“Perhaps the most glaring tendency of the Government system of high class education has been the
virtual monopoly of all the higher offices under them by the Brahmins." -Mahatma Jotirao Phule
एक ऐसा समय जब देश भारतरत्न भीमराव अंबेडकर की सवा सौंवी जयंती मना रहा है, ब्राह्मणवादी सवर्ण पुरुष संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ अंबेडकर पर अपनी झूठी श्रद्धा प्रदर्शित कर रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंबेडकर की प्रतिमा के सामने अगरबत्ती सुलगा रहे हैं, कार्पोरेटी पूँजी-प्रेरित नव-ब्राह्मणवादी-मनुवाद अत्यंत उग्र हो उठा है और नई सरकार के बनते ही दलितों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं तथा उनके उत्पीड़न की नित नई-नई, बर्बर और नृशंस घटनाएँ सामने आ रही हैं। दलितों के इसी उत्पीड़न की श्रृंखला में हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के लाइफ साइंस के पी.एच.डी. शोधार्थी 26 वर्षीय छात्र रोहिथ वेमुला की आत्महत्या भी शामिल है। वास्तव में यह आत्महत्या नहीं एक प्रतिभाशाली छात्र की सांस्थानिक ब्राह्मणवादी हत्या है जिसके साथ विश्वविद्यालय प्रशासन से लेकर वीआईपी भाजपा नेताओं के नाम तक जुड़े हैं। यह दलित उत्पीड़न की अन्य घटनाओं से इसलिए अलहदा है क्योंकि रोहिथ वेमुला की आत्महत्या के प्रेरक तत्वों में सरकार के दो केंद्रीय मंत्रियों की संलिप्तता देखी जा रही है।
रोहिथ वेमुला की अत्महत्या के मुद्दे पर भी मोदी सरकार में अजीब नाटकीयता देखी गई। रोहिथ ने आत्महत्या की 17 जनवरी को और 22 जनवरी तक मानव संसाधन विकास मंत्री, भाजपा के प्रवक्ता, विश्वविद्यालय प्रशासन सभी टालमटोल करते रहे। किन्तु जब आत्महत्या का विरोध राष्ट्रव्यापी हो गया और सरकार अपनी दलित, पिछड़ा, आदिवासी विरोधी नीतियों के कारण चारों तरफ से घिरने लगी तो मोदी सेना बचाव की मुद्रा में आ गई। रोहिथ की आत्महत्या करने के बाद से चार दिन तक चुप रहने के पश्चात् जब
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ के छठे दीक्षांत समारोह में भाषण दे रहे थे तो कार्यक्रम में उपस्थित दलित छात्रों ने ‘नरेंद्र मोदी मुर्दाबाद, नरेंद्र मोदी वापस जाओ’ के नारे लगाए। तब प्रधानमंत्री ने अपनी चुप्पी तोड़ी और क्षतिपूर्ति के नाम पर कहा कि ‘माँ भारती ने अपना एक लाल खो दिया मैं उसका दर्द समझ सकता हूँ।’ प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान से सरकारी नीतियों का राग और भी बिगड़ गया क्योंकि संघ निर्देशित भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की एक बड़ी जमात रोहिथ वेमुला को राष्ट्रविरोधी सिद्ध करने पर तुली थी क्योंकि रोहिथ अंबेडकरवादी छात्र संगठन ‘अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन’ (ए0एस0ए0) का सदस्य था जो कि छात्रों का एक प्रगतिशील संगठन है।
रोहिथ की आत्महत्या एक अकस्मात घटी हुई घटना नहीं है। उसे एक लंबे समय से प्रताडि़त किया जा रहा था। भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों की प्रशासनिक और प्राध्यापकीय संरचना एकांगी और सवर्ण वर्चस्व वाली है। इनमें जो जातिवाद व्याप्त है उसका रूप षड्यंत्री, बौद्धिक और चातुर्य भरा है। इनमें दलित छात्रों का उत्पीड़न, निष्कासन या उनकी आत्महत्या कोई नई बात नहीं है। यहाँ उनके साथ एक समय अमरीकी विश्वविद्यालयों में अश्वेत छात्रों से होने वाले व्यवहार से भी बदतर व्यवहार होता है। क्योंकि ब्राह्मणवाद रंगभेद की तरह स्पष्ट नहीं है। यह जाहिरा तौर पर लोकतान्त्रिक और पठन-पाठन की सांस्कृतिक-शैक्षिक प्रैक्टिस में व्यस्त दीखता है लेकिन भीतर से षड्यंत्रपूर्ण और शातिराना है। भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों में ब्राह्मणवादी वर्चस्व होने के कारण, सवर्ण समुदाय इन्हें अपने ढंग से नियंत्रित करता है। जहाँ एससी/एसटी/ओबीसी प्राध्यापकों की अल्पता के अनुपात में ही इन वर्गों के छात्रों के लिए प्रताड़नाएँ और मुश्किलें भी हैं। जहाँ उन्हें तरह-तरह से अपमानित, प्रताडि़त और हतोत्साहित किया जाता है। उनकी क्षमता पर प्रश्न खड़े किए जाते हैं। उनकी सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर तंज कसे जाते हैं और उनके कैरियर पर हमेशा परशुराम के परशु की धार लटकी रहती है। वर्तमान में भारत के 46 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी-एसटी, ओबीसी कुलपतियों की संख्या केवल दो है जिनमें से एक सामान्य श्रेणी से चयनित हुआ है। ऐसे में इन वर्गों के छात्रों का भारतीय शिक्षा संस्थानों में कोई पुरसाहाल नहीं होता। इस सवर्णवादी वर्चस्व की परिणति एससी-एसटी, ओबीसी छात्रों के उत्पीड़न के रूप में होती है। यह उत्पीड़न तब और बढ़ जाता है जब इस वर्ग के किसी छात्र में अतिरिक्त प्रतिभा होती है।
रोहिथ वेमुला मूल रूप से गुराजाला, गुंटूर (आंध्र प्रदेश) का निवासी था जो एक अनुसूचित जाति (माला) के अत्यंत निर्धन परिवार से ताल्लुक रखता था। रोहिथ के पिता एक प्राइवेट अस्पताल में सिक्युरिटी गार्ड हैं और उसकी माँ घर पर ही सिलाई का काम करके गुजारा करती है। रोहिथ बचपन से ही पढ़ने में तेज और प्रतिभाशाली था। वह अपनी हजारों साल की पीढि़यों में केंद्रीय विश्वविद्यालय देखने वाला पहला व्यक्ति था। उसे विज्ञान पसंद था इसलिए वह विज्ञान विषय में ही शोध (पी.एच.डी.) कर रहा था। अपने सुसाइड नोट में उसने लिखा है कि वह ‘कार्ल सेगान’ जैसा विज्ञान लेखक बनना चाहता था। रोहिथ ने पढ़ाई करने के लिए बचपन से ही बहुत संघर्ष किया। किसी तरह मेहनत-मजदूरी करके उसने अपनी पढ़ाई को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया। उसने एक कुरियर ब्वाय के रूप में भी काम किया था। रोहिथ ने हिन्दू डिग्री कॉलेज से बीएससी 80 प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण की थी। उसके बाद उसने हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में छठवीं रैंक हासिल कर एमएससी में सामान्य श्रेणी की मेरिट से प्रवेश लिया था। 2012 में रोहिथ ने सी0एस0आई0आर0 की परीक्षा में 90वीं रैंक लाकर जूनियर रिसर्च ‘फेलोशिप भी प्राप्त की। किन्तु उसकी असाधारण प्रतिभा को नजरअंदाज करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने उसकी शोधवृत्ति सात महीने से रोक रखी थी। जिसका उल्लेख उसने अपनी आत्महत्या से पूर्व लिखे गए पत्र में किया है। उसकी माँ अपने गाँव में गर्व से बताती थी कि उसका बेटा केंद्रीय विष्वविद्यालय में पी0एच0डी0 कर रहा है और उसे 25000 रुपये प्रतिमाह शोधवृत्ति मिलती है। लेकिन दुर्भाग्य से उस माँ का प्रतिभाशाली बेटा एक सवर्णवादी राजनैतिक षड्यंत्र और उत्पीड़न का शिकार होकर स्वयं को काल के हाथों में सौंप देता है और एक दिन उसकी माँ अपने अभिशापित जीवन के सबसे बुरे दिन उसकी लाश लेने पोस्टमार्टम हाउस जाती है।
रोहिथ वेमुला एक अच्छा शोधार्थी होने के साथ-साथ अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन का सदस्य भी था। ध्यातव्य है कि हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन ने ही छात्र संघ का चुनाव जीता था। रोहिथ को एक लंबे समय से विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा टारगेट किया जा रहा था। जबकि नियमानुसार किसी भी निलंबित
शोधार्थी की ‘फेलोशिप नहीं रोकी जा सकती, जुलाई से ही उसकी शोधवृत्ति (25000 रुपये प्रति माह) रोक दी गई थी। उसके साथियों का कहना है कि वह विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष छात्रों के मुद्दे उत्साह के साथ उठाता था इसलिए विश्वविद्यालय प्रशासन की निगाहों में खटकता था। याकूब मेमन को दी गई फाँसी और दिल्ली विश्वविद्यालय में डाक्युमेंट्री ‘मुजफ्फरपुर बाकी है’ की स्क्रीनिंग पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बच्चा संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के द्वारा किए गए हमले के विरोध में रोहिथ ने ए0एस0ए सदस्यों के साथ 3 अगस्त को विश्वविद्यालय में प्रदर्शन किया था। जिसके बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विश्वविद्यालय
अध्यक्ष नंदानम सुशील कुमार से उनका कुछ विवाद हुआ था जिस पर एन. सुशील कुमार ने फेसबुक पर लिखी गई एक टिप्पणी में ए0एस0ए0 सदस्यों को ‘गुंडा’ कहा था। इस टिप्पणी पर आपत्ति दर्ज करने के बाद सुशील कुमार ने विश्वविद्यालय सुरक्षा अधिकारी के सामने ए0एस0ए सदस्यों से लिखित माफी माँगी थी। लेकिन अगले दिन सुशील कुमार ने स्वयं को अस्पताल में भर्ती करवा दिया और रोहिथ तथा चार अन्य ए0एस0ए0 सदस्यों पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने उसको पीटा जिसकी वजह से वह गंभीर रूप से घायल हो गया और उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इस पर विश्वविद्यालय द्वारा 5 अगस्त को मुख्य अनुशास्ता प्रो. आलोक पाण्डेय द्वारा की गई जाँच में ए0एस0ए0 सदस्यों को क्लीन चिट दे दी गई। लेकिन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने पुलिस में भी रिपोर्ट की जिसके फलस्वरूप उन सभी पर मार-पीट का मुकदमा दर्ज किया गया। उन दिनों विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर0पी0 शर्मा थे। किन्तु कुछ दिनों के पश्चात विश्वविद्यालय के कुलपति बदल गए और नए कुलपति प्रो. पी. अप्पा राव बने। हैदराबाद के भाजपा उपाध्यक्ष नंदानम दिवाकर द्वारा जोर देने पर 17 अगस्त को मोदी सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारु दत्तात्रेय ने मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने विश्वविद्यालय कैंपस को ‘चरमपंथी’, ‘जातिवादी’ और ‘राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का अड्डा बताया। अपने पत्र में उन्होंने माँग रखी कि विश्वविद्यालय में ऐसी गतिविधियों में लिप्त छात्रों पर कार्रवाई कर उन्हें विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया जाय। इन्हीं घटनाक्रमों के बीच रोहिथ समेत पाँच छात्रों को विश्वविद्यालय से निलंबित कर दिया गया। ये पाँचों छात्र दलित थे। 3 जनवरी को इन सभी को हॉस्टल, पुस्तकालय आदि स्थानों से भी बाहर कर विश्वविद्यालय द्वारा उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। पाँचों छात्र बाहर खुले में अपने सामान के साथ रहकर प्रदर्शन करने लगे। विश्वविद्यालय के अन्य छात्रों ने उनका साथ दिया और उनके प्रदर्शन में हिस्सा लिया। 17 जनवरी को अपने एक मित्र उमा के कमरे पर, जो ए0एस0ए0 का कार्यालय भी था रोहिथ वेमुला ने ए0एस0ए0 के झंडे से फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। झंडे पर भारत रत्न भीमराव अंबेडकर की तस्वीर थी। रोहिथ का सुसाइड नोट (जो मूल अंग्रेजी में है) इस प्रकार है-
“गुड मॉर्निंग,
जब आप ये पत्र पढ़ेंगे तो मैं आपके आस-पास नहीं होऊँगा। मुझसे नाराज मत होना। मैं जानता हूँ तुम में से कुछ ने सचमुच मेरा बहुत खयाल रखा, मुझे प्यार किया और मेरे साथ बहुत अच्छा बर्ताव किया। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। यह केवल मैं स्वयं था जिससे मुझे सदैव समस्या थी। मैंने अपनी आत्मा और देह के मध्य एक निरंतर चैड़ी होती खाई महसूस की। मैं हमेशा से ही एक लेखक बनना चाहता था और मैं एक दानव बन गया। मैं हमेशा एक लेखक होना चाहता था। एक विज्ञान-लेखक, ठीक कार्ल सेगान की भाँति। लेकिन अंत में, यह एक पत्र ही है जो मैं लिख पा रहा हूँ।
मैंने विज्ञान, सितारों और प्रकृति से प्यार किया, और फिर लोगों से, बिना यह जाने कि लोग प्रकृति से कब के अलग हो चुके हैं। हमारी भावनाएँ दोयम दर्जे की हैं। हमारा प्रेम कृत्रिम है। हमारा विश्वास रँगा हुआ है। हमारी मौलिकता केवल बनावटी कला से वैध है। यकीनन यह बहुत मुश्किल हो गया है कि हम बिना चोट खाए किसी को प्यार कर पाएँ। व्यक्ति के मूल्य उसकी तात्कालिक पहचान और निकटतम संभावनाओं से बदल चुके थे। एक वोट से। एक संख्या से। एक चीज से। किसी आदमी से कभी एक मस्तिष्क की तरह व्यवहार नहीं किया गया था। एक शानदार वस्तु जो स्टारडस्ट से बनी है। प्रत्येक क्षेत्र में, पढ़ाई में, गलियों में, राजनीति में और जीने-मरने में।
मैं इस तरह का पत्र पहली बार लिख रहा हूँ। मेरा पहला अवसर है एक अंतिम पत्र लिखने का। मुझे माफ करना अगर मैं कोई मतलब निकालने में नाकाम हो जाऊँ।
मुमकिन है कि मैं इस दुनिया को समझने में लगातार गलत रहा होऊँ। प्यार, तकलीफ, जीवन और मृत्यु को समझने में। किसी तरह की जल्दबाजी नहीं थी। लेकिन मैं हमेशा भागता रहा। एक जीवन की शुरुआत करने से निराश। कुछ लोगों के लिए जिंदगी मुसलसल एक अभिशाप है। मेरा जन्म ही मेरे लिए एक भयानक हादसा है। मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं सकता। मेरे अतीत का एक अभागा बच्चा।
इस समय मैं पीड़ा में नहीं हूँ। दुखी भी नहीं हूँ। मैं केवल खाली हो चुका हूँ। अपने आप से उदासीन। यह बेहद तकलीफ देह है। और इसीलिए मैं यह कर रहा हूँ। मेरे जाने के बाद शायद लोग मुझे कायर की उपाधि दें। स्वार्थी और मूर्ख कहें। लेकिन मैं इन चीजों को लेकर परेशान नहीं हूँ कि मेरे बाद लोग मुझे क्या कहेंगे। मैं मरने के बाद के किस्सों में, भूतों-प्रेतों में यकीन नहीं रखता। अगर कोई चीज है जिसका मुझे यकीन है तो वो यह कि, मैं सितारों की सैर कर सकता हूँ और दूसरी दुनिया के बारे में जान सकता हूँ।
अगर आप, जो इस पत्र को पढ़ रहे हैं, मेरे लिए कुछ कर सकते हैं तो, मुझे मेरी सात महीने की ‘फेलोशिप मिलनी बाकी है, पूरे एक लाख पचहत्तर हजार रुपये। कृपया यह मेरे परिवार तक पहुँचा दी जाय। मुझे चालीस हजार रुपये रामजी को देने हैं। उसने कभी मुझसे वापस नहीं माँगे। लेकिन इन्हीं रुपयों में से उसे भी जरूर दिए जाएँ।
मेरा अंतिम संस्कार शांतिपूर्ण और हमवार ढंग से किया जाय। इस तरह से कि मैं केवल प्रकट हुआ और चला गया। मेरे लिए आँसू मत बहाना। यह जानिए कि मैं जिंदा रहने से कहीं ज्यादा खुश मरने पर हूँ। “परछाइयों से सितारों तक।”
उमा भाई, मुझे माफ करना कि मैंने यह सब करने के लिए तुम्हारा कमरा इस्तेमाल किया। मेरे अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन (ए0एस0ए0) परिवार, मुझे माफ करना कि मैंने तुम सब को तकलीफ दी। तुम सबने मुझे बहुत प्यार किया। मेरी कामना है कि तुम सब का भविष्य उज्ज्वल हो। आखिरी बार, जय भीम!
मैं औपचारिकताएँ लिखना भूल गया। मेरी आत्महत्या के लिए किसी को जिम्मेदार न ठहराया जाय। किसी ने भी मुझे यह सब करने के लिए उकसाया नहीं, न तो शब्दों से न हरकतों से। यह मेरा फैसला है और सिर्फ मैं इसके लिए जिम्मेदार हूँ। मेरे दोस्तों और दुश्मनों को इसके लिए परेशान न किया जाय, जब मैं चला जाऊँ।”
रोहित के सुसाइड नोट से हमें पता चलता है कि वह कितना संवेदनशील और प्रतिभाशाली स्कॉलर (अध्येता) था। एक ऐसा वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाला छात्र जिसे आत्मा-परमात्मा में यकीन नहीं था बल्कि विज्ञान और सितारों में जबर्दस्त दिलचस्पी थी। एक ऐसा रोमानी व्यक्तित्व जिसे विश्वास था कि मनुष्य का निर्माण सौरमण्डल के तारों की भस्म से हुआ है और उसी मनुष्य से मनुष्य की तरह नहीं पेश आया जा रहा है। लेकिन इस बेहतरीन प्रतिभा को, जिसने सदियों का संताप सहन कर, हजारों साल की यातनाओं को अपने कंधों पर ढोकर, इक्कीसवीं सदी के भारत में- अंबेडकर के भारत में, मेहनत, मजदूरी करके ‘कार्ल सेगान’ जैसा ब्रह्मांडविद् विज्ञान लेखक बनने का सपना देखा था, इस देश की क्रूर और अमानवीय सवर्णवादी, ब्राह्मणवादी व्यवस्था अजगर की भाँति निगल गई। ऐसा केवल दलितों के साथ ही क्यों होता है?
रोहिथ ने कुलपति पी. अप्पा राव को पहले भी एक पत्र में लिखा था कि वे दलित छात्रों को प्रवेश के समय 10-10 मिलीग्राम सोडियम अजाइड (घातक रासायनिक विष) दे दिया करें जिससे उन्हें और उनके कैंपस को शांति मिल जाय। साथ ही यह भी लिखा था कि वे विश्वविद्यालय के सभी दलित छात्रों के हॉस्टल-कमरों में एक-एक ढंग की रस्सी पहुँचा दें जिससे उन्हें फाँसी लगाने में आसानी रहे। उसने अपने जैसे छात्रों के लिए कुलपति से ‘इच्छामृत्यु’ की माँग की थी। रोहिथ ने कुलपति को लिखा कि ‘डोनाल्ड ट्रंप’ भी तुम्हारे सामने कुछ नहीं है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जो कि भाजपा और आरएसएस का बगलबच्चा संगठन है इन दिनों सत्ता के घमंड में चूर है और उसके हौंसले बढ़े हुए हैं। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र-संघ के चुनाव में एबीवीपी बुरी तरह हार गई थी। अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन के जीतने से एबीवीपी खुन्नस में था। इसीलिए सत्ता समर्थित एक छात्र-नेता ने रोहिथ को आत्महत्या के लिए विवश कर दिया। लेकिन इससे पूर्व छात्रों की राजनीति में बढ़़ी राजनैतिक मछलियों की ऐसी उछल-कूद नहीं देखी गई थी। यद्यपि देखा जाय तो रोहिथ को प्रताडि़त करने में मनुवादी मोदी सरकार के दो केंद्रीय मंत्रियों ने ही नहीं सवर्ण नौकरशाही ने भी पूरी दिलचस्पी दिखाई। इससे पता चलता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन पर भी कितना अधिक राजनैतिक दबाव था। ये वे भारतीय विश्व विद्यालय हैं जिन्हें स्वायत्त कहा जाता है। प्रकारांतर से भारतीय लोकतन्त्र का पर्याय ही सवर्णतंत्र है। स्मृति ईरानी को नॉननेट फेलोशिप के मुद्दे पर देश भर के छात्रों को उत्तर देने में भले ही चार महीने से अधिक समय लग गया लेकिन रोहिथ को विश्वविद्यालय से निलंबित करने के लिए उनके सचिवों ने एमएचआरडी शास्त्री भवन से पाँच पत्र लिखे। सचिव स्तर के ये अफसर भी सवर्ण ही होंगे इसलिए एक दलित छात्र की जान लेने में उन्हें कैसा संकोच होता। उनके बच्चे तो कहीं विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे होंगे।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जो पाँच पत्र लिखे गए हैं उनमें से पहला एक ई-मेल है जो हैदराबाद केंद्रीय विश्व विद्यालय के रजिस्ट्रार के नाम संबोधित है और जिसे अंडर सेक्रेटरी ‘रामजी पाण्डेय’ ने भेजा है। इसमें मोदी सरकार के मंत्री बंडारू दत्तात्रेय की सिफारिश का जिक्र है। दूसरे पत्र में 24 सितंबर दिनांक अंकित है जिसे डिप्टी सेक्रेटरी सुबोध कुमार घिल्डियाल ने विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को भेजा है। इस पत्र में हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का हवाला दिया गया है। तीसरा समान पत्र भी डिप्टी सेक्रेटरी सुबोध कुमार घिल्डियाल ने 6 अक्तूबर को हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति के नाम भेजा। 20 अक्तूबर को हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में मानव संसाधन विकास मंत्रालय से चैथा पत्र भेजा गया। यह पत्र संयुक्त सचिव सुखबीर सिंह संधू ने कुलपति को संबोधित करके भेजा। पाँचवा और निर्णायक पत्र पुनः ब्राह्मण अंडर सेक्रेट्री रामजी पाण्डेय ने 19 नवंबर को कुलपति को संबोधित करके भेजा। इस पत्र में यह उल्लेख किया गया है कि विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से अभी तक इस मामले में कोई उत्तर क्यों नहीं दिया गया है? इस प्रकार एक अदना एबीवीपी छात्रनेता से लेकर वीआईपी मंत्री और आला दर्जे के नौकरशाह तक इस कांड में शरीक हैं। जिसमें एक ब्राह्मण सचिव ने अतिरिक्त स्फूर्ति दिखाई है। इन सब के हाथ एक प्रतिभाशाली दलित रिसर्च स्कॉलर के खून से रंगे हुए हैं। तिस पर भी मोदी सरकार की अत्यंत प्रिय, चुनाव हारी हुई, इंटर पास, मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने इस पूरे मामले का बचाव करने की निहायत घृणित और बेशर्मी भरी कोशिश की और रोहिथ की आत्महत्या को जातीय उत्पीड़न से अलग बताया। उनसे यह प्रश्न किया जा सकता है कि क्या वे एक सवर्ण छात्र के साथ भी ऐसा करने की जुर्रत कर पातीं? प्रधानमंत्री मोदी ने भी लखनऊ में एक भाषण के दौरान इस पूरे प्रकरण पर घडि़याली संवेदना प्रकट की लेकिन दोषियों पर किसी तरह की कार्रवाई करने से अभी तक बच रहे हैं। यदि वे सचमुच एक दलित माँ के बेटे हैं तो अपने मंत्रियों का इस्तीफा क्यों नहीं लेते? जबकि सब कुछ पूरी तरह स्पष्ट है कि यह मोदी सरकार द्वारा समर्थित एक ब्राह्मणवादी, सांस्थानिक हत्या है।
सवर्ण मीडिया से ऐसे मामलों पर किसी तरह की उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी लेकिन जब देश की जनता ने इस घटना को पूरी सजगता और रोष के साथ सोशल मीडिया एवं अन्य माध्यमों के साथ सामने रखा तो मीडिया ने भी उसका अपनी राजनैतिक निष्ठा के साथ सकारात्मक-नकारात्मक अनुसरण किया। इसका क्या अर्थ निकाला जाय कि दलितों का इस देश में कोई नहीं है? क्या संघ का अंबेडकर प्रेम केवल एक छल और धूर्तता है? क्या प्रधानमंत्री की अंबेडकर की प्रतिमा के सामने सुलगाई गईं अगरबत्तियाँ केवल एक कुत्सित प्रपंच है? देश की दलित जनता के लिए, प्रधानमंत्री में क्या अपने मंत्रियों से इस्तीफा लेने का साहस भी नहीं है? जिनके नाम से उन्होंने हाल ही में हुए बिहार चुनाव में यह कहते हुए वोट माँगे थे कि वे एक दलित माँ के बेटे हैं। वस्तुतः स्वयं को पिछड़ा बताने वाले प्रधानमंत्री ने लगभग दो वर्ष के शासन में यह सिद्ध कर दिया कि वह ब्राह्मणवादी कठपुतली मात्र हंै। सरकार के कई बड़े मंत्रियों ने इस बार भी पूर्व जैसे ही कुंठित बयान दिए। हरियाणा में दो दलित बच्चों को जिंदा जलाए जाने पर सरकार के मंत्री वी.के. सिंह ने दलितों को कुत्ता कहा था। अबकी सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि जो लोग रोहिथ वेमुला की आत्महत्या पर विरोध, प्रदर्शन कर रहे हैं वे व्यवस्था का पीछा करने वाले कुत्ते हैं। भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसे गैरजिम्मेदार और कुंठित बयान कभी नहीं दिए गए। यह बयान देश की उस दलित जनता की पीड़ा पर दिए गए जिन्होंने मोदी सरकार बनाने के लिए अपना अस्सी फीसदी वोट 2014 के आम चुनावों में दिया है।
रोहिथ वेमुला की माँ को आठ लाख रुपयों की सहायता राशि की पेशकश की गई थी लेकिन रोहिथ की माँ ने यह कहकर इस राशि को ठुकरा दिया कि जब तक दोषियों पर कार्रवाई नहीं की जाएगी आठ लाख तो क्या वह आठ करोड़ रूपये भी नहीं लेंगी। उसे यह बताया जाय कि उसके होनहार बेटे की जान क्यों और किसने ली? रोहिथ वेमुला की सांस्थानिक ब्राह्मणवादी हत्या ने एक बार फिर से भारतीय जातिव्यवस्था की सड़ी परतें उघाड़ दी हैं। यह सुशिक्षित, भद्रजनों का जातिवाद है। यह प्रोफेसरों, कुलपतियों, नौकरशाहों और कैबिनेट मंत्रियों का जातिवाद है। यहाँ पर एक यक्ष प्रश्न खड़ा होता है कि यदि रोहिथ वेमुला के स्थान पर एक सवर्ण छात्र होता तो क्या तब भी यह सारी मशीनरी इसी तरह काम करती? इक्कीसवीं सदी में ब्राह्मणवाद और भी खूँखार हो गया है। पौराणिक द्रोणाचार्य ने तो केवल एकलव्य का अंगूठा ही माँगा था जिससे वह उनके प्रिय क्षत्रिय शिष्य अर्जुन की बराबरी न कर ले, लेकिन उत्तर, आधुनिक द्रोणाचार्यों ने एकलव्यों को फाँसी पर लटकने पर मजबूर कर दिया है। रोहिथ वेमुला की मौत के बहाने से ही सही, हमें भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में व्याप्त विषैले ब्राह्मणवाद से लेकर कार्पोरेटी पूँजी के बेलगाम घोड़े पर सवार सत्ता में आ गए इस नव-ब्राह्मणवाद की नकेल भी कसनी होगी। तभी हम भारत रत्न भीमराव अंबेडकर की सवा सौंवी जयंती मनाने के लायक होंगे।
-संतोष अर्श
लोकसंघर्ष पत्रिका के मार्च 2016 अंक में प्रकाशित
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