
15 हज़ार साल पहले यहां जो मानव रहते थे, वो इंसानों का ही मांस खाते थे. मांस से हड्डियां अलग करके उन्हें भी चबा लेते थे. ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ़ उनके साथ होता था जो उम्र में बड़े थे. यहां मिले अवशेषों से पता चलता है कि तीन साल का एक बच्चा और दो किशोर भी गुफ़ा में रहने वाले आदमख़ोर आदि मानवों के शिकार हुए थे. इस गुफ़ा में रहने वालों ने खोपड़ियां तराशकर उन्हें बर्तन की तरह इस्तेमाल किया, इसके सबूत भी गो की गुफ़ा में मिले हैं. इंसानों की हड्डियों को तराशकर गहनों की तरह इस्तेमाल करने के सबूत भी इस गुफ़ा में पाए गए हैं.
ब्रिस्टॉल में गो की गुफ़ा की खुदाई सबसे पहले 1880 में की गई थी. और इसे सैलानियों के लिए खोल दिया गया था. शायद इसीलिए यहां मिलने वाली चीज़ों की पुरातात्विक खोज-बीन नहीं की गई. लेकिन 1980 के दशक में जब एक बार फिर से यहां खुदाई का दौर शुरू हुआ तो इंसान और जानवरों के बहुत से अंगों के टुकड़े यहां मिले. जिन पर क़त्ल किये जाने जैसे निशान थे. कई साल की पड़ताल के बाद रिसर्चर इस नतीजे पर पहंचे कि इस गुफ़ा में जो इंसानी हड्डी मिली हैं वो उनका शिकार होने की तरफ़ इशारा करती हैं.
वैसे गो की गुफ़ा इकलौती मिसाल नहीं, जहां पर आदि मानवों के आदमख़ोर होने के सहूत मिले हों. इंसान के नरभक्षी होने के सबूत निएंडरथल आदि मानव के कई ठिकानों से भी मिले हैं. फ्रांस में मिले निएंडरथल मानव के क़रीब एक लाख साल पुराने अवशेष इस तरफ़ इशारा करते हैं. निएंडरथल मानव शायद अपने दुश्मन आदि मानवों का शिकार करते थे, या फिर अपने ही लोगों में से कुछ को मारकर खा जाते थे.

कैनेबलिज़्म या अपनी ही नस्ल के जीव को मारकर खाना ऐसा विषय है जिसकी पड़ताल, मानव विज्ञानियों के लिए भी आसान नहीं रही है. ये ऐसा विषय है जो इंसान के एक ऐसे भयानक पहलू को सामने लाता है जिस पर हम चाह कर भी यक़ीन नहीं करना चाहते. इन गुफ़ाओं में मिले अवशेषों पर जो निशान मिले हैं उन्हें देखकर ये कह पाना मुश्किल है कि उनका शिकार ज़िंदा रहते पर किया गया, या फिर, मरने के बाद हड्डियों से मांस अलग किया गया. ऐसा मांस खाने के लिए किया गया या फिर किसी रिवाज के तहत, ये भी साफ़ नहीं.
लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम की सिल्विया बेलो काफ़ी समय से गो की गुफ़ा में मिले अवशेषों की पड़ताल कर रही हैं. वो कहती हैं जानवरों के कंकाल में अगर कटने के निशान मिलते हैं तो उनके साथ हुई बेरहमी का अंदाज़ा साफ़ हो जाता है. लेकिन अगर इंसान के कंकाल में काट-छांट के सुबूत सामने आते हैं, तो उसे लेकर तस्वीर साफ़ नहीं होती. क़रीब 65 फ़ीसद से भी ज़्यादा हड्डियों पर पत्थरों से वार करने के निशान मिले हैं. और बहुत सी हड्डियों का तो चूरा ही बना दिया गया है. कुछ हड्डिय़ो पर इंसानी दांतों के निशान मिले हैं जिससे इंसान के नरभक्षी होने का पता चलता है.

सिल्विया के मुताबिक़, आदि मानवों के कई समूहों में लोग अपने मरे हुए साथियों के जिस्म को साथ लेकर चलते थे. इसके लिए कई बार वो मांस को उनकी हड्डियों से अलग कर देते थे. आज वैज्ञानिक इसे डिफ्लेशिंग कहते हैं. सिल्विया के मुताबिक़ शायद उनके लिए हड्डियों की अहमियत ज़्यादा होती थी.
सिल्विया की टीम के रिसर्चर रोसालिंड वालडक कहते हैं कि यूरोपीय देश सर्बिया में डिफ्लेशिंग के काफ़ी सबूत मिले हैं. ये पांच से दस हज़ार साल पुराने हैं. उस दौर में इंसान अक्सर अपना ठिकाना बदलता रहता था. शायद वो लोग अपने पुरखों की हड्डियां साथ रखते थे और उनसे बोलते बतियाते थे.
हालांकि इससे ये बात साफ़ नहीं हुई कि आख़िर, गो की गुफ़ा में रहने वाले इंसान नरभक्षी क्यों बने?
सिल्वियो बेलो कहती हैं गो की गुफ़ा में ऐसी किसी बात के संकेत नहीं मिलते कि वहां किसी की बेरहमी से हत्या की गई हो. क्योंकि अगर किसी का क़साई की तरह क़त्ल हुआ तो उसके निशान हड्डियों पर अलग ही और बेहद गहरे बनते हैं. लेकिन, डि-फ्लेशिंग के निशान बेहद हल्के होते हैं.

लेकिन यहां जो खोपड़ियां मिली हैं उन्हें लेकर अभी भी कोई साफ़ जवाब नहीं मिला है. बेलो कहती हैं कि हो सकता है इन लोगों ने इन खोपड़ियों को मुर्दे दफ़नाने की प्रक्रिया का हिस्सा बनाया हो.
बेलो का कहना है अगर किसी झगड़े की वजह से इन लोगों को मारा गया होता तो उसमें व्यस्कों का शिकार ज़्यादा किया गया होता, लेकिन ऐसा नहीं है. इसमें बच्चों के मांस खाए जाने निशान भी मिलते हैं. लिहाज़ा ये कहना मुश्किल है कि ये कोई लड़ाकू इंसानों का समूह था. जिनकी आपसी झगड़े में मौत हुई. हो सकता है इनकी क़ुदरती मौत हुई हो.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेर रिक शल्टिंग का कहना है कि इंसान के आदमख़ोर होने के बेहद कम सबूत मिलते थे. ऐसा अक्सर आपसी झगड़ों की वजह से होता था. जब जीतने वाले इंसान, हारे हुए लोगों के जिस्म को नोचते-खसोटते थे या उनके टुकड़े-टुकड़े कर डालते थे.

इसके सबसे हालिया सबूत क़रीब नौ सौ साल पुराने हैं. अमरीका के कोलोराडो में एक जगह पर भयंकर सूखे की वजह से इंसान, नरभक्षी हो गए थे.
ख़ैर, इंसान ने एक दूसरे का शिकार क्यों शुरू किया इस बारे में साफ़ तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है. ये बड़ी बहस का मुद्दा है. लेकिन इंसान के आदमख़ोर होने, एक-दूसरे को मारने की कोई एक वजह नहीं हो सकती.

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