधी जेएनयू विद्यार्थियों और अध्यापकों’’ के खिलाफ प्रदर्षन किए थे।
ये सारी बातें, दरअसल, बहुत गहरे और छुपे हुए एजेंडे का भाग हैं। राष्ट्रद्रोह की माला इसलिए जपी जा रही है ताकि भाजपा की राजनीति से असहमत सभी लोगों के खिलाफ जनोन्माद भड़काया जा सके। इस बहाने से हिंसा इसलिए की जा रही है ताकि जो लोग संघ-भाजपा से सहमत नहीं हैं उन्हें आतंकित किया जा सके। इस उन्माद को इसलिए भड़काया जा रहा है ताकि रोहित वेमूला के मुद्दे पर जो सामाजिक आंदोलन खड़ा हो रहा था, उससे देष का ध्यान हटाया जा सके। रोहित के मुद्दे पर देषभर में हुई तीखी प्रतिक्रिया से भाजपा सकते में आ गई थी। भारत-विरोधी नारों के मुद्दे पर जनोन्माद भड़का कर और अपने विरोधियों के विरूद्ध हिंसा कर, भाजपा और उसके सहयोगी, रोहित वेमूला की मृत्यु से उपजे सवालों पर पर्दा डालना चाहते हैं। विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को समाप्त करने का प्रयास भी, दलितों के मुद्दे को हाशिए पर डालने के षड़यंत्र का हिस्सा है। जेएनयू छात्रसंघ के एबीव्हीपी से जुड़े तीन पदाधिकारियों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपने एक पत्र में सरकार-भाजपा-एबीवीपी द्वारा जेएनयू में बेजा हस्तक्षेप पर असंतोष व्यक्त किया है और रोहित की मृत्यु और दलितों से जुड़े मुद्दों पर भाजपा के रूख पर भी प्रश्नचिन्ह लगाए हैं।
जेएनयू के दानवीकरण का उद्देश्य स्पष्ट है। यह विश्वविद्यालय प्रजातांत्रिक मूल्यों, वैचारिक स्वतंत्रता और प्रगतिशील विचारों का केंद्र है। ये सब एबीवीपी-भाजपा के एजेंडे के अनुरूप नहीं हैं। भारतीय फिल्म व टेलीविजन संस्थान, आईआईटी मद्रास, आईआईटी दिल्ली और हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में जो कुछ हुआ, वह उच्च शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता को समाप्त करने के अभियान का हिस्सा है। जेएनयू को विशेष तौर पर निशाना इसलिए बनाया जा रहा है क्योंकि वह प्रगतिशील-धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और उच्चतम स्तर की अकादमिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है। सरकार और उसके पिछलग्गुओं द्वारा राष्ट्रद्रोह के नाम पर उन्माद खड़ा करना, जेएनयू जैसे प्रगतिशील संस्थान की छवि धूमिल करने के उददेश्य से तो प्रेरित है ही, यह प्रजातांत्रिक सिद्धांतों पर भी हमला है।
हमें उम्मीद है कि अदालतें कन्हैया कुमार को राहत देंगी। परंतु प्रश्न केवल कन्हैया कुमार का नहीं है। प्रश्न यह है कि भारत-विरोधी नारों के बहाने देश में उन्माद और हिंसा का जो ज्वार पैदा कर दिया गया है उसे कैसे नियंत्रित किया जाए। कुमार की गिरफ्तारी, जेएनयू के दानवीकरण व सरकार द्वारा विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता का हनन करने के विरोध में विद्यार्थियों द्वारा देश भर में विशाल रैलियां निकाली गईं। दूसरी ओर, एबीव्हीपी और उससे जुड़े संगठन, ‘‘राष्ट्रद्रोहियों’’ के विरूद्ध देश भर में लोगों को लामबंद करने का प्रयास कर रहे हैं। जेएनयू की विवादित सभा में शामिल विद्यार्थियों और जेएनयू के अन्य विद्यार्थियों ने भारत-विरोधी व पाकिस्तान-समर्थक नारे लगाए जाने की कड़ी निंदा की है। आवष्यकता इस बात की है कि प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा के संघर्ष को आगे ले जाया जाए। आमजनों को यह समझाने की ज़रूरत है कि राष्ट्रद्रोह के नाम पर जो बवाल खड़ा किया जा रहा है, उसका असली उद्देश्य देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी को समाप्त करना है।
-राम पुनियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें