आधुनिक युग में सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम है। जिसके द्वारा हम समाज के सभी पहलुओं को उठाने का कार्य करते हैं। चाहे वह आर्थिक हो, सामाजिक या फिर राजनैतिक सभी प्रकार की गतिविधियों को सोशल मीडिया ने अपने अंदर समा लिया है । किसी भी लोकतंत्र के सबसे महत्त्वपूर्ण स्तंम्भ होते हंै न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और पत्रकारिता। वर्तमान समय में पत्रकारिता ने देश के अधिकतर मनुष्यों को अपने कार्य में परोक्ष रूप से भागी बनाया है। क्योंकि उसका सबसे बड़ा कारण है-सोशल साइट्स, सोशल साइट्स ही वर्तमान मीडिया का आधुनिक रूप है। इसलिए बहुत से विद्वान सोशल मीडिया को पत्रकारिता की माता भी स्वीकार करते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है, सोशल साइट्स पर हैश टैग करके किसी भी मुद्दे को इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंट मीडिया को मुहैया कराना, इसके बाद उस मुद्दे पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संज्ञान लेती भी है, या नहीं उसका भी एक कारण है ज्त्च्!! यदि किसी चैनल विशेष को ऐसा प्रतीत होता है कि मुद्दा उनकी विचारधारा के अनुकूल है, तो उस पर बहस होती है, अन्यथा उसको ठंडे बस्ते में डालकर छोड़ दिया जाता है, लेकिन सबसे सशक्त माध्यम सोशल मीडिया पर हैश टैग करके मुद्दों को आगे बढ़ाया जाता है, कभी-कभी मुद्दा केवल सोशल मीडिया से ही आगे बढ़ता है और राजनेताओं तक पहुँच जाता है, जिससे कोई भी सांसद उस मुद्दे को संसद में उठाकर पक्ष या विपक्ष पर वार करता है। सोशल मीडिया का यदि हम विश्लेषण करें तो लगभग 200 साइट्स हैं, मुख्यतः हमारे मस्तिष्क में फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, ब्लॉग और व्हाट्सएप्प आदि का नाम सर्वप्रथम आता है, क्योंकि इन माध्यमों से कोई भी सूचना माइक्रोसैकेण्ड के अनुसार देश-विदेश में पहुँच जाती है और क्रिया प्रतिक्रिया भी तुरंत प्राप्त हो जाती है। सोशल मीडिया की लोकप्रियता का अंदाजा इस वैश्विक परिवेश में अमरीका के यूनाइटेड साइबर स्कूल से लगाया जाता है। विभिन्न संचार माध्यमों को जन-जन तक पहँुचने में काफी समय लगा जैसे रेडियो को अड़तीस साल, टी.वी. को तेरह साल तथा इन्टरनेट को चार साल और फेसबुक जैसी साइट्स को सौ मिलियन लोगों तक पहुँचने में मात्र नौ महीने लगे। उसके बाद आवश्यक्तानुसार सोशल साइट्स आती रही और कम समय में अपनी प्रसिद्धि को प्राप्त होती रही। सोशल साइट्स केवल युवाओं को ही नहीं पसंद है, बल्कि अमरीका के साठ से अस्सी साल तक के बुजुर्ग इस पर सक्रिय रहते हैं। अब यह संख्या भारत में भी बहुत तेज गति से आगे बढ़ रही है।
सोशल साइट्स ने आम लोगों को अभिव्यक्ति का ऐसा स्वतंत्र माध्यम दिया है, जिसके जरिए वह अपनी बात दुनिया के किसी भी व्यक्ति को पलक झपकते ही पहुँचा सकता है और उसका परिणाम पॉजिटिव या नेगेटिव चिह्न में प्राप्त कर सकता है। वर्तमान समय में युवा जानकारी के लिए अधिकतर सोशल मीडिया पर ही निर्भर रहता है। यह बात दूसरी है कि जानकारी का स्रोत प्रामाणिक है या अप्रामाणिक। संयुक्त राष्ट्र अमरीका में पचहत्तर प्रतिशत लोग अपनी जानकारी को बढ़ाने के लिए ब्लॉग का प्रयोग करते हैं। एक तरह से सूचनाओं, जानकारियों का विकेंद्रीकरण हुआ है। क्योंकि अब लोग किसी सूचना के लिए व्यक्ति या संस्था पर आश्रित नहीं हैं, बल्कि बस एक क्लिक करके सूचनाओं का भण्डार आपके समक्ष खुल जाता है और आप उपयोगी जानकारियों का संग्रह करके उसका आवश्यकतानुसार प्रयोग भी कर सकते हैं तथा कुछ सेकण्ड में अपनी प्रतिक्रिया पक्ष या विपक्ष में भी व्यक्त कर सकते हैं जबकि पारम्परिक मीडिया में आप अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर सकते, जो खबर आपको प्रसारित की गई है उसकी प्रामाणिकता में भी संशय रहता है। यदि हम सूचनाओं और आंदोलनों का अवलोकन करें, तो हम देखते हैं कि अनेक आंदोलनों का मुख्य सूचना का माध्यम सोशल साइट्स ही था जैसे अरब क्रांति, वाल स्ट्रीट, लीबिया, मिश्र और ट्यूनीशिया आदि देशो में भी आंदोलनों को मुखर रूप देने का कार्य सोशल साइट्स ने ही किया जिससे सत्ता पक्ष की चूलें हिलती हुई नजर आईं और युवाओं ने अपनी अभिव्यक्ति से वहाँ की तानाशाही सरकारों को सत्ता से बाहर कर दिया। यदि हम भारत के परिप्रेक्ष्य में दृष्टिपात करें तो हम देखते हैं कि अन्ना हजारे का आन्दोलन हो या फिर बाबा रामदेव का आन्दोलन हो, सबको मुख्यतः सोशल मीडिया ने ही रंग दिया और उस आन्दोलन ने सफल होते हुए तत्कालीन सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, जिससे आगामी चुनाव में उसको सत्ता से हाथ धोना पड़ा और युवाओं को तत्कालीन सरकार की भ्रष्टाचारी नीतियों से भी अवगत कराया गया।
वर्तमान सरकार का यदि हम मूल्यांकन करें तो हम देखते हैं कि प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अधिकतर सत्ता के गलियारों से संचालित होती है, जिससे सत्ता के षड्यंत्र और दमनकारी नीतियों का लोगों को पूर्णतया पता नहीं चल पाता, जो हल्की फुलकी खबरें भी मालूम होती हैं उसमें कुछ खास जनता को जागरूक करने के लिए नहीं होता। सोशल मीडिया ने सत्ता की सभी दमनकारी नीतियों और षड्यंत्रकारी कार्यों का विश्लेषण तर्कपूर्ण करके उसको बहुत हद तक बैकफूट पर लाकर खड़ा कर दिया है, जैसे शिक्षा नीति हो या फिर धर्म से षड्यंत्र की नीति, नित्य रोज नए-नए शगूफों के माध्यम से वर्तमान सरकार बहुसंख्यक को रिझाने के लिए धार्मिक उन्माद, मानसिकता, साम्प्रदायिकता, लव जिहाद, गोमांस प्रकरण, रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या या फिर कन्हैया कुमार और उनके साथियों को देशद्रोही साबित करने का षड्यंत्र हो, इन सब काले कारनामों को युवाओं ने सोशल मीडिया के ही माध्यम से हैश टैग किया और अपने आन्दोलन को देशभर के लोगों तक पहुँचाया, जो बाद में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने भी कुछ प्रसारित किया। मुख्यतः सोशल मीडिया ने इन सब आंदोलनों को सबसे अधिक कवरेज दिया और यह जन आन्दोलन के रूप में परिवर्तित हो पाया।
जिस प्रकार से सोशल साइट्स को लोग अपने धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक कार्यों के लिए प्रयोग करते हैं, ठीक उसी प्रकार कुछ सांप्रदायिक ताकतंे भी इसका प्रयोग करके अपनी कुंठाग्रस्त इच्छाओं की भी पूर्ति करती हैं, जैसे असम हिंसा में लोगों को भयभीत करके उनको पलायन के लिए मजबूर किया गया। आजकल भारत में भी वीडियो या मैसेज के माध्यम से देश में घृणा का माहौल उत्पन्न करके राजनैतिक लाभ साधा जाता है, जैसे मुजफ्फरनगर दंगे से पहले कुछ राजनेताओं ने वहाँ की जनता को उलटी सीधी वीडियो दिखाकर एक धर्म विशेष के खिलाफ आक्रोशित करके मानवता का कत्ल कराया, जिससे पूरी मानवता उसके लिए शर्मशार हुई। दूसरी तरफ आजकल साइबर आतंकवाद भी इसका दुरुपयोग धड़ल्ले से कर रहा है। आम लोगों की तरह आतंकवादी भी इसका उपयोग अपने नापाक इरादों को अंजाम देने के लिए कर रहे हैं, जिसमें छद्म नामों से फेसबुक, ट्वीटर आदि पर अपनी फेक आईडी बनाकर मासूम नौजवानों को अपने चंगुल में फंसाकर और धन का लालच देकर उनका दोहन करके अपनी कुंठाग्रस्त इच्छाओं की पूर्ति कर रहे हैं। आजकल फेसबुक और व्हाट्सएप्प के माध्यम से नफरत फैलाने का कार्य चरम सीमा पर है। इसमें कार्य करने वाले कुछ ऐसे लोग हैं, जिनको राजनैतिक पार्टियाँ अपने हित को साधने के लिए धर्म की मखमली चादर में लपेटे हुए हैं। पार्टियाँ यह कार्य मैसेज, फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर अपने किराए के यूजर से कराती हैं, जिससे समाज में तर्कहीन और तथ्यहीन जानकारी पहुँचती है, जिससे सामज को तोड़कर अपने वोट बैंक की पॉलिटिक्स को साधा जाता है। ऐसे आरोप देश की अनेक राजनैतिक पार्टियों को लग चुके हैं जैसे-कांग्रेस, बीजेपी और आप।
इसकी सच्चाई जानने के लिए आप फेसबुक के हिंदी या अंग्रेजी न्यूज चैनल के आधिकारिक फेसबुक पेज पर जाएँ, तो देखेंगे कि हर तीसरा कमेंट एक जैसा होगा तथा उसमें तथ्यहीन, कुतर्क सम्मत जानकारी होगी, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह कमेंट किसी एक व्यक्ति ने प्रचारित किया है अपनी पार्टियों की राजनैतिक महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए। सोशल साइट्स को आजकल कुछ पारंगत लोग आईडी, ईमेल हैक करके उसका दुष्प्रयोग कर रहे हैं, जैसे विकिलीक्स ने बहुत सारे खुलासे विभिन्न देशों के सन्दर्भ में किए। जिसमें पूँजीपति देशों की मंशा और उनके राजनैतिक कूटनीति का पता चलता है। सोशल साइट्स को कम उम्र के बच्चे ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, जो कि अभी किशोरावस्था में हैं जिससे उनके ऊपर मानसिक, शारीरिक और व्यावहारिक तौर पर असर देखने को मिल रहा है कुछ वयस्क और अवयस्क लोग सोशल साइट्स पर आपत्तिजनक वीडियो और फोटो शेयर करते हैं, जिससे टीनेजर में कामुकता और समय से पहले वयस्क होने की प्रवृत्ति को वे महसूस करने लगते हैं जो कि सभ्य समाज के लिए अत्यंत घातक है तथा मनोवैज्ञानिक तौर पर भी बच्चे का व्यवहार माता-पिता और समाज के लिए सही नहीं होता है। एक शोध से मालूम हुआ है कि फेसबुक का प्रयोग करने वाले एक करोड़ से ज्यादा सदस्य चैदह साल से कम आयु के हैं।
आजकल सोशल साइट्स सिर्फ अपनी बात और विचार रखने भर का माध्यम नहीं रह गया है, बल्कि यह रिश्तों को जोड़ने का भी माध्यम है, जिस प्रकार से सोशल साइट्स पर केवल नफरत ही नहीं परोसी जाती हैं बल्कि मोहब्बत के भी रंग भरे जाते हंै जहाँ पर बहुत से नए मित्र बनते है, वहीं दूसरी तरफ पुराने मित्र भी मिलते हैं और अपने व्यक्तिगत जीवन को एक-दूसरे से शेयर करते हैं, जिसके माध्यम से देश-विदेश में बैठे पुराने या नए मित्रों से बात पल भर में हो जाती है। वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालें तो देश-विदेश में बैठे रिश्तेदारों से आजकल पल भर में अनेक सोशल साइट्स के माध्यम से वीडियो कालिंग हो जाती है, जिससे रिश्तों में एक अलग मिठास का अनुभव होता है और रिश्ते मजबूत बने रहते हैं।
वर्तमान समय में हम सोशल मीडिया का सही उपयोग करके समाज को कुछ बेहतर प्रस्तुत कर सकते हैं, यदि देश और राज्य की सरकारों ने इस पर समय रहते काबू नहीं पाया तो आए दिन बढ़ती मानसिक साम्प्रदायिकता और नफरत का माहौल नहीं रुक पाएगा, जो इस सभ्य समाज के लिए हानिकारक है। अर्थात हम कह सकते हैं कि यदि सही प्रयोग किया गया तो सोशल मीडिया, सोशल मीडिया ही रहेगा, वरना शोषण मीडिया बनकर समाज को अनेक प्रकार से ठगता रहेगा। इसके सही प्रयोग से हमारी पहचान देश ही नहीं विश्व स्तर पर बनेगी और हम वसुधैव कुटुम्बकम् का सही मतलब दुनिया को समझा पाएँगे।
-अकरम हुसैन
मोबाइल - 08791633435
लोकसंघर्ष पत्रिका के जून 2016 में प्रकाशित
सोशल साइट्स ने आम लोगों को अभिव्यक्ति का ऐसा स्वतंत्र माध्यम दिया है, जिसके जरिए वह अपनी बात दुनिया के किसी भी व्यक्ति को पलक झपकते ही पहुँचा सकता है और उसका परिणाम पॉजिटिव या नेगेटिव चिह्न में प्राप्त कर सकता है। वर्तमान समय में युवा जानकारी के लिए अधिकतर सोशल मीडिया पर ही निर्भर रहता है। यह बात दूसरी है कि जानकारी का स्रोत प्रामाणिक है या अप्रामाणिक। संयुक्त राष्ट्र अमरीका में पचहत्तर प्रतिशत लोग अपनी जानकारी को बढ़ाने के लिए ब्लॉग का प्रयोग करते हैं। एक तरह से सूचनाओं, जानकारियों का विकेंद्रीकरण हुआ है। क्योंकि अब लोग किसी सूचना के लिए व्यक्ति या संस्था पर आश्रित नहीं हैं, बल्कि बस एक क्लिक करके सूचनाओं का भण्डार आपके समक्ष खुल जाता है और आप उपयोगी जानकारियों का संग्रह करके उसका आवश्यकतानुसार प्रयोग भी कर सकते हैं तथा कुछ सेकण्ड में अपनी प्रतिक्रिया पक्ष या विपक्ष में भी व्यक्त कर सकते हैं जबकि पारम्परिक मीडिया में आप अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर सकते, जो खबर आपको प्रसारित की गई है उसकी प्रामाणिकता में भी संशय रहता है। यदि हम सूचनाओं और आंदोलनों का अवलोकन करें, तो हम देखते हैं कि अनेक आंदोलनों का मुख्य सूचना का माध्यम सोशल साइट्स ही था जैसे अरब क्रांति, वाल स्ट्रीट, लीबिया, मिश्र और ट्यूनीशिया आदि देशो में भी आंदोलनों को मुखर रूप देने का कार्य सोशल साइट्स ने ही किया जिससे सत्ता पक्ष की चूलें हिलती हुई नजर आईं और युवाओं ने अपनी अभिव्यक्ति से वहाँ की तानाशाही सरकारों को सत्ता से बाहर कर दिया। यदि हम भारत के परिप्रेक्ष्य में दृष्टिपात करें तो हम देखते हैं कि अन्ना हजारे का आन्दोलन हो या फिर बाबा रामदेव का आन्दोलन हो, सबको मुख्यतः सोशल मीडिया ने ही रंग दिया और उस आन्दोलन ने सफल होते हुए तत्कालीन सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, जिससे आगामी चुनाव में उसको सत्ता से हाथ धोना पड़ा और युवाओं को तत्कालीन सरकार की भ्रष्टाचारी नीतियों से भी अवगत कराया गया।
वर्तमान सरकार का यदि हम मूल्यांकन करें तो हम देखते हैं कि प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अधिकतर सत्ता के गलियारों से संचालित होती है, जिससे सत्ता के षड्यंत्र और दमनकारी नीतियों का लोगों को पूर्णतया पता नहीं चल पाता, जो हल्की फुलकी खबरें भी मालूम होती हैं उसमें कुछ खास जनता को जागरूक करने के लिए नहीं होता। सोशल मीडिया ने सत्ता की सभी दमनकारी नीतियों और षड्यंत्रकारी कार्यों का विश्लेषण तर्कपूर्ण करके उसको बहुत हद तक बैकफूट पर लाकर खड़ा कर दिया है, जैसे शिक्षा नीति हो या फिर धर्म से षड्यंत्र की नीति, नित्य रोज नए-नए शगूफों के माध्यम से वर्तमान सरकार बहुसंख्यक को रिझाने के लिए धार्मिक उन्माद, मानसिकता, साम्प्रदायिकता, लव जिहाद, गोमांस प्रकरण, रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या या फिर कन्हैया कुमार और उनके साथियों को देशद्रोही साबित करने का षड्यंत्र हो, इन सब काले कारनामों को युवाओं ने सोशल मीडिया के ही माध्यम से हैश टैग किया और अपने आन्दोलन को देशभर के लोगों तक पहुँचाया, जो बाद में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने भी कुछ प्रसारित किया। मुख्यतः सोशल मीडिया ने इन सब आंदोलनों को सबसे अधिक कवरेज दिया और यह जन आन्दोलन के रूप में परिवर्तित हो पाया।
जिस प्रकार से सोशल साइट्स को लोग अपने धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक कार्यों के लिए प्रयोग करते हैं, ठीक उसी प्रकार कुछ सांप्रदायिक ताकतंे भी इसका प्रयोग करके अपनी कुंठाग्रस्त इच्छाओं की भी पूर्ति करती हैं, जैसे असम हिंसा में लोगों को भयभीत करके उनको पलायन के लिए मजबूर किया गया। आजकल भारत में भी वीडियो या मैसेज के माध्यम से देश में घृणा का माहौल उत्पन्न करके राजनैतिक लाभ साधा जाता है, जैसे मुजफ्फरनगर दंगे से पहले कुछ राजनेताओं ने वहाँ की जनता को उलटी सीधी वीडियो दिखाकर एक धर्म विशेष के खिलाफ आक्रोशित करके मानवता का कत्ल कराया, जिससे पूरी मानवता उसके लिए शर्मशार हुई। दूसरी तरफ आजकल साइबर आतंकवाद भी इसका दुरुपयोग धड़ल्ले से कर रहा है। आम लोगों की तरह आतंकवादी भी इसका उपयोग अपने नापाक इरादों को अंजाम देने के लिए कर रहे हैं, जिसमें छद्म नामों से फेसबुक, ट्वीटर आदि पर अपनी फेक आईडी बनाकर मासूम नौजवानों को अपने चंगुल में फंसाकर और धन का लालच देकर उनका दोहन करके अपनी कुंठाग्रस्त इच्छाओं की पूर्ति कर रहे हैं। आजकल फेसबुक और व्हाट्सएप्प के माध्यम से नफरत फैलाने का कार्य चरम सीमा पर है। इसमें कार्य करने वाले कुछ ऐसे लोग हैं, जिनको राजनैतिक पार्टियाँ अपने हित को साधने के लिए धर्म की मखमली चादर में लपेटे हुए हैं। पार्टियाँ यह कार्य मैसेज, फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर अपने किराए के यूजर से कराती हैं, जिससे समाज में तर्कहीन और तथ्यहीन जानकारी पहुँचती है, जिससे सामज को तोड़कर अपने वोट बैंक की पॉलिटिक्स को साधा जाता है। ऐसे आरोप देश की अनेक राजनैतिक पार्टियों को लग चुके हैं जैसे-कांग्रेस, बीजेपी और आप।
इसकी सच्चाई जानने के लिए आप फेसबुक के हिंदी या अंग्रेजी न्यूज चैनल के आधिकारिक फेसबुक पेज पर जाएँ, तो देखेंगे कि हर तीसरा कमेंट एक जैसा होगा तथा उसमें तथ्यहीन, कुतर्क सम्मत जानकारी होगी, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह कमेंट किसी एक व्यक्ति ने प्रचारित किया है अपनी पार्टियों की राजनैतिक महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए। सोशल साइट्स को आजकल कुछ पारंगत लोग आईडी, ईमेल हैक करके उसका दुष्प्रयोग कर रहे हैं, जैसे विकिलीक्स ने बहुत सारे खुलासे विभिन्न देशों के सन्दर्भ में किए। जिसमें पूँजीपति देशों की मंशा और उनके राजनैतिक कूटनीति का पता चलता है। सोशल साइट्स को कम उम्र के बच्चे ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, जो कि अभी किशोरावस्था में हैं जिससे उनके ऊपर मानसिक, शारीरिक और व्यावहारिक तौर पर असर देखने को मिल रहा है कुछ वयस्क और अवयस्क लोग सोशल साइट्स पर आपत्तिजनक वीडियो और फोटो शेयर करते हैं, जिससे टीनेजर में कामुकता और समय से पहले वयस्क होने की प्रवृत्ति को वे महसूस करने लगते हैं जो कि सभ्य समाज के लिए अत्यंत घातक है तथा मनोवैज्ञानिक तौर पर भी बच्चे का व्यवहार माता-पिता और समाज के लिए सही नहीं होता है। एक शोध से मालूम हुआ है कि फेसबुक का प्रयोग करने वाले एक करोड़ से ज्यादा सदस्य चैदह साल से कम आयु के हैं।
आजकल सोशल साइट्स सिर्फ अपनी बात और विचार रखने भर का माध्यम नहीं रह गया है, बल्कि यह रिश्तों को जोड़ने का भी माध्यम है, जिस प्रकार से सोशल साइट्स पर केवल नफरत ही नहीं परोसी जाती हैं बल्कि मोहब्बत के भी रंग भरे जाते हंै जहाँ पर बहुत से नए मित्र बनते है, वहीं दूसरी तरफ पुराने मित्र भी मिलते हैं और अपने व्यक्तिगत जीवन को एक-दूसरे से शेयर करते हैं, जिसके माध्यम से देश-विदेश में बैठे पुराने या नए मित्रों से बात पल भर में हो जाती है। वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालें तो देश-विदेश में बैठे रिश्तेदारों से आजकल पल भर में अनेक सोशल साइट्स के माध्यम से वीडियो कालिंग हो जाती है, जिससे रिश्तों में एक अलग मिठास का अनुभव होता है और रिश्ते मजबूत बने रहते हैं।
वर्तमान समय में हम सोशल मीडिया का सही उपयोग करके समाज को कुछ बेहतर प्रस्तुत कर सकते हैं, यदि देश और राज्य की सरकारों ने इस पर समय रहते काबू नहीं पाया तो आए दिन बढ़ती मानसिक साम्प्रदायिकता और नफरत का माहौल नहीं रुक पाएगा, जो इस सभ्य समाज के लिए हानिकारक है। अर्थात हम कह सकते हैं कि यदि सही प्रयोग किया गया तो सोशल मीडिया, सोशल मीडिया ही रहेगा, वरना शोषण मीडिया बनकर समाज को अनेक प्रकार से ठगता रहेगा। इसके सही प्रयोग से हमारी पहचान देश ही नहीं विश्व स्तर पर बनेगी और हम वसुधैव कुटुम्बकम् का सही मतलब दुनिया को समझा पाएँगे।
-अकरम हुसैन
मोबाइल - 08791633435
लोकसंघर्ष पत्रिका के जून 2016 में प्रकाशित
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