गुरुवार, 30 जून 2016

आज़मगढ़ दंगा-दलित कंधों पर साम्प्रदायिकता की बंदूक

राजनैतिक हलकों में इस बात की आशंका तो पहले से ही जताई जा रही थी कि उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक खेल खेला जा सकता है। आशंका यह भी थी कि पूर्वांचल और मध्य उत्तर प्रदेश इसकी चपेट में पहले आ सकते हैं। इस लिहाज़ से आज़मगढ़ का दंगा बहुत आश्चर्य में डालने वाला नहीं कहा जा सकता। लेकिन जिस तरह से एक छोटी सी घटना का लाभ दंगे के लिए उठाया गया वह सोचने पर मजबूर अवश्य करती है। इस पूरी घटना को दलित उत्पीड़न से जिस प्रकार जोड़ा गया वह भी गौर तलब है और दंगों के लिए साम्प्रदायिक ताकतों की पहले से तैयारी को भी जाहिर करता है। आमतौर यह होता आया है कि दंगे भड़काने के लिए किसी लड़की से छेड़छाड़, मूर्तियों को खंडित करने या किसी धार्मिक जुलूस पर पत्थरबाज़ी जैसे आरोप लगाए जाते रहे हैं लेकिन इस बार आज़मगढ़ के खोदादादपूर गाँव में एक मुस्लिम और दलित परिवार के बीच के आपसी रंजिश के मामले को जिस तरह से साम्प्रदायिक रूप दिया गया वह साम्प्रदायिक राजनीति की आगामी रणनीति का खुलासा करने के लिए काफी है। इसे समझने के लिए इस पूरे घटनाक्रम को समझने की ज़रूरत है। खोदादादपूूर आज़मगढ़-लखनऊ रोड पर स्थित गाँव से लगी हुई एक छोटी बाज़ार है जिसके पश्चिमी भाग पर रोड के दोनों तरफ दलित बस्ती है और मुस्लिम आबादी बाज़ार के उत्तर तरफ है। 14 मई की शाम को पहले से चली आ रही एक रंजिश को लेकर दलित युवक मुसाफिर राम ने कथित रूप से दानिश पर कट्टे से फायर किया लेकिन दानिश बच गया और पास में ही वालीबाल खेल रहे अपने गाँव के मुस्लिम नौजवानों की तरफ भागा। आक्रोशित युवकों ने अपने घर की तरफ भागते मुसाफिर का पीछा किया। उसके घर को घेर लिया लेकिन मुसाफिर अपने घर के पीछे से निकल कर फरार हो चुका था। पीछा करने वालों ने मुसाफिर के घर का सामान बाहर निकाल कर आग लगा दिया। जिस समय यह घटना घटित हो रही थी मौके पर एक सब इंस्पेक्टर और चार पाँच पुलिस वाले मौजूद थे लेकिन उन्होंने न तो मुसाफिर को पकड़ने की कोशिश की और न ही भीड़ को आगज़नी से रोकने का कोई प्रयास किया। मुसाफिर आपराधिक पृष्ठिभूमि का है। उस पर हत्या और छिनैती के कई मामले दर्ज हैं। फायर करने की घटना हमेशा ही उत्तेजित करने वाली होती है लेकिन पूरे घटनाक्रम को देखते हुए इस बात में संदेह नहीं रह जाता कि अगर मुसाफिर दलित न होता तो इस घटना से उपजा आक्रोश इस हद तक न होता कि घर का सामान निकाल कर आग के हवाले कर दिया जाता। करीब 6ः30 बजे शाम को फायर की घटना से शुरू होकर यह मामला करीब 7ः00 बजे शाम तक आगज़नी पर जाकर समाप्त हो गया। अब तक पुलिस बल की संख्या भी बढ़ चुकी थी। इस पूरी घटना में भीड़ ने दलित बस्ती के किसी भी दूसरे व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया और न ही किसी तरह का कोई टकराव हुआ और किसी को चोट आई। आक्रोशित भीड़ का रुख अब प्रशासन की तरफ मुड़ गया। उसने प्रशासन से मुसाफिर की तत्काल गिरफ्तारी और फायर की घटना के बाद मुसाफिर को पकड़ने का प्रयास न करने के लिए सब इंस्पेक्टर के निलंबन की माँग शुरू कर दी। धीरे-धीरे भीड़ बढ़ती गई और पुलिस बलों की संख्या भी। इस बीच जिले के उच्च अधिकारी भी मौके पर पहुँच गए लेकिन भीड़ अपनी जगह डटी रही। भीड़ में से कुछ लोगों ने पुलिस प्रशासन के खिलाफ अपशब्द कहे और डीएम आज़मगढ़ की विकलांगता को निशाना बनाते हुए आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया। स्थिति को बेकाबू होता देख प्रशासन ने लाठी चार्ज किया जिसके जवाब में पथराव हुआ और दोनों तरफ लोगों को चोटें आईं। इसके बाद पुलिस ने आँसू गैस के गोले छोड़े जो गाँव में काफी अंदर जाकर घरों में भी गिरे। भीड़ बिखर गई, भय का राज हो गया, हर तरफ खामोशी छा गई। यह सब कुछ रात में साढ़े आठ बजे तक होता रहा। हालाँकि मुसाफिर के घर पर आग लगाने की घटना हो या फिर पुलिस प्रशासन से दुव्र्यवहार का मामला गाँव में एक बड़ा वर्ग इसके खिलाफ था। उसने इसके खिलाफ आवाज़ भी उठाई लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली। उनमें से कुछ को तो भीड़ का आक्रोश भी झेलना पड़ा। करीब डेढ़ घंटे की खामोशी के बाद अचानक रात में दस बजे के करीब मुख्य मार्ग पर स्थित इलियास अंसारी के घर, जो बाज़ार में किसी मुसलमान का इकलौता घर है, का दरवाज़ा तोड़े जाने और महिलाओं की चीख़-पुकार की आवाज़ रात के सन्नाटे को चीरती हुई दूर तक सुनाई देने लगी। घर की महिलाओं और गाँव वालों का आरोप है कि दरवाज़ा आला अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस बल के लोगों ने तोड़ा था। इस घटना ने पूरे दृश्य को ही बदल दिया। खोदादादपूूर के पश्चिम में पड़ोस के गाँव दाऊदपूर के लोग रोड पर आ गए। खोदादादपूर की मस्जिद के लाउड स्पीकर से बिखर चुकी भीड़ को प्रशासन की ज़्यादती के खिलाफ एकजुट होने की अपील की जाने लगी। अब आक्रोश की जगह भय का माहौल बन चुका था। उधर दाऊदपूर से लोग घटना स्थल की तरफ बढ़ने लगे। लेकिन सही समय पर वहाँ की मस्जिद के लाउड स्पीकर से लोगों को आगे न बढ़ने की अपील की जाने लगी और साथ ही प्रशासन से अनुरोध किया गया कि रात में किसी तरह की कार्रवाई न की जाए। प्रशासन की तरफ से भी लाउड स्पीकर पर ही उक्त सम्बोधन के जवाब में आश्वस्त किया गया कि अब रात में कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। इस तरह से एक बड़ी घटना जिसके बहुत संगीन परिणाम हो सकते थे, टल गई। इसी दौरान खोदादादपूर दलित बस्ती से आग की लपटें उठती हुई दिखाई पड़ीं। तीन घरों में आग लगी थी और बाहर रखे सरपत-घास आदि जलकर खाक हो गए। लेकिन इस सवाल का जवाब मिलना बाकी है कि जिस स्थान पर सैकड़ों की संख्या में पुलिस व पीएसी के जवान तैनात थे ठीक उसके बीचो बीच घरों में आग कैसे लगी जबकि किसी असामाजिक तत्व के वहाँ तक पहुँचने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी? अब तक रात के साढ़े दस बज चुके थे। इस बीच खोदादादपूर से करीब 500-600 मीटर पूर्व में सड़क के किनारे स्थित यादव बहुल गाँव फरीदाबाद से खबरें आने लगीं कि वहाँ राहगीरों को रोक कर उनके धर्म की पहचान करके मुसलमानों को मारा पीटा जा रहा है और पुलिस बल की तैनाती के बाद भी यह सिलसिला जारी है। इसके बाद रात शान्ति से बीती। कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। खोदादादपूर में उसके बाद कोई छोटी सी भी घटना नहीं हुई। अब अराजकता का केंद्र खोदादादपूर की जगह फरीदाबाद बन चुका था। जनपद के बड़े अधिकारियों की मौजूदगी में घर का दरवाज़ा तोड़ने की घटना पुलिस द्वारा ठण्डे दिमाग से की गई कार्रवाई थी जिसे किसी भी तरह अनुमोदित नहीं किया जा सकता। इसे बदले की कार्रवाई तो कहा जा सकता है लेकिन प्रशासनिक दृष्टिकोण से यह घटना उत्तेजना पैदा करने वाली थी जिसे टाला जाना चाहिए था। अगली सुबह साढ़े नौ बजे करीब आईजी पुलिस एस0के0 भगत ने खोदादादपूर  का दौरा किया। स्थानीय पुलिस ने पड़ोस के गाँवों से भी कुछ सम्मानित लोगों को आमंत्रित किया  था। लेकिन आई जी महोदय ने शान्ति स्थापित करने के लिए जनता से किसी तरह के सहयोग की बात नहीं की। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि कानून तोड़ने वालों को बख्शा नहीं जाएगा और वह दोषियों को पुलिस के हवाले न करने की स्थिति में पुलिसिया तरीके अपनाने की बात कह कर चले गए। आईजी साहब की कानून तोड़ने वालों के खिलाफ कठोर रुख पर अभी बहस चल ही रही थी कि
धारा 144 लागू होने और पुलिस बल की नाक के नीचे फरीदाबाद में दंगाइयों की भीड़ जमा होने की खबरें गश्त करने लगीं। दोपहर बाद तीन बजे के करीब भाजपा के बाहुबली नेता रमाकांत यादव अपने दल बल के साथ खोदादादपूर दलित बस्ती में करीब दस मिनट रुकने के बाद फरीदाबाद गए और पाँच बजे तक कई अन्य गाँवों का दौरा किया। भाजपा जिला अध्यक्ष सहजानंद राय भी आ गए। भीड़ तेज़ी से बढ़ने लगी। करीब डेढ़ से दो हज़ार लोग फरीदाबाद में मुख्य सड़क से इतने करीब इकट्ठा थे कि कोई भी आने जाने वाला आसानी से उसे देख सकता था। उतनी ही भीड़ उनकी उत्तर दिशा में रेलवे लाइन के पास और दक्षिण दिशा में नहर के दूसरी तरफ भी मौजूद थी। वहाँ से गुज़रने वालों ने तो उस भीड़ को देखा और अनुमान भी लगा लिया कि अगले कुछ घंटों में क्या होने वाला है लेकिन जिला प्रशासन और फरीदाबाद में तैनात पुलिस बल ने कुछ नहीं देखा। पुलिस की निष्क्रियता को देखते हुए समाजवादी पार्टी के हिंदू मुस्लिम सभी नेताओं से सम्पर्क किया गया लेकिन उन्होंने यह कह कर घटना स्थल तक आने से इनकार कर दिया कि प्रशासन ने नेताओं के वहाँ जाने पर रोक लगा रखी है और वह प्रशासन से सम्पर्क में हैं। शाम को करीब साढ़े पाँच से पौने छः बजे के बीच फरीदाबाद मे मौजूद दंगाई भीड़ ने अचानक खोदादादपूर गाँव पर पूरब से हमला कर दिया। हाथों में तेल के गैलन, लाठी, भाला और तमंचे लिए हुए तेज़ी से गाँव के बिल्कुल करीब पहुँच गए। गाँव के लोगों ने बहुत कम संख्या बल के बावजूद उनका मुकाबला किया और उन्हें भागने पर विवश कर दिया। जिस समय भीड़ हमलावर थी उस समय घटना स्थल से थोड़ी ही दूर दो ट्रक पीएसी के जवान मौजूूद थे लेकिन मूक दर्शक बने रहे, पुलिस अधिकारियों ने भी कोई जुंबिश नहीं की। इसी दौरान डीएम आज़मगढ़ भी वहाँ पहुँच गए और पीएसी के जवानों के साथ भागती हुई भीड़ को वापस फरीदाबाद तक ले गए।
    कुछ देर बाद भीड़ वहाँ से बिखर गई। रेलवे लाइन के पास और नहर के दूसरी तरफ की भीड़ जो अपनी जगह खड़ी पूरा नज़ारा देख रही थी, छंटने लगी। फरीदाबाद से वापस जाती हुई दंगाइयों की टोलियों ने फरीदाबाद के पूर्व बनगाँव बाज़ार जहाँ मुसलमानों की केवल पाँच दुकानें थीं, को लूटा और जलाया और पास में ही स्थित शेखावत की आरा मशीन को तेल छिड़क कर आग लगी दी। इसके साथ ही दंगा कई किलोमीटर के दायरे में फैल गया। रात में करीब आधा दर्जन से अधिक जगहों पर राहगीरों में मुसलमानों की पहचान करके महिलाओं बच्चों समेत पचास से ज़्यादा लोगों को बुरी तरह पीटा और लूटा गया, कई वाहनों में तोड़फोड़ की गई और जलाया गया। भारी संख्या में पुलिस व पीएसी बल की मौजूदगी के बावजूद प्रशासन नाम की कोई चीज़ कहीं दिखाई नहीं पड़ रही थी। देर रात तक अराजकता का माहौल बना रहा। अगले दिन 16 मई को प्रशासन अलग रंग में दिखा। गश्त बढ़ गई। रैपिड एक्शन फोर्स का मार्च शुरू हो गया। राहगीरों की पिटाई की एक घटना को छोड़ दें तो सब कुछ शान्त रहा। तीन दिनों के लिए इंटरनेट सेवाएँ बंद कर दी गईं। पास के बाज़ार और जिले के स्कूल कालेज भी बंद कर दिए गए। चैबीस घंटे में ही स्थिति काबू में आ गई और तीसरे दिन स्थिति काफी हद तक सामान्य हो गई। इसके बाद कानूनी कारवाई का सिलसिला शुरू हुआ। पहले दिन की घटना की पुलिस की तरफ से एफ.आई.आर. दर्ज की गई जो केवल मुसलमानों के खिलाफ थी। हत्या के प्रयास समेत कई अन्य गम्भीर धाराओं में 21 नामज़द और 250 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। इस बात की भी व्यवस्था की गई कि खोदादादपूर के लोगों का कहीं मेडिकल न होने पाए। जहाँ भी लोगों ने मेडिकल करवाने का प्रयास किया उन्हें साफ मना कर दिया गया। जिन राहगीरों को गम्भीर चोटें आई थीं उनको इलाज के नाम पर अस्पतालों से मरहम पट्टी करवाकर घर भेज दिया गया। जिनकी हड्डियाँ टूटी थीं उनका एक्स रे तक नहीं किया गया। दूसरी तरफ 15 मई को दंगाई भीड़ द्वारा खोदादादपूर पर किए जाने वाले एकतरफा दंगाई हमले को दो समुदायों के बीच टकराव का रूप दे दिया गया और कहा गया कि 100-150 हिंदू और 200-250 मुसलमानों की आपस में भिड़न्त हुई। हिंदू भीड़ की तरफ से मुसाफिर और दो तीन अन्य दलितों को नामज़द करते हुए इस बात का संकेत भी दे दिया गया कि यह टकराव दलितों और मुसलमानों के बीच हुआ। जबकि दंगाई भीड़ की तरफ से यादव समाज के लोग अग्रणी भूमिका में थे। यादव बहुल गाँव फरीदाबाद उसके केंद्र में था। जिन स्थानों पर राहगीरों पर हमले किए गए उनमें भी एक दो को छोड़कर सभी घटनाएँ यादव बहुल आबादी के गाँवों के पास ही हुई थीं। इस बीच हिंदी मीडिया पुलिस के प्रवक्ता की तरह काम करता रहा। दंगाई भीड़ के हमले या राहगीरों की इतने व्यापक स्तर पर पिटाई उनके लिए कोई खबर नहीं थी। दरअसल खोदादादपूर की घटना का राजनैतिक लाभ उठाने के लिए ही उसे हिंदू-मुस्लिम बनाया गया थी। इसकी तैयारी पहले से ही चल रही थी। पिछली होली में 24 मार्च को फरीदाबाद में कुछ युवकों ने मुख्यमार्ग पर होली खेलना शुरू कर दिया और आने जाने वालों पर रंग डालने लगे। जब उन्होंने दाढ़ी वाले मुसलमानों और बुरकापोश महिलाओं पर जबरन रंग डाला तो बात बढ़ गई। अपनी इस हरकत पर शर्मिन्दा होने के बजाए मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं को एकजुट करने के लिए कई हिंदू गाँवों में माहौल बनाने का उस समय प्रयास भी किया था लेकिन कामयाबी नहीं मिली थी। खोदादादपूर में एक दलित के घर में आगज़नी की घटना पर फरीदाबाद के यादव समाज की प्रतिक्रिया उनका दलित प्रेम नहीं मुस्लिम दुश्मनी और राजनैतिक पैंतरेबाज़ी थी। इस उदाहरण से इसे आसानी से समझा जा सकता है। ग्राम खिल्लूपूर के एक दलित युवक का एक यादव लड़की से प्रेम हो गया और दोनों घर से फरार हो गए। इस घटना से आक्रोशित फरीदाबाद के यादव नौजवानों ने तीन किलोमीटर दूर खिल्लूपूर जाकर उक्त दलित के घर में तोड़फोड़ की और पूरा घर जला कर राख कर दिया। हद तो यह है कि हैंड पम्प तक तोड़ डाला और महिलाओं को बुरी तरह मारा पीटा। दलित परिवार को घर छोड़ कर भागने पर मजबूर कर दिया। डेढ़ साल तक दलित परिवार को अपने ही घर वापस नहीं आने दिया और न ही उनकी एफआईआर किसी थाने में दर्ज होने दी। इसके बावजूद अगर उसी जगह से दलित अत्याचार के नाम पर बदला लेने के लिए दंगे जैसी स्थिति पैदा की जाती है तो उसे स्वभाविक कैसे माना जा सकता है? वास्तविकता यह है कि दलितों के कंधे पर बंदूक रख कर साम्प्रदायिक उन्माद उत्पन्न करने का यह पूरा खेल भाजपा और समाजवादी पार्टी का मिला जुला खेल है जिसमें एक ने दंगे जैसी स्थिति पैदा की तो दूसरे ने अपनी आँखें बंद कर लीं। इस घटना के बाद सपा को यह एहसास होने लगा कि यादव समाज भाजपा के बाहुबली नेता रमाकांत यादव की झोली में चला जाएगा जिसे बचाने के लिए उसने उन्हें मुकदमों के जंजाल से बचा कर एहसान कर दिया। दूसरी तरफ मुसलमानों पर बड़े पैमाने पर शान्तिभंग की आशंका 107/116 का नोटिस जारी कर दिया गया। इसमें वह गाँव भी शामिल हैं जो खोदादादपूर से कई किलोमीटर की दूरी पर है और उन जगहों पर कोई घटना भी नहीं हुई थी। इस तरह सपा के मुस्लिम नेताओं को यह मौका दिया गया कि वह मुसलमानों को इस नई बला से बचाने के नाम पर अपनी पार्टी का कृतज्ञ बना सकें। इस तरह जहाँ एक तरफ भाजपा दलित वोट बैंक में  सेंधमारी की फिराक में है तो सपा नाराज़ मुसलमानों को अपने जाल में फँसाने के दाव खेल रही है।
-मसीहुद्दीन संजरी
मो 0 09455571488
लोकसंघर्ष पत्रिका के जून 2016 में प्रकाशित

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-07-2016) को "बरसो बदरवा" (चर्चा अंक-2391) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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