सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

मोदी साहब ! देश इंसानी कसाईंखाना मत बनाइए


मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की सेंट्रल जेल से भागे सभी आठ सिमी आतंकियों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया है। आतंकी सोमवार तड़के जेल में एक प्रधान आरक्षक की हत्या कर जेल से फरार हो गए थे। इसके बाद पुलिस ने इन्हें गुनगा थाना क्षेत्र में ईंटखेड़ी गांव के पास घेर कर एनकाउंटर में ढेर कर दिया। इन आतंकियों में जाकिर हुसैन सादिक, मोहम्मद सलीक, महबूब गुड्डू, मोहम्मद खालिद अहमद, अकील, अमजद, शेख मुजीब और मजीद शामिल थे। सभी आतंकियों पर 5-5 लाख का इनाम घोषित कर दिया था। पुलिस के अनुसार  सोमवार तड़के साढ़े तीन बजे जेल के बी ब्लॉक में बंद सिमी के आठ आतंकियों ने बैरक तोड़ने के बाद हेड कांस्टेबल रमाशंकर की हत्या कर दी। इसके बाद चादर की मदद से आतंकी दीवार फांदकर फरार हो गए थे। कारागार में जहाँ कैदी बंद किये जाते हैं     उस कमरे के बाद तीन बड़ी दीवालें होती हैं और हर जगह पहरा होता है शाम को जब एक बार कैदी बैरक के अन्दर बंद कर दिया जाता है तो सुबह ही बैरक खोला जाता है इसलिए वार्डन की हत्या कर कैदियों का भाग जाना कहीं से भी संभव नहीं प्रतीत होता है. जिसकी पुष्टि
 ईंटखेड़ी गांव के प्रत्यक्षदर्शियों ने आईबीसी 24 चैनल को बताया कि उनलोगों ने कुछ लोगों को भागते हुए देखा था। जब उनलोगों ने उसे रोकने की कोशिश की तो आतंकी उन पर रोड़े बरसाने लगे। इसके तुरंत बाद गांववालों ने पुलिस को इसकी सूचना दी। मौके पर तुरंत पहुंची पुलिस ने थोड़ी ही देर में एनकाउंटर में इन सभी आतंकियों को मार गिराया।विशेष बात यह भी है की घटनास्थल  पर कोई असलहा आतंकवादियो के पास से नही पाया गया है. भोपाल में सिमी के कैदियों को एनकाउंटर में मार गिराने की बात तथ्यों के विपरीत होने के कारण फर्जी मुठभेड़ हैं इसकी जांच कराए जाने की आवश्यकता है जेल से निकाल हत्या कर दी है. भोपाल सेंट्रल जेल देश के चुनिंदा आधुनिक अति सुरक्षित जेलों मे माना जाता तो ऐसे कैसे हो गया की 8 बन्दी एक गार्ड का मर्डर भी कर देते हैं और फिर भाग भी जाते हैं और किसी को कानो कां खबर भी नही हुई ?  ये कि जेल से भागने के 10 घंटे बाद भी आठों बंदी 10 किलोमीटर भी नही भाग पाये और एक साथ एक जगह छिपे रहे ?  मध्यप्रदेश सरकार के ग्रह मंत्री कहते हैं कि फरार कैदियों के पास कोई हथियार नही था तो वहीं पुलिस के आला अधिकारी कह रहे हैं की वो हथियारों से लैस थे और उन्होंने पुलिस पे फायर किये जिसके बदले मे पुलिस ने उन्हें मार गिराया। उपरोक्त परिस्थितियां इस बात को और बल देती हैं की इनकाउंटर यह फ़र्ज़ी है ऐसे क्या हालात पैदा हो गए कि पुलिस को आठों कैदियों को जान से मारना पड़ा? क्या उनमे से कोई ज़िंदा नही पकड़ा जा सकता था ? दिल्ली से अलका लांबा ने ट्वीट कर कहा है कि- पहले आठ आतंकियों का भागा जाना और फिर एनकाउंटर में एक साथ मारे जाना। इसके लिए मप्र सरकार के पास 'व्यापमं' फार्मूला था। वहीं  भारतीय क्म्युनिस्ट पार्टी  उत्तर प्रदेश  के सचिव डॉ  गिरीश ने फेसबुक पर लिखा है एक को भी जिन्दा न पकड़ पाना और जेल से भाग जाने देना भी बहादुरी है और देशभक्ति भी।            
  पत्रकार  प्रवीण दूबे   ने लिखा   ---शिवराज जी...इस सिमी के कथित आतंकवादियों के एनकाउंटर पर कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है....मैं खुद मौके पर मौजूद था..सबसे पहले 5 किलोमीटर पैदल चलकर उस पहाड़ी पर पहुंचा, जहां उनकी लाशें थीं...आपके वीर जवानों ने ऐसे मारा कि अस्पताल तक पहुँचने लायक़ भी नहीं छोड़ा...न...न आपके भक्त मुझे देशद्रोही ठहराएं, उससे पहले मैं स्पष्ट कर दूँ...मैं उनका पक्ष नहीं ले रहा....उन्हें शहीद या निर्दोष भी नहीं मान रहा हूँ लेकिन सर इनको जिंदा क्यों नहीं पकड़ा गया..? मेरी एटीएस चीफ संजीव शमी से वहीं मौके पर बात हुई और मैंने पूछा कि क्यों सरेंडर कराने के बजाय सीधे मार दिया..? उनका जवाब था कि वे भागने की कोशिश कर रहे थे और काबू में नहीं आ रहे थे, जबकि पहाड़ी के जिस छोर पर उनकी बॉडी मिली, वहां से वो एक कदम भी आगे जाते तो सैकड़ों फीट नीचे गिरकर भी मर सकते थे..मैंने खुद अपनी एक जोड़ी नंगी आँखों से आपकी फ़ोर्स को इनके मारे जाने के बाद हवाई फायर करते देखा, ताकि खाली कारतूस के खोखे कहानी के किरदार बन सकें.. उनको जिंदा पकड़ना तो आसान था फिर भी उन्हें सीधा मार दिया...और तो और जिसके शरीर में थोड़ी सी भी जुंबिश दिखी उसे फिर गोली मारी गई...एकाध को तो जिंदा पकड लेते....उनसे मोटिव तो पूछा जाना चाहिए कि वो जेल से कौन सी बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए भागे थे..?अब आपकी पुलिस कुछ भी कहानी गढ़ लेगी कि प्रधानमन्त्री निवास में बड़े हमले के लिए निकले थे या ओबामा के प्लेन को हाइजैक करने वाले थे, तो हमें मानना ही पड़ेगा क्यूंकि आठों तो मर गए... शिवराज जी सर्जिकल स्ट्राइक यदि आंतरिक सुरक्षा का भी फैशन बन गया तो मुश्किल होगी...फिर कहूँगा कि एकाध को जिंदा रखना था भले ही इत्तू सा...सिर्फ उसके बयान होने तक....चलिए कोई बात नहीं...मार दिया..मार दिया लेकिन इसके पीछे की कहानी ज़रूर अच्छी सुनाइयेगा, जब वक़्त मिले...कसम से दादी के गुज़रने के बाद कोई अच्छी कहानी सुने हुए सालों हो गए....आपके  भक्त
                                                                  
जेल के अन्दर से अगर निकाल कर मुठभेड़ के नाम पर हत्याएं की जा रही हैं तो यह सब संघ परिवार के घिनौने चहरे को प्रदर्शित करती हैं लेकिन प्रधानमंत्री से कहना चाहूँगा कि आप संघ के प्रचारक अवश्य रहे हैं लेकिन देश के प्रधानमंत्री भी हैं और इस तरह की कार्यवहियाँ देश को इंसानी कसाईखाने के रूप में तब्दील कर रही हैं. इससे देश का चेहरा बदरंग हो रहा है.

सुमन
लो क सं घ र्ष !

2 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

जिन्दा रहते तो क्या कर लेते फिर वही कहानी ...
और जो जिन्दा हैं वे क्या करते हैं देश के लिए ये कौन पूछने-देखने वाला? पालते रहते तो हैं जिंदगी भर या फिर इंतज़ार होता है अगले काण्ड का?????

बेनामी ने कहा…

bada hi randi ka pilla hai tu to. aatankiyon ke paksh men golbandi ka prayaas. thu hai teri ammi ke pet ko

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