
धारा 144 लागू होने और पुलिस बल की नाक के नीचे फरीदाबाद में दंगाइयों की भीड़ जमा होने की खबरें गश्त करने लगीं। दोपहर बाद तीन बजे के करीब भाजपा के बाहुबली नेता रमाकांत यादव अपने दल बल के साथ खोदादादपूर दलित बस्ती में करीब दस मिनट रुकने के बाद फरीदाबाद गए और पाँच बजे तक कई अन्य गाँवों का दौरा किया। भाजपा जिला अध्यक्ष सहजानंद राय भी आ गए। भीड़ तेज़ी से बढ़ने लगी। करीब डेढ़ से दो हज़ार लोग फरीदाबाद में मुख्य सड़क से इतने करीब इकट्ठा थे कि कोई भी आने जाने वाला आसानी से उसे देख सकता था। उतनी ही भीड़ उनकी उत्तर दिशा में रेलवे लाइन के पास और दक्षिण दिशा में नहर के दूसरी तरफ भी मौजूद थी। वहाँ से गुज़रने वालों ने तो उस भीड़ को देखा और अनुमान भी लगा लिया कि अगले कुछ घंटों में क्या होने वाला है लेकिन जिला प्रशासन और फरीदाबाद में तैनात पुलिस बल ने कुछ नहीं देखा। पुलिस की निष्क्रियता को देखते हुए समाजवादी पार्टी के हिंदू मुस्लिम सभी नेताओं से सम्पर्क किया गया लेकिन उन्होंने यह कह कर घटना स्थल तक आने से इनकार कर दिया कि प्रशासन ने नेताओं के वहाँ जाने पर रोक लगा रखी है और वह प्रशासन से सम्पर्क में हैं। शाम को करीब साढ़े पाँच से पौने छः बजे के बीच फरीदाबाद मे मौजूद दंगाई भीड़ ने अचानक खोदादादपूर गाँव पर पूरब से हमला कर दिया। हाथों में तेल के गैलन, लाठी, भाला और तमंचे लिए हुए तेज़ी से गाँव के बिल्कुल करीब पहुँच गए। गाँव के लोगों ने बहुत कम संख्या बल के बावजूद उनका मुकाबला किया और उन्हें भागने पर विवश कर दिया। जिस समय भीड़ हमलावर थी उस समय घटना स्थल से थोड़ी ही दूर दो ट्रक पीएसी के जवान मौजूूद थे लेकिन मूक दर्शक बने रहे, पुलिस अधिकारियों ने भी कोई जुंबिश नहीं की। इसी दौरान डीएम आज़मगढ़ भी वहाँ पहुँच गए और पीएसी के जवानों के साथ भागती हुई भीड़ को वापस फरीदाबाद तक ले गए।
कुछ देर बाद भीड़ वहाँ से बिखर गई। रेलवे लाइन के पास और नहर के दूसरी तरफ की भीड़ जो अपनी जगह खड़ी पूरा नज़ारा देख रही थी, छंटने लगी। फरीदाबाद से वापस जाती हुई दंगाइयों की टोलियों ने फरीदाबाद के पूर्व बनगाँव बाज़ार जहाँ मुसलमानों की केवल पाँच दुकानें थीं, को लूटा और जलाया और पास में ही स्थित शेखावत की आरा मशीन को तेल छिड़क कर आग लगी दी। इसके साथ ही दंगा कई किलोमीटर के दायरे में फैल गया। रात में करीब आधा दर्जन से अधिक जगहों पर राहगीरों में मुसलमानों की पहचान करके महिलाओं बच्चों समेत पचास से ज़्यादा लोगों को बुरी तरह पीटा और लूटा गया, कई वाहनों में तोड़फोड़ की गई और जलाया गया। भारी संख्या में पुलिस व पीएसी बल की मौजूदगी के बावजूद प्रशासन नाम की कोई चीज़ कहीं दिखाई नहीं पड़ रही थी। देर रात तक अराजकता का माहौल बना रहा। अगले दिन 16 मई को प्रशासन अलग रंग में दिखा। गश्त बढ़ गई। रैपिड एक्शन फोर्स का मार्च शुरू हो गया। राहगीरों की पिटाई की एक घटना को छोड़ दें तो सब कुछ शान्त रहा। तीन दिनों के लिए इंटरनेट सेवाएँ बंद कर दी गईं। पास के बाज़ार और जिले के स्कूल कालेज भी बंद कर दिए गए। चैबीस घंटे में ही स्थिति काबू में आ गई और तीसरे दिन स्थिति काफी हद तक सामान्य हो गई। इसके बाद कानूनी कारवाई का सिलसिला शुरू हुआ। पहले दिन की घटना की पुलिस की तरफ से एफ.आई.आर. दर्ज की गई जो केवल मुसलमानों के खिलाफ थी। हत्या के प्रयास समेत कई अन्य गम्भीर धाराओं में 21 नामज़द और 250 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। इस बात की भी व्यवस्था की गई कि खोदादादपूर के लोगों का कहीं मेडिकल न होने पाए। जहाँ भी लोगों ने मेडिकल करवाने का प्रयास किया उन्हें साफ मना कर दिया गया। जिन राहगीरों को गम्भीर चोटें आई थीं उनको इलाज के नाम पर अस्पतालों से मरहम पट्टी करवाकर घर भेज दिया गया। जिनकी हड्डियाँ टूटी थीं उनका एक्स रे तक नहीं किया गया। दूसरी तरफ 15 मई को दंगाई भीड़ द्वारा खोदादादपूर पर किए जाने वाले एकतरफा दंगाई हमले को दो समुदायों के बीच टकराव का रूप दे दिया गया और कहा गया कि 100-150 हिंदू और 200-250 मुसलमानों की आपस में भिड़न्त हुई। हिंदू भीड़ की तरफ से मुसाफिर और दो तीन अन्य दलितों को नामज़द करते हुए इस बात का संकेत भी दे दिया गया कि यह टकराव दलितों और मुसलमानों के बीच हुआ। जबकि दंगाई भीड़ की तरफ से यादव समाज के लोग अग्रणी भूमिका में थे। यादव बहुल गाँव फरीदाबाद उसके केंद्र में था। जिन स्थानों पर राहगीरों पर हमले किए गए उनमें भी एक दो को छोड़कर सभी घटनाएँ यादव बहुल आबादी के गाँवों के पास ही हुई थीं। इस बीच हिंदी मीडिया पुलिस के प्रवक्ता की तरह काम करता रहा। दंगाई भीड़ के हमले या राहगीरों की इतने व्यापक स्तर पर पिटाई उनके लिए कोई खबर नहीं थी। दरअसल खोदादादपूर की घटना का राजनैतिक लाभ उठाने के लिए ही उसे हिंदू-मुस्लिम बनाया गया थी। इसकी तैयारी पहले से ही चल रही थी। पिछली होली में 24 मार्च को फरीदाबाद में कुछ युवकों ने मुख्यमार्ग पर होली खेलना शुरू कर दिया और आने जाने वालों पर रंग डालने लगे। जब उन्होंने दाढ़ी वाले मुसलमानों और बुरकापोश महिलाओं पर जबरन रंग डाला तो बात बढ़ गई। अपनी इस हरकत पर शर्मिन्दा होने के बजाए मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं को एकजुट करने के लिए कई हिंदू गाँवों में माहौल बनाने का उस समय प्रयास भी किया था लेकिन कामयाबी नहीं मिली थी। खोदादादपूर में एक दलित के घर में आगज़नी की घटना पर फरीदाबाद के यादव समाज की प्रतिक्रिया उनका दलित प्रेम नहीं मुस्लिम दुश्मनी और राजनैतिक पैंतरेबाज़ी थी। इस उदाहरण से इसे आसानी से समझा जा सकता है। ग्राम खिल्लूपूर के एक दलित युवक का एक यादव लड़की से प्रेम हो गया और दोनों घर से फरार हो गए। इस घटना से आक्रोशित फरीदाबाद के यादव नौजवानों ने तीन किलोमीटर दूर खिल्लूपूर जाकर उक्त दलित के घर में तोड़फोड़ की और पूरा घर जला कर राख कर दिया। हद तो यह है कि हैंड पम्प तक तोड़ डाला और महिलाओं को बुरी तरह मारा पीटा। दलित परिवार को घर छोड़ कर भागने पर मजबूर कर दिया। डेढ़ साल तक दलित परिवार को अपने ही घर वापस नहीं आने दिया और न ही उनकी एफआईआर किसी थाने में दर्ज होने दी। इसके बावजूद अगर उसी जगह से दलित अत्याचार के नाम पर बदला लेने के लिए दंगे जैसी स्थिति पैदा की जाती है तो उसे स्वभाविक कैसे माना जा सकता है? वास्तविकता यह है कि दलितों के कंधे पर बंदूक रख कर साम्प्रदायिक उन्माद उत्पन्न करने का यह पूरा खेल भाजपा और समाजवादी पार्टी का मिला जुला खेल है जिसमें एक ने दंगे जैसी स्थिति पैदा की तो दूसरे ने अपनी आँखें बंद कर लीं। इस घटना के बाद सपा को यह एहसास होने लगा कि यादव समाज भाजपा के बाहुबली नेता रमाकांत यादव की झोली में चला जाएगा जिसे बचाने के लिए उसने उन्हें मुकदमों के जंजाल से बचा कर एहसान कर दिया। दूसरी तरफ मुसलमानों पर बड़े पैमाने पर शान्तिभंग की आशंका 107/116 का नोटिस जारी कर दिया गया। इसमें वह गाँव भी शामिल हैं जो खोदादादपूर से कई किलोमीटर की दूरी पर है और उन जगहों पर कोई घटना भी नहीं हुई थी। इस तरह सपा के मुस्लिम नेताओं को यह मौका दिया गया कि वह मुसलमानों को इस नई बला से बचाने के नाम पर अपनी पार्टी का कृतज्ञ बना सकें। इस तरह जहाँ एक तरफ भाजपा दलित वोट बैंक में सेंधमारी की फिराक में है तो सपा नाराज़ मुसलमानों को अपने जाल में फँसाने के दाव खेल रही है।
-मसीहुद्दीन संजरी
मो 0 09455571488
लोकसंघर्ष पत्रिका के जून 2016 में प्रकाशित
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-07-2016) को "बरसो बदरवा" (चर्चा अंक-2391) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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