सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

मोदी साहब लूट ऐसी होनी चाहिए , जनता के शरीर पर खाल भी न रहे

मोदी साहब लूट ऐसी होनी चाहिए कि जनता के पास उसके शरीर पर खाल भी न रहे. इसी उद्देश्य से यह प्रस्ताव किया गया है कि हर बैंकिंग ट्रांजैक्शन पर सिर्फ 2% टैक्स लगाया जाए तो सरकार की इनकम में जबर्दस्त बढ़ोतरी होगी। 
इसका सीधा-सीधा यह उद्देश्य है कि बड़े उद्योगपति जो टैक्स चुराने का काम करते हैं और उनका सारा व्यापार बैंक के खातों से अलग रहकर होता है. उनके ऊपर कइस तरह के कानून का कोई असर नहीं होगा. असर आम जनता या मेहनतकश जनता के ऊपर होगा. अगर वह अपने बच्चे की फीस के लिए बैंक अकाउंट से 10000 रुपये निकलेगी तो उसका दो प्रतिशत 200 रुपये सरकार के खाते में चला जाए अगर वह बीमार है तो एक लाख रुपये निकालने पर 2000 रुपये सरकार के खाते में तुरंत चला जायेगा यह योजना मोदी सरकार की है. इसकी रूप रेखा नागपुर में बैठे हुए अर्थशास्त्रियों की है. 
        यह सरकार ब्लैक मनी को बढ़ावा देने के लिए तथा देश की नब्बे प्रतिशत आबादी की मेहनत की कमाई को छीनने के लिए इस तरह का जजिया कर लगाने की सोच रही है. अगर जिंदा रहना है तो इस तरह के कराधान आपको अदा करना है. 
जज़िया एक प्रतिव्यक्ति कर है, जिसे एक इस्लामिक राष्ट्र द्वारा इसके गैर मुस्लिम पुरुष नागरिकों पर जो कुछ मानदंडों को पूरा करते हों, पर लगाया जाता था. मोदी सरकार देश के हर व्यक्ति पर इस तरह का कानून लागू कर नया जजिया कर लागू करना चाहती है.
अच्छे दिनों की चाहत में भेडियों की जमात में खरगोश फंस गए हैं. अब देखना है कि खरगोशों की क्या हालत होगी. तुलसीदास की यह सोच इस समय बखूबी लागू होती है. विभीषण भी अफीम के नशे में है. जग नहीं सकता है.
लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥
मन महुँ तरक करैं कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा॥

वहीँ, देश के अन्दर जाति और धर्म के मामले कॉर्पोरेट सेक्टर के पैसे से उठाये जाते हैं जिससे बहुसंख्यक जनता जाति और धर्म के मामलों में फंसी रहे और कसाई अपने काम खाल उतारने का ख़ूबसूरती व बेधड़क तरीके से करते रहे. 


सुमन 

1 टिप्पणी:

कविता रावत ने कहा…

अच्छे दिनों की चाहत में भेडियों की जमात में खरगोश फंस गए हैं. अब देखना है कि खरगोशों की क्या हालत होगी. तुलसीदास की यह सोच इस समय बखूबी लागू होती है. विभीषण भी अफीम के नशे में है. जग नहीं सकता है.
लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥
मन महुँ तरक करैं कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा॥

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